एक समय था जब भारत में न ही अंग्रेजी शासन था और न अंग्रेजी व्यवस्था लेकिन जब अंग्रेज भारत व्यापर करने के लिए आये तब उन्होंने देख, यहाँ के लोग बहुत भोले-भाले है इनको बहुत आसानी से गुलाम बनाया जा सकता इसीलिए अंग्रेजों ने भारतीय इतिहास और संस्कृति को जानने की कोशिस की और अपने हिसाब से लिखने और बताने की कोशिस की, इसी को भारतीय इतिहास में उपनिवेशवाद कहा गया है |
दूसरे शब्दों में जैसे ही ब्रिटिश उपनिवेशिक सत्ता भारत में स्थापित हुयी वैसे ही उन्होंने भारत की संस्कृति और सभ्यता को अपने नजरिये से देखने की कोशिक की, इसकी अपनी कुछ आवश्यकताएं थी या हम ये कहें इनकी अपनी कुछ जरूरतें थी|
उन जरूरतों की पूर्ति करने के लिए यह जरूरी हो गया था कि अंग्रेज (उस समय की ईस्ट इण्डिया कंपनी के अधिकारी) प्राचीन भारत को अपने तरीके से समझें और उसके हिसाब से यहाँ की शासन व्यवस्था को अंजाम दें |
भारतीय इतिहास में उपनिवेशवाद के विचारों को तीन प्रकार के व्यक्त किया गया है जिसमें पहला उपनिवेशवादी विचार, राष्ट्रवादी विचार और अराजनैतिक इतिहास है
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उपनिवेशवाद पर विचार:-
जब भारत देश में ब्रिटिश उपनिवेशिक सत्ता अपने तरीके से भारत को देख रही थी उस समय कुछ राष्ट्रवादी विचार के पक्ष पोषक (लेखक) थे उन्होंने भारत के प्राचीन इतिहास के संदर्भ में अलग सहमति थी
इसको हम ऐसे समझने की कोशिक करते है, व्रिटिशों ने भारत को जानने के लिए उपनिवेशवादी विचार की सहायता ली उसके बाद भारत देश के राष्ट्रवादी विचारधारा के लोगों ने इसको अपने हिसाब से बताने की कोशिस की |
उपनिवेशवादी विचार की व्याख्या:-
भारत देश में व्रिटिश सत्ता की स्थापना हुयी तो इनको उपनिवेशिक शासन की जरुरत थी लेकिन उसको प्रभुत्व में कैसे लाया जाये इसीलिए अंग्रेजो ने कुछ चालाकियां भी की जब 1757 में प्लासी का युद्ध हुआ उसके बाद 1764 में बक्सर का युद्द और उसके बाद ईस्ट इण्डिया कंपनी अपना प्रभुत्त्व जमाने के बाद सत्ता सँभालने के साथ- साथ यहाँ पर भारतीयों के विचार बदलने शुरू कर दिए |
जब यह सब हो रहा था उस समय का बंगाल का पूरा का पूरा दायरा व्रिटिश ईस्ट इण्डिया कंपनी के दायरे में आ चुका था इसी के सन्दर्भ में अंग्रेजों ने ऐसे कार्य किये जिसके माध्यम से जिससे प्रशाशन चलाने में आसानी हो |
अंग्रेजों ने (उस समय की ईस्ट इण्डिया कंपनी ) संस्थागत निर्माण किये जिसमें सबसे बड़ा योगदान वारेन हेस्टिंग के समय को जाता है
वारेन हेस्टिंग के समय संस्थागत निर्माण:-
सबसे पहले अंग्रेजों ने कानून बनाना शुरू कर दिया जिसमें सबसे पहला कानून 1784 में Asiatic society of Bengal स्थापित किया गया यह कानून सर विलियम जोन्स की अध्यक्षता में इसकी स्थापना हुआ था इसके बाद बनारस में 1791 संस्कृत कालेज की स्थापना की गयी जिसको बाद में संपूर्णा नन्द संस्कृत विश्व विद्यालय का नाम दे दिया गया |
इनका मूल मकसद भारत देश की सस्कृति और उसकी विरासत को समझना था क्योंकि 17वीं इश्वी के मध्य में हिन्दू और मुश्लिम दो ऐसे वर्ग थे जो अपने- अपने नियम कानूनों से चला करते थे, उनके लिए कोई कानून या किसी भी प्रकार का नियम नहीं था |
इतिहास में दर्ज है 16वीं सदी के मध्य अंग्रेज भारत आये उस समय भारत देश की संस्कृति के बारे ने ज्यादा अध्यन नहीं था इसलिए उन्होंने इस अध्यन को करने के लये कुछ संस्थागत नियम कानून बनाये,उसी में एक बनारस का संस्कृत कालेज की स्थापना एक है |
विभिन्न साहित्यों का अंग्रेजी में अनुवाद”-
भारत देश के इतिहास को बदलने और समझने के लिए अंग्रेजो ने विभिन्न तरह के साहित्यों का अंग्रेजी में अनुवाद भी किया ताकि वो भारत की संस्कृत का अच्छे से अध्यन कर सकें |
सबसे पहले अंग्रेजों ने मनुस्मृति का अनुवाद 1776 में किया गया और 1785 में चार्ल्स डिंकस ने भग्वद गीता का अंग्रेजी में अनुवाद किया, इसके आलावा 1789 में सर विलियम जोन्स ने अभिज्ञान सकुनतम नामक पुस्तक का अनुवाद किया|
मनुस्मृति, मानव शास्त्र = मानव + धर्मशास्त्र को समझने में लाया जाता है
सबसे पहले मनुस्मृति को संस्कृति में लिखा गया था उसके बाद इसको अलग-अलग भाषाओँ में समझने के लिए पहले अंग्रेजी भाषा में उसके बाद फारसी भाषा में भी इस महान ग्रन्थ का अनुवाद हुआ||
औपनिवेशिक निष्कर्ष:-
आपको पता है अंग्रेज व्यापर करने के उदेश्य से आये थे लेकिन जब उनको लगा, व्यापार के साथ- साथ इस देश पर कव्जा भी हो सकता है इसलिए उन्होंने भारत के उपनिवेश वाद , ग्रंथों तथा पुराणों का अध्यन करना शुरू कर दिया था
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FAQ
An early history of India नामक एक पुस्तक वर्ष 1804 में लिखी थी जिसके माध्यम से भारत पर सिकंदर जैसे आक्रमणकारी ने आक्रमण किया उसी को माध्यम रखते हुए इस पुस्तक में जिक्र किया गया था जोकि पूर्ण रूप से रही नहीं है लेकिन इस पुस्तक की बहुत जोरों शोरो से चर्चा हुयी थी |
A code of Jentoo laws के नाम से इसका अनुवाद किया गया था जोकि अंग्रेजी भाषा में उपलब्ध है| Jentoo का मतलब यूरोपीय भाषा में स्थानीय लोग होगा है इसलिए इस अंग्रेजी नाम में Jentoo laws का उपयोग किया गया है
इसका अनुवाद एक अंग्रेज अधिकारी जिसका नाम सर विलियम जोन्स ने 1789 में किया ताकि वह भारत के धर्म और संस्कृत को समझ सके |
वर्तमान समय में भारत के ग्रंथों की चर्चाओं में सबसे ज्यादा चर्चा में रहने वाला ग्रन्थ है जिसको सबसे पहले 1776 में अंग्रेजों अनुवाद किया गया था |