भारतीय इतिहास में आदिवासी समाज जिन्होंने इस देश के लिए अपनी कुर्बानियां दी है उनके लिए जितना लिखा जाना चाहिए था उतना लिखा नहीं गया, चाहे उनकी कुर्बानियों की बात करे या फिर उनके संस्कृतिक त्यौहारों की, मुण्डाओं के पर्व जिनकी संख्या 11 है |
मुण्डा जनजाति पर्व किस तरह मनाते है:-
इस जनजाति में आदिवासी धार्मिक एवं सामाजिक जीवन की अभिव्यक्ति इनके त्योहारों एवं पर्वों में स्पष्ट दिखाई देती है, ऐसा माना जाता है इन लोगों के अधिकाशं पर्व वन एवं कृषि से संबंधित है, अच्छी कृषि के लिए ईश्वर से प्रार्थना तथा फसल कटजाने के बाद उसके प्रति आभार प्रदर्शन स्वरूप प्रकृति के आनंदमय मनोरम प्रष्ठभूमि का आयोजन साल के ज्यादातर महीनों में चलता रहता है, जोकि प्रकृति के आनंदमय वातावरण में नृत्य एवं संगीत का भरपूर आनंद उठती है, स्वभाव से आदिवासी समाज उल्लासपूर्व जीवन जीने का आदी है |
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मुण्डाओं के पर्व:-
मुण्डा समाज में वर्ष भर पर्वों का जो अनवरतचक्त्र चलता रहता है उनके से महत्वपूर्ण पर्व निम्नलिखित है :-
1- मागे
2- फागु
3- बा या सरहुल
4- होन् बा
5- बतौली
6- करमा
7- दसई
8- कोलोम सिंगबोंगा
9- जोमनामा
10- सोहराई
11- सौ-सौ बोंगा
यह पर्व वर्ष के मार्च महीने में शुरू होते है और वर्ष में अंतिम दिनों तक चलते है |
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महत्वपूर्ण पर्वों की संख्या 11 है, मागे, फागु, बा या सरहुल, होन् बा, बतौली, करमा, दसई ,कोलोम सिंगबोंगा ,जोमनामा, सोहराई, सौ-सौ बोंगा | यह पर्व आदिवासी नववर्ष चैत्र माह से शुरू होते है और वर्ष के अंतिम माह तक चलते है |
यह जनजाति भारत के अनेक हिस्सों में रहती है जैसे झारखण्ड, मध्यप्रदेश का कुछ आदिवासी हिस्सा, छतीसगढ़ जैसे आदिवासी प्रदेशों में रहती है यह लोह जंगलों की पूजा करते है और इनका पेड़ो, जंगलों से अत्यधिक लगाव होता है|