दुनियां में भारत मात्र एक ऐसा देश है जहां लाखों क्रांतिकारियों ने अपना बलिदान दिया है तथा हजारों महापुरुषों ने जन्म लिया है चाहे भगवान बुद्ध की बात हो या फिर महावीर, नानक और कबीर, इस लेख में पंडित रवि शंकर की जिन्दगी के बारे पढ़ेगे कि उन्होंने सितार वादक की दुनियां में अपना नाम आसमान तक कैसे पहुचाया |
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जन्म तथा माता पिता :-
विश्व प्रसिद्ध सितार वादक पंडित रवि शंकर का जन्म 7 अप्रैल सन् 1920 को भारत की पवित्र भूमि वाराणसी में हुआ था इनके पिता का नाम श्याम शंकर चौधरी तथा माता का नाम हेमांगिनी था इनकी माता ने साथ पपुत्रों को जन्म दिया था |
इनके पिता श्याम सुंदर चौधरी विद्वान थे तथा संस्कृत भाषा तथा भारतीय संस्कृति के परम ज्ञाता थे उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय से एम्.ए किया तथा “बार एट लॉ” और जिनेवा विश्वविद्यालय से राजनीति शास्त्र में डाक्टरेट की उपाधि प्राप्त है |
भाइयों की गाथा :-
रविशंकर के भाई उदय शंकर बिश्वविख्यात नर्तक थे तथा उनसे छोटे राजेन्द्र शंकर अपने बाधों के बादन में निपूर्ण थे तथा प्रसिद्ध गायक लक्ष्मी शंकर के साथ विवाह करके वे बंबई में ही बस गये | इनके छोटे भाई देवेन्द्र शंकर जीवन पर्यन्त नृत्य शिक्षक के रूप में कार्य करते रहे , रविशंकर भारत के विख्यात सितार वादक बने, उदय शंकर तथा रविशंकर को छोड़कर अन्य भाई विश्व स्तर की ख्याति को प्राप्त नहीं कर सके|
पंडित रविशंकर की शिक्षा:-
इन्होने बनारस के बंगाली स्कूल तथा पैरिस के फ्रेंच कैथोलिक स्कुल में शिक्षा प्राप्त की, यह 10 वर्ष के भी न थे कि इनको भाई उदय शंकर के नर्तक दल में स्थान मिल गया फलतःये नृत्य कला में प्रवेश करते गये तथा आगे चलकर इन्होने चित्र सेना नामक चित्रसेना नामक कथानृत्य की रचना की, जिससे इनकी दूर- दूर तक प्रशंसा हुयी |
18 वर्ष की आयु तक इन्होने अपने भाई के नर्तक दल के साथ पूरे संसार का भ्रमण कर लिए| इस ननर्तक दल के साथ यात्रा करते हुए रविशंकरजी महान संगीतज्ञ सरोफ- वादक और अलाउद्दीन खां (मैहर) के संपर्क में आये, जो उदय शंकर की मंडली के साथ वर्ष 1935में लगभग 1 वर्ष तक रहे |
खां साहब इनसे बड़े प्रभावित हुए थे और इनके कार्य में विशेष दिलचस्पी लेते थे| खाली समय में रविशंकर सितार, दिलरुबा, तबला आदि बाध बजाया करते थे | सन् 1935 में उस्ताद अलाउद्दीन ने इनको शास्त्रीय संगीत की पुरानी वंदियों का भी अध्यन कराया और सितार – वादक की कुछ प्रारंभिक शिक्षा भी दी | किन्तु उनकी इच्छा थी कि प्रतिभाशाली रवि, नृत्य को छोड़कर गदन के क्षेत्र में आ जाये और सितार की विधिवत साधना करके उनसे विशेष निपुणता प्राप्त करें |
पंडित रविशंकर की जिन्दगी के अनसुने पन्ने :-
जब यह अपनी जिन्दगी के बीच के सफर पर थे उस समय इनके मन में उथल- पुथल होने लगी, काफी विचार- विमर्स के बाद सन् 1938 में, इन्होने अपने भाई के नृत्य दल को छोड़कर मेहर चले गये और सच्चे ह्रदय से उस्ताद अलाउद्दीन खां के शिष्य बन गये जो इनको पुत्रवत समझते थे| रविशंकर को उनके शिष्यात में 6 वर्ष बीत गये तथा अपने अदम्य, लगन, प्रेम तथा प्रतिभा के कारण इनकी कला विकसित होती गयी और इन्होने जल्द ही सितार – वादन में एक विशेष प्राप्त कर लिए |
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