हिंदुस्तान का इतिहास अपने आप में इतना महान है जिसको जानना प्रत्येक भारतवाषी के लिए जानना उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कि अपने माता- पिता को जानना, इस देश में वैसे तो बहुत से आंदोलन हुए, झारखंड जब बंगाल प्रान्त का हिस्सा हुआ करता था उस समय मुंडा आंदोलन, जब मध्यप्रदेश का नाम मध्य प्रान्त हुआ करता था उस समय जंगल बचाओ आंदोलन/ रातौना का कसाई खाना के खिलाफ आंदोलन, इस तरह से हिंदुस्तान में हजारों आंदोलन हुए है उन्ही में से आज का लेख चिपको आंदोलन के ऊपर है , जहाँ किस तरह से पेड़ों को काटने से बचाया गया और इनके नायक कौन थे?
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चिपको आंदोलन कैसे शुरू हुआ :-
वर्ष 1970 के दशक में उत्तर प्रदेश (वर्तमान का उत्तराखंड) के कुछ भाग पर जहाँ जंगली क्षेत्र था वहाँ जंगलों की कटाई के लिए सरकार ने अनुमति प्रदान की थी जैसे ही सरकार की तरफ से यह प्रस्ताव आता है वैसे ही इसके विरोध में उत्तराखंड के कुछ गाँवों के स्त्री- पुरुषों ने जंगलों की व्यवसायिक आधार पर कटाई का विरोध किया |
जब चिपको आंदोलन की शुरुआत हुयी उस समय इसको चिपको के नाम से नहीं जाना जाता था, एक तरफ सरकारी अधिकारी और उनके साथ जंगल काटने वाले लोग, जैसे ही जंगल को काटने के लिए कुल्हाड़ी, आरी और पेड़ काटने वाली मशीनों का उपयोग करना शुरू कर देते थे वैसे ही वहाँ के लोग पेड़ों को काटने से पहले, पेड़ों से चिपक जाते थे एवं पेड़ों को अपनी बांहों में समेट लेते थे | इसीलिए इसे चिपको आंदोलन कहा गया है जब भी पेड़ काटे जाते थे तो जंगलवाषी/ आस- पास के ग्रामीण, पेड़ों को चारों तरफ से घेर लेते थे, इन ग्रामीणों का कहना था यदि आपको ( सरकारी अधिकारी) पेड़ काटने है तो पहले हमें काटों उसके बाद पेड़ों को काट सकते हो |
इस आंदोलन की खास बात यह थी, इन जंगलों को बचाने के महिलाएं तथा पुरुष तो पेड़ों से चिपके ही रहते थे जब महिलायें और पुरुष अपने काम से घर चले आते थे तो उनके बच्चे इन पेड़ों से 48-48 घंटे चिपके रहते थे क्योंकि, कही ऐसा न हो कि सरकार किसी, महिला तथा पुरुष को न पाकर इन पेड़ों को काट न दे |
चिपको आंदोलन के बारे में विस्तृत जानकारी :-
इस आंदोलन की शुरुआत उत्तराखंड के चमौली जिले से हुयी थी वर्तमान में यह उत्तराखंड प्रदेश का एक जिला है लेकिन जब यह आंदोलन शुरू हुआ था उस समय यह उत्तर प्रदेश क्षेत्र के अंतर्गत आता था | इस आंदोलन का नेतृत्व सुन्दरलाल बहुगुणा ने किया था |
सुन्दरलाल बहुगुणा के बारे में, यह भारत के एक महान पर्यावरण- चिंतकों में से एक थे वैसे तो उन्होंने पर्यावरण को लेकर अनेकों आंदोलन तथा सभायें की लेकिन चिपको आंदोलन उनमें से प्रमुख था इसने साथ इनकी पत्नी ने भी आंदोलन करने में अहम भूमिका निभाई थी|
चिपको आंदोलन में महिलाओं और बच्चों की अहम भूमिका :-
जब यह आंदोलन चल रहा था उस समय इन पेड़ों के बारे सुन्दरलाल बहुगुणा, गाँव- गाँव जाते थे और महिलाओं तथा पुरुषों को जागरूक किया करते थे, शाम को 7बजे से सभायें शुरू होती थी और रात को 11 बजे तक चला करती थी इसमें महिलाएं, पुरुष और बच्चे आया करते थे यही कारण था जब इस आंदोलन में तेजी आई तो उसका एक महत्वपूर्ण कारण यहाँ के बच्चे थे जो पेड़ों के चारों तरफ घेरा बना कर खड़े हो जाते थे और काटने से बचाया करते थे |
ऐसा भी कहा जाता है सुन्दरलाल बहुगुणा ने पेड़ों को बचाने के लिए, घरों- घरों जाकर पेड़ों के फायदे बताये और यह भी बताया कि यदि पेड़ कट जायेंगे तो ग्रामीणों तथा पशु- पक्षियों के जीवन- जीने में अधिक बाधाएँ आएगी इस तरह से बिना हिंसा किये पेड़ों को कैसे बचाया जा सकता है |
चिपको आंदोलन का नेतृत्व करने वाली महिलाओं में से प्रमुख महिला गौरा देवी थी |
कुछ वर्षों के बाद जब सरकार को समझ में आता है इन पेड़ों को काटने से नुकसान होगा और जंगत के पेड़ों को काटना इतना आसन नहीं , उस समय की उत्तर प्रदेश की सरकार झुक जाती है और अपना निर्णय वापस ले लेती है इस तरह से चिपको आंदोलन समाप्त हो जाता है |
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FAQ
इस आंदोलन की प्रमुख महिला गौरा देवी प्रमुख थी |
यह उत्तराखंड के चमौली जिले में शुरू हुआ था वर्तमान का उत्तराखंड, लेकिन उस समय का उत्तर प्रदेश का क्षेत्र था |
इस आंदोलन का नेतृत्व सुन्दरलाल बहुगुणा ने किया था|