डा. मुख्तार अहमद अंसारी [1880-1936] सूफीनामा
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डा. मुख्तार अहमद अंसारी [1880-1936] सूफीनामा

by रवि पाल
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हिन्दुस्तान की आज़ादी के संघर्ष के दौरान देशवासियों में ऐसा माहौल बना हुआ कि डाक्टर हो या हकीम, धनवान हो या ग़रीब, पढ़ा लिखा हो या अनपढ़ प्रत्येक वर्ग के अधिकांश लोग आज़ादी के संघर्ष में शामिल होना अपना फ़र्ज़ थोडा डा. मुख्तार अहमद अंसारी भी उन वतन प्रेमियों में से एक थे, जिन्होंने इक्टरी की डिग्री हासिल करने के बाद भी अपने जीवन का मक़सद वतन की आजादी को बनाया था।

डा. मुख्तार अहमद अंसारी का जन्म:-

25 दिसम्बर 1880 में यूसुफ़पुर जिला गाज़ीपुर उत्तर प्रदेश में अब्दुर्रहमान अंसारी के घर मुख्तार अहमद अंसारी पैदा हुए। उनके दो भाई हकीम अब्दल बहाब और हकीम अब्दुर्रज़्ज़ाक अंसारी भी था मुख्तार अहमद अंसारी दोनों भाईयों में छोटे थे। अब्दुल वहाब ने तिब्बिया स्कूल दिल्ली से हिकमत का कोर्स किया। उनके इलाज से ऐसे कई मरीज़ों को सेहत मिली जो कि दूसरी जगहों का इलाज करके मायूसी का शिकार हो चुके थे। वह बड़े चमत्कारी हकीम थे।

उनके इलाज से अधिकांश लोगों को फायदा होता था। उनकी विशेषता यह थी कि वह धनवानों का इलाज महंगा करते थे जब कि वही इलाज ग़रीबों का मुफ़्त किया करते थे। बाद में उनकी आंखों की रौशनी ख़त्म हो गई थी। उन्हें नाबीना हकीम साहिब भी कहा जाने लगा था। उनके दूसरे भाई अब्दुर्रज़्ज़ाक़ भी बुलन्द दरजे के और मुसलमान की शोहरत और महारत के कारण निजाम हैदराबाद के भी कर दोनों ही भाइयों ने हिकमत में बड़ा नाम कमाया।

डा. मुख्तार अहमद अंसारी की शिक्षा:-

इन्होने अपने बड़े भाई हकीम अब्दुर्रज्जाक के पास हैदराबाद में रह कर निजाम कालेज हैदराबाद से ग्रेजुएशन किया। उसके बाद आगे की पढ़ाई के लिए लन्दन चले गए। वहां पढ़ाई करके डाक्टरी की डिग्री हासिल की, सैकड़ों वर्षों की गुलामी के दौरान भारत की सरजमीं पर उसके सपूत पैदा होते फिर अपने वतन हिन्दुस्तान लौट आए। भी रहे और इस संसार को छोड़ कर जाते भी रहे, परन्तु उन्हीं के नाम अमर हुए जो कि अपने वतन की आवरू पर अपनी आरजुओं को कुर्बान कर गए।

डा. मुख्तार अहमद अंसारी भी भारत के उन योग्य सपूतों में से थे जिन्होंने गांधी जी, पं. नेहरू, मौलाना अबुल कलाम आजाद, मौलाना हसरत मोहानी, मौलाना मुहम्मद अली जौहर आदि के साथ मिल कर अंग्रेज़ों के खिलाफ लड़ाई लड़ी।

अपनी तालीम पूरी करके हिन्दुस्तान वापस आने के बाद उन्होंने: डाक्टरी की प्रैक्टिस पर ध्यान दिया। उनकी योग्यता के कारण जल्द ही बड़े डाक्टरों में उनकी गिनती होने लगी। उनके दिल में देश की आज़ादी की जो ज्योति जल रही थी. उसने उन्हें अपने पेशे में सीमित नहीं रहने दिया। वह देश के नेताओं से सम्पर्क करके अपनी प्रैक्टिस के साथ-साथ आज़ादी के संघर्ष में भी शामिल हो आजादी की लड़ाई लड़ने के लिए वह यूसुफपुर से दिल्ली आकर अपनी ब कोठी “दारुस सलाम शांति का घर, दरियागंज में रहने लगे।

डा. मुख्तार अहमद अंसारी का आजादी में योगदान:-

वह शुरू से ही आजादी के मतवाले थे। इसलिए वह समान विचारधारा के व्यक्तियों में सदैव वह केवल खुद ही आज़ादी के संघर्ष में नहीं लगे, बल्कि उनकी कोठी “दारस सलाम भी राज नेताओं का केन्द्र बनी हुई थी। महात्मा गांधी हो या मौलाना अबुल मुहासिन मुहम्मद सज्जाद, पं. नेहरू हो या अली ब्रादरान मौलाना हमा मोहानी हों या कि मौलाना आज़ाद आदि, सभी महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, डाक्टर साहिब की कोठी दारुस सलाम में ठहरते, मीटिंग और विचार-विमर्श किया करते। फ़िरंगियों के ख़िलाफ़ रणनीतियां उनकी कोठी में ही अधिकांशतः तैयार की जाती थीं।

कुछ समय डा.अंसारी, शैखुल-हिन्द मौलाना महमूद हसन से बहुत प्रभावित थे, क्योंकि शैखुल-हिन्द पाए के आलिमे-दीन, इबादत गुज़ार, अल्लाह पर भरोसा करने वाले बुजुर्ग थे। साथ ही बड़े वतन-प्रेमी और महान स्वतंत्रता सेनानी थे।डा. अंसारी को उन पर बहुत विश्वास और उनसे बहुत लगाव था। वह उनकी माली मदद भी किया करते थे।

उस समय स्वतंत्रता सेनानियों की गिरफ्तारियां की जा रही थी शैखुल हिन्द की गिरफ्तारी का भी खतरा हुआ। डाक्टर साहिब ने उन्हें सभी शंकाएं बता कर यहां से हिजाज़ चले जाने की सलाह दी।साथ ही डा. अंसारी द्वारा उनके सफर की तैयारी और उनकी आर्थिक सहायता भी की गई। शैखुल-हिन्द ब्रिटिश से आंख मिचौली करके हिजाज़ के सफ़र के लिए रवाना हो गए। जब  फिरंगियों को इस कार्यवाही का पता चला, तो उन्होंने शैख का इस तरह ख़ामोशी शासन से निकल जाना अपनी नाकामी समझा।

डा. मुख्तार अहमद अंसारी का हिंदुस्तान के प्रति  मोहब्बत:-

डाक्टर साहिब और उनके भाई अब्दुर जाक को इसका ज़िम्मेदार मानते हुए अंग्रेज अधिकारियों द्वारा उन्हें पूछताछ के लिए बुलाया गया। अधिकारियों द्वारा नाराज़गी के साथ उनसे कहा गया कि शेख ब्रिटिश शासन के बाग़ी है, वह शासन के खिलाफ साजिशें रचते हैं, आपका उनकी माली सहायता करना बड़ा जुर्म है। उसके जवाब में डा. अंसारी ने कहा कि उन्हें हम अपना मज़हबी पेशवा व पीर व मुर्शिद मान कर उनकी माली सहायता करते हैं। अगर यह भी कोई जुर्म हो तो आप जो चाहे सज़ा दे सकते हैं। डा. साहिब की बेबाक, साफ़ सुथरी बात पर उन्हें न तो गिरफ्तार किया गया न कोई सज़ा दी|

डा. मुख्तार अहमद अंसारी की भारत के आजादी में योगदान:-

आज़ादी की लड़ाई में हिस्सा लेने वाला देश का प्रत्येक नेता इस बात को अच्छी तरह समझता था कि आजादी हासिल करने के लिए हिन्दू-मुस्लिम एकता जस्ती है। इस राज को डा. साहिब भी अच्छी तरह जानते और मानते थे। इसीलिए उन्होंने मुस्लिम लीग और कांग्रेस पार्टी दोनों को अज़ादी की लड़ाई में मिल कर करने के लिए राजी किया। उनका यह भी मशवरा था कि उलमा-ए-दीन का सियासत में भी हिस्सा लेना जरूरी है, क्योंकि मजहबी उलमा के पीछे उस मज़हब के मानने वालों की बड़ी संख्या होती है |

जो कि उनके एक हुक्म पर प्रत्येक काम करने को तैयार रहते हैं। डा. साहिब की योग्यता और सभी को साथ लेकर चलने की क्षमता को देखते हुए दूसरे नेताओं में भी उनकी बात बन गई थी। यही कारण था कि एनी बेसेंट साहिबा (Annie Besant 1847-1933) की Home Rule League में डा. साहिब को अध्यक्ष चुना गया।

“होम रूल लीग” एक राजनीतिक संगठन था जिसका उद्देश्य स्व-शासन था। इस कारण से डा. साहिब का महत्व और बढ़ गया।

वैसे तो आज़ादी के आन्दोलन में हिन्दू-मुसलमान एवं सिख नेता और अवाम सभी संघर्ष कर रहे थे, फिर भी प्रत्येक नेता का अपने मानने वालों में एक अलग से ही महत्व रहता है। इसी तरह डा. साहिब के भी सैकड़ों चाहने वाले मौजूद थे। जो कि उनके एक इशारे पर किसी भी आन्दोलन के लिए तैयार रहते थे। गांधीजी द्वारा जब रोलट बिल का विरोध शुरू किया गया, तो डा. साहिब ने उस मुहिम की सफलता के लिए अवाम के बीच आह्वान किया। उनकी आवाज़ पर सैकड़ों लोग उठ खड़े हुए। जलसे किए गए और जुलूस निकाले गए।

इस आन्दोलन को सफल बनाने में डा. साहिब की सक्रिय भूमिका के कारण वह गांधी जी के खास लोगों में गिने जाने लगे। गांधी जी का सत्याग्रह हो या आज़ादी के लिए किसी भी प्रकार का आन्दोलन, हर मौके पर डा. साहिब ने अथक मेहनत और प्रयास करके उसे सफ बनाने में जी-जान से काम किया। उनके राजनीति में प्रवेश के बाद कांग्रेस पार्टी का कोई भी आन्दोलन, हड़ताल या सत्याग्रह ऐसा नहीं हुआ जिसमें डा. अंसारी मौजूद न हों, या उसमें उनकी सहमति न हो। राजनैतिक व्यक्तियों के लिए सियासत के सफ़र में बहुत उतार चढ़ाव आते रहे हैं।

फिर भी कोई राजनीतिज्ञ सच्चाई और ईमानदारी से अपने लक्ष्य पर जमा रहे, तो वह देश की किसी भी पार्टी द्वारा संघर्ष करने में अपना लक्ष्य नहीं भूलता। डा. अंसारी के राजनैतिक सफ़र में एक समय वह भी आया, जब कि नेहरू रिर्पोट के कारण बहुत से कांग्रेसी मुसलमान पार्टी से दूर हो गए।

इतिहास के पन्ने :-

यहां तक कि डा. अंसारी ने भी कांग्रेस पार्टी से दूरी बना ली थी। उन्होंने आज़ादी के संघर्ष को जारी रखने के लिए “नेशनलिस्ट मुस्लिम पार्टी का गठन किया। उस पार्टी के अध्यक्ष मौलाना अबुल कलाम आज़ाद और जनरल सेकेट्री तसद्द्क़ हुसैन शेरवानी थे। इसके अलावा और भी बड़े मुसलमान नेता उसमें शामिल हो गए। उन्होंने उस पार्टी द्वारा कुछ समय आज़ादी के संघर्ष की कार्यवाहियां चलाई। इधर कांग्रेस पार्टी में अचानक डा. अंसारी की जरूरत महसूस होने लगी।

1930 में गांधी जी के नमक सत्याग्रह के समय कांग्रेस पार्टी पर एक समय ऐसा भी आया, जब ब्रिटिश शासन द्वारा कांग्रेस पार्टी के अधिकांश नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। सरदार पटेल ने जो कि पार्टी के चोटी के नेताओं में से थे, डा. अंसारी को एक पैग़ाम भेजा—

कांग्रेस के सदर और सैकेट्री गिरफ़्तार किए जा चुके हैं, कांग्रेस को ग़ैर क़ानूनी पार्टी घोषित कर दिया गया है, ऐसे समय में आप ही पार्टी की लीडरशिप संभाल सकते हैं। मैं हर क़दम पर आपकी कमी का एहसास करता हूं। अगर आप मुझसे कुछ बातचीत की ज़रूरत महसूस करते हैं, तो मैं दौड़ा चला आऊँगा। मुझे यक़ीन है कि आप मेरी बात पर गौर करेंगे। डा. अंसारी, सरदार पटेल के उस पैग़ाम से बेचैन हो उठे। वह इस बात को किसी भी तरह बर्दाश्त नहीं कर सकते थे कि उनके रहते हुए आज़ादी के किसी भी आन्दोलन में कोई कमी या कमज़ोरी आये। उन्हें वैसे भी कांग्रेस पार्टी से पुराना लगाव था। सरदार पटेल के पैग़ाम पर वह शीघ्र ही अपने सभी गिले-शिकवे दूर कर सत्याग्रह में जा कर शामिल हो गए। फ़िरंगियों द्वारा उन्हें भी गिरफ़्तार कर गुजरात भेज दिया गया।

इतिहास का सफ़र :-

उन दिनों वह बीमार थे, परन्तु वह अपनी बीमारी की परवाह कि देश की आज़ादी के आन्दोलन में कद पड़े। इस प्रकार डा. अंसारी ने अपने जीवन के एक-एक पल को देश की अमानत समझा। उन्होंने राजनीति में आने के बाद अपने जीवन का अधिकांश समय देश की अज़ादी के आन्दोलन और ग़रीब बीमारों की सेवा करने में ही गुज़ारा।

इसी के साथ उनको देश के बाहर भी जख्मियों का इलाज करने का मौक़ा मिला। दक्षिण-पूर्व यूरोप में एक प्रायद्वीप बलकान में जंग (1912-1913) के समय ख़िलाफ़त मूव्मेंट की ओर से डाक्टरों का एक दल तुर्की के मुस्लिम मुजाहिदीन की देख-रेख और उनको मेडिकल सुविधा देने के लिए हिन्दुस्तान से भेजा गया।

उस मेडिकल दल का लीडर डा. असारी को बनाया गया। वहां पहुंचकर डा. अंसारी और उनके दल ने बहुत ही मुहब्बत और हमदर्दी भरे अन्दाज़ में जख्मियों की मरहम पट्टी की। उन जख्मियों के पाव जैसे-जैसे भर रहे थे, डा. अंसारी की ख़िदमत की मुहब्बत उनके दिलों में घर करती जा रही थी।

डा. अंसारी ने देश की आज़ादी में संघर्ष के साथ ही क़ौम की तालीम की ओर भी ध्यान दिया। वह शुरू से ही जामिया मिल्लिया इस्लामिया से जुड़े रहे। उन्होंने जामिया की तरक़्क़ी के लिए देश के अन्दर और बाहर भी प्रयास किए। जामिया के लिए उन्होंने चन्दे की भारी रकम भी इकट्ठा की।

डा. मुख्तार अहमद अंसारी के जिन्दगी का आखिरी  सफर:-

जिन्दगी के आखिरी सफ़र तक वह  हमेसा चाहते थे कि जामिया के विद्यार्थी आला तालीम पाकर वतन प्रेमी, वैज्ञानिक, दार्शनिक, और डाक्टर बनने साथ ही देश के निर्माता बनें। डा. मुख्तार अहमद अंसारी ने अपने जीवन का अधिकांश समय देश सेवा में गज़ार दिया। उन्होंने आज़ादी के संघर्षों की व्यस्तता में न तो अपनी निजी कमाई की चिंता की, न अपने आराम की परवाह की। देश और देशवासियों की लगातार सेवा करते रहने के कारण डा. साहिब ख़ुद बीमार रहने लगे। वह अपनी ज़िन्दगी के केवल 56 वर्ष पूरे करके ही मई 1936  में अपने वतन को अलविदा कह गए।

भारत देश के स्वतंत्रता सेनानी डा. मुख़्तार अहमद अंसारी, के अचानक इन्तिकाल पर गांधी जी एवं दूसरे देशवासियों को भी बहुत दुख हुआ ।इस तरह डो. मुख़्तार अहमद अंसारी एक स्वतंत्रता सेनानी होने के साथ ही आधुनिक भारत के निर्माता भी थे।

वतन से सच्ची मुहब्बत रखने वालों को हम याद रखें या भुला दें, लेकिन इ देश में दौड़ती तेज़ हवाएं, हर तरफ़ फैलती ख़ुशगवार फ़िज़ाएं और इस देश व पवित्र धरती अपने होनहार सपूतों की अमर कहानियों और अमिट कारनामों सदैव गर्व करती रहेगी।

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