जब हम भारत के इतिहास और आजादी को समझते है तो हमारे सामने दो पहलू आते है, पहला जो हमने पढ़ा, दूसरा जो हमने रिसर्च करके पढ़ा, यहाँ बुन्देखंड के इतिहास को समझेंगे, यह रिसर्च अलग- अलग लाईब्रेरी, किताबों और न्यूज संस्थानों से लिया गया है
मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड सागर जिले में स्वाधीनता आन्दोलन के प्रथम चरण के तहत 1842 का ‘बुन्देला विद्रोह के बाद 1857 का प्रथम स्वातन्त्र्य समर आता है 1857 ई. के पश्चात् सागर जिले में स्वाधीनता आन्दोलन का द्वितीय चरण आरम्भ हो जाता है। read it also about indian freedom fighter
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1857 बुन्देलखण्ड का प्रथम स्वतंत्रा समर का पूरा इतिहास:-
यह बहुत बड़ी घटनाओं में से एक घटना है जो नवम्बर 1858 के समय में घटित हुयी इस दौरान सागर के डिप्टी कमिश्नर मिस्टर वेस्टर्न ने सागर जिले के दूरस्थ ग्रामों का दौरा किया। अपने दौरे के पश्चात् उन्होंने कहा कि लूटमार, डाका आदि घटनाओं में कमी हुई है। नवम्बर के पिछले सप्ताह में केवल ऐसी छः घटनाओं का ही पता चला। गाँवों में किसानों के खेत बोये भी नहीं गए, किसान अधिक दुःखी हैं क्योंकि गत वर्ष उनके मवेशियों तथा अनाज को लूट लिया गया। तकाबी तथा अग्रिम मिलने के बावजूद भी अनेक कठिनाइयों रही हैं। read about Tipu sultan
सरकारी रिपोर्टों से पता चलता है कि 1857 के स्वतंत्रा समर के दौरान सागर क्षेत्र के कृषकों को विभिन्न तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ा और इस जिले में 1857 का प्रथम स्वातन्त्र्य समर तो समाप्त हो चुका या मगर आम ग्रामीण कृषक की समस्याएं अभी जस की तस बनी हुई थीं।
1857 के पश्चात् प्रशासनिक परिवर्तन रॉबर्ट हैमिल्टन की रिपोर्ट:-
अंग्रेज अधिकारीयों में एक अधिकारी कर्नल रॉबर्ट हैमिल्टन जिसका जन्म 6 जनवरी 1841 को हुआ था और यह ब्रिटिश सेना अधिकारी था जो इस दौरान बुन्देखंड में तैनात था उसने अपनी रिपोर्ट में लिखा है या इसको यह भी कह सकते है कि बुंदेलखंड का शाहगढ़क्षेत्र के सम्बन्ध में इसने सुझाव भी दिया था
कि शाहगढ़ एक पृथक जिले के रूप में झांसी डिवीजन में मिला लिया जाए इसके साथ- साथ उत्तर-पश्चिमी प्रान्त के लेफ्टिनेण्ट गवर्नर ने प्रस्ताव दिया कि शाहगढ़ को चन्देरी, सागर एवं दमोह के मध्य बाँट दिया जाए। भारत सरकार ने लेफ्टिनेण्ट गवर्नर के इस प्रस्ताव का अनुमोदन भी किया।
1857 के पश्चात् इस क्षेत्र में जो प्रशासनिक फेर-बदल हुआ उसकी विशेषता यह रही कि अब इस क्षेत्र के प्रशासन में एकरूपता आ गई। अब इस क्षेत्र को नागपुर के प्रदेश के साथ जोड़ दिया गया। 1861 ई. के पूर्व तक 1820 से सागर-नर्मदा क्षेत्र के प्रमुख जिले सागर, दमोह, जबलपुर, नरसिंहपुर, होशंगाबाद, बैतूल, छिंदवाड़ा, सिवनी थे। 2 नवम्बर 1861 ई. को मध्य प्रान्त का निर्माण हुआ, और सागर-नर्मदा क्षेत्र अब मध्य प्रान्त का ही एक भाग बन गया। इसके पश्चात् यह व्यवस्था 1956 तक बनी रही जब तक कि स्वतन्त्रता पश्चात् राज्यों का पुनर्गठन सम्पन्न हुआ।
1857 के पश्चात् बुन्देखंड के सागर जिले में भू-राजस्व बन्दोबस्त:-
1858 में सागर जिले की क्रान्ति के दमन के पश्चात् 1859-60 ई.में सागर जिले में एक ऐसा घातक ज्वर फैला जिसमें बहुत से लोग बीमार हो गए। सन् 1861 में ढोरों (पशुओं) पर मरही आई। इन विपत्तियों को देखते हुए आगामी 30 साला बन्दोबस्त में जमा को कुछ घटा दिया गया।
1857 की क्रान्ति के पश्चात् 1861 ई. में मध्य प्रान्त एवं बरार का निर्माण हुआ और सागर उसके अधीन आ गया। पश्चिमोत्तर प्रान्त द्वारा लागू भू-राजस्व सिद्धान्त मध्य प्रान्त की सरकार द्वारा भी स्वीकृत कर लिया गया। ले. कर्नल मैकलीन के बन्दोबस्त के पश्चात् प्रथम बार नियमित सर्वेक्षण किया गया इस समय तक जिले के कुल 1977 ग्रामों में मालगुज़ारों को स्वामित्वाधिकार दिया गया।
इस प्रकार सागर में मालगुज़ारी प्रथा का सूत्रपात हुआ। इस प्रथा की मूल उत्पत्ति के सम्बन्ध में सर सी. इल्वर्ट ने कहा कि हमने कुछ किसानों को गाँव के मुखियाओं के जरिए राज्य को राजस्व का भुगतान करते देखा। अतः हमने जो राजस्व प्रणाली लागू की थी,
1858 से 1920 ई. के दौरान सागर में राजनीतिक चेतना का प्रसार 13 उसके अन्तर्गत और उसके प्रयोजनों के लिए हमने मुखियाओं को स्वामी या भूमि स्वामी किसानों को उनके कार तथा किसानों द्वारा दी जाने वाली रकम को लगान में बदल दिया 1887 में तीस साला बन्दोबस्त की कार्यवाही पुर्णतः सम्पन्न हो सकी।
1857 के बाद बुंदेलखंड में अकाल :-
इस बन्दोवस्त में कर्नल मैकलीन ने जमा पटाकर 4 लाख 44 हज़ार रखी 1860 से समस्त भारत में अकाल का प्रकोप रहा। सागर जिले में भी लगातार सन् 1877, 1892 1897, 1898-99 एवं 1900 में अकाल पड़ा।
इस कारण इस नए बन्दोबस्त से भी कृषकों को कोई राहत नहीं मिली। इसके पश्चात् 1897 में दस साला बन्दोबस्त लागू हुआ जिसकी जमा 6 लाख 96 हजार रखी गई। यह 1913 तक चला।
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FAQ
1842 में
बुन्देखंड के सागर जिले में सन् 1877, 1892 1897, 1898-99 एवं 1900 में अकाल पड़ा।जोकि अपने आप में इतिहास का सबसे बड़े आकालों में से है |