सुभद्राकुमारी चौहान [PDF][आन्दोलन की महत्वपूर्ण तिथियाँ]
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सुभद्राकुमारी चौहान [PDF][आन्दोलन की महत्वपूर्ण तिथियाँ]

by रवि पाल
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यह एक इतिहास की महत्वपूर्ण कहावत है कि जितना रिसर्च करेंगे उतना अच्छा लिखा और समझा जा सकता है इस लेख में  सुभद्राकुमारी चौहान के ऐसे व्यक्तित्व पर लिखेंगे सायद पूरे इंटरनेट पर ऐसा लेख नहीं लिख होगा यह लेख उनके व्यक्तित्व के साथ- साथ असहयोग आन्दोलन की भूमिका के ऊपर है |

जब सुभद्राकुमारी चौहान, लक्ष्मण सिंह चौहान, बैरिस्टर राघवेन्द्र राव, ठाकुर छेदी लाल जैसे महान लेखकों  की भागीदारियां सन् 1921 में असहयोग आन्दोलन में गिरफ्तार किया गया और एक वर्ष कैद की सजा दी गई। मैं सागर जेल में फाँसी मिलने वालों के गुनहखाने में रखा गया कि मैं किसी तरह माफी मांग लें।

सुभद्राकुमारी चौहान, पं. माखनलाल चतुर्वेदी, श्री अर्जुन लाल सेठी की गिरफ़्तारी:-

खंडवा से गिरफ़्तार होकर श्री अर्जुन लाल सेठी सागर जेल में रखे गए। मुझे सागर से बिलासपुर जेल भेज दिया गया।उसी दिन पूज्य दादा पं.माखनलाल चतुर्वेदी गिरफ्तार होकर बिलासपुर जेल में आ विराजे बिलासपुर का जेल दादा की गिरफ्तारी के सबब से और उनसे सलाह-मशविरा लेने के लिए प्रान्तीय नेताओं का अखाड़ा बना हुआ था।

सुभद्राकुमारी चौहान, लक्ष्मण सिंह चौहान, बैरिस्टर राघवेन्द्र राव, ठाकुर छेदी लाल ये सब के सब दादा से मिलने आते थे। जेल में दादा मेरी पूरी खबर रखते थे। मेरी उमर उस समय 20 साल की थी। मैं अपनी फरमाइश बिल्ली के बच्चे की पूँछ में चिट्ठी लिखकर भेजता था। बिल्ली का बच्चा पोस्टमैन का कार्य करता था। सभी खबरें हमें रोज मिलती थीं।

पं.माखनलाल चतुर्वेदी को 9 महीने जेल में रहने के दौरान का इतिहास:-

दादा को 9 माह की सजा हुई थी। डॉ. बी.बी. राय (विधानसभा सदस्य) के पिता बिलासपुर जेल के जेलर थे डॉ. राय उस समय छोटे से बालक थे जो रोज हम लोगों से मिला करते थे और समाचार पत्र पढ़ने के लिए दे जाते थे भाई अब्दुल गनी के जेल जाने की यह जानकारी कार्यालय अधीक्षक जि जेल सागर के प्रमाण-पत्र में इस प्रकार दी गई है|

प्रमाणित किया जाता है कि श्री अब्दुल गनी बल्द वली मोहम्मद जाति मुसलमान निवासी ग्राम खुरई तहसील खुरई जिला सागर निम्न प्रकार से इस जेल में परिशुद्ध रहे –

मध्य प्रदेश इतिहास के पन्ने:-

दिनांक 13-6-1921 को इन्हें बिलासपुर जेल के लिए तय  कर दिया गया भाई अनी के पल्लेखित कथन एवं इस पत्र से पता चलता है कि असहयोग आन्दोलन के दौरान उन्हें गिरफ्तार कर 1 माह सागर जेल में रखा गया एवं उसके पश्चात् बिलासपुर जेल भेज दिया गया। मध्य प्रान्त के अन्य प्रमुख नेता भी बिलासपुर जेल में ही भेजे गए एवं इसी जेल में अन्य प्रमुख नेता इनसे विचार-विमर्श कर आगामी रणनीति तय करते थे।

महत्वपूर्ण तिथियाँ:-

जब सागर सहित मध्यप्रदेश के ये प्रमुख नेता बिलासपुर जेल में थे, उसी अवधि में 5 फरवरी 1922 को गोरखपुर (उ.प्र.) के एक ग्राम चौरी-चौरा में आन्दोलनकारियों की उत्तेजित भीड़ ने वहाँ के थाने में आग लगा दी। 22 पुलिसकर्मी मारे गए। अहिंसा के पुजारी महात्मा गाँधी ने इस हिंसा की खबर मिलते ही असहयोग आन्दोलन को वापस लेने की घोषणा कर दी। तदनुसार 12 फरवरी 1922 को असहयोग आन्दोलन समाप्त हो गया।

गाँधीजी ने साथ ही कहा कि कड़े आत्मसंयम के बिना इस सत्याग्रह का प्रयोग नहीं हो सकता। उन्होंने लोगों से कहा कि अब उन्हें रचनात्मक काम में लगना चाहिएगांधी जी द्वारा असहयोग आन्दोलन को वापस लेने की घोषणा के साथ ही सागर जिले में भी असहयोग आन्दोलन समाप्त हो गया।सागर जिले के कई देश भक्तों ने असहयोग आन्दोलन में भाग लेकर इस आन्दोलन को पूर्णतः सफल बनाया। सागर जिले में असहयोग आन्दोलन में भाग लेने वाले प्रमुख स्वतन्त्रता सेनानी निम्न थे –

श्री अब्दुल गनी पिता श्री वली मोहम्मद, सागर तथा श्री केशवराव खाण्डेकर पिता श्री रामचन्द्र राव, को  असहयोग आन्दोलन के दौरान वकालात का परित्याग किया था। इनके सीधे सरल स्वभाव एवं अटूट देशभक्ति के कारण इन्हें सागर का गाँधी कहा जाता था:-

श्री पद्मनाथ तेलंग पिता श्री बालकृष्ण, सागर वे एक प्रति लेखक एवं पत्रकार भी थे इन्होंने अपने लेखन कर्म से सागर जिले के असहयोग आन्दोलन को गति एवं दिशा दी। श्रीमति पार्वती बाई पत्नी श्री महन्त रामकिशोरी दास, जन्म सन् 1903, निवासी गढ़ाकोटा। इन्होंने बाल्यावस्था से ही स्वतन्त्रता संग्राम में भाग लिया आप कालान्तर में जिला कॉंग्रेस कमेटी की सदस्या भी रही। 20 वर्ष तक “नगर परिषद्” की सदस्या रही. मास्टर बलदेव प्रसाद सोनी पिता श्री छोटे लाल, सागर; आपने न केवल अपने कार्य से अपितु लेखनी से भी सागर जिले में असहयोग आन्दोलन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। फरवरी 1922 को गाँधीजी द्वारा असहयोग आन्दोलन समाप्त कर दिया गया और लोगों से रचनात्मक कार्य करने का आह्वान किया।

सागर के मास्टर बलदेव प्रसाद ने तब 11 जून 1923 ई. को दैनिक समाचार-पत्र प्रकाश आरम्भ किया:-

इसके साथ ही मध्यप्रदेश में दैनिक समाचार-पत्रों का युग आरम्भ हुआ। इस पत्र का प्रारम्भ ही क्रान्तिकारियों एवं सत्याग्रहियों के अभिनन्दन और वन्दे मातरम् के उद्घोष के साथ हुआ।

यमुना ताई ने आगामी महिला आन्दोलन की भी कमान सम्भाली:-

इस प्रकार जब तक असहयोग आन्दोलन चला मास्टर बलदेव प्रसाद ने इस आन्दोलन में भाग लिया  और जब असहयोग आन्दोलन समाप्त कर गाँधीजी ने देशवासियों से रचनात्मक भूमिका निभाने एवं हिन्दू-मुस्लिमों में सद्भाव प्रसारित करने का आह्वान किया तब सागर के मास्टर बलदेव प्रसाद ने प्रकाश समाचार-पत्र निकालकर स्वाधीनता आन्दोलन में रचनात्मक भूमिका निभाई। इसी समाचार-पत्र द्वारा यदि एक ओर लोगों में देश-प्रेम का जज्बा पैदा किया तो दूसरी ओर अपने सम्पादकीय लेखों द्वारा हिन्दू-मुस्लिमों को आपसी झगड़ों से दूर रखने को भी प्रेरित किया। उन्होंने हिन्दू-मुस्लिमों को क्रान्तिकारी ढंग से समझाते हुए लिखा कि

दो हाथ और दो पाँव रखने वाले गुलामों! सोचो! मस्जिद के सामने बाजा बज़ाने या मन्दिर में मुसलमान के जाने से तुम्हारा धर्म नहीं मिट सकता। धर्म कोई पानी का बुदबुदा नहीं है जो जरा सी पमस से फूट जाए। धर्म के नाम पर लड़कर ख़ुदा की विरासत को नेस्तनाबूद मत करो

श्रीमति यमुना ताई पत्नी श्री राम किशन राव, सागर, स्वाधीनता आन्दोलन में भाग लिया। सागर जिले में महिला आन्दोलन का आरम्भ किया। इन्होंने एक महिला विद्यालय भी खोला:-

श्री रुद्रप्रताप श्रीवास्तव पिता श्री सुबाजू श्रीवास्तव, इटावा (बीना) ने 1920 ई. के असहयोग आन्दोलन में भाग लिया। असहयोग आन्दोलन में भाग लेने के कारण इन्हें गिरफ्तार कर 1 वर्ष की सजा दे दी गई।

जेल अवधि में वे सागर एवं सिवनी जेल में रहे। ये सागर डिस्ट्रिक्ट काउंसिल शिक्षा समिति के चेयरमैन भी रहे| असहयोग आन्दोलन में भाग लेने वाले इन समस्त स्वाधीनता सेनानियों की सूची देखकर यह स्पष्ट हो जाता है कि सागर जिले ने भारतीय असहयोग आन्दोलन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। रतौना आन्दोलन की सफलता ने एक और तो सागर का नाम राष्ट्रीय पटल पर ला दिया तो दूसरी ओर सागरवासियों के आत्मविश्वास में अत्यधिक वृद्धि हुई।

एक सुनिश्चित गति, दिशा एवं अर्थ प्रदान किया।एक ओर ये तीनों प्रमुख स्वाधीनता सैनिक उभरकर आए तो दूसरी ओर दो महिलाओं पार्वतीबाई एवं यमुना ताई ने असहयोग आन्दोलन में भाग लेकर यह सिद्ध कर दिया कि बुन्देलखण्ड की रानी लक्ष्मीबाई का बलिदान व्यर्थ नहीं गया। बुन्देलखण्ड की महिलाएँ उनसे प्रेरित हैं और वे भी देश, काल एवं परिस्थिति के अनुसार उनके पद चिह्नों पर चलकर ब्रिटिश हुकूमत को कड़ी चुनौती पेश कर रही हैं।

सुभाष चन्द्र बोस ने महात्मा गांधी  के बारे में:-

नेता जी का यह कथन पूर्णतः सत्य है कि गाँधीजी ने असह आन्दोलन को अत्यन्त महत्त्वपूर्ण बना दिया। उसे देश-व्यापी बना दि लोगों में राष्ट्रवादी भावनाएं तीव्रता से हिलोरें लेने लगी। 1842 के बुन्ने विद्रोह, 1857 की क्रान्ति की तरह सागर के लोगों ने असहयोग आन्दोल में भी जबरदस्त भागीदारी अंकित की । असहयोग आन्दोलन के स कार्यक्रमों को सागर में व्यापकता के साथ लागू किया गया। सागर में असहयोग आन्दोलन पूर्णतः सफल रहा।

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