मौलाना रशीद अहमद गंगोही का जीवन परिचय (1828-1905)
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मौलाना रशीद अहमद गंगोही का जीवन परिचय ?(1828-1905)

by रवि पाल
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कहते है हिंदुस्तान की आजादी भीख में नहीं मिली है इसके लिए हमारे हिन्दू – मुस्लिम – सिख और ईसाईं भाइयों ने कुर्बानियां दी है लेकिन आज की रजनीति और समाज उन कुर्बानियों को भूल गया है, इसका दोष आज के समाज को देना उचित नहीं होगा क्योंकि हमारे इतिहासकारों को जितना लिखना चाहिए था उतना लिखा नहीं, यहाँ  मौलाना रशीद अहमद गंगोही की जिन्दगी के कुछ पन्ने लिखने की कोशिश की जा रही है

आज हिन्दुस्तान का इतिहास इस बात का गवाह है कि धार्मिक विद्वानों ने जन्म से ही कुरआने-पाक और हदीस शरीफ़ के पाकीज़ा माहौल में परवरिश पाई, जिन्होने अपनी माओं की गोदों में सूफ़ी बुजुगों की सच्ची कहानियां सुनी, जिन की तालीम व तरबियत मदरसों की चार दीवारी के नूरानी माहौल में हुई और उन्होंने अपने वतन को आज़ाद कराने में अपने जीवन की बाजी लगा दी|

हज़ारों क्रांतिकारियों के सीने फ़िरंगी गोलियों से छलनी कर दिये गए, इसके साथ – साथ  बड़ी संख्या में फांसी के फन्दों पर लटका दिया गया, तथा हजारों को जेल की सलाखों के पीछे और काले पानी की दर्दनाक सजाएं झेलनी पड़ीं।

किताबों के लेख तो यहां तक बताते है कि हजारों हिन्दू- मुस्लिम क्रांतिकारियों ने अंग्रेज़ों की यातनाएं सहते हुए देश पर अपनी जानें निछावर कर दीं। मौलाना रशीद अहमद गंगोही भी ऐसे ही उलमा में से एक थे। जिन्होंने अपने वतन को आज़ाद कराने में अंग्रेज़ों की फ़ौज, तोपों और बन्दूकों की भी परवाह नहीं की और अंग्रेज़ों के विरोध में आज़ादी के मैदान में डटे रहे।

शाह वलिय्युल्लाह मुहद्दिस देहलवी

मौलाना रशीद अहमद गंगोही का जन्म और बचपन:-

इनका जन्म जिला सहारनपुर के क़स्बा गंगोह में सन् 1828 में हुआ था पिता का नाम मौलाना हिदायत अहमद था उनको आरंभिक शिक्षा घर पर दी गई तथा फारसी की पढ़ाई के लिए वह अपने मामूँ मौलाना मुहम्मद तक़ी के साथ करनाल चले गए। उन्होंने अरबी की तालीम दिल्ली में हासिल की।

वह पढ़ाई के दौरान ही अपने वतन हिन्दुस्तान के हालात को नज़र में रखे हुए थे, आए दिन फ़िरंगियों की साज़िशें उनके ज़ुल्म व सितम की घटनाएं देख कर वह बहुत दुखी रहते थे। उस गुलामी के माहौल से परेशान मौलाना के दिल में बहुत कुछ करने के लिए विचार उठते रहते। उस दौर में आज़ादी के मतवाले पुराने बुज़ुर्ग उस्ताद हों या घरवाले, अपने नौजवानों को आज़ादी के संघर्ष में डालने से हिचकिचाते नहीं थे।

मौलाना रशीद अहमद गंगोही का आन्दोलन में हिस्सा:

एक तरफ सन् 1857 के स्वतन्त्रता संग्राम की गर्म हवाएं चल रही थीं, देश में चारों ओर आज़ादी का आन्दोलन जारी था, थाना भवन में उलमा-ए-दीन का एक जलसा आयोजित किया गया। उस जलसे में मौलाना रशीद अहमद गंगोही को क़ाज़ी बनाया गया।

दूसरी तरफ जिहाद का एलान सुनते ही हज़ारों की संख्या में मुजाहिदीन अपनी जानें हथेलियों पर लिए हुए जमा हो गए। उनमें से प्रत्येक मुजाहिद, देश पर अपनी जान देना जीवन की और मृत्यु के पश्चात की कामयाबी मानता था।

मौलाना रशीद अहमद और उनके क्रांतिकारी साथी:-

मुजाहिदीन के संघर्ष के कारण थाना भवन को अंग्रेज़ों के कब्जे से खाली करा लिया गया। इस कारण अंग्रेजों में बड़ी खलबली मच गई। एक दिन यह खबर मिली कि दूसरे अग्रेजी तोप खाना सहारनपुर से शामली के लिए रवाना किया गया है। उसे अंग्रेजी पलटन, थाना भवन के क़रीब से लेकर निकलेगी।

अंग्रेज़ सेना शामली पर हथियार इकट्ठा करने की तैयारी में थी। जब कि मौलाना रशीद अहमद और उनके मुजाहिदीन साथियों के पास तलवारों, बछों और बन्दूकों के अलावा कोई भी उस कि हमारी तलवारे, बछे और बन्दकें, फिरंगी तोपखाने का मुक़ाबला तो मौलाना रशीद जाहिदीन की हिम्मत बंधाई। उन्होंने कहा कि चिन्ता मत करो, अंग्रेज़ी सामान का असर हमें अपने दिलों पर नहीं लेना है।

थाना भवन के जिस रास्ते से तोप खाना जाना था वह सड़क घने पेड़ों के बाग़ के पास से निकली थी मौलाना रशीद अहमद गंगोही की मातहती में तीस-चालीस मुजाहिदीन का एक दल उस बाग़ के पास पहुंच गया, जहां से अंग्रेज़ी तोप खाना निकलना था। उन मुजाहिदीन को उनके हथियारों के साथ शाम के समय से ही उस गला बाग में पा दिया गया। मौलाना रशीद अहमद ने मुजाहिदीन को तैयार रहने की हिदायत देते हुए कहा कि जैसे ही मैं फायर का हुक्म करू, सभी मुजाहिदीन को एक साथ ही फ़ायर करना है।

घने बाग़ के सन्नाटे वाली अंधेरी रात मुजाहिदीन अपने दिलों में वतन की आज़ादी की शमा रोशन किए हुए अंग्रेजी पलटन का इन्तिज़ार कर रहे थे। जैसे ही पलटन अपने तोप खाने के भरोसे बाग़ के पास पहुंची, मौलाना का हुक्म मिलते ही सभी मुजाहिदीन ने एक साथ ही अपनी अपनी बदके दाग दी। फिरगियों के दिमाग़ों में इसका खयाल भी नहीं था, वे अचानक हमले से एकदम घबरा गए। उन्होंने सोचा कि बाग़ में न मालूम और कितनी सेना छुपी हुई है।

इस डर से फिरंगी मुकाबला करने के बजाय अपना तोप खाना नहीं तोड़-छाड़ अपनी जानें बचा कर भाग निकले। मुजाहिदीन ने तेजी से तोपखाना अपने कब्ज़े में कर लिया। मौलाना रशीद अहमद ने तोपख़ाना हाजी इमदादुल्लाह की मस्जिद के सामने लाकर खड़ा कर दिया। उसके बाद मुजाहिदीन ने शामली पर हमला करके उस पर भी अपना क़ब्ज़ा कर लिया।

सय्यिद अहमद शहीद

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मौलाना रशीद अहमद और अंग्रेजों के बीच झड़प:-

क्रांतिकारियों के साथ मौलाना रशीद अहमद ने अंग्रेजों से छीनी हुई तोप एक ऊंची जगह रखवा दी इसी बीच हालात में कुछ और परिवर्तन हुआ और दूसरी तरफ फिरंगी सेना ने दिल्ली के मुजाहिदीन पर काबू पा लिया। दिल्ली के मुजाहिदीन की अचानक शिकस्त होने लगी।

फिरंगियों ने दिल्ली में बेदर्दी से मार-काट एवं कत्ले आम शुरू कर दिया। फिर क्या था, अंग्रेजी सेना ने गोरखों और दूसरी फ़ौजों को साथ मिला कर थाना किन पर भी जोरदार हमला कर दिया। थाना भवन के मुजाहिदीन ने अंग्रेज़ों के मिले-जुले बड़े लश्कर का बहुत हिम्मत से मुकाबला किया।

यहां तक कि उन्होंने अंग्रेज़ों से छीनी हुई तोप से उन पर ही गोला फेंक दिया। यह देख कर अंग्रेजों ने भी अपनी तोपें दाग़नी शुरू कर दीं। जिसके कारण बहुत तबाही हुई। दुश्मन अंग्रेजों ने लूट मार, कत्लेआम करके लोगों को बहुत नुकसान पहुंचाया।

1857 के स्वतन्त्रता संग्राम में ब्रिटिश शासन के विरुद्ध कई ऐसी घटनाएं घटी हैं जिन से उनका बहुत जानी और माली नुकसान भी हुआ है। उस समय देशवासी पूरी ताकत से ब्रिटिश शासन को उखाड़ फेंकने में जुटे हुए थे। असल में आज़ादी का वह ज्वालामुखी, जो देश प्रेमियों के सीनों में दहक रहा था, 1857 के स्वतन्त्रता संघर्ष के रूप में फट पड़ा था। उसकी आग में फिरंगी जगह-जगह झुलस रहे थे।

इतिहास के कुछ पन्ने जो इतिहास में दर्ज नहीं है :-

स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के इतने बड़े संघर्ष के बाद भी आज़ादी की पहली लड़ाई असफल रही। उसके बाद बदले की भावना में अंग्रेज़ों का दमन चक्र चला। अंग्रेज़ शासन की ओर से मौलाना रशीद अहमद गंगोही के नाम से गिरफ्तारी वारंट जारी किया गया। क्योंकि हाजी इमदादुल्लाह का मक्का शरीफ़ जाना तय था, इसलिए मौलाना रशीद ने भी उनके साथ मक्का शरीफ़ जाने की इजाजत चाही।

हाजी इमदादुल्लाह ने उन्हें हिन्दुस्तान में ही रहने, और क्रीम व देश की सेवा करने की सलाह दो। मौलाना रशीद उनकी सलाह को मानते हुए कुछ समय के लिए गंगोह में ही ठहरे। उसके बाद पास ही स्थित एक दूसरे कसबे रामपुर मनिहारान जाकर हकीम जियाउद्दीन के मकान में ठहर गए। चूंकि उनके खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी हो चुका था, ब्रिटिश पुलिस गिरफ़्तार करने के लिए उन्हें तलाश कर रही थी।

अंग्रेज़ पुलिस कप्तान, गार्डन कर्नेल सत्तर पुलिस सवारों के साथ, मुख्बिर महबूब अली खां को लेकर उनकी तलाश में गंगोह पहुंच गया। यहां एक दूसरी ही घटना घट गई। मौलाना रशीद अहमद के मामुँ जाद भाई, मौलाना अबू-नस की शक्ल उनसे बहुत मिलती हुई थी। वह गंगोह की एक मस्जिद में गर्दन झुकाये बैठे इबादत कर रहे थे।

पुलिस कप्तान मौलाना रशीद अहमद की तलाश में मस्जिद ही पहुंच गया। वह मौलाना अबू-नत्र को ही मौलाना रशीद अहमद समझा। उसने अपने एक सिपाही को उन्हें बाहर लाने के लिए मस्जिद के अन्दर भेज दिया।

मौलाना रशीद अहमद के घर फिरंगी पुलिस कप्तान का छापा:-


पुलिस कप्तान ने उनसे कहा कि घर की तलाशी दिलवाओ कि कितने हथियार छुपा रखे हैं। पुलिस को उनके घर की तलाशी में कुछ भी नहीं मिला। अबू- नम्र उस आज़ादी के मतवाले भाई को बचाए रखने के लिए अपना अपमान बर्दाश्त करते रहे, परन्तु यह नहीं कहा कि मैं, वह व्यक्ति नहीं हूं जिसका तुम्हारे पास गिरफ्तारी वारेट है।

आखिरकार पुलिस कप्तान को यह मालूम हो गया कि वह रशीद नहीं, बल्कि उनके भाई हैं। अब उस ने उनको ही मौलाना रशीद अहमद का पता बताने पर मजबूर किया। उन्होंने बताने से इनकार कर दिया। इस पर कप्तान ने उन्हें इतनी ज्यादा तकलीफें दी कि मजबूरन उन्हें मौलाना रशीद के बारे में बताना पड़ा। कमान ने उन्हें वहीं छोड़ रामपुर मनिहारान पहुंच कर मौलाना रशीद अहमद । स्वतंत्रता सेनानी को गिरफ्तार कर लिया।

हिंदुस्तान के उस सपूत को इसके अतिरिक्त भी कई कठिन राहों से पड़ा। इस पर भी वह वतन प्रेम की राह से नहीं डगमगाए। उन पर शामली और थाना भवन में अंग्रेज़ी फ़ौज से जिहाद करने के साथ ही यह इल्ज़ाम भी था कि उन्होंने अंग्रेजी सेना से विलायती बन्दूकें भी छीन रखी हैं।

जब उस पुलिस कप्तान द्वारा उनसे बन्दूक़ों के संबंध में पूछा गया तो उन्होंने अपनी जेब से माला निकाल करे कहा कि मुझे बन्दूकों की जरूरत नहीं, मेरी तसबीह ही मेरा बढ़ा हथियार है कप्तान उनकी बातों से संतुष्ट नहीं हुआ। उसने अपने सिपाहियों को आदेश दिया कि इनके सर पर नंगी तलवार ताने खड़े रहो।

वह सूफ़ी बुज़ुर्ग, देश के स्वतंत्रता सेनानी, पुलिस कप्तान की धमकियों से नहीं डरे। उन्होंने निडर तरीक़े पर आराम से कशान के सवालों के जवाब दियेऔर अंत में उसके बाद उन्हें मुजफ्फरनगर ( उत्तर प्रदेश का एक जिला ) जेल भेज दिया गया।

इधर पुलिस उनके खिलाफ सुबूत इकट्टा करने की कोशिशों में लगी रही, लेकिन पुलिस को कुछ भी नहीं मिला , मौलाना रशीद के एक मामूँ ने उनकी जमानत के लिए दरखास्त अदालत में पेश कर दी। उस पर मजिस्ट्रेट ने एक-एक हज़ार रुपये की तीन साल के लिए तीन ज़मानतें पेश करने के लिए कहा। मौलाना की ज़मानत के लिए तीन हमदर्द तैयार हो गये तथा  तीनों ज़मानतें अदालत में पेश की गई।

मौलाना रशीद अहमद को 6 माह की सजा:-

मजिस्ट्रेट ने उन तीनों जमानतों को यह कह कर रद्द कर दिया कि ये तीनों गंगोह के रहने वालों की नहीं हैं। सच्चाई तो यह है

पुलिश के झूठे रवैये के साथ आखिरकार मौलाना रशीद अहमद गंगोही को छः माह की कैद की सजा सुना दी गई। वह फ़ैसले को मंजूर करने को मजबूर थे। जब पूरा भारत ही गुलामी की जंजीरो से जकड़ा हुआ था, एस नाजुक समय में देश के सपूत का फ़िरंगी जेल में बन्द होना कोई महत्वपूर्ण बात नहीं थी। वह फिरंगी जेल में रह कर उसकी यातनाएं सहते रहे। उन तकलीफों के कारण उनका देश प्रेम और अंग्रेजों से नफरत ज्यादा बढ़ गई मौलान गंगोही सजा पूरी होने पर जनवरी सन् 1860 में जेल से रिहा कर दिए गए।

मौलाना रशीद अहमद की जिन्दगी के आखिरी पल:-

वह जीवन भर मुल्क बचाव और ईमान बचाव की तहरीक चलाते रहे, मौलाना रशीद अहमद गंगोही की आखिरी उम्र में उनकी आंखों की रोशनी जाती रही उसी दौरान वह बीमार भी हो गए और अंततः 11 अगस्त 1905 को भारत देश का वह सूफ़ी स्वतंत्रता सेनानी देश हित के अपने महान कारनामे अंजाम देता हुआ बड़ी- बड़ी यादें छोड़ कर इस दुनिया से सदा के लिए कूच कर गया।

FAQ
मौलाना रशीद अहमद गंगोही का जन्म कब हुआ था ?

सन् 1828

मौलाना रशीद अहमद गंगोही के पिता का क्या नाम था ?

मौलाना हिदायत अहमद

मौलाना रशीद अहमद गंगोही की मृत्यु कब हुयी थी ?

11 अगस्त 1905




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