बोकारो जिले का निर्माण 1 अप्रैल 1991 में हुआ था जो धनबाद जिला के दो प्रखंड चास और चंदनकियारी तथा गिरिडीह जिला से बोकारो के बेरमो अनुमंडल को मिलाकर बनाया गया था जिसे वर्तमान में हम बोकारो जिला के नाम से जानते है आज का लेख कैसे हुए बोकारो में 80 गाँव (64 मौजा) विस्थापित| बोकारो स्टील प्लांट के बारे में है |\
पश्चिम में धनबाद की तरफ उत्तर में हाजरी बाग़ की तरफ है इस जिले की जनसँख्या 2062 350 (2011 की जनगणना के अनुसार ) तथा यहाँ का क्षेत्रफल 2883 sq.km है | यहाँ हिंदी भाषा के साथ- साथ संथाली, खोरठा भाषाएँ बोली जाती है 10,72 805 पुरुषों पर 9,89,530 महिलाएं है तथा इसका R.T.O कोड JH09 है |
यहाँ घुमने के लिए कुछ स्थल अच्छे है जिनमे से बोलरो मॉल सिटी पार्क,नेहरु पार्क ,बोकारो स्टील प्लांट आदि है |यहाँ एक और बात वर्तमान से लगभग 5 वर्ष पहले नेहरु पार्क और सिटी पार्क अपने आप में टूरिज्म का बहुट अच्छा श्रोत हुआ करता था लेकिन कुछ सरकारी घोटालों क वहज से इन दोनों स्थलों को सरकार ने उजाड़ कर रख दिया है |
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बोकारो जिला वर्ष 1991 तक कैसा था :-
यह जिला जो 1991 जनगणना तक धनबाद जिले का हिस्सा था उससे पहले पुराना मानभून जिले का हिस्सा हुआ करता था | मानभून क्षेत्र राजा मान सिंह से अपना नाम प्राप्त किया जो सम्राट अकबर से उन्हें उपहार के रूप में मिला था |
राज्य पुननिर्माण आयोग की सिफारिस पर धनबाद जिला 24/10/1956 को बनाया गया था धनबाद के तत्कालीन जिले में दो अनुमंडल हुआ करते थे अर्थात इसको ऐसे समझते है| धनबाद सदर एवं बाघमारा | 1/ 4/1991 को चास के नाम से जाना जाने वाला बाघमारा अनुमंडल बोकारो जिले का हिस्सा बन गया|
बोकारो जिले के प्रखंड :-
बोकारो जिले में कुल 9 प्रखंड और 2 अनुमंडल है |
अनुमंडल इस प्रकार है:-चास अनुमंडल और बेरमो अनुमंडल
बोकारो जिले के 9 प्रखंड इस प्रकार है :-
बेरमो- पेटरवार
बेरमो- बेरमो
बेरमो- जरीहीड
बेरमो- नवाडीह
बेरमो- गोमिया
बेरमो-कसमार
बेरमो-चन्द्रपुरा
चास- चास
चास-चंदनकियारी
इसके साथ-साथ इस जिले में विधानसभा की संख्या 4 है जोकि इस प्रकार है :-
बोकारो बिधानसभा, चंदनकियारी विधानसभ, बेरमो विधानसभा और गोमियां विधानसभा आदि लेकिन हाल ही में बोकारो विधानसभा में बीजेपी, चंदनकियारी विधान सभा में बीजेपी, बेरमो विधानसभा में कांग्रेस और गोमियां विधानसभा में आसजू के कब्जे में सीट है |
बोकारो स्टील प्लांट :-
वैसे तो झारखण्ड अपने आप में महान प्रदेश है जिस तरह से यहाँ पर मंदिर, पहाड़ , कोयले की खदाने आदि पायी जाती है लेकिन यह प्रदेश बोकारो स्टील प्लांट के लिए सबसे प्रसिद्ध है यह प्लांट एक इंटीग्रेटेड स्टील प्लांट है और यह भारत देश का पहला स्वदेशी प्लांट भी कहा जाता है | जो सोबियत संघ की मदद से वर्ष 1965 में स्थापित हुआ था इसे स्वदेशी सपात के नाम से भी जाना जाता है यह झारखंड के बोकारो जिला में स्थित है बोकारो स्टील प्लांट सार्वजनिक क्षेत्र का चौथा सबसे बड़ा स्टील प्लांट है|
29 जनवरी 1964 तक यह प्लांट एक लिमिटेड कंपनी हुआ करती थी इसके बाद सेल में विलय किया गया|
बोकारो स्टील प्लांट देश का पहला स्वदेसी इस्पात संयंत्र है इसमें जितना भी तकनीक और कौशल का उपयोग हुआ है वो सब सभी स्वदेसी है, इस प्लांट में पहला धामन भट्टी वर्ष 1972 में चालू किया गया था जिसकी कैपेसिटी 40 लाख टन था जिसमें 3 यूनिट चल रही थी बाद में इसे 1990 आधुनिकीकरण किया जिससे इसकी कैपेसिटी 45 लाख टन तरल पदार्थ में कर दिया गया |
DVC:-
यह एक बहुउद्देशीय परियोजना जिले के औधोगिकरण हेतु आवश्यक विजली तथा पूरे झारखण्ड के अलावा पश्चिम बंगाल के राज्यों के लिए विजली उत्पन्न करता है हाल ही में यहाँ 3 थर्मल पावर प्लांटो की स्थापना की गयी है |
बी.टी.पी.एस:- DVC द्वारा स्थापित पहला थर्मल पावर प्लांट है 1953 में 175 मेगावाट की प्रारंभिक क्षमता के साथ दूसरे चरण में 630 मेगावाट तक बढाया गया| इसे देश का पहला थर्मल पावर प्लांट होने का गौरव प्राप्त है |
1964 में DVC :-द्वारा दूसरा थर्मल पावर प्लांट स्थापित किया गया था जिसमें 750 मेगावाट की क्षमता है और इसमें चार इकाइयाँ काम करती है |
T.T.P.S:- यह बिहार सरकार द्वारा स्थापित थर्मल प्लांट है इसका पहला इकाई 1994-95 में स्थापित की गयी थी और 1996-97 में दूसरा किया गया था तथा इसकी क्षमता 420 मेगावाट है वर्तमान में केवल एक इकाई बिजली उत्पन्न कर रही है |
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बोकारो के विस्थापित लोगों का क्या हुआ :-
यह अपने आप में एक सवाल खड़ा करता है जब बोकारो स्टील प्लांट की स्थापना हुयी उसके बाद यहाँ कार्य शुरू किया गया लेकिन क्या आपने सोचा कि जो आस- पास के गाँव हुआ करते थे वहाँ के लोग कहाँ गये ?
बोकारो में 80 गाँव (64 मौजा) विस्थापित हुए थे जिसमें 19 गाँव को छोड़कर बाकी सबको पुनर्वासित किया गया है और नौकरी भी दी गयी है लेकिन जो बचा हुआ गाँव है उसमें न तो कोई मुवावजा दिया गया न ही जमीन वापिस किया गया ऐसा रिसर्च करने से पता चला है लोग आज भी इंसाफ के लिए दर-दर भटकते है लेकिन कोई सकारात्मक परिणाम आज तक नहीं है | यह सब बोकारो मैनेजमेंट तथा उस समय की भारत सरकार के गलत नीति के कारण आज भी विस्थापित को इंसाफ नहीं मिल पाया है इसमें बहुत से घरो तथा लोगों की उम्र सीमा समाप्त हो गयी और कुछ तो इस दुनियां में रहे ही नहीं |
जिस तरह से झारखण्ड के हर जिले की अपनी एक कहानी है वैसे ही इस प्लांट की अपनी एक कहानी है वर्तमान में जिस तरह से सरकार का भारत देश के नागरिकों के प्रति रवैया है यह अपने आप में बहुत चिंता का विषय है इसको लेकर आज के युवा को मंथन करने की जरुरत है |
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