जब हमारे देश में वर्तमान में गांवों तथा शहरों की बात की जाती है तो अक्सर क्षेत्रवाद का विषय जरुर आ जाता है इसके साथ- साथ हाल ही की परीक्षाओं में इस पर कुछ न कुछ पूछा जाता है इसलिए आज का लेख भारत के क्षेत्रवाद निबंध पर आधारित है|
आज का लेख “भारत में क्षेत्रवाद” पर आधारित होने के साथ- साथ ऐसे उन सभी तथ्यों पर विचार करेगा जोआये दिन समस्याओं का कारण बनती नजर आती है भारत में बढ़ती हुयी क्षेत्रीयता की समस्या अलग-अलग रूपों में हमारे सामने आती रहती है इसलिए इस प्रसग की प्रसंगिगता हमेशा से बनी रहती है ऐसे में यह लेख निबंध और एथिक्स के प्रश्न पत्र के लिहाज से काफी अहम हो जाता है|
- बिहार चुनाव: कटिहार विधानसभा (63)में जनता का मूड क्या है?
- कटिहार : प्राणपुर विधानसभा का माहौल, किसकी सरकार बनेगी।
- बांका : मनीष कुमार फिर से धोरौया में अपना परचम लहरायेगें।
- बिहार चुनाव : पीरपैंती विधानसभा की सीट किसके खाते में जाने की सम्भावना है NDA या महा गठबंधन, कांटे की टक्कर है |
- भागलपुर :1967 अंबिका प्रसाद ने अपने पहले चुनाव में किस नेता को हराकर राजनीति शुरू की थी?
भारत में क्षेत्रवाद की भूमिका:-
- इस देश के लोगों ( भारत के लोगों) के सामाजिक – राजनीतिक जीवन पर क्षेत्रवाद का गहरा प्रभाव पड़ा|
- केंद से लेकर स्थानीय स्तर के चुनावों में प्रतिवर्ष क्षेत्रवाद बड़ा मामला नजर आना एक सामाजिक समस्या है|
- राजनीति , विकास .रोजगार सांस्कृतिक अस्मिता, पहचान आदि सभी जगह इया तरह का मुद्दा हावी रहता है जिस तरह से हम गाँव से लेकर संसद के चुनावों की तरह देखते है तो हर जगह क्षेत्रवाद का मुद्दा आ ही जाता है|
- इसको ऐसे भी समझ सकते है यह वर्तमान में ज्यादातर लोगों के लिए जाना पहचाना शब्द है जो आये दिन की न किसी में मुद्दा बनकर नजर आ ही जाता है बात चाहे राज्यों की राजनीति की हो या फिर समाज के किसी भी वर्ग के विकास या रोजगार की,या अस्मिता की हो या फिर पहचान की ,हर जगह यह मुद्दा हावी दिखता है |
- कहीं- कहीं यह भी देखा गया है कि वर्तमान के राजनैतिक दल अपनी राजनीति को चमकाने के लिए क्षेत्रवाद का मुद्दा उठाते दिखते है वहीं दूसरी तरफ कुछ अलगाववादी अलग राज्य की मांग करने के लिए इसको सबसे आगे ले कर आते है तथा हाल ही के वर्षों में केंद सरकारों को भी देखा गया है कि वो अपनी सरकार बचाने ने लिए यह मुद्दा लेकर आ जाते है|
भारत में क्षेत्रवाद भूमिका में राष्ट्रवाद बनाम क्षेत्रवाद:-
क्षेत्रवाद की भूमिका में राष्ट्रवाद बनाम क्षेत्रवाद बहस का मुद्दा बना रहता है हालाँकि कुछ लोग इसे नकारात्मक अवधारणा के रूप में प्रचारित करते दिखते है तो कुछ लोग इसे सकारात्मक के नजरिये से देखने की कोशिस करते है | कुल मिलाकर भारत में क्षेत्रवाद का मुद्दा किसी न किसी रूप में देखने को मिलता ही है ऐसे में इसे गहराई से जानना और समझना हर भारतवासी का कर्तब्य है|
क्षेत्रवाद क्या है ?
एक ऐसा विचार जिसमें राजनीतिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और वैचारिक रूप से क्षेत्र विशेष के हितों को सबसे उपर माना जाता है |
एक क्षेत्र के लोग अपने ही क्षेत्र के हितों को सर्वोपरि मानते हुए उनकी रक्षा करने की कोशिश करते है तथा उस जगह के उनका खास लगाव उनका स्वाभाविक है इस स्थित में हम उस व्यक्ति द्वारा क्षेत्र विशेष को आर्थिक सामाजिक तथा राजनैतिक रूप से संपन्न करने की बात आती है तो यह क्षेत्रवाद के अंतर्गत आता है |
भारत में क्षेत्रवाद की अभीव्यक्ति:-
अलग राज्य की मांग करना |
विशेष राज्य या पूर्ण राज्य की मांग करना |
भारत संघ से अलग होने की मांग |
अंतर्राज्यीय मसलों में अपने पक्ष में समाधान पाने की मांग |
बाहरी लोगों के खिलाफ आन्दोलन में अभिव्यक्त |
भारत देश में क्षेत्रवाद के प्रथक भाषा, अलग भौगोलिक पहचान, नृजातीय पहचान असमान जैसे कई कारक उत्तरदायी है ऐसे में सवाल बनता है कि क्षेत्रवादके उदय के क्या- क्या कारण बनते नजर आते है|
क्षेत्रवाद के उदय के कारण:-
- इसके उदय के लिए भौगोलिक फैक्टर एक अहम कारण है तथा यहाँ के राजनेताओं के द्वारा क्षेत्रवाद को बढ़ावा मिलता है |
- भाषायी आधार पर लोगों को एकीकृत करना या फिर किसी क्षेत्र का गठन करना तथा असमान या असंतुलित आर्थिक विकास, क्षेत्रीय असमानताओं को बढावा देने में मददगार साबित होता है जिसे क्षेत्रवाद के उदय का कारण माना गया है|
- क्षेत्रीय विकास में असंतुलन और प्राकृतिक संसाधनों के असमान वितिरण के चलते विभिन्न राज्यों के बीच मतभेद होने से इस तरह के मुद्दों का उदय माना गया है|
क्षेत्रवाद की चिनौतियाँ / नकारात्मक प्रभाव :-
हमारे देश में आये दिन क्षेत्रवाद के चलते अनेक चिनौतियाँ का सामना करना पड़ता है जोकि निम्नलिखित है |
- अलगाववाद की भावना को बढावा मिलता है, आये दिन इसके उदहारण देखने को मिलते है जैसे- असम में उल्फागुट का गठन तथा मिजोरम में मिजोरम नेशनल फ्रंट का गठन इसके बाद पंजाब में खालिस्तान का आन्दोलन आदि |
- देश की एकता तथा अखंडता पर नकारात्मक प्रभाव |
- क्रेंद – राज्य संबंधों पर भी प्रतिकूल असर देखने को मिलता है , जिस तरह झारखण्ड राज्य का गठन हुआ उस हिसाब से वहाँ पर किसी तरह का कोई विकास नहीं हो सका|
- क्षेत्रवाद के परिणाम स्वरूप भारत में सहकारी संघवाद की भावना के स्थान पर संघर्षात्मक संघवाद की प्रवृति|
- गठबंधन की राजनीति को बढावा जिससे लगातार राजनैतिक अस्थिरता का माहौल बना रहता है |
- क्षेत्रों के विकास के लिए निति- निर्माण या फिर इनके क्रियान्वयन में बाधा |
क्षेत्रवाद के सकारात्मक पक्ष :-
कई मामलों में क्षेत्रवाद के सकारात्मक अवधारणा भी है|
- विभिन्न दल क्षेत्रीय पहचान, आकांक्षा या किसी विशेष क्षेत्रीय समस्या को आधर बनाकर लोगो की भावनाओं की नुमाइन्दगी कर पाते है|
- भारत में क्षेत्रीय मुद्दों और समस्याओं पर निति-निर्माण की प्रक्रिया में समुचित ध्यान और नेतृत्व में स्थानीय भागीदारी एक सकारात्मक पक्ष है|
- कुछ वास्तविक मांगों, विशेष रुप से विकासात्मक मांगों पर क्षेत्रवाद एकजुट पैदा करता है|
- प्रतिस्पर्धी संघवाद के लिहाज से क्षेत्रवाद एक सकारात्मक अवधारणा है|
- इसके चलते राज्य स्तरीय स्वरूप में स्थानीय भाषाओँ को लागू किया जा सकता है|
- विभिन्न संस्कृतियों व भाषओ को सुरक्षित रखने में क्षेत्रवाद की अहम भूमिका रहती है|
आगे की राहें जिनको वर्तमान में ध्यान रखने की जरुरत है:-
राज्यों को क्षेत्रवाद के उपर उठ कर एक दुसरे के साथ मिलकर विकास में भागीदार के रूप में साथ आना होगा/ चाहिए |
राज्यों की समस्या और जरूरतों को समझने के लिए नीतिआयोग को और बेहतर तरीके से काम करने की जरूरत है|
देश के सभी क्षेत्रों का समान विकास हो|
केंद सरकार को प्रकृतिक एवं खनिज संसाधनो का बंटवारा राज्यों की जरुरतों को ध्यान में रख कर करना चाहिए |
राज्यों के बीच विवादों को हल करने और समन्वय बढ़ाने पर ध्यान देने की जरूरत है|
क्षेत्रीय परिषदों द्वारा दिये गये सुझावों पर गंभीरता से विचार हो और उस पर तुरंत अमन किया जाना चहिये|
शिक्षा के जरिये एक राष्ट्रव्यापी दृष्टिकोण का विकास कर लोगों एवं आने वाली पीढ़ियों में क्षेत्रवाद के दुष्परिणामों के प्रति जागरूकता का विकास किया जाये|
सी आर फॉर्मूला 1944 [ C R formula 1944][ चक्रवर्ती राजागोपालाचारी]
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