बुन्देलखण्ड में गाँधीजी का आगमन पर निबंध [PDF]
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बुन्देलखण्ड में गाँधीजी का आगमन पर निबंध [PDF]

by रवि पाल
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वर्तमान  भारत देश में जिस तरह से इतिहास के साथ हमारे देश के राजनैतिक दल और उनके समर्थक संगठन छेड़खानी कर रहे है यह अपने आप में बहुत तकलीफ देह है यदि देश के किसी भी हिस्से में जायेंगे तो राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी को जरुर पाएंगे लेकिन आज के कुछ राजनीति से प्रेरित भारतवाषी इस महात्मा को ही गलत समझते है इसीलिए आज का विषय बुन्देलखण्ड के ऊपर है जहाँ हम समझेंगे कि गाँधीजी का आगमन इस धरती पर कितनी वार आगमन हुआ|

जैसे कि आप जनता है महात्मा गाँधी ने समस्त भारत की यात्रा की थी इसी कड़ी में मध्यप्रदेश एवं बुन्देलखण्ड को भी यह सौभाग्य प्राप्त है कि यहाँ महात्मा गाँधी का आगमन हुआ।

बुन्देलखण्ड में गाँधीजी का आगमन के वर्ष:-


प्रथम बार 1918

द्वितीय बार 1921

तृतीय बार 1929

चतुर्थ वार 1933

पाँचवी बार 1935

छठी बार 1941

सातवीं बार 1942

गाँधीजी की मध्यप्रदेश की यात्राओं में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण यात्रा 1933 ई. की थी जिसमें उन्होंने बुन्देलखण्ड के सागर अंचल के अनन्तपुर ग्राम में रात बिताई। इसकी विस्तृत विवेचना हम आगे करेंगे।

गाँधीजी ने बुन्देलखंड में कहाँ- कहाँ अपना समय ब्ययतीत किया:-

मध्यप्रदेश का प्रथम परिचय 1918 में उस समय हुआ जबकि वे इन्दौर आए। गाँधीजी अखिल भारतीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन के आठवें अधिवेशन में भाग लेने 1918 में इन्दौर आए। गाँधीजी इस अधिवेश के सभापति थे। उन्होंने 28 मार्च से 31 मार्च 1918 तक का समय इन्दौर में बिताया।
नागपुर कांग्रेस के पश्चात् गांधीजी ने 1921 में भारत का व्यापक दौरा किया। उनका यह ऐतिहासिक दौरा मध्यप्रदेश के छिन्दवाड़ा से आरम्भ हुआ। अली बन्धु भी उनके साथ आए थे। 6 जनवरी 1921 को गाँधीजी कार द्वारा दोपहर लगभग 3 बजे छिन्दवाड़ा पहुंचे। तिलक स्वराज फण्ड के लिए दान देने गांधीजी ने यहाँ की महिलाओं से अपील की। प्रत्युत्तर में “अली भाइयों के मन में छिन्दवाड़ा की महिलाओं ने बड़ी संख्या में धन एवं आभूषण दान स्वरूप है।

मैं अहमदाबाद जाना चाहता था ,गांधीजी ने यहाँ दिए भाषण में कहा छिन्दवाड़ा के प्रति बहुत अनुराग यह मुझे छिन्दवाड़ा ले आए। गाँधीजी ने खिलाफत नेता अली बन्धुओं के साथ पूरे भारत का दौरा किया था। छिन्दवाड़ा में “तिलक स्वराज कोष एवं “खिलाफत कोष” के लिए लगभग ढाई हजार रुपए एकत्रित छिन्दवाड़ा से गांधीजी वापस नागपुर चले गए। चूंकि अली बन्धु लम्बे हुए। समय तक छिन्दवाड़ा एवं बैतूल की जेलों में रहे थे। उनका यहाँ काफी परिचय था अतः वे गाँधीजी को छिन्दवाड़ा ले आए थे –

अली बन्धुओं के साथ गाँधी जी का भ्रमण :-

गाँधीजी ने असहयोग आन्दोलन के सन्देश को सारे देश में फैलाने एवं तिलक स्वराज फण्ड के लिए एक करोड़ रुपए का फण्ड एकत्रित करने का लक्ष्य रखा था। इसी सिलसिले में 20 मार्च 1921 को वह जबलपुर आए। रास्ते में सिवनी भी रुके एवं वहाँ जनसमूह को सम्बोधित किया। जबलपुर में वे श्री श्याम सुन्दर भार्गव जी की कोठी “खजांची भवन” रुके। उनकी इस यात्रा का प्रबन्ध श्री श्याम सुन्दर भार्गव एवं सेठ गोविन्द दास ने किया। यहाँ भी उन्होंने विशाल जनसभा को सम्बोधित किया। गाँधीजी के आदशों से प्रभावित होकर नगर के दो प्रतिष्ठित वकीलों – नाथूराम मोदी एवं अब्दुल रहीम ने अपनी वकालत छोड़ दी। वे गाँधीजी के आन्दोलन में शामिल हो गए।

गाँधी जी की जबलपुर की यात्रा और उसकी कुछ यादें:-

जबलपुर की इस यात्रा में गाँधीजी को 20 हजार रुपए प्राप्त हुए ,जबलपुर में सेठ गोविन्ददास एवं श्याम सुन्दर भार्गव द्वारा संचालित असहयोग आन्दोलन की गाँधीजी ने प्रशंसा की 1921 ई. में गाँधीजी अम्बाला से भुसावल जाते समय खण्डवा में रुके थे। भोपाल के नवाब श्री हमीदुल्ला खाँ के आमन्त्रण पर 11 सितम्बर 1929 में गांधीजी भोपाल आए थे। गाँधीजी को भोपाल के नागरिकों ने खादी कार्य के लिए 1035 रुपए की थैली भेंट की उसके बाद  गाँधीजी भोपाल में नवाब साहब के “राहत मंजिल” नामक भवन में ठहराए गए थे।

गांधीजी की यह यात्रा हरिजनोद्धार से सम्बन्धित थी। जब वे यरवदा जेल में थे, तब ब्रिटिश प्रधानमन्त्री रेम्से मेकडोनल्ड ने देश के लिए एक ऐसी निर्वाचन प्रणाली सुझाई, जिसमें हरिजनों के लिए पृथक मतदान की व्यवस्था थी । “कम्यूनल अवार्ड” नामक इस घोषणा का गाँधीजी ने विरोध किया। इसे उन्होंने सवर्ण एवं हरिजनों के मध्य खाई पैदा करने वाला फैसला बताया। गाँधीजी ने हरिजन पत्र का प्रकाशन आरम्भ किया। 7 नवम्बर 1933 को वर्धा में गाँधीजी ने सेवाग्राम की स्थापना की।” गाँधीजी ने अपने इस नवीन निवास स्थान से नवम्बर 1935 में अपनी दस माह की दीर्घ हरिजन यात्रा आरम्भ की। इस यात्रा में उन्होंने हरिजन उद्धार के प्रयास किए, साथ ही हरिजन कोष के लिए धन भी एकत्रित किया।

गाँधी जी की रायपुर की यात्रा और उसकी कुछ यादें:-

 इस बार गाँधीजी रायपुर, धमतरी एवं बिलासपुर होते हुए 28 नवम्बर 1933 को बालाघाट पहुँचे। बालाघाट से सिवनी, बैतूल, इटारसी होते हुए 1 दिसम्बर को बरमान घाट पहुँचे। मध्यप्रदेश में गाँधीजी की इस हरिजन यात्रा की व्यवस्था पं. रविशंकर शुक्ल एवं राजेन्द्र सिंह व्यौहार कर रहे थे। उस समय पुल न होने के कारण नाव द्वारा नदी पार करनी थी। पं. रविशंकर शुक्ल ने लिखा है

 इस बार गाँधीजी रायपुर, धमतरी एवं बिलासपुर होते हुए 28 नवम्बर 1933 को बालाघाट पहुँचे। बालाघाट से सिवनी, बैतूल, इटारसी होते हुए 1 दिसम्बर को बरमान घाट पहुँचे। मध्यप्रदेश में गाँधीजी की इस हरिजन यात्रा की व्यवस्था पं. रविशंकर शुक्ल एवं राजेन्द्र सिंह व्यौहार कर रहे थे। उस समय पुल न होने के कारण नाव द्वारा नदी पार करनी थी। पं. रविशंकर शुक्ल ने लिखा है

बरमान घाट पर नौका चलाने वाले मल्लाहों ने गाँधीजी को उस समय तक नौका पर चढाने से इन्कार कर दिया जब तक कि गाँधीजी अपने पैर उनसे धुला न लें। गाँधीजी इसके लिए तैयार न थे मल्लाह भी अड़े हुए थे। अन्त में हमने गाँधीजी से प्रार्थना की, कि आप इन सरल हृदय लोगों का आग्रह मान लीजिए। गाँधीजी को झुकना पड़ा।

बरमान घाट की इस घटना से मेरी आँखों के सामने श्रीराम के पैर धुलवाकर ही नौका पर गंगाजी पार करने देने की रामायण कालीन केवट की कहानी बरबस याद आ गई।

इसके पश्चात् गाँधीजी लगभग 11 बजे देवरी पहुँचे। यहां गाँधीजी ने देवरी के प्राचीन मुरलीधर मन्दिर के कपाट हरिजनों के लिए खोले। यहाँ की जनता ने 351 रुपए एवं हरिजनों ने 51 रुपए की थैली गांधीजी को भेंट में दी।
गाँधी जी का हरिजन स्त्रियों द्वारा स्वागत और अस्पताल दौरा किया |

इतिहास के कुछ और पन्ने :-

शुक्रवार बाज़ार में गाँधीजी ने एक विशाल सभा को सम्बोधित किया। यहाँ 100 हरिजन स्त्रियों ने अपने सिर पर प्रज्ज्वलित दीपकों सहित कलश रखकर उनका स्वागत किया। गाँधीजी के दर्शन के लिए 15 से 20 हज़ार लोग एकत्रित हुए। नगरपालिका की ओर से गांधीजी को पं. लक्ष्मणराव ने मानपत्र भेंट किया और सूत की माला पहनाई सभा स्थल के बाद गाँधीजी एक 10 वर्षीय बालिका नन्हीबाई को देखने अस्पताल गए। देवरी में गाँधीजी के विश्राम की व्यवस्था प्रसिद्ध स्वदेशी भक्त लाला भवानी प्रसाद के घर पर की गई।

गाँधी जी का अनन्तपुर दौरा:-

देवरी से 2 बजे रवाना होकर गाँधीजी 3.30 पर अनन्तपुर पहुंचे। अनन्तपुर में गाँधीजी का आगमन उनकी इस हरिजनोद्धार यात्रा की एक विशिष्ट घटना थी। यहाँ जेठालाल भाई नामक एक उत्साही युवक ने गाँधीजी के आदशों से प्रेरित होकर गाँव में खादी के प्रचार हेतु आश्रम खोला था। बुन्देलखण्ड के इस अनन्तपुर गाँव में स्थापित खादी आश्रम से गाँधीजी इतने अधिक प्रभावित हुए कि उन्होंने हरिजन पत्र में “अनन्तपुर में मैंने क्या देखा” शीर्षक से एक सम्पादकीय लिखा।

मध्य प्रान्त ( हिन्दी भाषी) के सागर जिले में अनन्तपुर एक छोटा सा गाँव है। इस गाँव में कुल 177 घर हैं और जनसंख्या 885 है। सबसे करीब का रेलवे स्टेशन यहाँ से 35 मील दूर है। यहाँ डाकघर और तारघर नहीं है। अनन्तपुर से 12 मील दूर रहली गाँव से सप्ताह में एक बार डाक आती है। यहाँ के लिए यही निकट से निकट डाकघर है। 1929 के साल में अपनी गजब की धुन के एक उत्साही नवयुवक ने अपने प्रयोग के लिए यह अनन्तपुर गाँव चुना। उसका विश्वास है कि भारत की कृषक जनता की निर्धनता को दूर करने का एकमात्र स्थायी उपाय है तो यही है कि चरखे को व्यापक रूप से अपनाया जाए। उस युवक का नाम है जेठालाल गोविन्दजी कार्यकर्ता हैं।

गाँधीजी ने बताया कि इन्होंने सारे गाँव को चरखा चलाना सिखाया। खादी कार्य की इन्होंने गाँव में नींव डाली। अनन्तपुर के चारों ओर पाँच मील के घेरे में 17 गाँवों की सेवा के लिए इन्होंने कार्यकर्ता पैदा किए। गाँधीजी बताते है कि

जो झोंपड़े अनन्तपुर में मैंने देखे उनके बारे में भी यहाँ दो शब्द कहूंगा। मैं छः से अधिक झोंपड़ों में गया। उनमें से एक झोंपड़ा हरिजन का भी था। यहाँ यह कहना पड़ता है कि इस खादी सन्देश के अनुसार काम करने में हरिजन भाई सबसे अधिक तत्पर पाए गए।

भाई जेठालाल ने गाँधीजी को बताया कि 17 गाँव के 1,100 घरों की आबादी 5,500 के लगभग है। हमारे प्रयासों से 80 लोगों ने कताई सीख ली है और 60 लोगों ने घुनना सीख लिया है। 100 से अधिक आदमी सूत बुनना सीख गए हैं। हमारे पास तीन मुख्य कार्यकर्ता, तीन सहकारी, पाँच उप-सहकारी, पाँच मददगार और चार उम्मीदवार हैं। हमारे मासिक खर्च का औसत 325 रुपए है। अखिल भारतीय चरखा संघ की ओर से हमें यह पैसा मिलता है।

अनन्तपुर में गाँधीजी ने ग्रामवासियों को चरखे का महत्व समझ हुए कहा जब मैंने देखा कि मेरे बहुतेरे भाइयों को घी, दूध आदि स्वास्थ्य के लिए नितान्त आवश्यक पदार्थ नहीं मिलते और को तो अपे ही रहना पड़ता है, उनका बहुत सा पैसा विलायती वस्त्रों में ही पर्य हो जाता है, तब बहुत मनन करने के बाद मैंने चरखे को पकड़ा। चरखा हमारे देश के करोड़ों भाइयों का घी-दूध और रोटी है। मुझे प्रसन्नता उस दिन होगी जब मैं देखूंगा कि प्रत्येक मनुष्य यह सके कि जो कपड़े में पहने हूँ वो मैंने ही तैयार किए हैं।

गाँधी जी के बुन्देलखंड दौरे के इतिहास के पन्ने:-

इस तरह गाँधीजी ने अनन्तपुर के लोगों को चरखा चलाने हेतु प्रेरित किया। गाँधीजी रात को अनन्तपुर गाँव में ही रुके। दूसरे दिन 2 दिसम्बर को सुबह 6.30 बजे अनन्तपुर से रहली, गढ़ाकोटा होते हुए दमोह पहुँचे। दमोह पहुँचने पर दमोह नाके पर कॉंग्रेस कमेटी तथा स्वागत समिति द्वारा गाँधीजी की अगवानी की गई। दमोह में आयोजित सभा मे हरिजनों, महिलाओं एवं ईसाइयों के बैठने की विशेष व्यवस्था थी। यहाँ के इसाई भाइयों ने गाँधीजी को हरिजन उद्धार के लिए थैली भेंट की जिस पर गाँधीजी ने प्रसन्नता व्यक्त की।

गाँधीजी को मानपत्र भेंट करते हुए दमोह के श्री झुन्नी लाल वर्मा ने कहा कि दमोह जिले में छुआ-छूत का भूत अन्य स्थलों की भाँति नहीं है। शराबबन्दी के साथ-साथ छुआ-छूत भी यहाँ से चली गई है। भारत में दमोह पहला जिला था जहाँ प्रयोग के तौर पर सर्वप्रथम पूर्णरूप से शराबबन्दी की गई। बाल्मीक समाज के हरिजनों के लिए गाँधीजी ने दमोह में एक मन्दिर का शिलान्यास किया। दमोह से शाम 5.30 बजे गाँधीजी सागर के लिए रवाना हो गए।

2 दिसम्बर की रात को गाँधीजी सागर आए। गाँधीजी को देखने भारी भीड़ उमड़ी। सुबह गाँधीजी ने पॉपुलर इन्स्टीट्यूट, छत्रसाल व्यायामशाला, सूर्य विजय व्यायामशाला, महिला विद्यालय आदि का निरीक्षण किया। इसके पश्चात् मोराजी के बाड़े में महिलाओं की सभा में पहुँचे। गाँधीजी को यहाँ मानपत्र एवं 4,511 रुपए की थैली भेंट की गई। गाँधीजी ने सागर में मछरयायी में हरिजनों के लिए बनाए जा रहे हरिजन मन्दिर का शिलान्यास किया। गाँधीजी को हरिजन समाज, म्युनिसिपल कमेटी, बाररुम, डिस्ट्रिक्ट काउंसिल, हिन्दू समाज एवं गुजराती समाज ने मानपत्र भेंट किए।

गाँधी जी का भारत देश के लोगों को आजादी के प्रति सुझाव:-

हरिजनों को सम्बोधित करते हुए गाँधीजी ने कहा कि आप लोग सफाई की आदत डाले तथा माँस खाना छोड़ दें, मद्यपान त्याग दें। हरिजनों को रोज सुबह हिन्दी में प्रार्थना करना चाहिए। अपने पचास साल के अनुभव का उदाहरण सामने रखते हुए बताया कि किस प्रकार संकट के क्षणों में ईश्वर ने मेरी मदद की है। आपको मन्दिरों में जाने से पहले स्नान करना हिए साफ-सुथरे कपड़े पहनना चाहिए। यह भली-भांति समझ लेना चाहिए कि जातिभेद मात्र व्यवसाय पर निर्भर है। सभी मनुष्य समान हैं। सभी को सार्वजनिक अधिकार भी समान मिलना चाहिए। हरिजन भाइयों को माला हुआ, मन्दिर आदि का उपयोग करने का उतना ही अधिकार होना चाहिए जितना सवर्ण हिन्दू भाइयों को प्राप्त है। खान-पान आदि के प्रश्न तो सर्वथा व्यक्तिगत हैं। सागर में गाँधीजी के निवास की व्यवस्था डॉ. स्प्रे के निवास स्थान नजरबाग में की गई थी

सागर के गल्ला बाजार में सार्वजनिक सभा आयोजित की गई। स्वागत व्याख्यान श्री रामकृष्ण राव द्वारा दिया गया। सागर की इस सभा गाँधीजी ने अस्पृश्यता को हिन्दू जाति पर कलंक बताया। अस्पृश्यता निवारण का अर्थ स्पष्ट करते हुये उन्होंने कहा कि मैं चाहता हूँ कि यह भली-भाँति समझ लिया जाए कि जाति-भेद मात्र व्यवसाय पर निर्भर है। वैसे मनुष्य मात्र समान है। अतः सभी के सार्वजनिक अधिकार समान होने चाहिए। हरिजन भाइयों को शाला, कुँआ, मन्दिर आदि का उपयोग करने का उतना ही अधिकार होना चाहिए जितना सवर्ण हिन्दू भाइयों को प्राप्त है। खान-पान आदि के प्रश्न तो सर्वथा व्यक्तिगत हैं।

मध्यप्रदेश के दौरे में यह उनका अन्तिम पड़ाव था। इस प्रकार गाँधीजी का 17 दिवसीय मध्यप्रदेश दौरा समाप्त हुआ। मध्यप्रदेश की इस यात्रा में वे लगभग 2,500 मील चले एवं उन्होंने हरिजन कोष के लिए 51,000 रुपए एकत्रित किए।

सागर से गाँधीजी कटनी गए, वहाँ हरिजन निवास का निरीक्षण किया। 3 दिसम्बर की रात्रि को जबलपुर पहुँचे। जबलपुर में उसी समय काँग्रेस कार्यसमिति की बैठक थी। इसमें काँग्रेस अध्यक्ष डॉ. अंसारी, जवाहरलाल नेहरू, मौलाना आजाद, सरदार पटेल आदि जबलपुर आए। डॉ. अंसारी ने गाँधीजी का स्वास्थ्य परीक्षण किया। उन्होंने परामर्श दिया कि आगामी कार्यक्रम इस प्रकार रखा जाए कि गाँधीजी को 4 घण्टे से अधिक परिश्रम न करना पड़े। उन्होंने गाँधीजी को भी कहा कि आपको विश्राम की सख्त आवश्यकता है।” जबलपुर से ही 6 दिसम्बर को मण्डला गए और वहाँ जनसमूह को सम्बोधित किया। इसके बाद सोहागपुर, बाबई,  एवं खण्डवा होते हुए बुरहानपुर पहुँचे।

प्रथम बार 1918 में एवं अन्तिम बार 20 अप्रैल 1935 में गाँधीजी इन्दौर में अखिल भारतीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन में भाग लेने आए। यह पुनः 24वाँ अधिवेशन था। 27 अप्रैल 1942 को बहुत ही अल्प समय के लिए जबलपुर आए। इस प्रकार गाँधीजी ने मध्यप्रदेश में कई बार यात्राएं की। इसमें हिन्दी साहित्य सम्मेलन में राष्ट्रभाषा हिन्दी पर जोर देने के लिए इन्दौर की यात्राएं महत्त्वपूर्ण रहीं। हरिजनोद्धार की दृष्टि से उनकी बुन्देलखण्ड यात्रा महत्त्वपूर्ण रही।

बुन्देलखण्ड के सागर अंचल के गाँव अनन्तपुर से तो गाँधीजी अत्यन्त प्रभावित हुए। वे उस गाँव में रुके भी और वहाँ चल रहे खादी प्रचार से अत्यन्त प्रभावित भी हुए। उन्होंने अनन्तपुर ग्राम पर अपने पत्र हरिजन में एक बड़ा लेख भी लिखा। इसमें – अनन्तपुर के नवयुवकों के कार्य की सराहना की। बुन्देलखण्ड आज भी महात्मा गाँधी की यात्राओं की यादों को अपने में सहेजे हुए है।

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