वर्तमान में दमोह, सागर संभाग का एक जिला है। पन्ना नरेश, बुन्देल केशरी महाराज छत्रसाल ने अपनी परेशानी के दिनों में कुछ दिन दमोह के जंगल में बिताए थे। गौड़ महारानी दुर्गावती ने भी विपत्तिकाल में अपनी सेना का गठन दमोह जिले के सिंग्रामपुर के समीप किया था। यह लेख दमोह में स्वतन्त्रता संघर्ष पर आधारित है | 1857 की क्रान्ति में भी दमोह के क्रान्तिकारियों ने अहम् भूमिका निभाई। इनमें किशोर सिंह हिण्डोरिया, राजा देवीसिंह, तेजसिंह, गंगाथर का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है। अंग्रेज लेखक आर.व्ही. रसेल ने लिखा है कि
1857 के सिपाही विद्रोह के समय सागर एवं दमोह जिले में विद्रोह का जो दावानल भड़का था, उसने 6 माह तक अंग्रेज सेना को नाकों चने चबदा दिए थे। इस क्रान्ति के पश्चात् भी दमोह में स्वतन्त्रता संघर्ष की लौ प्रज्ज्वलित रही। जिले में अनेक सामाजिक संस्थाएं अस्तित्व में आई। इनमें दमोह लिटरेरी क्लव, दमोह डिबेटिंग क्लब, रीडिंग क्लब, जनरल लाइब्रेरी एवं अंजुमन इस्लामिया जैसी संस्थाएं प्रमुख थीं। 1885 ई. में भारतीय राष्ट्रीय कॉंग्रेस की स्थापना हुई। कालान्तर में इसमें नरम दल एवं गरम दल का आविर्भाव हुआ।
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दमोह का इतिहास जो किताबों में बहुत कम लिखा गया है :-
1905 में जो बंग-भंग विरोधी आन्दोलन हुआ उसमें दमोह के मेवालाल चौधरी ने प्रमुखता से भाग लिया। 1907 के सूरत अधिवेशन कांग्रेसका नरम दल एवं गरम दल में विभाजन हो गया। गरम के समर्थकों ने मध्य प्रान्त में राष्ट्रीय मध्यप्रदेश प्रान्तीय काँग्रेस समिति पर गठन किया। इस समिति में भी दमोह का प्रतिनिधित्व नेपालाल चौधरी एवं किशोरी लाल ने लिया ।
वर्तमान में दमोह, सागर संभाग का एक जिला है। पन्ना नरेश, बुन्देल केशरी महाराज छत्रसाल ने अपनी परेशानी के दिनों में कुछ दिन दमोह के जंगल में बिताए थे। गौड़ महारानी दुर्गावती ने भी विपत्तिकाल में अपनी सेना का गठन दमोह जिले के सिंग्रामपुर के समीप किया था। 1857 की क्रान्ति में भी दमोह के क्रान्तिकारियों ने अहम् भूमिका निभाई। इनमें किशोर सिंह हिण्डोरिया, राजा देवीसिंह, तेजसिंह, गंगाथर का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है। अंग्रेज लेखक आर.व्ही. रसेल ने लिखा है कि:-
प्रथम विश्वयुद्ध के समय जब इसमें भाग लेने के लिए सैनिकों की भर्ती की जा रही थी तब भैयालाल चौधरी ने भाषण में कहा कि जबरदस्ती भर्ती होने से बचने के लिए गरीब लोगों ने बाजार तक आना छोड़ दिया है। भैयालाल चौधरी के इस भाषण को राजद्रोह मानते हुए भारत प्रतिरक्षा अधिनियम के तहत् 10 अप्रैल 1918 को गिरफ्तार कर लिया गया। बाद में 11 जून 1918 को उन्हें रिहा किया गया।
दमोह मेंअसहयोग आन्दोलन का इतिहास:-
1920 में गाँधीजी द्वारा असहयोग आन्दोलन आरम्भ करने पर सागर को तरह दमोह में भी असहयोग आन्दोलन आरम्भ कर दिया गया। यहाँ के लोगों ने इसमें बढ़-चढ़कर भाग लिया। रचनात्मक एवं निषेधात्मक दोनो ही कार्यक्रम आयोजित किए गए। विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार किया गया, स्वदेशी का प्रचार-प्रसार किया गया विदेशी बहिष्कार आन्दोलन के सम्बन्ध में श्री भैयालाल चौधरी ने एक विलायती वस्त्र की सामने लगातार 6 दिन तक धरना देकर अनशन किया। दुकान कें
1920 में सागर में रतौना कसाईखाना बन्द कराने हेतु तीव्र आन्दोलन चला। ब्रिटिश सरकार को अपनी यह योजना त्यागने के लिए बाध्य होना पड़ा। दमोह में भी एक कसाईखाना था। दमोह में भी इसे बन्द कराने के लिए आन्दोलन चला। इसे भी सरकार को बन्द करना पड़ा
इस कसाईखाना विरोधी आन्दोलनों के कारण सागर एवं दमोह की ख्याति भारतवर्ष में प्रसारित हुई। दिसम्बर 1920 के कॉग्रेस अधिवेशन में भाग लेने यहाँ से बड़ी संख्या में लोग पहुँचे। इसके पश्चात् हिन्दी मध्य प्रान्त काँग्रेस समिति बनाई गई। इसकी प्रथम बैठक 27 नवम्बर 1921 को सागर में हुई। इसमें 63 सदस्यों ने भाग लिया। इसके प्रथम निर्वाचित व्यक्ति होने का सम्मान दमोह के श्री दामोदर राव श्रीखण्डे को है |
दमोह में झण्डा सत्याग्रह का इतिहास:-
गाँधीजी द्वारा असहयोग आन्दोलन वापस लेने के पश्चात् सत्याग्रह जॉच समिति ने देश का दौरा किया। जबलपुर नगरपालिका के अध्यक्ष श्री कन्छेदीलाल पाठक ने इस समिति के जबलपुर आने पर इसे मानपत्र देने एवं टाउन हॉल में सम्मानित करने का फैसला किया। जबलपुर डिप्टी कमिश्नर ने इस कार्यक्रम को रोकने के लिए टाउन हॉल में ताला डलवा दिया। इसके पश्चात् प. सुन्दरलाल ने झण्डा सत्याग्रह आरम्भ किया। झण्डा सत्याग्रह प्रारम्भ करने का श्रेय दमोह जिले को ही जाता है। दमोह के ही एक नवयुवक प्रेमचंद ‘उस्ताद’ ने जबलपुर नगरपालिका भवन पर झण्डा महराने का साहस किया था। पं. सुन्दरलाल की गिरफ्तारी के पश्चात् जमनालाल बजाज ने नागपुर में झण्डा सत्याग्रह की कमान सम्भाली। नागपुर में झण्डा सत्याग्रह हेतु भारत के बड़े-बड़े नेता आए। अन्त मे सरदार वल्लभभाई पटेल के साथ समझौता करने के उपरान्त 18 अगस्त 1923 को झण्डा सत्याग्रह सफलतापूर्वक समाप्त हो गया।
दमोह में सविनय अवज्ञा आन्दोलन का इतिहास:-
गाँधीजी ने दाण्डी यात्रा के पश्चात् नमक बनाकर नमक कानून तोड़ा। इसके पश्चात् समस्त भारत में सविनय अवज्ञा आन्दोलन आरम्भ हो गया। दमोह | भी पीछे नहीं रहा। यहाँ के लोगों ने शराब की भट्टियों पर धरने दिए, जुलूस निकाले आम सभाएं की। इन सभाओं एवं जुलूसों में कई बार आम जनता एवं पुलिस मुठभेड़ हुई। 9 जून 1930 को ऐसी ही एक मुठभेड़ के समय जनता ने दो सिपाहियों पर आक्रमण कर दिया। उन पर पथराव भी किया। दमोह में काफी उत्तेजना व्याप्त हो गई। 1 अगस्त 1930 को गोकुलचंद सिंघई को गिरफ्तार कर लिया गया। जब उन्हें जेल ले जाया गया तब महिलाओं ने न्यायालय के अहाते में प्रवेश किया। डिप्टी कमिश्नर की गाड़ी को घेर लिया। जेल के बाहर प्रदर्शन किया गया। पुलिस ने लाठी चार्ज किया। एक बार 1 पुन: प्रेमशंकर धगट की गिरफ़्तारी पर भी उग्र भीड़ पर लाठी चार्ज हुआ।
8 अगस्त 1930 को दमोह में गढ़वाल दिवस मनाया गया। शासकीय उच्च शाला भवन पर राष्ट्रीय ध्वज फहराया गया। इससे नाराज होकर पुलिस ने दमोह में आतंक राज कायम किया। कॉंग्रेस समिति के सचिव श्री रघुवीर प्रसाद मोदी की इतनी निर्ममता से पिटाई की, कि वे बेहोश हो गए। यह क्रूर पिटाई पुलिस अधीक्षक हुर द्वारा की गई थी। कहा जाता है कि जिस प्रकार सांड लाल कपड़ा देखकर भड़क उठता है उसी तरह यह पुलिस अधीक्षक हर किसी को भी गाँधी टोपी पहने देखने पर भड़क उठता था, क्रोध से पागल हो जाता था। जो भी गाँधी टोपी पहने दिखे वह इसका शिकार हो जाता था। इस प्रकार हुर ने और लोगों की भी क्रूरता से पिटाई की थी। 5 मार्च 1931 को गाँधी-इर्विन समझौता सम्पन्न हुआ। सविनय अवज्ञा आन्दोलन वापस ले लिया गया। दमोह में भी सविनय अवज्ञा आन्दोलन समाप्त हो गया।
21 जुलाई सन् 1931 में एक युवक यशवन्त सिंह ने पंजाब मेल रोककर लेफ्टीनेन्ट हेम्स्टन एटिन की हत्या कर दी। उन्हें गिरफ्तार कर 1931 में जबलपुर जेल में फाँसी दी गई। इस घटना से दमोह में आन्दोलन तेज हुआ।
गाँधीजी का दमोह आगमन:-
रहली एवं गढ़ाकोटा होते हुए 2 दिसम्बर 1933 को गाँधीजी दमोह आए। दमोह में उनका स्वागत किया गया। विशाल जुलूस दमोह के मुख्य बाजार से निकाला गया। उनके सिर पर छत्र रखा गया। पूरे रास्ते उन पर
पुष्प वर्षा की गई। जवाहरगंज में गाँधीजी ने विशाल 1 सार्वजनिक सभा में भाषण दिया। झुन्नी लाल वर्मा ने उनका स्वागत किया। गाँधीजी की सभा में हरिजनों, • महिलाओं एवं ईसाइयों के बैठने की विशेष व्यवस्था थी। गाँधीजी को यहाँ की जनता ने मानपत्र दिया। गाँधीजी यह जानकर अत्यन्त प्रसन्न हुए कि दमोह में पूर्णतः शराबबन्दी लागू है। दमोह की जनता के साथ-साथ ईसाइयों ने भी हरिजन उद्धार के लिए गाँधीजी को धन की थैली भेंट की। गाँधीजी ने हरिजन बस्ती में वाल्मीकि समाज मन्दिर का शिलान्यास किया।
झुन्नी लाल वर्मा के लिए एक भारत छोड़ो आन्दोलन 8 अगस्त 1942 को भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस ने महात्मा गाँधी के नेतृत्व में भारत छोड़ो आन्दोलन आरम्भ किया। गाँधीजी ने इस आन्दोलन में “करो या मरो” का नारा दिया।
ऑपरेशन जीरो आवर के तहत 9 अगस्त 1942 को काँग्रेस को अवैध घोषित करते हुए अंग्रेज़ों ने समस्त चोटी के नेताओं को गिरफ्तार कर लिया। 9 अगस्त को दमोह के दो प्रमुख नेताओं श्री प्रेमशंकर धगट एवं रघुवर प्रसाद मोदी को गिरफ्तार कर लिया गया। इससे दमोह में भारत छोडो आन्दोलन में तेजी आई। इसके तहत दमोह में अनेक प्रमुख कार्यकर्ता गिरफ्तार कर लिए गए। दमोह निवासी कपूरचंद जबलपुर गन कैरेज फैक्ट्री में कर्मचारी था। उसने वहाँ से बम चुराकर उसका उपयोग रेलवे लाइन उखाड़ने में किया। उसे गिरफ्तार कर डेढ़ वर्ष के कारावास की सजा सुनाई गई। दमोह के कुछ अन्य उत्साही लोगों ने भी रेलवे लाइन की जोड़ पट्टियाँ निकाल दीं। इनमें शमी मोहम्मद एवं शेर खाँ प्रमुख थे। दमोह के शासकीय उच्च शाला की प्रयोगशाला में भी बम विस्फोट किया गया। इस घटना में रामनारायण मिश्र, ज्ञानचंद श्रीवास्तव एवं महादेव प्रसाद नामक छात्रों की महत्त्वपूर्ण भूमिका थी, इन्हें गिरफ्तार कर कारावास की सजा सुनाई गई। 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में भाग लेने वालों में रावजी भाई पटेल एवं प्रभुनारायण टण्डन आदि का नाम भी प्रमुखता से लिया जा सकता है।
दमोह नगर के मध्य स्थित गांधी चौक आजादी के संघर्ष का एक ऐसा स्मारक है जो आजादी के लिए प्राण देने वालों की यादें ताजा करता है। इसी स्थान पर 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान पुलिस ने स्वाधीनता संग्राम सेनानी श्री रघुवर प्रसाद मोदी को जूतों की टोकरों से मार-मारकर सारे प्रांगण को लहू-लुहान कर दिया था। आजादी के इस संघर्ष में प्रेमचंद सिंघई एवं यशवन्त सिंह आदि ने भी बलिदान दिया और ये शहीद हो गए।”
दमोह नगर से कनछेदी खाँ पिता श्री बुद्ध खा, कुंजविहारी गुरु पिता श्री मनमोहनलाल, कुन्दनलाल जैन पिता श्री सिंघई छोटेलाल, गणेशसिंह पिता श्री बुद्धसिंह, साबुलाल जैन पिता श्री सुखलाल जैन, सुन्दरलाल स्वर्णकार पिता श्री लक्ष्मणसिंह, हरप्रसाद गुप्ता पिता श्री घासीराम ने 1942: के भारत छोड़ो आन्दोलन में बढ़-चढ़कर शिरकत की।” केवलारी (दमोह) निवासी, अर्जुनसिंह लोधी 20 पिता श्री हरिकिशोर को इस दौरान 5 माह के कारावास की सजा सुनाई गई। दमोह निवासी हरिदत्तसिंह पिता श्री खेलसिंह को भी 15 माह के कारावास की सजा से दण्डित किया गया। दमोह जिले के पथरिया नगर से सुखलाल सुनार पिता श्री परमू ने 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में अपनी सक्रिय भूमिका का निर्वहन किया।
इस प्रकार हम देखते हैं कि दमोह के लोगों ने 1857 की क्रान्ति से लेकर 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन तक प्रायः प्रत्येक आन्दोलन में बढ़-बढ़कर भाग लिया। दमोह के इन स्वाधीनता संग्राम सेनानियों का नाम दमोह के इतिहास में आदर के साथ लिया जाता है।
दमोह के स्वाधीनता संघर्ष सेनानी भारतीय स्वतन्त्रता संघर्ष में दमोह की जनता ने बढ़ चढ़कर भाग लिया।
यहाँ के स्वतन्त्रता संघर्ष सेनानियों ने स्वाधीनता संघर्ष के विभिन्न चरणों में अहम भूमिका निभाई। उनमें से कुछ प्रमुख निम्नवत हैं –
दमोह के स्वतन्त्रता संघर्ष सेनानियों में श्री लाल चौधरी का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है। उन्होंने विभिन्न श्री भैयालाल चौधरी आन्दोलनों में न सिर्फ भाग लिया अपितु लोगों को स्वाधीनता आन्दोलन में भाग लेने के लिए प्रेरित भी किया। 10 अप्रैल 1992 को उनका स्वर्गवास हुआ। –
1.श्री प्रेमशंकर धगट आपका जन्म 5 मई 1898 को हुआ था। आपके पिता का नाम श्री लक्ष्मीशंकर धगट था। श्री प्रेमशंकर 1930 से 1932 तक जिला कांग्रेस कमिटी के अध्यक्ष रहे
2.जिला कांग्रेस कमेटी एवं नगरपालिका के अध्यक्ष रहे। आपने श्री गोकुल चन्दजी के साथ स्वतन्त्रता संग्राम में सक्रिय रूप से भाग लिया। 1930-31 में नमक कानून तोड़ने एवं जंगल सत्याग्रह में भाग लेने के कारण जेल भी गए। 1941-42 में व्यक्तिगत सत्याग्रह एवं भारत छोड़ो आन्दोलन में भाग लेने के कारण भी जेल जाना पड़ा। स्वतन्त्रता पश्चात् 1952 में आप विधायक बने। 12 जनवरी 1955 को आपका स्वर्गवास हो गया।
- श्री गोकुल चन्द्र सिंघई आप श्री भैयालाल चौधरी एवं महात्मा गांधी से अत्यन्त प्रभावित थे। गाँधीजी के तो वे अनन्य अनुयायी थे। चरखा प्रचार, सूत कातना, खादी आश्रम चलाना आपके प्रिय कार्य थे। आप ही के प्रयासों से 1926 ई. में सर्वप्रथम दमोह में शराबबन्दी लागू हुई थी। 1933 ई. में 50 वर्ष की आयु में श्री गोकुल चन्दजी का स्वर्गवास हो गया।
- श्री झुन्नीलाल वर्मा – झुन्नीलाल वर्मा के पिता श्री नन्दूराम प्रधान संगीतज्ञ थे। गाँधीजी की दमोह यात्रा में श्री झुन्नीलाल वर्मा ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1933 से 1936 तक आप एम.एल.सी. रहे। दमोह डिग्री कॉलेज, लालबहादुर शास्त्री उ.मा. शाला की स्थापना में आपकी महत्त्वपूर्ण भूमिका रही। आप कायस्थ समाज, दमोह, के अध्यक्ष भी रहे। एक साहित्यकार के रूप में आपका ग्रन्थ भारत दर्शन अत्यन्त महत्त्वपूर्ण कृति है 11 दिसम्बर 1950 को आपका निधन हो गया। विधि महाविद्यालय का नाम झुन्नीलाल वर्मा विधि महाविद्यालय रखकर दमोहवासियों ने आपको सच्ची श्रद्धाञ्जलि अर्पित की है।
- श्री रघुवर प्रसाद मोदी आपका जन्म 1902 में – हुआ था। आपके पिता का नाम श्री गोरेलाल मोदी था। 1930 में अपने पिता की कपड़े की दुकान को श्री रघुवर प्रसाद मोदी ने खादी भण्डार बना दिया। राष्ट्रीय आन्दोलन एवं जुलूसों में सक्रिय रूप से भाग लेना आरम्भ कर दिया। इसके लिए एक बार पुलिस ने इनकी अत्यधिक पिटाई की।
छोड़ो आन्दोलन में भाग लेने के कारण गिरफ्तार होना पड़ा। स्वतन्त्रता पश्चात् 1952 से 1957 के मध्य विधायक रहे। आपने दमोह में कई शिक्षण संस्थाएं स्थापित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। 18 दिसम्बर 1976 को आपका स्वर्गवास हो गया।
- विशेष राज्य का दर्जा (विशेष श्रेणी / एससीएस) की विशेषताएं क्या है?
- सी-सेक्सन/ Caesarean Delivery डिलिवरी के आंकड़े दिन-प्रतिदिन बढ़ते दिख रहे है, पूरी जानकरी क्या है?
- लोक सभा में अध्यक्ष तथा उपाध्यक्ष का चुनाव तथा नियम 8 की जानकारी बहुत महत्वपूर्ण है
- लोकसभा उपसभापति/उपाध्यक्ष की भूमिका और इतिहास का वर्णन कीजिये
- भारतीय इतिहास में किलों की प्रथम खोज कब हुयी थी पूरी जानकरी देखिये |
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