जब हम भारत देश के इतिहास के बारे में बात करते है तो सबसे पहले 1857 का स्वाधीनता संग्राम को याद करते है लेकिन इसके साथ- साथ जैसे समय बीतता है आन्दोलन अलग – अलग माध्यम से पूरे भारत में तेज हो जाता है यह एक अलग का विषय है लेकिन आज का लेख मध्य प्रदेश के सागर जिले का रतौना आन्दोलन के बारे में देख रहे है, इस आन्दोलंन का एक बहुत महत्वपूर्ण विषय 1923 ई. का झण्डा सत्याग्रह है
जिस तरह से यदि आपने पिछले लेख में देखा होगा किस तरह से मध्य प्रान्त के पत्र और अख़बारों ने आन्दोलन में अपना योगदान दिया या एक सराहनीय कदम था
उस दौर के स्वाधीनता आन्दोलन में जब सागर जिले के रतौना आन्दोलन में जीत किसी भी देश या समाज के लिए उनका झण्डा गौरव का प्रतीक होता है।
1920 ई.का रतौना (सागर) आन्दोलन | मध्यप्रदेश का इतिहास
वर्ष 1921 में गाँधीजी द्वारा ही झण्डे की रूपरेखा को प्रस्तावित किया गया था , उस समय झण्डे में सफेद, हरा व लाल यह तीन रंग हुआ करते थे एवं मध्य में एक बड़ा चरखा था। इस झण्डे का डिजाइन पिंगली वेंकय्या द्वारा किया गया था।
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1923 ई. का झण्डा सत्याग्रह से झंडे का प्रारूप:-
राष्टपिता महात्मा गाँधी द्वारा के द्वारा 12 फरवरी 1922 ई. में असहयोग आन्दोलन वापस ले लिया गया था और इस आन्दोलन के समाप्त हो जाने के कारण भारत में एक राजनीतिक शून्य की स्थिति निर्मित हो गई।
इसके बाद 20 मार्च 1922 को गाँधीजी की गिरफ़्तारी हो जाती है जैसे ही गिरफ़्तारी हो जाती उसके बाद भारत देश के संगठन और अखिल भारतीय कॉंग्रेस कमेटी ने एक जाँच समिति “सत्याग्रह जाँच समिति” गठित की, यह जाँच समिति भारत के समस्त प्रदेशों ( उस समय के प्रांतीय क्षेत्रों) में दौरा करते हुए फरवरी 1923 में जबलपुर पहुँची।
उस दौरान जबलपुर नगरपालिका के अध्यक्ष कन्छेदीलाल पाठक ने इस जाँच समिति को मानपत्र देने के इस अवसर पर टाउन हॉल की इमारत पर “राष्ट्रीय झण्डा फहराने का निर्णय लिया यह निर्णय अपने आप में हिंदुस्तान के लिए अपने आप में एक चिनौती पूर्ण था तथा इसके साथ ही सत्याग्रह जाँच समिति के सदस्यों का नागरिक अभिनन्दन करने का भी निर्णय लिया गया।
जब यह सब कुछ हो रहा था उस समय के जबलपुर के डिप्टी कमिश्नर कैसे बर्दाश्त कर सकता था , डिप्टी कमिश्नर जबलपुर ने न केवल अभिनन्दन कार्यक्रम रद्द कर टाउन हॉल पर ताला भी डलवा दिया।
झण्डा सत्याग्रह और पंडित सुन्दरला का झण्डे के प्रति सम्मान:-
उस समय के मध्यप्रदेश कॉंग्रेस कमेटी के अध्यक्ष पंडित सुन्दरलाल ने राष्ट्रीय झण्डे के मान की रक्षा हेतु सत्याग्रह प्रारम्भ करने की घोषणा कर दी इसके साथ ही प्रतिज्ञा की कि जब तक अभीष्ट की प्राप्ति न कर लेंगे तब तक अनाज तथा इससे निर्मित किसी भी भोज सामग्री को ग्रहण नहीं करेंगे।
इसी प्रतिज्ञा पर अमल करने के कारण हो उन्हें फल, पं. सुन्दरलाल “तपस्वी का सम्बोधन प्राप्त हुआ और कुछ दिनों के बाद इसी के तहत 18 मार्च 1923 को एक जूलूस निकाला गया और जबलपुर के नगरपालिका भवन पर तिरंगा झण्डा फहरा दिया गया। जबलपुर नगरपालिका पर झण्डा फहराने का साहसिक कार्य दमोह के एक नवयुवक प्रेमचंद “उस्ताद” ने किया।
जैसे जैसे यह सत्याग्रह आगे बड़ रहा था उसके साथ ही डिप्टी कमिश्नर ने जबलपुर के सिपाहियों को झण्डा उतारने का आदेश दिया। अति-उत्साहित पुलिसकर्मियों ने न केवल झण्डा उतारा अपितु उसे पैरों तले कुचल भी दिया।जनता ने इसे आपतिजनक और अपमान जनक माना और इस तरह से झण्डा सत्याग्रह प्रारम्भ हो गया।
झण्डा सत्याग्रह के दौरान पं. सुन्दरलाल, सुभद्राकुमारी चौहान, बाबूराम मोदी का अनसन और गिरफ्तारी जिस तरह से झंडे का अपमान किया गया उसके विरोध में पं. सुन्दरलाल, सुभद्राकुमारी चौहान, बाबूराम मोदी व कुछ स्वयं सेवकों ने एक जुलूस निकाला जिसके बाद पं. सुन्दरलाल पर मुकदमा चलाया गया और उन्हें 6 माह के कारावास का दण्ड दिया गया।
महत्वपूर्ण तारीख :-
नागपुर के राजनीतिक कार्यकर्ताओं ने उनसे स्टेशन पर ही इस सत्याग्रह का नेतृत्व करने का आग्रह किया। वर्षा पहुंचकर उन्होंने इस विषय पर अच्छी तरह विचार किया और झण्डा सत्याग्रह का नेतृत्व करने का फैसला लिया। जातियता बाग हत्याकाण्ड का दिन (13 अप्रैल) झण्डा सत्याग्रह आरम्भ करने हेतु चुना गया। मध्य प्रान्त के विभिन्न नगरों से जत्थे के जत्थे झण्डा सत्याग्रह में भाग लेने हेतु नागपुर रवाना हुए।
13 अप्रैल को एम.आर. अंसारी के नेतृत्व में 36 स्वयं-सेवकों का एक जुलूस बहुत बड़ी भीड़ के साथ नगर से रवाना हुआ और सिविल स्टेशन की ओर बढ़ा।
जिला दण्डायीश गोवान ने उसे रुक जाने का आदेश दिया 10 स्वयं-सेवक, स्वयं ही इसके लिए आगे आए परन्तु पुलिस ने उनके साथ निर्दयतापूर्ण व्यवहार किया एवं उन्हें बन्दी बनाकर 60 रुपए के अर्थदण्ड या दो मास के कारावास से दण्डित किया। जबलपुर से एक बड़ा जत्था सुभद्राकुमारी चौहान व उनके पति ठाकुर लक्ष्मण सिंह के नेतृत्व में आया। बैतूल से सेठ जेठमल व होशांगाबाद से ठाकुर केसर सिंह एक जत्था लाए|
पं. सुन्दरलाल तपस्वी के राजनीतिक शिष्य भाई अब्दुल गनी को अपने की गिरफ्तारी से अंग्रेजों के खिलाफ अत्यधिक आक्रोश उत्पन्न हुआ। गुरु भाई अब्दुल गनी ने खुरई से कई आदमी एकत्रित किए और नागपुर के लिए रवाना हो गए। सागर से नागपुर जाने वाले अन्य प्रमुख नेता रामकृष्ण पाण्डे, दुर्गाप्रसाद सेन, बुद्धु इमाम खाँ एवं वासुदेव राव सूबेदार थे?
1 मई 1923 को सत्याग्रह नागपुर में आरम्भ हुआ। जमनालाल बजाज ने झण्डे को हाथ में लेकर नागपुर में जुलूस निकाला। यह आन्दोलन 114 दिन चला एवं इसमें विभिन्न भागों से आए 1,265 सत्याग्रहियों ने भाग लिया। राष्ट्रीय स्तर के नेता भी नागपुर आए
झंडा सत्याग्रह में क्रांतिकारी पत्रकारों की भूमिका :-
वासुदेव राव सूबेदार के नेतृत्व में सागर जिले के 30 सत्याग्रहियों ने अपनी गिरफ़्तारी दी। भाई अब्दुल गनी, रामकृष्ण पाण्डे एवं दुर्गाप्रसाद सेन सहित 30 व्यक्तियों को गिरफ़्तार किया गया। सागर के घुन्धिराजपन्त हलवे को 120 बी, 188 और 108 दफा में 23 जुलाई को गिरफ़्तार कर 13 माह का कारावास दिया गया। सागर पुलिस पहले ही नागपुर पुलिस सूचना भेज चुकी थी कि अब्दुल गनी खुरई के काफिले को लेकर सागर से रवाना हो चुके हैं।
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झण्डा सत्याग्रह के दौरान नागपुर की स्थिति एवं अपनी गिरफ़्तारी। प्रकाश डालते हुए भाई अब्दुल गनी ने स्वयं लिखा है
नागपुर की सिविल लाइन में झण्डा ले जाने पर गिरफ्तारियाँ शुरू हो गई। इस सत्याग्रह का सफल नेतृत्व दादा (माखनलाल चतुर्वेदी) ने किया। बालाघाट से सत्याग्रह करने जत्थे के जत्थे आने लगे। दादा के बुल्लाने पर हम लोग नागपुर जा पहुँचे। पुलिस कामठी में ही ट्रेनों में पर-पकड़ करने लगी। हजारों लोगों के आने, ठहरने और खिलाने का इन्तजाम दावा करते थे।
जमनालाल बजाज, पूनमचंद राका, बैरिस्टर नरकेसरी अभ्यंकर इतने बड़े सत्याग्रह का संचालन कर रहे थे। चारों तरफ से जाये के जत्ये तिरंगा लहराते चले आ रहे थे।
मुझे, भाई रामकृष्ण पाण्डे और दुर्गाप्रसाद सेन को सिविल लाइन में घुसते ही गिरफ्तार कर सात-सात माह की कैद की सजा देकर नागपुर सेण्ट्रल जेल में हँस दिया गया। नागपुर में पुलिस ने रहना, सोना, खाना हराम कर दिया।
इस प्रमाण-पत्र से पता चलता है कि भाई अब्दुल गनी को धारा 120B (2) एवं 188 (1) LP.O. के तहत 22 जून 1923 को सात माह के कारावास की सजा देकर नागपुर जेल में रखा गया। 3 जुलाई 1923 को भाई अब्दुल गनी को खण्डवा जेल में स्थानान्तरित कर दिया गया।
भाई अब्दुल गनी ने सागर की स्थिति पर भी प्रकाश डालते हुए बताया है कि –
झण्डा सत्याग्रह आन्दोलन में विद्यार्थियों ने भी बड़ी उत्सुकता से भाग लिया। छात्र नारायण दास हार्डिकर जो सागर के श्री गोविन्द राव के पुत्र थे को झण्डा फहराने पर शाला से निष्कासित कर दिया गया।
इस सत्याग्रह में न केवल बड़े लोग अपित बच्चा-बच्चा इससे प्रभावित था मोहन और अभिमन्यु भी ऐसे ही 14 वर्षीय बच्चे थे जो इस सत्याग्रह शामिल होना चाहते थे।
तर्क-वितर्क कर मोहन इस सत्याग्रह में शामिल हो गया एवं अभिमन्यु से आग्रह के द्वारा इस सत्ता में अपनी जगह बनाई परन्तु पुलिस के इक ने इन्हें भी नहीं छोड़ा एवं पुलिस के पौटने के कारण अभिमन्यु को अस्पताल ले जाना पड़ा इसलिए बाद में उन्हें जुलूस में न भेजकर सत्यात कार्यालय में कार्य करने के लिए कहा गया। वे बड़ी वीरता से करते दे
नहीं रुकेगा, नहीं झुकेगा, सैमी झण्डा कभी नहीं, भारत-भू की राष्ट्रपताका, झुक सकती क्या, कभी नहीं।
वीर शीस बत्तीस कोटि पर, कौमी झण्डा खड़ा हुआ, इसकी रक्षा हेतु वतन का, बच्चा-बच्चा अड़ा हुआ
- विशेष राज्य का दर्जा (विशेष श्रेणी / एससीएस) की विशेषताएं क्या है?
- सी-सेक्सन/ Caesarean Delivery डिलिवरी के आंकड़े दिन-प्रतिदिन बढ़ते दिख रहे है, पूरी जानकरी क्या है?
- लोक सभा में अध्यक्ष तथा उपाध्यक्ष का चुनाव तथा नियम 8 की जानकारी बहुत महत्वपूर्ण है
- लोकसभा उपसभापति/उपाध्यक्ष की भूमिका और इतिहास का वर्णन कीजिये
- भारतीय इतिहास में किलों की प्रथम खोज कब हुयी थी पूरी जानकरी देखिये |
झण्डा सत्याग्रह में महिलाओं की भूमिका:-
महिलाओं ने भी स्वतन्त्रता संघर्ष में प्रथम बार मोर्चे का अग्रभाग सम्भाला जिसमें सुन्द्राकुमारी चौहान महिलाओं में एक प्रमुख नाम है।शाह वलिय्युल्लाह
जब इनको बन्दी बनाया गया उस समय राजगोपालाचारी ने अपने लेख में लिखा है-
मुझे विश्वास है कि आप यह अनुभव करेंगे कि आज हमारी बहन इन्दी बना ली गई। इसने अपने आपको अपरिचितों व पुलिस वालों द्वारा अभिरक्षा में लिया जाना क्यों स्वीकार कर लिया, जिसे कोई भी हिन्दू महिला स्थिर चित्त से सोच तक नहीं सकती। सुभद्रा यह वीरतापूर्ण कार्य भारत के प्रत्येक घर में सुना और सराहा जाएगा यह लेख अलग- अलग किताबोन तथा रिसर्च से किया गया है
इस दौरान कस्तूरबा गांधी भी स्वयं नागपुर आई और वल्लभभाई पटेल से सत्याग्रह करने वाले जत्थों में स्त्रियों को भी सम्मिलित करने को कहा। किन्तु सरदार ने, जिन्हें पुलिस की कार्य-प्रणाली मालूम थी, यह निर्णय किया कि भारत की स्त्रियों के लिए अभी समय नहीं आया है
कि ऐसा संकट मोल ले मध्य प्रान्त के तत्कालीन समाचार-पत्रों ने जबलपुर नगरपालिका के साहस की प्रशंसा की। सत्याग्रह के प्रसंग में श्री शारदा ने तीन अत्यन्त प्रेरणादायक टिप्पणियां लिखीं।
इतिहास के पन्ने :-
मासिक प्रभा ने अपनी सामयिक टिप्पणी में सत्याग्रह की विजय नम्र निवेदन प्रस्तुत किया। प्रभा ने तो “झण्डा विशेषांक निकाला।आवरण पृष्ठ पर ही सुभद्राकुमारी चौहान का चित्र छापा तथा यह लिखी “मातृ-मन्दिर में हुई पुकार, चढ़ा तो मुझको है भगवान् के हितवाद एवं केसरी में भी इस सत्याग्रह के बारे में लेख लिखे गए तथा नागपुर में जवाहरलाल नेहरू, पुरुषोत्तम दास टण्डन एवं माखनला चतुर्वेदी ने सत्याग्रहियों के जुलूसों का नेतृत्व किया। 275 सत्याग्रहियों सहित वे भी गिरफ्तार कर लिए गए।
नागपुर में जुलाई माह में अखिल भारतीय काँग्रेस कमेटी की बैठक हुई। 18 जुलाई 1923 को समस्त भारत में झण्डा दिवस मनाया गया। 22 जुलाई को वल्लभभाई पटेल ने झण्डा सत्याग्रह की बागडोर संभाली। 23 जुलाई को विट्ठलभाई पटेल भी नागपुर आ गए। झण्डा सत्याग्रह एक विशाल रूप धारण कर लिया। एक हजार से भी अधिक सत्याग्रही बन्दी बनाए गए।
झंडा सत्याग्रह से ब्रिटिश सरकार के अन्दर का रवैया :-
सत्याग्रह की सफलता एवं विशालता को देखकर सरकार घबरा गई। गवर्नर तथा वल्लभभाई एवं विट्ठलभाई पटेल के मध्य वा प्रारम्भ हुई। धारा 144 व जूलूस के प्रतिबन्ध को हटा लिया गया। अगस्त 1923 को विट्ठलभाई पटेल ने झण्डा सत्याग्रह की समाप्ति के घोषणा कर दी।
झण्डा सत्याग्रह में पत्रकार भाई अब्दुल गनी का लेख:-
जिस तरफ से 1920 के रतौन आन्दोलन में सागर के भाई अब्दुल गनी आन्दोलन किया और क़त्लखाना बंद कराया उसके बाद इन्होने झण्डा सत्याग्रह की समाप्ति पर लिखा कि –
जेल में समझौता होने पर सत्यदेव विद्यालंकार, आबिद अली मैं समालोचक नामक के साथ में छोड़ दिया गया। यह समझौता सरदार पटेल और सरकार के बीच हुआ था। झण्डा सत्याग्रह के बाद साप्ताहिक पत्रिका का सम्पादन करने लगा।
झण्डा सत्याग्रह में भाग लेने वाले सागर जिले के प्रमुख सत्याग्रही निम्न है यह नाम भोपाल की लाइब्रेरी और पुराने अख़बारों और पत्रिकाओं से लिए गये है
- अब्दुल गनी पिता श्री वली मोहम्मद, झण्डा सत्याग्रह में भाग लेने के कारण 1923 में खण्डवा जेल में 7 माह का कारावास हुआ था
- दुर्गाप्रसाद सेन पिता श्री टीकाराम, झण्डा सत्याग्रह में भाग लेने पर 7 माह की सजा, यह भी सागर जिले के एक पत्रकार हुआ करते थे जो एक पत्रिका चलते थे , इससे पहले 1920 के रतौना आन्दोलन में बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी |
- रामकृष्ण पाण्डे पिता श्री कुंज बिहारी, झण्डा सत्याग्रह में भाग लेने पर 7 माह की सजा
- बुद्ध इमाम खाँ पिता श्री रसूल खाँ, झण्डा सत्याग्रह में भाग लेने पर 7 माह का कारावास हुआ था
- वासुदेव राव सूबेदार पिता श्री वेंकट राव
इसके साथ- साथ बहुत ऐसे लेखक, पत्रकार और क्रन्तिकारी हुए है जिन्होंने झंडा आन्दोलन में हिस्सा लिया लेकिन उनके दस्तावेज न मिलने के कारण उनके बारे में नहीं लिखा जा सकता है|
झण्डा सत्याग्रह की समाप्ति के पश्चात् सेठ जमनालाल बजाज ने जनता के बीच यह स्पष्ट घोषणा की थी कि नागपुर के बाद वे इसी तरह सत्याग्रह बंगाल व मद्रास में प्रारम्भ करेंगे।
मध्य प्रान्त लेजिस्लेटिव सभा में सदस्य सेठ शिवलाल ने एक प्रस्ताव रखकर सरकार से माँग की कि झण्डा सत्याग्रह में गिरफ्तार किए गए कार्यकर्ताओं को बिना शर्त पर अविलम्ब रिहा किया जाए:-
- उसने जुलूस ले जाने की अनुमति का आग्रह नहीं किया, केवल सूचना से ही संतोष कर लिया, जिसके परिणामस्वरूप आन्दोलनकर्ता स्वयं को सफल घोषित कर सकें।
- यद्यपि नेताओं ने यूनियन जैक उनका उद्देश्य न होने की घोषणा की, पर नागपुर के सिविल लाइन्स में राष्ट्रीय झण्डा ले जाने देने से उनका अपमान तो हुआ ही ।
- दूसरे जुलूस की अनुमति तो और भी बड़ी बात थी।
- सारे के सारे सत्य नहीं छोड़े जाने चाहिए थे।
झण्डा सत्याग्रह में “बापू” की भूमिका कैसी रही:-
इस प्रकार हम देखते हैं कि उस समय लोगों में उनके गौरव, उनके सम्मान के प्रतीक “झण्डे को लेकर इतना सम्मान था कि वे इसके लिए सत्याग्रह करने एवं हँसते-हँसते सरकार की यातनाओं को सहने के लिए तैयार थे। परन्तु उन दोरों की दो इच्छा-शक्ति अब धूमिल सी दिखाई। पड़ती है। जब झण्डे को केवल 15 अगस्त या 26 जनवरी के दिन ही याद किया जाता है
एवं उसके स्वयं के नागरिकों के द्वारा अलग सम्मान नहीं किया जाता। लोग कुछ समय के दिखावे के लिए प्लास्टिक के छोटे झण्डे खरीदते हैं एवं कार्यक्रम सम्पन्न होने के पश्चात् वही झण्डा सड़कों पर डालते हुए देखा जाता है। उस वक्त भी हम में कई उसे उठाकर किसी सम्मानजनक स्थान पर रखने का कष्ट नहीं करते।
1923 का झण्डा सत्याग्रह “बापू” की अनुपस्थिति में उनके आदर्शों के अनुरूप अहिंसात्मक तरीके से किया गया सत्याग्रह था । अतः आज भी हमें उनकी अनुपस्थिति में उनके बताए हुए जीवन मार्गों को नहीं भूलना चाहिए। क्योंकि यहीं वो रास्ता है जिस पर चलकर हम आज बढ़ते हुए भारतीय सभ्यता के पश्चिमीकरण को रोक सकते हैं। read about टीपू सुल्तान
डॉ राजेन्द्र प्रसाद ने झण्डा सत्याग्रह को “राष्ट्रीय जीवन को परिष्कृत बनाने वाला आन्दोलन” कहा था।
एक बार पुनः झण्डा सत्याग्रह में जबलपुर एवं सागर के लोगों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई इस तरह से सागर का नाम पुनः राष्ट्रीय पटल पर आ गया।
- विशेष राज्य का दर्जा (विशेष श्रेणी / एससीएस) की विशेषताएं क्या है?
- सी-सेक्सन/ Caesarean Delivery डिलिवरी के आंकड़े दिन-प्रतिदिन बढ़ते दिख रहे है, पूरी जानकरी क्या है?
- लोक सभा में अध्यक्ष तथा उपाध्यक्ष का चुनाव तथा नियम 8 की जानकारी बहुत महत्वपूर्ण है
- लोकसभा उपसभापति/उपाध्यक्ष की भूमिका और इतिहास का वर्णन कीजिये
- भारतीय इतिहास में किलों की प्रथम खोज कब हुयी थी पूरी जानकरी देखिये |
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पिंगली वेंकय्या द्वारा दिया गया इस झण्डे में तीन कलर हुआ करे थे जिनके नाम सफेद, हरा व लाल है
“राष्ट्रीय जीवन को परिष्कृत बनाने वाला आन्दोलन” कहा था।