भारत के राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान वामपंथी आंदोलन के बारे में समझेंगे यह सब्जेक्ट My History Honours Delhi University MY NESTORY NOTES B.A History Honours TES का विषय है तथा यदि विध्यार्थी व पाठक इसको पढ़ना चाहे तो History of India – (1857 ई.-1950 ई. तक) के किताबों में दर्शाया गया है |
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वामपंथी आंदोलन का उदय कैसे हुआ :-
भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में वामपंथी राजनीति का उदय प्रथम विश्व युद्ध के बाद हुआ। इस समय से 1947 तक का काल वामपंथी और राजनीति आंदोलन दोनों के ही विकास में एक बहुत महत्वपूर्ण समय था । वामपंथियों ने श्रमजीवीयों एवं किसानों की सामाजिक तथा आर्थिक समस्याओं को उभारने पर बल दिया और इस प्रकार राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन के स्वरूप में परिवर्तन का प्रयत्न किया। वामपंथी आंदोलन के उदय और विकास की प्रक्रिया निर्बाध नहीं थी क्योंकि इसे प्रारंभ से ही ब्रिटिश सरकार के रोष का सामना करना पड़ा था |
अत: अक्सर इसे गुप्त रूप से कार्य करना पड़ता था। वामपंथियों ने पूंजीवाद और साम्राज्यवाद के विरुद्ध आम लोगों को जागरूक किया। परिणाम स्वरूप गांधीजी के राष्ट्रीय आंदोलन में कृषक और श्रमिक दोनों ही सम्मिलित हो गए। इस नए नेतृत्व में समाजवाद का प्रसार करना आसान हो गया। यह लोग कार्ल मार्क्स के क्रांतिकारी विचारों से प्रेरित थे और उन्होंने स्वयं देखा कि रूस में किस प्रकार साम्यवादी सरकार अस्तित्व में आई।
भारत के अन्य शहरों में वामपंथी समाजवादी विचारों का गहन शुरू :-
भारत में मुंबई, कोलकाता, कानपुर, लाहौर इत्यादि औद्योगिक नगरों में साम्यवादी सभाएं बननी शुरू हो गई। समाजवादी विचार तेजी से फैलने लगा था। कोलकाता की “आत्मशक्ति” और “धूमकेतु” तथा गुंटूर के “नवयुग” जैसी वामपंथी राष्ट्रवादी पत्रिकाएं छपने लगी थी। मुंबई में श्रीपाद डांगे ने “गांधी और लेनिन” नामक पर्चा प्रकाशित किया तथा पहला समाजवादी साप्ताहिक “दी सोशलिस्ट” की शुरुआत की। पंजाब में गुलाम हुसैन ने “इंकलाब” का प्रकाशन किया।
वामपंथी आंदोलन का निष्कर्ष :-
स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान वामपंथियों ने आम लोग, कृषक और मजदूरों को नेतृत्व प्रदान किया। अपने हित के लिए उन्होंने समय-समय पर कांग्रेस से गठजोड़ कर राष्ट्रीय आंदोलन में भाग लिया। कांग्रेस समाजवादी दल की स्थापना के बाद राष्ट्रीय आंदोलन ने एक नया रूप धारण कर लिया। वामपंथी भलीभांति जान गए थे कि उच्च वर्ग के लोगों के बिना आंदोलन को सफल नहीं बनाया जा सकता और ना ही शोषित वर्गों की दशा में सुधार लाया जा सकता है।
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FAQ
1920 ई . में एम.एन. राय तथा कुछ अन्य भारतीयों ने भारतीय साम्यवादी दल की स्थापना की। भारत में साम्यवादी आंदोलन का इतिहास कहीं चरणों में बांटा जा सकता है।
सन् 1941 में अजीतराय और इंद्रसेन के जैसे क्रांतिकारियों ने किया। यह सभी दल असहमत Y HISTOR साम्यवादी वर्गों ने आरंभ किए और अपने आपको भारतीय क्रांति के लिए सबसे उत्तम माध्यम बतलाते थे। एम.एन रॉ साम्यवादी आंदोलन के अग्रणी थे, ने मार्क्सवाद से पूर्णतया निराश होकर अतिवादी लोकतंत्र दल का गठन 1940 में किया था तथा उन्हें यह विश्वास हो गया था कि बहु वर्गीय दल द्वारा ही भारतीयों में क्रांति लाई जा सकती है।