जब भारत के इतिहास का अध्यन करते तो इसके तीन पहलु देखने को मिलते है, पहला पहलू वेद-पुराण, दूसरा पहलू महात्मा बुद्ध, नानक, कबीर और कालिदास , तथा तीसरा पहलू मुस्लिम शासक | इस लेख में तीसरे पहलू पर लेख लिख रहे है यह जलालुद्दीन मोहम्मद अकबर और बैरम खॉं के बीच है, यहां समझेंगे अकबर ने अपनी जिन्दगी में क्या क्या किया तथा बैरम खॉं का उत्थान कैसे हुआ तथा उसके पतन के क्या- क्या कारण रहे |
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- सी-सेक्सन/ Caesarean Delivery डिलिवरी के आंकड़े दिन-प्रतिदिन बढ़ते दिख रहे है, पूरी जानकरी क्या है?
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- भारतीय इतिहास में किलों की प्रथम खोज कब हुयी थी पूरी जानकरी देखिये |
बैरम खॉं कौन था:-
यह फारस का रहने वाला था और सिया धर्म को मानता था |
- यह हुमायूँ का सर्वाधिक समर्पित व विश्वशनीय सहयोगी था |
- पहली बार कन्नौज के युद्ध 1540 ई. में हिमायुँ की तरफ से भाग लिया था |
- 1542 ई. में पुनः अमरकोट में हिमायुँ से मुलाकात हुयी |
- हुमायूँ के विकसित जीवन में बैरम खॉंका पूरा सहयोग रहा|
- इस कठिन दौर में बैरम खॉं ने हिमायुँ का साथ दिया |
हुमायूँ और बैरम खॉं के बीच में संबंध :-
- अमरकोट के बाद हिमायुँ ने फारस के शाह के पास बैरम के सहयोग से शरण ली तथा इसके प्रयासों से ही फारस ने शाह की बहन सुल्तान का विवाह हुमायूँ से किया गया |
- हुमायूँ ने फारस के शाह और बैरम खॉं के सहयोग से ही कंधार व काबुल पर पुनः विजय प्राप्त की|
- सेवाओं के इनाम के तौर पर ही हुमायूँ ने बैरम खॉं को अपना वजीर व प्रधान सेनापति नियुक्त किया तथा इस बाट में कोई अतिशयोक्ति नहीं कि “यदि यह न होता तो अकबर शहंशाह सुल्तान नहीं होता |
- हुमायूँ ने ही बैरम को अकबर का अभिवावक चुना था और अकबर इसे खान चाचा कह कर बुलाया करते थे, बैरम ने अकबर को सेना तथा शासन कला का व्यावहारिक प्रशिक्षण भी दिया था |
अकबर और बैरम खॉं के बीच में संबंध:-
- 1556 ई. में बैरम खॉं ने सिकंदर सूर का दमन किया, फलस्वरूप जालंधर के किले पर मुगलों का अधिकार हो गया, इसी अवसर पर उसने हुमायूँ की बहन गुलरुख बेगम की पुत्री सलीमा सुल्तान बेगम का विवाह अकबर से कर दिया |
- 1557 ई. में बैरम ने अकबर के एक ओर शत्रु मुहम्मद शाह का लखनऊ के पास दमन किया और इसे बंगाल भागने पर विवश किया जहाँ उसे अपने प्राणों से हाथ धोने पड़े|
- इसके चलते मुग़ल दरबार के विद्वान सुन्नी उससे इर्ष्या करने लगे क्यों कि इस समय बैरम बिना किसी रोकटोक के शाही अधिकारों का प्रयोग करता था |
- सभी उच्च पदों पर नियुक्तियां करता था तथा बिना अकबर के विचार विमर्श के ( सेख गदाई जोकि शिया था को सदर-ए-सदूर नियुक्त किया), जिसके बाद उनकी खुले आम आलोचना हुयी परन्तु इसके विरोध को शांत करने का कोई प्रयास नहीं किया |
बैरम खॉं के पतन के कारण:-
- इसके विरोधियों ने अफवाह फैला दी कि “बैरम खॉं कामरान के पुत्र अबुल कासिम को शहंशाह घोषित करना चाहता है” इसके बाद उनसे मुल्ला पीर मुहम्मद (नसीर-ए-मुल्क) को उसके पद से बर्खास्त कर दिया और उसे हज पर जाने के आदेश दिए|
- इससे और उसके हितैसी घबरा उठे और उन्होंने इसके बर्चस्व को समाप्त करने का निर्णय लिया |
उपरोक्त परिस्थित में अकबर ने उसको उसके पद से तत्काल हटाने का निर्णय लिया |
- योजनाबद्ध तरीके से अकबर आगरा से दिल्ली आ गया और किले पर नियंत्रण कर लिए |
- मीर अब्दुल लतीफ को बैरम खॉं के पास संदेश भेजा जिसमें उसे वजीर के पद से हटाते हुए धन्यवाद् व्यक्त किया (अगताखॉं की नियुक्ति पर )|
- बैरम अब समझ चुका था कि वह सुरखित नहीं है, इसलिए वह नागौर गया और वहां अपने परिवार को सुरक्षित किया |
- अकबर ने उसकी पहरेदारी के लिए पीर मुहम्मद को भेज दिया फलस्वरूप बैरम खॉं ने विद्रोह कर दिया, लेकिन तिलवाड़ा में उसको बंदी बनाया गया और अकबर के सामने पेश लिया गया|
अकबर ने बैरम खॉं के सामने तीन विकल्प रखे (फ़रिश्ता ):-
- कलसी व चंदेरी का जागीरदार बनना |
- गुप्त मामलों का सलाहकार बनना |
- मक्का चले जाओ
इसके बाद, मक्का जाते समय 31 जनवरी 1561 ई. में मुबाजिक खॉं नामक अफगानी ने पाटन (गुजरात) में हत्या कर दी क्योंकि 1555ई. में मुबाजिक के पिता को बैरम ने मारा था| कुछ फकीरों के द्वारा उसको दफनाया गया |
इधर अकबर ने बैरम की विधवा सलीम से विवाह कर लिया और चार वर्षीय अब्दुर रहीम को संरक्षण में लिया | गुजरात विजय 1584 ई. के बाद इन्हें खान- ए-खाना का ख़िताब दिया गया|
- विशेष राज्य का दर्जा (विशेष श्रेणी / एससीएस) की विशेषताएं क्या है?
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