1920 ई.असहयोग आन्दोलन में मध्यप्रान्त की भूमिका | मध्यप्रदेश का इतिहास
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1920 ई.असहयोग आन्दोलन में मध्यप्रान्त की भूमिका| मध्यप्रदेश का इतिहास

by रवि पाल
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आज के इस दौर में यदि हिंदुस्तान के इतिहास को समझना और जनना है तो वर्तमान से 100 – 150  वर्ष  अतीत में जाना जरुरी है  यदि उस समय का इतिहास नहीं समझेंगे तो वर्तमान के बारे में जानना बहुत मुस्किल हो जायेगा, 1920 ई. के असहयोग आन्दोलन तथा रतौना में माखनलाल चतुर्वेदी से लेकर अब्दुल गनी तथा लाला लाजपत राय जैसे महान लोगों ने इसमें भाग लिया था |

सितम्बर 1920 में लाला लाजपत राय की अध्यक्षता में कलकत्ता में आयोजित काँग्रेस के विशेष अधिवेशन का सागर जिले के सन्दर्भ में विशेष महत्त्व रखता था क्योंकि इस अधिवेशन में भारत में असहयोग आन्दोलन प्रारम्भ किए जाने को काँग्रेस ने मंजूरी दे दी थी जैसा कि आपको पता है

इसी अधिवेशन के दौरान सागर जिले के  रतौना कसाईखाने की योजना बन्द करने सम्बन्धी तार आया था, कहते  है कि पूर्ववर्ती आन्दोलनों की भाँति असहयोग आन्दोलन में भी सागर जिले की जनता ने अपना भरसक योगदान दिया।

1920 ई.असहयोग आन्दोलन से पहले प्रथम विश्वयुद्ध में घटनाएँ:-

प्रथम विश्वयुद्ध में भारतीय मुसलमानों का सहयोग प्राप्त करने के लिए अंग्रेज़ों ने तुर्की के प्रति उदार रवैया अपनाने का आश्वासन दिया था वहीँ भारतीय मुसलमान तुर्की के खलीफा को अपना धर्म-गुरु मानते थे । विश्वयुद्ध के पश्चात् ब्रिटेन ने वादाखिलाफी करते हुए 1919 की सन्धि के तहत तुर्की का विभाजन कर दिया इससे भारतीय मुस्लिम वर्ग में असन्तोष व्याप्त हो गया। महात्मा गाँधी ने इन मुसलमानों के साथ मिलकर अंग्रेज़ों के विरुद्ध खिलाफत आन्दोलन चलाया। मगर उधर तुर्की के मुस्तफा कमाल पाशा द्वारा 24 जुलाई 1923 को अंग्रेज़ों से एक और सन्धि (लूसाने की संधि) कर लेने के पश्चात् भारत का खिलाफत आन्दोलन अर्थहीन हो गया।

28 जुलाई 1920 को महात्मा गाँधी ने घोषणा की थी कि वे 1 अगस्त 1920 से असहयोग आन्दोलन आरम्भ करेंगे। लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने उनका समर्थन किया। यह दुर्भाग्य ही था कि 1 अगस्त 1920 को ही राष्ट्रीय स्तर के महान् उग्रवादी नेता बाल गंगाधर तिलक की मृत्यु हो गई।

1920 ई.असहयोग आन्दोलन में बाल गंगाधर तिलक, महात्मा गाँधी का फिर से हिंदुस्तान की जनता से आग्रह:-

सितम्बर 1920 के कलकत्ता कॉंग्रेस के विशेष अधिवेशन में गाँधीजी ने पुनः असहयोग आन्दोलन आरम्भ करने का प्रस्ताव पेश किया। तिलक के निधन पर शोक एवं आन्दोलन दोनों ही एक साथ मिल गए। समस्त भारत में हड़तालें हुई, प्रदर्शन प्रार्थना सभाएँ हुई एवं कुछ लोगों ने उपवास तक रखा।चक्रवर्ती विजय राघवाचार्य की अध्यक्षता में दिसम्बर 1920 में नागपुर में भारतीय राष्ट्रीय कॉंग्रेस का 35वाँ वार्षिक अधिवेशन हुआ।

यह एक ऐतिहासिक सम्मेलन था यहाँ  16,000  से ज्यादा प्रतिनिधि एकत्रित हुए। महात्मा गाँधी को देश का सर्वमान्य नेता मान लिया गया। कॉंग्रेस के अनेक प्रतिनिधियों ने अपने सिर पर गाँधी टोपी पहनी। यह गाँधी टोपी उस समय से ही राष्ट्र सेवा के बिल्ले के रूप में स्वीकार कर ली गई।

लाला लाजपत राय ने गाँधीजी के प्रस्ताव का समर्थन किया। काँग्रेस ने इस अधिवेशन में काँग्रेस संविधान में महत्त्वपूर्ण संशोधन किया। “ब्रिटिश साम्राज्य के अन्तर्गत स्वशासन” के पुराने लक्ष्य के स्थान पर “भारतीय जनता द्वारा स्वराज्य प्राप्ति का लक्ष्य” अपनाया गया।

नागपुर काँग्रेस अधिवेशन की दूसरी विशेषता थी काँग्रेस द्वारा भाषावार प्रान्तों के निर्माण के कार्यक्रम की स्वीकृति:-

1920 ई.असहयोग आन्दोलन के पश्चात कांग्रेस तथा अन्य संगठनों में बैठकें तथा समितियाँ और उनके नाम

  • इस अधिवेशन में मध्य प्रान्तीय काँग्रेस समिति को तीन प्रान्तों में विभाजित किया गया |
  • हिन्दुस्तानी मध्य प्रान्तीय काँग्रेस समिति जिसमें चौदह जिले थे तथा जिसका मुख्यालय जबलपुर था। इसके अन्तर्गत सागर, दमोह, जबलपुर, सिवनी, मंडला, बालाघाट, नरसिंहपुर आदि आते थे जिनका नाम महाकौशल प्रान्तीय समिति रखा गया |
  • मराठी मध्य प्रान्तीय काँग्रेस समिति जिसको नागपुर प्रान्तीय समिति का नाम दिया गया|
  • बरार मध्य प्रान्तीय काँग्रेस समिति जिसको बाद में  विदर्भ प्रान्तीय समिति के नाम से जाना गया |
  • तीनों प्रान्तीय काँग्रेस समितियों में जिला स्तर पर भी अलग- अलग काँग्रेस समितियों का गठन किया गया

19 अप्रैल 1920 को जबलपुर में हिन्दी मध्यप्रदेश समिति का राजनीतिक सम्मेलन हुआ। इसकी अध्यक्षता डॉ. ई. राघवेन्द्रराव ने की। सेठ गोविन्द दास स्वागत समिति अध्यक्ष थे।

इसमें मदन मोहन मालवीय तथा डॉ. हरीसिंह गौर ने भी भाषण दिया। डॉ. हरीसिंह गौर ने कहा –

हमसे कहा जाता है कि खिलाफत के प्रश्न का हिन्दुओं से कोई सम्बन्ध नहीं है, परन्तु यदि इस प्रश्न का सम्बन्ध मुसलमानों से है तो निश्चित ही उसमें हमारी रूचि होनी चाहिए, क्योंकि क्या इस देश मेंhttps://journalismology.in/what-is-history/ छः करोड़ मुसलमान नहीं हैं. ओर हम उस बात के प्रति अचेतन कैसे रह सकते हैं जो हमारे इतने देशवासियों पर प्रभाव डालती है।
20 मई 1920 को सागर में राजनीतिक प्रान्तीय परिषद् का अधिवेशन डॉ. मुँजे की अध्यक्षता में हुआ। इस परिषद् ने प्रस्ताव दिया कि “काँग्रेस का अधिवेशन जबलपुर में हो, क्योंकि अमृतसर काँग्रेस ने मध्यप्रदेश की ओर से निमन्त्रण मान्य किया है।” सागर के प्रान्तीय राजनीतिक परिषद् के अधिवेशन के बारे में सेठ गोविन्ददास ने लिखा कि

सागर में प्रान्त के विभिन्न भागों से आने वाले प्रतिनिधियों की संख्या अच्छी थी। सागर की परिषद् और सम्मेलन दोनों के बीच अधिवेशन बड़ी सफलतापूर्वक खूब उत्साह से हुआ। एक युवक सम्मेलन भी हुआ जिसके सभापति युसुफ मेहर अली थे तथा एक प्रान्तीय महिला सम्मेलन भी हुआ जिसकी सभानेत्री नागपुर के साल्वे साहब की पत्नी थी।

सेट गोविन्ददास ने आगे लिखा:-

सागर की इस राजनीतिक परिषद् और हिन्दी साहित्य सम्मेलन में मेरा परिचय सारे प्रान्त के राजनीतिक और साहित्यिक व्यक्तियों से हो गया। यद्यपि महाकौशल प्रान्त उस समय पृथक् नहीं हुआ था, परन्तु सागर, नागपुर तथा बरार से दूर होने के कारण सागर में एकत्रित होने वाले लोगों में अधिकांशतः महाकौशल के लोग ही थे।

जहाँ तक मुझे स्मरण है सागर के जिन लोगों से मेरा परिचय हुआ उनमें प्रमुख श्री रामकृष्ण राव, श्रीखण्डे, श्री भगवानदास, केशव रामचन्द्र खण्डेकर, वासुदेव, केदारनाथ रोहण आदि थे। सागर की प्रान्तीय राजनीतिक परिषद् तथा प्रान्तीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन का अधिवेशन दोनों ही उस समय को देखते हुए बहुत सफल हुए।

इतिहास के पन्ने :-

सागर के प्रान्तीय सम्मेलन हिन्दी सम्मेलन के अधिवेशन का सभापति मैं चुना गया। मेरे चुनाव का माखनलाल चतुर्वेदी ने अपने पत्र कर्मवीर के माध्यम से घोर विरोध किया। जब मैं उनके विरोध के बावजूद भी चुन लिया गया तब सम्मेलन के अधिवेशन के अवसर पर वह मेरा विरोध न कर सके|

सन् 1920 के नागपुर के कॉंग्रेस अधिवेशन में सागर से विश्वासराव भावे केशव रामचन्द्र खाण्डेकर, स्वामी कृष्णानन्द गए थे। समस्त मध्य प्रान्त में सागर जिले की तहसील रहली से सर्वप्रथम असहयोग आन्दोलन का बिगुल फूँका गया। सागर जिले की यह महत्त्वपूर्ण उपलब्धि थी।

रहली से इस असहयोग आन्दोलन के संचालन की जिम्मेदारी पं. माखनलाल चतुर्वेदी को सौंपी गई। इन्हें रहली तहसील कॉफ्रेंस का अध्यक्ष चुना गया। चूँकि रतौना आन्दोलन की सफलता में माखनलाल चतुर्वेदी ने अहम भूमिका निभाई थी सम्भवतः इसीलिए उन्हें ही सागर जिले में यह जिम्मेदारी सौंपी गई।

असहयोग आन्दोलन के तहत निम्न कार्यक्रमों को मंजूरी दी गई थी –

निषेधात्मक कार्यक्रम

  • सरकारी पदों एवं उपाधियों का परित्याग
  • सरकारी व अर्द्ध-सरकारी स्कूल व कॉलेजों का बहिष्कार
  • 1919 ई.के अधिनियम के तहत होने वाले चुनावों का बहिष्कार
  • सरकारी अदालतों का बहिष्कार
  • विदेशी माल का बहिष्कार

स्वनात्मक कार्यक्रम

  • राष्ट्रीय स्कूल व कॉलेजों की स्थापना
  • पारस्परिक विवादों के निपटारे हेतु देशी पंचायतों का उपयोग
  • स्वदेशी के उपयोग पर बल
  • हथकरघा एवं बुनाई उद्योग का जीर्णोद्धार
  • अस्पृश्यता का अन्त

आन्दोलन का सूत्रपात गाँधीजी ने “केसर-ए-हिन्द की पदवी का त्याग कर किया। सेठ जमनालाल बजाज ने “राय बहादुर” की पदवी त्याग दी। असहयोग आन्दोलन में भाग लेने वाले वकीलों की सहायता के लिए सेठ जमनालाल बजाज ने एक लाख रुपए का कोष स्थापित किया। सागर जिले मे इस आन्दोलन की विशेषता यह रही कि यहाँ के लोगों ने अहिंसात्मक रास्ता ही अपनाया।

सागर में असहयोग आन्दोलन का नेतृत्व केशव रामचन्द्र खाण्डेकर ने किया। गाँधीवादी विचारधारा में उनकी गहन आस्था के कारण उन्हें बुन्देलखण्ड के गाँधी के नाम से जाना जाता है।

सागर जिले में बड़ी संख्या में छात्रों ने सरकारी एवं अर्द्ध-सरकारी स्कूलों का बहिष्कार किया। इसके परिणामस्वरूप ही स्कूलों में छात्र संख्या में कमी आई। शासकीय आँकड़ों के अनुसार गवर्नमेण्ट हाईस्कूल सागर में छात्र संख्या 244 से घटकर 222, म्युनिसिपल एंग्लोवर्नाक्यूलर स्कूल सागर में 210 से घटकर 107, म्युनिसिपल एंग्लोवर्नाक्यूलर स्कूल खुरई में 73 से घटकर 53 एवं नार्मल स्कूल सागर में 145 से घटकर 75 छात्र शेष बचे ।

असहयोग आन्दोलन का गाँव- गाँव में असर शुरू :-

सरकारी स्कूलों की संख्या में आई यह कमी सागर जिले में असहयोग आन्दोलन की प्रगति का द्योतक है। जिन छात्रों ने सरकारी स्कूलों का बहिष्कार किया, विकल्प के तौर पर उनके लिए देशी स्कूलों की स्थापना की गई। परकोटा किले के पास नवम्बर 1920 में एक राष्ट्रीय विद्यालय खोला गया और सागर जिले के विद्वानों ने निःशुल्क या नाममात्र के वेतन पर इस राष्ट्रीय विद्यालय में अध्यापन कार्य सम्पन्न किया।

इनमें पुरुषोत्तम लाल रोहण, राधेलाल सिलाकारी, सदाशिव राव औखदे, काणी अजीजुद्दीन, गोपाल राव सर्वटे, रामकृष्ण पाण्डे, देवेन्द्रनाथ मुखर्जी, विश्वनाथ पेंडारकर, श्रीधर राव वाखले एवं नर्मदा प्रसाद पाठक आदि प्रमुख थे।

इसके बाद सागर जिले में नशाबन्दी कार्यक्रम भी जोर-शोर से चलाया गया। शराब की दुकानों पर धरना दिया गया। लोगों को शराब के सेवन से होने वाली हानियों से परिचित कराया। सरकारी आँकड़ों के अनुसार शराब की खपत में असहयोग आन्दोलन के दौरान 41 प्रतिशत की कमी आई। सागर नगर में शराबखानों की संख्या 68 से घटकर 48 रह गई।

सरकारी स्कूलों के बहिष्कार की तरह सागर जिले में वकीलों ने न्यायालयों का भी बहिष्कार किया। सर्वप्रथम वकालत छोड़ने वालों में केशवराव खाण्डेकर प्रमुख थे। इसके पश्चात् देवेन्द्र नाथ मुखजी, शम्भूदयाल मिश्र, केदारनाथ रोहण, बालू केदार, गोपालराव श्रीखण्डे, गोविन्द राद लोकरस, विश्वनाथ राव, देव बिहारी लाल बैरिस्टर आदि ने अपनी-अपनी वकालत छोड़ी। विकल्प के तौर पर राष्ट्रीय पंचायतों की स्थापना की गई।

असहयोग आन्दोलन का किन- किन महापुरुषों ने समर्थन किया :-

सागर जिले में रतौना आन्दोलन की विजय एवं असहयोग आन्दोलन के सुचारू संचालन के कारण अखिल भारतीय स्तर पर सागर का नाम अत्यधिक सुर्खियों में आ गया। नवनिर्मित प्रान्तीय काँग्रेस समिति की बैठक 27 नवम्बर 1921 ई. को सागर में ही सम्पन्न हुई। इसमें कुल 63 सदस्यों ने भाग लिया।

इसके अध्यक्ष डॉ. राघवेन्द्र राव निर्वाचित हुए एवं श्री उमाकान्त बलवन्त घाटे एवं अब्दुल कादिर सिद्दिकी को उपाध्यक्ष चुना गया। इसके मन्त्री थे के. आर. खाण्डेकर एवं ठाकुर लक्ष्मण सिंह । सागर में आयोजित इस समिति ने अखिल भारतीय कॉंग्रेस समिति के लिए प्रतिनिधियों का भी निर्वाचन किया

जिसमें श्याम सुन्दर भार्गव, पं. रविशंकर शुक्ल, नाथूराम कोरी, घनश्याम गुप्त, एवं ठाकुर छेदीलाल आदि थे। समिति द्वारा इस क्षेत्र में सत्याग्रह की योजना कार्यान्वित करने सम्बन्धी एक प्रस्ताव स्वीकार किया गया। समिति के मत में व्यक्तिगत तथा सामूहिक सत्याग्रह के लिए प्रमुख शर्ते अहिंसा है और यदि समिति को यह पुष्टि हो गई कि अखिल भारतीय काँग्रेस समिति द्वारा निर्धारित शर्तों की अविकल पूर्ति होती है तो उसे चाहिए

कि वह यथासम्भव शीघ्र आन्दोलन के लिए सबसे अधिक उपयुक्त क्षेत्रों में सत्याग्रह संगठित करे जिसमें कर-बन्दी अभियान भी सम्मिलित है। केशव रामचन्द्र खाण्डेकर ने उक्त मत के अनुसार सागर में जनता को आगामी कार्य-योजना हेतु प्रेरित किया।

समिति ने प्रान्त के प्रत्येक जिले में सत्याग्रह आन्दोलन गठित करने का संकल्प पारित किया। सागर में 1920 ई. में ही “हिन्दू समा” एवं “गाँधी सेवा संघ” की शाखाएं खोली गई । 16 29 जनवरी 1921 के कर्मवीर में सरकारी विद्यालयों के बहिष्कार की बात बहुत ही प्रभावोत्पादक ढंग से कही गई तथा पं. सुन्दरलाल तपस्वी भी अपने ओजस्वी भाषणों द्वारा जनता है असहयोग आन्दोलन के कार्यक्रमों को सफल बनाने की अपील कर रहे थे।

पं. सुन्दरलाल जैसे महान विचारक को जेल :-

पं. सुन्दरलाल की गतिविधियों से घबराकर सरकार ने उन्हें झूठे आरो में फँसाकर एक वर्ष के कारावास की सजा दी। उन्हें सागर जेल में रखा गया। इससे सागर में राष्ट्रवादी भावनाएं और ज्यादा तीव्रता से प्रसारित हुई। कर्मवीर समाचार-पत्र ने लिखा

सागर जेल पं. सुन्दरलाल की पवित्र उपस्थिति से धन्य हो गया ,अन्य साथियों को एक जेल से दूसरे जेल में स्थानान्तरित किया जाता है। उसका कारण समझ में नहीं आता। पर इतना तय है कि आन्दोलन के कारण जब बड़े-बड़े नेता जेल में डाले जाते हैं और उनकी जेल बदली जाती है तो हर स्थान की जनता को बड़े-बड़े नेताओं के दर्शन का लाभ मिलता है।

सागर की राष्ट्रवादी चेतना का पता इस तथ्य से भी चलता है कि य नशाबन्दी आन्दोलन भी अत्यन्त सफल रहा। शराब की भट्टी पर घर देने के फलस्वरूप शराब की बिक्री में 41 प्रतिशत की कमी आई। सन् 1920 में 8,813 गैलन शराब बिकी थी, यह 1921 में घटकर 3,262 गैलन हो गई।

यह कमी सागर में शराबबन्दी आन्दोलन की व्यापकता का प्रमाण है विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार के साथ-साथ सागर में विदेशी कपड़ों के विकल्प के तौर पर खादी का व्यापक प्रचार-प्रसार किया। सदर बाज़ार में एक हथकरघा का कारखाना खोला गया। इसके सचिव केशव रामचन्द्र खाण्डेकर एवं कार्यकारिणी में केदारनाथ रोहण, पूरनचन्द्र बजाज, शम्भू दयाल मिश्र थे।

असहयोग आन्दोलन में खादी का प्रचार शुरू :-

खादी का निर्माण बुद्धू खाँ के नेतृत्व में एवं बिक्री प्रभुशंकर पंड्या करते थे। तीनवत्ती के पास स्थित सरस्वती वाचनालय में खादी भण्डार की स्थापना की गई। सागर में खादी के प्रचार-प्रसार के लिए हरिशंकर व्यास ने पच्चीस हजार रुपए दिए थे। इससे सागर में खादी के प्रचार-प्रसार में अत्यन्त तेजी आई। सत्याग्रही ही नहीं आम नागरिक भी खादी के वस्त्र पहनने लगे। यहाँ तक कि मन्दिरों में भगवान् की पोशाके भी खादी की बनाई गई।

काँग्रेस का नागपुर अधिवेशन इस मायने में विशेष था कि इसमें प्रतिनिधियों की संख्या तो अधिक थी ही, साथ ही समस्त प्रतिनिधि स्वदेशी वस्त्र पहनकर इसमें सम्मिलित हुए थे। ये लोग गाँधी टोपी पहने हुए थे।

एक ओर तो चरखे का प्रचार-प्रसार बढ़ रहा था, दूसरी ओर लोग गाँधी टोपी पहनने लगे थे। लोग न्यायालय एवं सरकारी कार्यालयों में गाँधी टोपी पहनकर जाते थे। शासकीय सेवकों का गाँधी टोपी पहनना अंग्रेज़ों को सख्त नापसन्द था। सत्याग्रही सरकार को चिढ़ाने के लिए ज्यादा से ज्यादा गाँधी टोपी पहनते थे।

सागर में सरस्वती वाचनालय की स्थापना राजनीतिक एवं सांस्कृतिक जागृति के लिए उठाया एक अत्यन्त ही महत्त्वपूर्ण कदम था। इसकी स्थापना सत्याग्रहियों ने सागर में राष्ट्रीय आन्दोलन में तेजी लाने के उद्देश्य से की थी। इस वाचनालय की स्थापना के पीछे राष्ट्रवादियों का मूल उद्देश्य देशभक्ति के प्रचार-प्रसार के लिए राष्ट्रवादी साहित्य उपलब्ध कराना था।

सत्याग्रही राष्ट्रवादी एवं प्रतिबन्धित साहित्य को तालाब के किनारे रहने वाले सत्याग्रहियों के घरों पर रखते थे। जब भी पुलिस के छापे की नौबत आती वे इस प्रतिबन्धित एवं राष्ट्रवादी साहित्य को तालाब में डुबो देते थे। पुलिस को निराश होकर लौटना पड़ता था ।

सागर के महान  क्रांतिकारी पत्रकार ने बापू के बारे कितनी खूबसूरत बात  लिखी है:-

“यह हमारा सौभाग्य है कि हमारे पास गाँधीजी जैसा योग्य चिकित्सक है। उन्होंने बीमारी की एक प्रभावशाली दवा खोज निकाली है। अब रोगी के लिए यह जरूरी है कि इस दवा को इस्तेमाल करे। अतः सभी भारतीयों को चाहिए कि वह चरखे का नियमित उपयोग करे। पाँचों बहिष्कारों का पालन करे यदि हम इस कार्य में असफल रहे तो यह निश्चित है कि हम हमेशा-हमेशा के लिए गुलाम बने रहेंगे”

जैसा कि अपने कहीं न कहीं चौरी- चौरा हत्याकांड के बारे में पढ़ा ही होगाकि गाँधी जी ने इस हत्याकाण्ड के पश्चात् किस तरह से  असहयोग आन्दोलन वापस ले लिया। इसके बावजूद भी सागर की जनता गाँधीजी के बताए रास्ते पर चलती रही।

1923 में सागर से साप्ताहिक द उदय अंग्रेज़ी एवं हिन्दी दोनों भाषाओं में देवेन्द्र नाथ मुकर्जी निकालते थे, यह राष्ट्रीय जागरण के लिए पूर्णरूप से समर्पित समचार पत्र था। द उदय के 24 मार्च 1923 के अंक में गाँधीजी की मद्य-निषेध नीति की अत्यन्त प्रशंसा की गई। उ राष्ट्रीय आवश्यकता बताया। सागर म्युनिसिपल कमेटी ने जब मद्य-निषे की नीति में अरुचि दिखाई तो द उदय समाचार-पत्र ने उसे आड़े लेते हुए उनके सदस्यों की तीव्र आलोचना की

जब तक अहिंसात्मक ढंग से यह आन्दोलन चला, गाँधीजी उसे तीव्रता प्रदान करते रहे। चौरी-चौरा रूपी हिंसा के होते ही गाँधीजी ने असहयोग आन्दोलन में ब्रेक लगा दिया। अचानक समाप्त होने के बावजूद भी यह असहयोग आन्दोलन अत्यन्त सफल रहा। असहयोग आन्दोलन के महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए सुभाषचन्द्र बोस ने लिखा था

खाडी का उपयोग दिन- प्रति दिन बड़ता गया :-

1921 के वर्ष में निःसन्देह कॉंग्रेस एक सुव्यवस्थित दलीय संगठन बन गया। इसके पूर्व कांग्रेस एक वैधानिक दल और मुख्यतः बात करने वाली संस्था थी। महात्माजी ने इसे नया विधान दिया और देश-व्यापी बनाया। उन्होंने इसे एक क्रान्तिकारी संगठन के रूप में परिवर्तित कर दिया। देश के एक कोने से दूसरे कोने तक एक जैसे नारे लगाए जाने लगे। एक जैसी नीति और विचारधारा हर जगह दिखाई देने लगी।

सागर जिले की रहली तहसील के खमरिया ग्राम के निवासी विष्णु प्रसाद पटेरिया ने असहयोग आन्दोलन के दौरान “दरबारी” उपाधि का परित्याग कर दिया। इन्होंने नागपुर के कॉंग्रेस अधिवेशन में भी शिरकत की और असहयोग आन्दोलन में भाग लिया।

सागर जिले में असहयोग आन्दोलन की तीव्रता पर लगाम लगाने के लिए आन्दोलनकारियों पर कठोर एवं प्रतिबन्धात्मक आदेश लागू किए। सर्वप्रथम खुरई के भाई अब्दुल गनी को 11 मई 1921 को धारा 107 आई.पी.सी. के तहत गिरफ्तार किया गया।

उनका मुकदमा के.जी.एम. वैद्य की अदालत में सागर में हुआ। पीली कोठी की घाटी से लेकर कचहरी एवं ऑफीसरों के बंगलों पर पुलिस दस्ते तैनात किए गए। अदालत में भाई अब्दुल गनी का जब मुकदमा पेश हुआ तो उन्होंने लिखित में दिया कि मुझे इस अदालत में इजहार देना था,

इस अदालत को अदालत समझना मैं अपनी बेइज्जती समझता हूँ, मैं जानता हूँ कि माननीय मुझे सजा अवश्य देंगे, इस ब्रिटिश हुकूमत ने इस मुल्क की चूसकर गा कर दिया है। आज चारों तरफ फौज़ एवं पुलिस का साम्राज्य फैला हुआ है|

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