गुल मुहम्मद और शहीद सरदार बुरहानुद्दीन[क्रांतिकारी दास्ताँ pdf]
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गुल मुहम्मद, शहीद सरदार बुरहानुद्दीन[बफदारी की दास्ताँ pdf]

by Srijanee Mukherjee
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हिंदुस्तान का इतिहास विश्व का ऐसा इतिहास है जिसके बारे में भारत में ही नहीं बल्कि दुनियां के सभी देशों में याद किया जाता है, इसके साथ- साथ आये दिन किसी न किसी क्रांतिकारी के उपर लेख भी लिखा जाता है लेकिन इतिहासकारों ने भारत के क्रांतिकारियों के बारे में जितना लिखा उतना पर्याप्त नहीं है इसीलिए यहाँ ऐसे समाज सुधारकों, लेखकों तथा क्रांतिकारियों के विषय में लिखा जाता है जिन्होंने भारत की आजादी में अपना अमूल्य योगदान दिया लेकिन इतिहास की किताबों ने उन्हें भुला दिया इसीलिए आज का लेख गुल मुहम्मद और शहीद सरदार बुरहानुद्दीन[क्रांतिकारी दास्ताँ pdf] के उपर है | इसे आप चाहे तो डाउनलोड भी कर सकते है |

गुल मुहम्मद और शहीद सरदार बुरहानुद्दीन:-

यहाँ सबसे पहलेशहीद सरदार बुरहानुद्दीन के बारे में लिखेंगे उसके बाद गुल मुहम्मद के बारे में, सभी लीडर या फ़ौजी कमांडर आदि की कामयाबी अथवा नाकामी, शोहरत नामी, उसके सहयोगियों की बहादुरी, वफ़ादारी और हिम्मतों पर निर्भर महारानी लक्ष्मी बाई ने जंगे आज़ादी की अपनी सेना में बड़ी संख्या में हिन्दुस्तान से मुहब्बत और आज़ादी हासिल करने मुस्लमान पठानों को अपना साथी, सहयोगी अथवा सैनिक बनाया था। उन सभी हनों के दिलों में अपने वतन के लिए अपनी जानें कुर्बान करने का सच्चा जज़्बा भरा हुआ था। इसलिए उन्होंने नी के नेतृत्व में जम कर फिरंगियों का मुक़ाबला किया। उनके हौसले पस्त किए यहाँ तक कि मैदाने जंग में उनके पैर उखाड़ दिए। उन बहादुर पठानों की तलवारों ने सैकड़ों अंग्रेज़ों के ख़न को चाट कर अपनी भूख मिटाई। उसी के साथ समय-समय पर रानी के सैनिक पठानों ने देश को अपनी जानें भी भेंट की।

शहीद सरदार बुरहानुद्दीन और झाँसी की रानी की दांस्ता :-

एक लड़ाई के समय झांसी की रानी चारों ओर से दुश्मन अंग्रेज़ के मजबूत घरे में घिर गई। हालात कुछ ऐसे बन रहे थे कि दश्मन किसी पल भी रानी पर हमला करके उसे क़त्ल कर सकता था। इसी बीच एक ऐसा पठान जो कि किन्ही कारणों से रानी की फ़ौजी नौकरी छोड़ कर अलग हो गया था, अचानक बीच में कूद पड़ा। उस वफ़ादार पठान को यह बर्दाश्त नहीं हो सका कि स्वतंत्रता सेनानी लक्ष्मी बाई जिसकी नौकरी वह छोड़ चुका है, अंग्रेज़ क़ातिलाना हमला करें। सरदार पर बुरहानुद्दीन पठान की ग़ैरत और हिम्मत ने इस बात को गवारा नहीं किया कि उसके जीते-जी अंग्रेज़ों की अपवित्र तलवार महारानी लक्ष्मी बाई का पवित्र ख़ून बहा सके।

सेनानी बुरहानुद्दीन के जिन्दगी का आखिरी सफ़र :-

सरदार बुरहानुद्दीन अपनी जान की परवाह किए बग़ैर रानी को बचाने के लिए अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ अपनी तलवार घुमाता हुआ मैदाने जंग में कूद पड़ा। तलवार के धनी उस पठान ने तलवार के इस तरह करतब दिखाए कि फ़िरंगियों को मैदान छोड़ कर भागना पड़ा। हालांकि उस संघर्ष में स्वतंत्रता सेनानी बुरहानुद्दीन बहुत ज़्यादा ज़ख़्मी हो चुका था। रानी जब उसके क़रीब गई तो उसने अपने उस वफ़ादार पठान को पहचान लिया। वह रानी की रक्षा में इतना ज़ख़्मी हो चुका था कि तकलीफ़ के कारण बेचैन हो रहा था। बुरहानुद्दीन की ज़िन्दगी अपने ही देश की धरती पर आख़िरी सांसें खींचने लगी। महारानी ने तड़पते हुए उस वफ़ादार मुजाहि आज़ादी के सर पर प्यार से हाथ फैरते हुए कहा कि तुम एक अच्छे बहादुर सिपा हो।

सेनानी सरदार बुरहानुद्दीन की जान इस तरह उसके जिस्म जुदा हुई कि उसकी लाश अपनी मातृ भूमि की गोद में थी और उसके सर पर महारानी लक्ष्मी बाई का हाथ रखा हुआ था। रानी को उस देश प्रेमी अपने वफ़ादार साथी के मरने का भी बहुत दुख हुआ। वह शहीदे वतन सरदार बुरहानुद्दान की लाश को भी उठवा कर अपने ही महल में ले गई। और महल के ही अहाते में उन्हें भी दफनाया गया।

गुल मुहम्मद का इतिहास :-

रानी की फ़ौज में स्वतंत्रता सेनानी गुल मुहम्मद तो उनका बहुत ही विश्वास पात्र एवं वफ़ादार था, जो कि हमेशा ही रानी का साथ देता था। किसी जंग का समय हो या अमन का, गुल मुहम्मद की अपने देश और रानी के लिए वफ़ादारी में कोई कमी नहीं होती थी। लक्ष्मी बाई ने अपने वतन हिन्दुस्तान को फ़िरंगियों के पंजों से आज़ाद कराने के लिए जो जंगें लड़ीं, स्वतंत्रता सेनानी गुल मुहम्मद ने सदैव उनका साथ दिया। गुल मुहम्मद के जीवन का मक़सद देश को आज़ाद कराने के लिए महारानी से वफ़ादारी करते हुए ख़ुद को निछावर कर देना था।

गुल मुहम्मद और झाँसी की रानी की क्रांतिकारी दांस्ता :-

18 जून 1858 को एक लड़ाई के समय हिन्दुस्तान की गौरव, महान स्वतंत्रता सेनानी महारानी लक्ष्मी बाई को एक ज़ालिम अंग्रेज़ की नापाक तलवार द्वारा गंभीर रूप से घायल कर दिया गया, उस समय भी गुल मुहम्मद ने रानी का बचाव करने ने में अपनी ओर से कोई कसर नहीं छोड़ी। रानी बहुत ज़्यादा घायल हो गई। घायल रानी का बदला लेने के लिए गुल मुहम्मद ने उस क़ातिल अंग्रेज़ पर अपनी तलवार से करारा वार कर उस के शरीर के दो टुकड़े कर दिये।

हालांकि रानी के भी सर का एक भाग कट कर आंख लटक जाने के कारण बेहोश हो कर वह ज़मीन पर गिर गई। गुल मुहम्मद ने जीतेजी रानी से वफ़ादारी की और ऐसी हालत में भी रानी के शहीद होने पर उन्होंने अपना फ़र्ज़ निभाया। गुल मुहम्मद ने उस वीरांगना की लाश को बाबा गंगा दास की कुटिया के क़रीब घास के ढेर पर रख कर चिता को अग्नि दी। उस समय गुल मुहम्मद के साथ वहां रघुनाथ सिंह और देशमुख भी मौजूद थे। रानी की सेना में और भी बहादुर पठान सैनिक थे। उनमें से बहुत से पठान सैकड़ों अंग्रेज़ों को मौत के घाट उतारते समय शहीद हो गए थे। रानी की शहादत के साथ ही उन सभी मुसलमान पठानों की शहादतें उनके देश प्रेम और वतन सेवा की प्रतीक हैं।

गुल मुहम्मद के जिन्दगी का क्रांतिकारी सफ़र ;-

इतिहास इस सच्चाई का गवाह है कि इस तरह से अपने मुल्क की आज़ादी के लिए हिन्दू और मुसलमान एक साथ जिए और एक साथ ही मरे हैं। देश के हिन्दुओं और मुसलमानों की एकता ने अपने ख़ून और अपनी जानों की कुर्बानियां देकर जहां देश को आज़ाद कराया है, वहीं गंगा-जमुनी तहज़ीब को भी जन्म दिया है। स्वतंत्रता सेनानी गुल मुहम्मद, शहीद गुलाम गौस, शहीद ख़ुदा बख़्श एवं शहीद सरदार बुरहानुद्दीन की बहादुरी, महारानी लक्ष्मी बाई से वफ़ादारी एवं देश प्रेम इतिहास के पन्नों में अमर रहते हुए देशवासियों को हिन्दू-मुस्लिम एकता और सदभावना का हमेशा संदेश देते रहेंगे।

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