वर्तमान से 200 वर्ष पहले हिंदुस्तान कैंसा था ? क्या किसी ने सोचा था कि जब भारत देश आजाद होगा उसके बाद की राजनीति और उस मसय में लोगों की भारत के प्रति या सोच होगी? जिस तरह के वर्तमान के राजनैतिक दल और संगठन गंधी राजनीति करते है यह अपने आप में बहुत दुःख की बात है, लेकिन जिस तरह से आजादी में हिंदुस्तान के प्रत्येक धर्म और समाज ने अपना योगदान दिया यह हर भारतवासी के लिए गर्व की बात है आज ऐसे ही क्रांतिकारी के बारे में बात करेंगे जिनका नाम बैरिस्टर आसिफ़ अली है|
देश का ऐसा स्वतंत्रता संग्राम सेनानी जिसने ब्रिटिश शासन के डूबते सूरज तेस देश की आज़ादी के उगते हुए सूरज तक का संघर्षपूर्ण जीवन गुजारा हो, जिसने अपनी क्षमताओं, योग्यताओं, हिम्मत और हौसले से आज़ादी की लड़ाई में अविस्मरणीय योगदान दिया हो, साथ ही आज़ादी के बाद आधुनिक भारत के निर्माण में जिसके बेमिसाल कारनामों की यादें आज भी बाकी हों, भारत के उस होनहार सपूत का नाम है बैरिस्टर आसिफ़ अली।
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बैरिस्टर आसिफ़ अली का जन्म और तालीम ( शिक्षा):-
इनका जन्म 1888 में दिल्ली में हुआ था उनका पैतृक मकान परानी दिल्ली से
के मोहल्ला कूचा चेलान” में था। उनकी आरंभिक तालीम दिल्ली में ही हुई । कि वह एक पढ़े-लिखे घराने से थे, इसलिए उनकी तालीम की तरफ़ ख़ास आन दिया गया। हालांकि वह खुद भी पढाई में दिलचस्पी रखते थे। कोर्स की के साथ ही इतिहास एवं राजनीति की ओर उनका विशेष रुझान था। वैसे जब शेर व शायरी का भी शौक़ था।
ग्रेजुएशन के बाद उच्च शिक्षा के लिए वह इंग्लैंड गए। वहां दिन, रात पढ़ाई करके बार-एट-लॉ की डिग्री हासिल की और अपने वतन वापस आ गए। उस दौर की यह परम्परा थी कि देशवासी जो कि जब शिक्षा के लिए विदेश जाते थे, पढ़ाई पूरी करके अपने वतन की मुहब्बत या जिला में वापस लौट आते थे। उस समय उनके दिलों में वतन-प्रेम समाया हुआ था।
यह विदेश की रंग-रलियों, वहां की मौज-मस्ती, ऐश व आराम और चैन- सुकून से अपने दिलों को नहीं बहला पाते थे। उन्हें अपने वतन के संघर्ष भरे दिन, चिंता भरी कभी इंकिलाब ज़िंदाबाद, कभी जेलों की काल कोठरियां, कभी फ़िरंगी लाठियां तो कहीं बंदूकों की गोलियों की चीख व पुकार, हाहाकार विदेशों में भी चैन से नहीं रहने देता था। आसिफ़ अली ने भी अन्य देश प्रेमियों की तरह बेरिस्टी की डिग्री हासिल कर अपने वतन की सरजमीं को ही आकर चूमा। चूंकि वह विदेश के पढ़े लिखे थे, इस कारण अंग्रेज़ी पर तो उन्हें महारत थी की लेकिन उर्दू अदब और फ़ारसी आदि में भी वह किसी से पीछे नहीं रहे।
बैरिस्टर आसिफ़ अली इंग्लैंड में शिक्षा लेने के बाद भारत वापस:-
1915 में जब वह बैरिस्टर की हैसियत से हिन्दुस्तान लौट आए, तो अपनी तालीम के आधार पर वह अपना पेशा चमका सकते थे। उस समय तालीम पाया हुआ प्रत्येक देशवासी चाहे वह बैरिस्टरी की डिग्री प्राप्त किये हुए हो या डॉक्टरी की तालीम हासिल करके आया हो, सभी का काम और कर्त्तव्य एक ही हुआ करता था, देश की आज़ादी के लिए आंदोलन करना। देश पर अपनी योग्यताएं और क्षमताएं न्यौछावर करना |
बैरिस्टर आसिफ़ अली के अंदर एक खासियत थी कि बह बड़े नेताओं से जल्दी ही अपना नाता जोड़ लेते थे गांधी जी की नीतियों के कारण उन्हें उनसे विशेष लगाव था। गांधी जी भी बैरिस्टर आसिफ़ अली की योग्यताओं और देश के प्रति उनकी सच्ची भावनाओं से बहुत प्रभावित थे। आसिफ़ अली आज़ादी के आंदोलनों में पूरी तरह से कांग्रेस से जुड़े हुए थे। वह ज़रूरत पड़ने पर अदालतों में अपनी पार्टी और देश के नेताओं की क़ानूनी पैरवी भी किया करते थे।
उदाहरण के तौर से लाल क़िले में आज़ाद हिन्द फ़ौज का मुक़द्दमा हो, या महान क्रांतिकारी नेता भगत सिंह का मुक़द्दमा, बैरिस्टर आसिफ़ अली ने अपनी पूरी योग्यता के साथ पैरवी की।
विरोध के बावजूद बैरिस्टर आसिफ़ अली और अरुणा गांगुली की शादी:-
1942 में मौलाना मदनी पर ब्रिटिश शासन द्वारा जो मुकद्दमा चलाया गया था, उसमें भी आसिफ़ अली द्वारा ही पैरवी की गई थी। उन्हें आजादी के संघर्ष में अंदरूनी तौर से सहयोग उस समय से मिलना शुरू हुआ जब उनकी शादी स्वतंत्रता सेनानी अरुणा गांगुली से हुई। वह शादी दोनों की ख़ुशी और सहमति की थी। हालांकि पुरानी परम्परा के अनुसार आसिफ़ अली को उनके घरवालों द्वारा ऐसा करने से बहुत रोका गया। उधर अरुणा गांगुली के घर से भी इसका कड़ा विरोध किया गया, परन्तु दोनों की सहमति ने समाज और मज़हब की पाबंदियों को नहीं माना, यहां तक कि अरुणा गांगुली शादी के मज़बूत बंधन में बंध कर अरुणा आसिफ़ अली (1909-1996) बन गई।
बैरिस्टर साहिब में जहां अन्य योग्यताएं थीं, वहीं वह ऐसी तक़रीर करने वाले भी थे जिसकी आवाज़, सुनने वालों के दिलों पर गहरा असर करती थी। फ़िरंगियों के ज़ुल्म का उनके दिल में दर्द भरा एहसास था। उनके दिमाग़ में आज़ादी के आंदोलनों की सफलता की चिंता थी। रोलट एक्ट के विरोध में जब गांधी जी ने बड़े स्तर पर आंदोलन का बिगुल बजाया तो डाक्टर मुख्तार अहमद अंसारी, स्वामी श्रद्धानंद, मौलाना हसरत मोहानी, हकीम अजमल ख़ां और लाला शंकरलाल के सत्याग्रह को सफल बनाने में बैरिस्टर साहिब का बड़ा हाथ रहा।
अरुणा गांगुली और उनके पति बैरिस्टर आसिफ़ अली का संगठन की मदद से जागरूकता अभियान:-
उन्होंने संगठित करने का कठिन काम किया। क्योंकि कोई भी सत्याग्रहो या आंदोलन, हड़ताल हो या भूख हड़ताल, वह उस कामयाब माना जाता है जब तक उसके पीछे अवाम की शक्ति हो। भी आंदोलनों में भाग लेते, साथ ही अपनी तकरीरों से प्रभावित कर कभी जोड़ते थे। उनकी दौड़-धूप और मेहनत के कारण उस समय दिल्ली एक बड़ी हड़ताल हुई। सब ने मिलकर ब्रिटिश शासन के विरुद्ध एक बड़ा जुलूस काला, नारेबाजी की। यह आवाज़ और ख़बरें देश में जगह-जगह फैली। शासन वे अपनी नीति के अनुसार आंदोलनकारियों पर सख्ती की। कहीं लाठियां चलाई। तो कहीं गोलियां दागी।
आसिफ़ अली शासन की सख्ती की परवाह किए बगैर आंदोलन की सफलता के लिए मुसलमानों को पुकारते और हिन्दुओं को आवाज़े लगा आंदोलन की कामयाबी को देखकर ब्रिटिश शासन पर असर भी पड़ा और दबाव भी बढ़ा।
आजादी में महत्वपूर्ण योगदान;-
आजादी के संघर्ष में ख़िलाफ़त कान्फ्रेंस हो या जलियाँवाला बाग़ की दर्दनाक खूनी घटना हो, मुस्लिम लीग का अवामी जलसा हो या कांग्रेस का असहयोग आन्दोलन आदि। उन सभी में बैरिस्टर साहिब का सहयोग अपने वतन से मुहब्बत की गवाही देता है। उनके बेबाक निडर भाषणों में ब्रिटिश शासन के खिलाफ़ इतना तीखापन होता था कि शासन को उनकी तक़रीर का एक-एक शब्द चुभता था।
इसी कारण डिफ़ेस आफ इंडिया एक्ट (एक आपातकालीन आपराधिक कानून) के तहत एक समय उनकी तक़रीर करने पर पाबंदी लगा दी गई। उनकी तक़रीर पर पाबंदी लगाए जाने पर भी भारत के उस सपूत ने शासन की किसी भी पाबंदी की परवाह नहीं की। उन्होंने अपने क्रांतिकारी साथी पंडित नेकीराम शर्मा के साथ पुरानी दिल्ली में जोशीली तक़रीर की। इस कारण उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया। अपर मुकदमा भी कायम किया गया। एक योग्य बैरिस्टर होने के नाते उन्होंने अपना मुकदमा खुद लड़ा। इसके अलावा देश के दूसरे क्रांतिकारी नेताओं के मुकदमे लड़कर फिरंगी आरोपों की उन्होंने धज्जियां उड़ाई।
शासन के विरुद्ध गतिविधियों में शामिल होने के कारण उन्हें कई बार जेल जाना पड़ा। वहां उन्होंने जेल खाने की सख़्तियां भी बर्दाश्त कीं। वह किसी भी डर या दबाव में आकर आज़ादी की राह से नहीं हटे। उनका और उनके देश प्रेमी दूसरे साथियों का तो केवल एक ही मक़सद था “फ़िरंगी शासन भारत से अपना नाजायज़ क़ब्ज़ा हटाए”। अपनी इस मांग को मनवाने में उन्हें न तो जेल की कालकोठरियां डरा सकीं और न ही फ़िरंगी लाठियां धमका सकीं। वह किसी भी डर या दबाव में आकर आज़ादी की राह से नहीं हटे।
बैरिस्टर आसिफ़ अली की गिरफ्तारी:-
इस तरह बैरिस्टर आसिफ़ अली ने कांग्रेस के नेताओं के साथ आज़ादी के आन्दोलनों में भाग लिया। सत्याग्रहों एवं आन्दोलनों में भाग लेने के कारण गिरफ्तार हो कर वह जेलों में भेजे जाते रहे। उनकी गिनती नेताओं में होती थी। उन्होंने जहां देश को आजाद कराने के समय कुनिया है वही आज़ादी के बाद आधुनिक भारत के निर्माण में भी उनका बड़ा योगदान हैवह दिल्ली म्युनिसिपल कमेटी के मेम्बर भी चुने जाते रहो उन्होंने के कानून में कमियों को दूर करने के लिए प्रस्ताव पेश किए। यहां तक कि दिल्ली को अलग रियासत बनाने का प्रस्ताव भी बेरिस्टर साहिब द्वारा दिया गया।
बैरिस्टर आसिफ़ अली रेल मंत्री की ज़िम्मेदारी:-
1946 में गठित अस्थायी सरकार में बैरिस्टर साहिब को रेल मंत्री की ज़िम्मेदारी सौंपी गई। उस समय उन्होंने गांधी जी की सहमति से हिन्दू-मुसलमान के बीच छुआछूत की वर्षों पुरानी दीवार को ढाने का एक क्रांतिकारी कदम उठाया यात्रियों की सुविधा के लिए पहले रेल्वे स्टेशनों पर पानी का इन्तिज़ाम किया था। वहां “हिन्दु पानी” और “मुसलमान पानी के नाम से अलग-अलग प्रबंध जाता किया जाता था। हालांकि दोनों पानी एक जैसे ही होते थे, मगर आपसी के नाम पर हिन्दू-मुसलमान का बंटवारा था। बेरिस्टर आसिफ़ अली ने अपने रेल मंत्री कार्यकाल के दौरान स्टेशनों पर पानी के बंटवारे को खत्म करके दोनों इक ही साफ-सुथरे पानी की व्यवस्था करवाई। उनके इस साहस भरे फैसले में समाज के बीच हुआछूत के खात्मे की पहल हुई।
यह एक सच्चाई है कि ऐसे समाज सुधारक और निडर व्यक्तियों को ही देश की जोखिम भरी जिम्मेदारियां दी जाती रही है, जिन्हें वह भलीभांति निभा कर आप एकता को मजबूत कर, सभ्य समाज का निर्माण कर सके। बैरिस्टर साहिब की हर तरह की योग्यताओं को ध्यान में रखते हुए 1946 में उन्हें भारत का रा कर अमरीका भेजा गया। उन्होंने वहां दो वर्षों तक बहुत कामयाबी के साथ जिम्मेदारी निभाई। इसके अलावा वह संयुक्त राष्ट्र संघ (United Nations) में भो हिन्दुस्तान के प्रतिनिधि बनाए गए। उनकी योग्यता ने देश एवं विदेश सभी जगहों पर अपना प्रभाव डाला तथा देश का नाम रौशन किया।
बैरिस्टर आसिफ़ अली उड़ीसा का गवर्नर की नियुक्ति:-
बैरिस्टर आसिफ़ अली की सेवाओं का अलग-अलग ओहदों पर एवं पृथक- पृथक स्थानों पर लाभ लिया जाता रहा। 1948 में उन्हें उड़ीसा का गवर्नर नियुक्त किया गया। उन्होंने उड़ीसा के गवर्नर का ओहदा संभाल कर रियासत के पिछड़ेपन को दूर करने के अथक प्रयास किए। वहां जिन सुविधाओं का आभाव था उनके सिलसिले में विशेष रुचि लेकर अवाम को सुविधाएं उपलब्ध कराने में अपना सहयोग दिया। उड़ीसा के विकास के लिए जितने भी हो सके, संसाधन दिलवाए इस प्रकार बैरिस्टर साहिब ने चार वर्षों तक उड़ीसा का गवर्नर रह कर वहां के पिछड़ेपन को दर करने में सराहनीय योगदान दिया।
उन्होंने सच्ची भावना के साथ देश सेवा करके न केवल देशवासियों को लाभ पहुंचाया, बल्कि देश निर्माण में उनका प्रत्येक कारनामा देश की तरक़्क़ी के लिए मील का पत्थर साबित हुआ। उन्हें पं. जवाहरलाल नेहरू की केन्द्र सरकार द्वारा फिर से एक ज़िम्मेदारी सौंपी गई। उन्हें स्वीज़रलैंड में भारत का राजदूत बना कर भेज दिया गया। साथ ही आस्ट्रेलिया में उन्हें भारत का प्रतिनिधि भी नियुक्त किया गया। समय-समय पर सौंपी गई जिम्मेदारियों को उन्होंने सूझ-बूझ के साथ पूरा किया। देश में रह कर सदैव देश निर्माण, देश के विकास और तरक़्क़ी पर ध्यान दिया।
जिन्दगी का आखिरी सफ़र:-
बैरिस्टर साहिब देश को आज़ाद कराने से लेकर देश निर्माण तक देश हित के कामों में व्यस्त रहते हुए न केवल शरीर से, बल्कि अपने जीवन से भी थक चुके थे। इन्ही कारणों से उनका स्वास्थ्य भी ख़राब रहने लगा था। यहां तक कि 12 अप्रैल 1953 को उनके थके हुए दिल की धड़कनें सुस्ताने के लिए स्वीज़रलैंड में ही थम गयी |
भारत के उस होनहार सपूत, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, आधुनिक भारत के निर्माता के शरीर को हिन्दुस्तान ही लाया गया। बैरिस्टर आसिफ़ अली के जनाज़े में अन्यों के अलावा पंडित जवाहरलाल नेहरू एवं दूसरे नेता भी शामिल हुए। उन्हें दिल्ली के निज़ामुद्दीन इलाक़े में बंगले वाली मस्जिद के पीछे ख़्वाजा निज़ामी कब्रिस्तान में दफनाया गया।
बैरिस्टर आसिफ़ अली न केवल एक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे, बल्कि आज़ादी के बाद भी उन्होंने आधुनिक भारत के निर्माण में जो कार्य कर दिखाए वे सराहनीय हैं। इस प्रकार उन्हें आधुनिक भारत का निर्माता कहा जाना उचित होगा। उनके कारनमों से आने वाली पीढ़ियों को भी परिचित कराना ज़रूरी है।
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