इस लेख में वामपंथी आंदोलनों के प्रथम चरण, दूसरे चरण, तीसरे चरण तथा चौथे चरण पर प्रकाश डालेंगे इसके साथ-साथ समाचार पत्रों का संपादन, रहस्यवाद और साम्यवादी दल पर भी चर्चा करेंगे |
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वामपंथी आंदोलन का पहला चरण :-
इंग्लैंड के साम्यवादी दल ने भारतीय साम्यवादी दल का निर्देशन किया। उनका एक प्रतिनिधि “फिलिप स्प्रेट” दिसंबर 1926 में भारत में आया और उसने भारत में कई सघों का गठन किया। समाचार पत्रों का संपादन किया तथा कुछ युवक को शामिल कर साम्यवादी संगठनों को आरंभ किया। 1929 में साम्यवादी दल ने मुंबई में अनेक हड़ताली करवाई।
वामपंथीआंदोलनका दूसरा चरण:-
जिस समय राष्ट्रवादी आंदोलन महात्मा गांधी के नेतृत्व मैं आगे की ओर बढ़ रहा था। उसी समय साम्राज्यवादी आंदोलन को संगठन और विचारधारा संबंधी प्रश्नों के कारण बहुत हानि उठानी पड़ी। उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के वामपंथी और दक्षिणपंथी अंगों पर प्रहार करना शुरू कर दिया।
भारतीय साम्यवादी दल ने इस संघर्ष को त्रिकोण संघर्ष का रूप देकर कांग्रेस की शक्ति कम करनी चाही। उन्हें विश्वास था कि कांग्रेस उन उद्योगपतियों का समर्थन कर रही है जो भारतीय श्रमिक वर्ग का शोषण कर रहे हैं। अत: कांग्रेस भी उतना ही दोषी है जितना साम्राज्यवादी शोषक।
वामपंथी आंदोलन का तीसर चरण:-
अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में अपनी नीति का निर्देशक प्राप्त कर मार्च 1936 में आर. पी. दत्त और बैन ब्रेडले ने भारत में अपना साम्राज्यवादी विरोधी मोर्चा प्रकाशित किया। उन्होंने साम्वादियों को कहा कि वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में सम्मिलित हो जाए और उनके संगठन का प्रयोग कर कांग्रेस समाजवादी दल को सुदृढ़ बनाए । जो प्रतिक्रियावादी दक्षिणपंथी लोग हैं उन्हें निकाल बाहर करें।
इस दौरान साम्यवादियों, कांग्रेस समाजवादियों और व्यापार संघों ने एक कार्यक्रम के आधार पर लोकप्रिय मोर्चा बनाने की सोंची। परंतु साम्यवादीयों ने इन परिस्थितियों का लाभ उठाकर अपने सामाजिकORY आधार को सुदृढ़ करने प्रयत्न नहीं किया और यह लोकप्रिय नहीं बन सका ।
वामपंथी आंदोलन का चौथा चरण:-
जब दूसरा विश्व युद्ध आरंभ हुआ तब भारतीय साम्यवादी नेता सभी प्रकार के साम्राज्यवाद के विरुद्ध अपनी संयुक्त मोर्चा नीति का अनुसरण कर रहे थे। इस समय कांग्रेस की नीति इस युद्ध के प्रति स्पष्ट नहीं थी और 15 सितंबर 1939 ई. को ही महात्मा गांधी ने इस युद्ध को साम्राज्यवादी युद्ध घोषित किया।
परंतु जब जून 1941 ई. में हिटलर ने रूस पर, जो साम्यवाद का पितृदेश था, आक्रमण कर दिया तो भारत के साम्यवादियों की स्थिति बहुत विचित्र सी हो गई। साम्यवादीयों ने अब उसी युद्ध को जिसे साम्राज्यवाद युद्ध कहते थे अब लोकयुद्ध कहने लगे।
गांधीजी के रहस्यवाद और साम्यवादी दल के रूढ़ीवाद के विरुद्ध कांग्रेस में वामपंथी पक्ष एक विवेकयुक्त विद्रोह के रूप में उभरा। उनको सैद्धांतिक प्रेरणा मार्क्सवाद और प्रजातांत्रिक समाजवाद से मिली। सुभाष चंद्र बोस ने कहा कि कांग्रेस वामपंथी लोग ना केवल साम्राज्यवाद विरोधी थे अपितु यह अपने राष्ट्रीय जीवन का निर्माण एक समाजवादी आधार पर करना चाहते थे। इसके लिए उन्हें दो और युद्ध करने थे एक विदेशी साम्राज्यवादियों और उनके भारतीय मित्रों से, दूसरा पिछले राष्ट्रवादी और उनके भारतीय मित्रों से। यह लोग पूर्ण स्वराज तथा समाजवाद लाना चाहते थे। वह जनसाधारण के लिए स्वराज चाहते थे।
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FAQ
जुलाई 1931 में जयप्रकाश नारायण, फूलन प्रसाद वर्मा तथा अन्य बिहार के लोगों ने एक समाजवादी दल बनाया और अक्टूबर 1934 में विधिवत अखिल भारतीय कांग्रेसी समाजवादी दल का गठन हुआ। इस दल ने 1935 के अधिनियम को जन विरोधी माना। यह समाजवादियों का दबाव था
इस समय क्रांतिकारी समाजवादी दल उभर कर सामने आया। इसका उद्देश्य अंग्रेजों को शक्ति द्वारा बाहर निकाल फेंकना और भारत में समाजवाद स्थापित करना था। सैद्धांतिक रूप से यह क्रांतिकारी दल कांग्रेस समाजवादी दल के अधिक समीप था। गांधी और बॉस के झगड़े में भी क्रांतिकारी समाजवादी दल ने बॉस को समर्थन किया। 1942 में रविंद्र नाथ टैगोर द्वारा एक क्रांतिकारी साम्यवादी दल आरंभ किया गया।
सन् 1942 में रविंद्र नाथ टैगोर द्वारा एक क्रांतिकारी साम्यवादी दल आरंभ किया गया।
जुलाई 1931 ई. में क्रांतिकारी नेता जयप्रकाश नारायण, फूलन प्रसाद वर्मा तथा अन्य बिहार के लोगों के द्वारा एक समाजवादी दल बनाया जिसे बाद में अक्टूबर 1934 में विधिवत अखिल भारतीय कांग्रेसी समाजवादी दल घोषित कर दिया |