आये दिन परीक्षा में मोसोपोटामिया की सभ्यता, सुमेरियन का उदय या पतन पूंछा जाता है। या फिर ऐसे सवालों पर लिखने के लिये आ जाता है जैसे -सुमेर सभ्यता के राजनितिक एवं आर्थिक स्थिति का वर्णर्न करें?सुमेरियन सभ्यता के सामाजिक स्थितियों का वर्णन करें?
मोसोपोटामिया की सभ्यता का परिचय:-
वर्तमान परिचय की बात करें, पश्चिम एशिया में फारस की खाड़ी के मध्य ईराक देश हैं जोकि दजला और फरात नदियों के बीच स्थित है। प्राचीन काल में इन दो नदियों के बीच के भूमि को मोसोपोटामिया कहा जाता था। मोसोपोटामिया यूनानी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ “दो नदियों के मध्य का भाग” होता है।
इन दोनों नदियों के कारण यहां की भूमि अत्यधिक उपजाऊ हुआ करती थी। इसलिए यहां पर विकसित सभ्यता को मोसोपोटामिया की सभ्यता कहा जाता है जोकि दुनियां की सबसे पुरानी सभ्यतों में से एक थी। दजला और फरात नदियों के कारण यहां की भूमि अत्यधिक उपजाऊ थी जिससे यहां पर रहने वाले मनुष्य सभ्यता का अत्यधिक विकास हुआ। इस क्षेत्र के मनुष्यों ने विविध प्रकार के कलाओं का विकास किया। मोसोपोटामिया की सभ्यता में प्रमुख रूप से 4 जातियों के सभ्यताओं का उदय हुआ था।
- पहली सुमेरियन सभ्यता
- दूसरी बेबिलोनिया सभ्यता
- तीसरी असीरियन सभ्यता
- चौथी कैल्डियन सभ्यता
इसमें सबसे ज्यादा सुमेरियन जाति का महत्त्व था।
सुमेरियन सभ्यता का उदय:-
इसका उदय मोसोपोटामिया के दक्षिणी भाग में हुआ था तथा प्राचीन काल में सुमेर का क्षेत्रफल अब से कम था। सुमेर में रहने वाले लोगों को सुमेरियन कहा जाता था। मोसोपोटामिया के वास्तविक जन्मदाता सुमेरियन को ही माना जाता है। यहां रहने वाले लोगों का कद छोटा, नाक ऊँची तथा नुकीली, मुँह के ऊपर का हिस्सा (सिर) पीछे की ओर झुका और सिर के बाल घूँघराले काले होते थे। रिसर्च के अनुसार- यह कहा जाता है कि सुमेरियन लोगों ने सेमेटिक जाति को हराकर उनकी संस्कृति के आधार पर अपनी सभ्यता का विकास किया था।
सुमेरियन सभ्यता का राजनितिक जीवन:-
- प्रारंभ से सुमेर में प्रजातंत्र का सिद्धात था, लेकिन 3000 ई. पू. के बाद प्रजातंत्र की भावना समाप्त होने लगी थी। इसका मूल कारण, प्रजातंत्र में व्याप्त दोष। जैसे- किसी गंभीर बार/ समस्या के निदान/ का निर्णय देर से लिया जाता था, साथ ही संकटकालीन अवसर के लिये एक अधिकारी की नियुक्ति की गयी थी, जिसे “लूगल/पत्तेसी” कहा जाता था जिसे पहले अस्थायी रखा गया बाद में स्थायी कर दिया गया था।
- जैसे जैसे समय बीतता गया यह आधिकारिक पद पुरोहितों को दे दिया गया या नगर के मंदिरों के पुरोहितों को ही लूगल कहा जाने लगा और यह लूगल जनता को पताड़ित करने लगे।
- जैसे- कर बढ़ाना, यदि कर ना देना तो सेना के द्वारा प्रताड़ित करना इसलिये धीरे-धीरे आपसी विद्रोह बढ़ने लगा और लोगों में राजनैतिक एकता की आवश्यकता महसूस हुई।
- राजनैतिक एकता की आवश्यकता के कारण किसी एक व्यक्ति के हाथों में सत्ता आ गयी और प्रजातांत्रिक प्रणाली के स्थान पर राजतंत्र की स्थापना हुई। शुरू में यह स्थित काफ़ी मजबूत थी परन्तु बाद में राजतन्त्र की जड़े उखड़ने लगी।
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FAQ
सेना का संगठन और युद्ध कला:-यहां तक सेना के संगठन की बात है, इसमें कोई विशेष प्रगति देखने को नहीं मिलती है। रणक्षेत्र का सेनापति “पत्तेसी होता था। नगर के लोग पत्तेसी के नेतृत्व में युद्ध में लड़ते थे।
पंक्ति युद्ध शैली थी – शत्रु पर आक्रमण।
युद्ध में रक्षा – दल और शिरशास्त्र
रथो का अधिक प्रयोग होता था, गधे घोड़े जाते थे।
प्रारम्भ में घोड़े और धनुष बाण का प्रयोग नहीं किया जाता था।
प्रारम्भ में न्याय व्यवस्था परंपरिक परम्पराओं और रीति रिवाजों पर निर्भर थी। ज्यों ज्यों शक्ति बढ़ी, इनमें भी बदलाव आया और एक विविध संहिता की आवश्यकता भी महसूस हुई।
उर के तृतीय राजवंश के राजा उरनामू ने विधिसंहिता का निर्माण किया था जिसे उरनामू की विधिसंहिता के नाम से जाना जाता है।
यह देश दजला और फरात नदियों के बीच स्थित है। इनके बीच की दूरी को मोसोपोटामिया कहा जाता है जोकि फारस खाड़ी के मध्य में है।
इस दौरान, 4 सभताओं का उदय हुआ था जोकि निम्लिखित हैं।
1-सुमेरियन
2- बेबिलोनिया
3-असीरियन
4-कैल्डियन
इस सभ्यता के लोगों की आकृति कद छोटा, नाक ऊँची तथा नुकीली, माथा पीछे की ओर झुका और सिर के बाल काले होते थे।
न्यायालयों में महत्वपूर्ण स्थान मंदिर से घनिष्ठ संबंध रखने वालों का था जिसमें पुजारी न्यायाधीश हुआ करते थे। अदालत 2 प्रकार की होती थी।
1- सामान्य
2-धार्मिक
लूगल/पत्तेसी के नाम से जाना जाता था।
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