जिस तरह से वर्तमान में आये दिन सुनते है झारखण्ड अमीर राज्यों में से एक है यह बिहार राज्य से अलग होकर नया राज्य बना लेकिन सवाल है कि बिहार से झारखंड तो अलग राज्य बन गया लेकिन बिहार कहाँ से आया? झारखंड राज्य बनाने की मांग पहली वार किसने की थी? किन- किन संगठनों की अहम भूमिका थी? ऐसे ही मुद्दों को लेकर आज के इस लेख में झारखंड निर्माण आन्दोलन की कहानी समझेंगे |
झारखंड निर्माण आन्दोलन को दो हिस्सों में समझने की कोशिस करेंगे जिसमें पहला हिस्सा वर्ष 1912-1940 तक तथा दूसरा हिस्सा वर्ष 1940- 2000 तक है |
- विशेष राज्य का दर्जा (विशेष श्रेणी / एससीएस) की विशेषताएं क्या है?
- सी-सेक्सन/ Caesarean Delivery डिलिवरी के आंकड़े दिन-प्रतिदिन बढ़ते दिख रहे है, पूरी जानकरी क्या है?
- लोक सभा में अध्यक्ष तथा उपाध्यक्ष का चुनाव तथा नियम 8 की जानकारी बहुत महत्वपूर्ण है
- लोकसभा उपसभापति/उपाध्यक्ष की भूमिका और इतिहास का वर्णन कीजिये
- भारतीय इतिहास में किलों की प्रथम खोज कब हुयी थी पूरी जानकरी देखिये |
झारखंड राज्य निर्माण आन्दोलन से पहले की घटनाएँ:-
वर्तमान का बिहार, झारखण्ड ,उड़ीसा और बंगलादेश तथा बंगाल यह सब प्राचीनकाल बंगाल के हिस्से में आया करते थे एक बात और यहाँ जननी जरुरी है उस समय का बंगाल दो हिस्सों में बटा हुआ था एक पूर्वी बंगाल तथा दूसरा पश्चिमी बंगाल |
पूर्वी बंगाल – पूर्वी बंगाल दो हिस्से में बटा हुआ था जो कि इस प्रकार है-
वर्तमान का बंगाल और बंगलादेश |
पश्चिमी बंगाल – यहाँ वर्तमान के तीन राज्य हुआ करते थे | बिहार , झारखण्ड तथा उड़ीसा
1912 की प्रमुख घटनाएँ:-
इस वर्ष बंगाल से बिहार को अलग कर दिया गया था अब बिहार अलग प्रान्त हो गया तथा बंगाल अलग प्रान्त हो गया था इस समय बिहार में आने वाले वर्तमान के राज्य झारखंड, बिहार तथा उड़ीसा है |
जिस तरह से वर्ष 1912 में बिहार राज्य को बंगाल से अलग कर दिया जाता है उसी दिन से झारखंड राज्य के बनने की मांग शुरू हो जाती है उस समय के महान क्रांतिकारी थियोडोर सोरेन ने कहा था कि झारखंड की भाषा, परम्परा , त्यौहार सब कुछ बिहार से अलग है इसीलिए हम चाहते है बिहार प्रान्त से इस प्रदेश को अलग कर दिया जाये क्योंकि यहाँ के आदिवासी समुदाय के लोगों के अधिकारों को हनन किया जा रहा है लेकिन उस समय के झारखंड में संगठन और एकता की कमी होने के कारण थियोडोर सोरेन की यह मांग पूरी नहीं हो सकी |
1912 से लेकर 1 अप्रैल 1936 तक को घटनाएँ :-
1912 से लेकर 1 अप्रैल 1936 तक को घटनाएँ :-
इस दिन बिहार प्रान्त से अलग उड़ीसा राज्य का निर्माण किया हुआ|
शुरुआत :- 1912 इसवीं
15 नवम्बर 2000 इसवीं में नया राज्य बना|
1912 ( संयुक्त प्रान्त बंगाल :- बिहार, पूर्वी बंगाल ,पश्चिमी बंगाल , झारखंड तथा उड़ीसा ) से बिहार अलग हुआ जिसमें ( बिहार , झारखंड और उड़ीसा ) शामिल थे |
पहली बार अलग राज्य बनने की मांग :-थियोडोर सोरेन
पुनः 1 अप्रैल 1936 इसवीं में उड़ीसा बिहार से अलग हुआ अब संयुक्त बिहार( बिहार और झारखंड ) शामिल थे |
इतिहास की महत्वपूर्ण घटनाएँ:-
राँची :– छात्र संगठन –एंगलिंकन मिशन –J BARTHOLOMAN ( एक सदस्य ( चाईबासा का रहने वाला )
J BARTHOLOMAN को झारखंड आन्दोलन का जनक कहा जाता है|
वे बांग्लादेश के ढाका विध्यार्थी परिषद में राँची एंगलिंकन मिशन की ओर से भाग लेने गये हुए थे |
ढाका विध्यार्थी परिषद से प्रेरित होकर :- नई साखा की स्थापना –क्रिश्चियन स्टूडेंट ऑर्गनाइजेशन|
1915 Graduate:- St. Paul कालेज –Lecture ( शाखा में कम ध्यान)
अन्य सदस्यों ने इन्हें निष्कासित किया ( छोटे समुदायों को जोड़कर ) नया वृहद संगठन की स्थापना की इस संगठन का नाम छोटानागपुर उन्नति समाज था |
छोटानागपुर उन्नति समाज (1915) :-
एंगलिंकन मिशन के विशप के सुझाव पर इस संगठन का नाम रखा गया था |
इस संगठन के प्रमुख नेता जुएल लकड़ा, बांदी राम उरांव, ठेबले उरांव एवं पॉल दयाल थे |
उस संगठन का उद्देश्यछोटानागपुर की प्रगति व आदिवासी जनसमुदाय में सामाजिक आर्थिक और राजनीति सुधार करना था |
छोटानागपुर उन्नति समाज ने ही सबसे पहले आदिवासी अस्तित्व एवं अस्मिता के लिए आवाज उठाई थी|
इसके सदस्य केवल आदिवासी ही हो सकते थे |
1928 (छोटानागपुर उन्नति समाज ) छोटानागपुर क्षेत्र को विशेष रियायतें और दर्जा देने की मांग सायमन कमीशन से मांग की थी और उसने स्वीकार भी किया था |
लेकिन अलग राज्य की मांग अस्वीकार की थी |
छोटानागपुर उन्नति समाज के मुख्य उद्देश्य :-
छोटानागपुर की प्रगति
आदिवासी जन समुदाय में सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक प्रगति
छोटानागपुर कैथोलिक सभा (1933):-
यह संगठन विशप सेबरिन की प्रेरणा से स्थापित हुआ था |
यह संगठन कैथोलिकजिन्हें अब तक किसी भी संगठन में स्थान नहीं मिला था उनके द्वारा स्थापित किया गया संगठन था |
इसके प्रथम अध्यक्ष बेनिफेस लकड़ा तथा प्रथम महासचिव झग़॒नेश बेक थे|
छोटानागपुर संथाल परगना आदिवासी सभा (1938):-
31 मई 1938 को राँची के हिन्द पीडी मोहल्ले में एक सभा भवन में छोटानागपुर उन्नति समाज की आम बैठक हुयी इसमें पांच आदिवासी संगठन सामिल हुए जोकि निम्नलिखित है –
छोटानागपुर उन्नति सभा
किसान सभा
छोटानागपुर कैथोलिक सभा
मुंडा सभा
हो माल्टो मारंग सभा
इन सभी संगठनो ने संथाल परगना आदिवासी सभा का गठन किया था | इस तरह् से 1938 तक झारखण्ड में जितने भी संगठन थे उनमें ज्यादातर संगठन एक दुसरे के संपर्क में आ चुके थे ताकि यदि झारखण्ड को लेकर कुछ मांग की जाये तो उस समय की ब्रिटिश सरकार सुन सके |
इस मीटिग से सब संगठनों ने मिलकर एक संगठन का निर्माण किया जिसका नाम छोटानागपुर संथाल परगना आदिवासी सभा था |
इसके पदाधिकारी इस प्रकार है :-
अध्यक्ष :- थिरोड़ोर सुरीन
उपाध्यक्ष :- बांदी राम उरांव
सचिव :- पॉल दयाल
इस सभा का उद्देश्य छोटानागपुर एवं सनथल परगना को मिलाकर एक अलग प्रान्त का निर्माण करवाना था |
जनवरी 1939 ई. में छोटानागपुर संथाल परगना आदिवासी सभी का नाम बदलकर ( आदिवासी महासभा ) कर दिया था |
कुछ घटनाएँ जो झारखण्ड के पांच संगठनों को एकजुट होने के लिए प्रेरित हुए थे :-
अप्रैल 1936 में बिहार , उड़ीसा संयुक्त प्रान्त से उड़ीसा का अलग होना|
बिहार में गठित कांग्रेसी मंत्रिमंडल में झारखंडियों को एक भी स्थान नहीं देना |
इस लेख में अपने पढ़ा किस तरह से झारखण्ड में छोटानागपुर उन्नति समाज की स्थापना होती है उसके बाद किस तरह से पांच संगठन मिलकर एक बड़ा संगठन ( आदिवासी महासभा ) का निर्माण करते है यदि आपको हमारे द्वारा लिखे गये लेख पसंद है आप हमे अपनी राय दे सकते है|
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FAQ
अध्यक्ष :- थिरोड़ोर सुरीन
उपाध्यक्ष :- बांदी राम उरांव
जनवरी 1939 ई.
सचिव :- पॉल दयाल
पांच संगठनो से मिलकर बना था जिसमें छोटानागपुर उन्नति सभा ,किसान सभा, छोटानागपुर कैथोलिक सभा ,मुंडा सभा और हो माल्टो मारंग सभा थी |