प्रतिस्पर्धा एवं जनसंघर्ष का अर्थ, यहां सबसे पहले जनसंघर्ष शब्द के मतलब समझेंगे “जनसंघर्ष का मतलब जन+ संघर्ष, जनता और उसका संघर्ष “ एक ऐसा संघर्ष जिसको जनता के द्वारा किया गया हो उनको जनसंघर्ष कहते है | दुनियां के किसी भी लोकतान्त्रिक देश में जब कभी जनसंघर्ष होता है तब जनता किसी न किसी मुद्दे को लेकर सड़कों पर आ जाती है, आज का विषय नर्मदा बचाओ आंदोलन पर आधारित है |
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नर्मदा बचाओ आंदोलन की उत्पति से पहले :-
वैसे तो हिंदुस्तान में बहुत आंदोलन हुए है , कोई आंदोलन अपनी जल,जंगल और जमीन को बचाने के लिए हुए है तो कुछ आंदोलन धर्म, जाति और समुदाय के लिए हुए है लेकिन आज का यह लेख नर्मदा बचाओ आन्दोलन पर आधारित है , यहाँ भी जल, जंगल और जमीन के बारे में बात करेंगे इसके साथ- साथ यह भी समझेंगे कि नर्मदा क्या है और इसकी उत्त्पति कैसे हुयी थी?
नर्मदा एक नदी का नाम है जो भारत देश के तीन बड़े राज्यों से होकर निकलती है उसमें मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात प्रमुख हैं|
नर्मदा नदी:-
यह नदी गुजरात से होकर निकलती है इस नदी के ऊपर बांध बनाया जाता है उसके बाद यहां के लोगों में परेशानी देखी जाने लगी क्योंकि जब बाँध (सरदार सरोहर बाँध) बनाया जाता है उस बांध से विजली उत्पन्न की जाती है और जिस पानी से बिजली उत्पन्न की जाती है वह पानी दूषित होकर अलग रस्ते से निकाला जाता है , जो भी जीव- जंतु उस बांध के पानी को पिता है वह या तो बीमार हो जाता है या मर जाता है इसलिए अक्सर देखने में आता है इस नदी की वहज से आंदोलन होते ही रहते है इसी को नर्मदा बचाओ आंदोलन कहा गया है |
नर्मदा नदी पर बाँधों का इतिहास :-
इस नदी की कई सहायक नदियाँ भी है जोकि कुछ तो मध्य प्रदेश की और कुछ तो महाराष्ट्र की नदी है, वर्ष 1980 के दशक के प्रारंभ के मध्य भारत में नर्मदा घाटी परियोजना के तरह शुरू की गयी थी, रिसर्च बताते है नर्मदा नदी और सहायक नदियों पर 30 बड़े बाँध, 135 मंझोले बाँध तथा 300 छोटे- मोटे बाँध बनाने का प्रस्ताव रखा गया था |
नर्मदा नदी बाँध परियोजना से लाखों लोग बेघर :-
इतिहास गवाह है ज्यादातर गाँव नदियों के पास बसा करते थे इसीलिए इस नदी के आस-पास गाँव होना लाजिमी है, इन बाँधों के निर्माण से संबंधित राज्यों के करीब 245 गावों के डूबने की आशंका बढ़ गयी |
इन गावों में बसे ढाई लाख से ज्यादा लोगों को पुनर्वास का मुद्दा सरकार के सामने उठाया | जिसके बाद उन गाँवों के साथ- साथ कुछ सामाजिक संगठन, राजनैतिक दल, और क्रांतिकारी भावना के लोगों ने नर्मदा बचाओ आन्दोलन की शरुआत कर दी|
नर्मदा नदी बाँध परियोजना के खिलाफ जन-आंदोलन की शुरुआत :-
इस परियोजना के विरोध ने एक जन आंदोलन का रूप ले लिया है जब यह आंदोलन शुरू हुआ, वर्ष 1980- 87 के दौरान जन- जातियों के अधिकारों के समर्थन में गैर- सरकारी संस्था ‘अंक वहिनी” के नेता अनिल पटेल ने जनजातीय लोगों के पुनर्वास के अधिकारों को लेकर हाई-कोर्ट व सर्वोच्च न्यायालय में लड़ाई लड़ी थी |
वर्ष 1989 में मेघा पाटकर द्वारा लाये गये नर्मदा बचाओ आंदोलन ने सरदार सरोवर परियोजना का बड़े स्तर पर विरोध किया तथा इससे विस्थापित लोगों के पुनर्वास की नीतियों के क्रियांवय की कमियों को उजागर किया है |
शुरू में आंदोलन का उद्देदश्य (1980 ), बाँध को रोकथाम कर पर्यावरण विनाश तथा इससे लोगों के विस्थापन को रोकना था लेकिन बाद में, इस आंदोलन का उद्देश्य बाँध के कारण विस्थापित लोगों को सरकार के द्वारा दिए जा घर, धन पर्याप्त नहीं थे इस लिए एस आंदोलन में और तेजी आ गयी | देश / सरकार द्वारा अपनाई गयी विकास परियोजनाओं का लोगों के पर्यावरण, आजीविका और संस्कृति पर बुरा प्रभाव पड़ा है|
राहत कार्यों की देख- रेख तथा उनके अधिकारों के लिए न्यायालय में जाना बन गया तथा इस आंदोलन ने विकास परियोजनाओं में स्थानीय लोगों की भागीदारी की मांग का लोकतंत्र की अवधारणा को मजबूत बनाया |
नर्मदा बचाओ की यही सबसे बड़ी उपलब्धि है |
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FAQ
यह नदी मध्यप्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र से होकर गुजरती है |