वर्ण व्यवस्था किसी प्रकार के भेदभाव को नहीं मानता नहीं मानता लेकिन जाति जन्म से ही भेदभाव निहित है इस लिए उसमें ज्यादा भेड भाव होते है यह कोई नयी बात नहीं है जब से जन, जनपद और महाजनपद का विकाश हुआ है तब से आज तक जतियों में भेदभाव देखा जाता है
वर्ण व्यवस्था का उदय कब हुआ?
ऋग्वेद में वर्णन हुआ है लेकिन कुछ वर्षों के बाद यह उत्तर वैदिक कल में जाति व्यवस्था के रूप में बदल गयी उस समय में कई समूह हुआ करते थे जिसमें पुरोहित ,योद्दा,कृषक, पशुपालक, व्यापारी,शिल्पकार ,श्रमिक मछली पकड़ें वाला तथा जंगल में रहे वाले लोग आदि थे ,यहाँ जो वर्ण जिस तरह का कार्य करता था उसको उस तरह की जाती में बदल दिया गया जैसे जो लोग जगल में रहा करते थे उनको आदिवासी का नाम दे दिया गया |
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वर्ण व्यवस्था और जाति व्यवस्था में अमीर किसको माना गया?
इसका वर्णन ऋग्वेद में हुआ उसके बाद जाति व्यवस्था का उदय होता है उसमें जो लोग जैसे हुआ करते थे उनको उस तरह की जाति दे दी गयी, इसकें सबसे अमीर पुरोहित और योद्दा किसान और व्यापारी को माना गया क्यों कि उनके पास सम्पति हुआ करती थी लेकिन दूसरी तरफ पशुपालक, शिल्पकार और जंगल में रहने वाले लोग को गरीव ( निर्धन) श्रेणी में रखा गया , जो वर्ण व्यवस्था पुराने जमाने से चली आ रही है वही आज भी जारी है | इस तरह से कह सकते है ,जाति व्यवस्था अमीरी और गरीबी की परिकल्पना प्राचीन काल से ही चली आ रही है|
जाति व्यवस्था में पुरोहितों को कितने भागों में विभाजित किया गया है ?
जब से वर्ण व्यवस्था या जाति व्यवस्था का उदय हुआ है तब से वर्तमान तक पुरोहितों को सबसे ज्यादा अमीर की श्रेणी में देखा गया और रखा भी गया |
पुरोहितों को चार भागों में बांटा गया है ,ब्राहमण (जिसको वेदों का ज्ञान हो ), क्षत्रीय( योद्धा हो ) तथा वैश्य और शूद्र| पुरोहितों को इन चार भागों में बाँटा गया था जिसमें, जिसका जो कम हुआ करता था वो उस काम को किया करते थे|
जैसे -ब्राहमण का काम पूजा करना, क्षत्रीय जो युद्ध लड़ा करते थे या रहा महाराजो के यहाँ सेनापति भी हुआ करते थे
शूद्रों का काम सबकी सेवा करना था, जैसे राजा महाराजा, कोई विद्द्वान पंडित या क्षत्रीय, सबकी सेवा में शूद्रोंको लगाया गया |सबसे महत्त्व पूर्ण बात यह, उस समय महिलाओं को भी शूद्रों की श्रेणी में रखा गया और इनको ( महिलाओं और शूद्रों ) वेदों के अध्यन का अधिकार नहीं था |
महिलाओं और शूद्रों का भला हो इसके लिए धार्मिक सुधार आन्दोलन के प्रणेता स्वामी दयानन्द सरस्वती बहुत से आन्दोलन चलाये|
इसके बाद ही महिलाओं और शूद्रों को वेदों का ज्ञान लेने की अनुमति मिली थी |
वर्ण व्यवस्था में अछूत किसको माना गया ?
पुरोहितों के अनुसार सभी वर्गों का निर्धारण जन्म होता है मतलब यह कि कोई भी व्यक्ति यदि शूद्र के घर में पैदा हुआ तो वह शूद्र कहलायेगा और और कोई व्यक्ति यदि आदिवासी के घर में पैदा हुआ ट वह आदिवासी ही कहलायेगा यह वर्ण व्यवस्था में पुरोहितों को माना गया है यहाँ शिल्पकार, शिकारी तथा भोजन-संग्राहक को अछोत की श्रेणी में रखा गया |
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