झारखण्ड राज्य का यह सौभग्य है कि बंगला लिपि और बंगा भाषा के पितामह कहे जाने वाले ईश्वर चंद्र विद्यासागर ने अपने जीवन के अंतिम 18 वर्ष व्यतीत करने के लिए कर्माटांड का चयन किया था जो अब जामताड़ा जिला में स्थित है इन्होने संथालों के लिए ही नहीं बल्कि आदिवासी लड़कियों के लिए बहुत से कार्य किये, जिसमे से औपचारिक विद्यालय तथा आदिवासियों के लिए मुफ्त होम्यो चिकित्सा की व्यवस्था भी की थी| इसी को जानने के लिए यह लेख ईश्वर चंद्र विद्यासागर पार आधारित है जो विध्यार्थी या पाठक इनके बरे में निबंध लिखना चाहें या इनके बारे में चर्चा करना चाहते है इस लेख को पढ़कर चर्चा कर सकते है |
यहाँ ईश्वर चंद्र विद्यासागर के योगदान के बारे में भी चर्चा करेंगे |
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ईश्वर चंद्र विद्यासागर का जन्म :-
प्रत्येक वर्ष 29 जुलाई को प्रसिद्ध विद्वान् एवं समाज सुधारक विद्यासागर को उनकी पुण्यतिथि पर देश और दुनिया के साहित्यकार से लेकर नेता और राजनेता श्रद्धांजलि देते नजर आते है लेकिन बहुत से पाठकों को ऐसे विद्वान् के बारे में जानकारी नहीं होती है|
यह 19वीं सदी के एक भारतीय शिक्षक और समाज सुधारक थे, इनका जन्म 26 सितम्बर, 1820 में बंगाल के हुगली जिले के बिरसिंघा नामक गाँव में हुआ था कहते है कि इनको प्रारम्भ में ईश्वर चंद्र बंधोपाध्याय के नाम से बुलाते थे |
कई क्षेत्रों में अपनी बुद्धिमत्ता और प्रतिभा के चलते इन्होने “विद्यासागर”(ज्ञान का सागर) की उपाधि अर्जित की थी, इतिहास का रिसर्च बताता है कि जब यह अपनी जिन्दगी के अंतिम दिनों में थे तो बंगाल छोड़कर झारखंडआ गये थे ताकि यहाँ आकर आदिवासियों की आवाज उठा सकें और उनकी मदद भी कर सकें|
जिन्दगी का सफ़र :-
ऐसा कहा जाता है कि ईश्वर चंद्र विद्यासागर को जिन्दगी में काफी कठनाइयों का सामना करना पड़ा था, लेकिन ज्ञान के लिए उनकी खोज अविचल रही | अपनी क्षमताओं के बल पर वह एक स्वतंत्रता सेनानी, शिक्षक और समाज सुधारक बने इसके साथ- साथ वह ऐसे उच्च नैतिक मूल्यों में विश्वास रखते थे जो मानवताबाद के प्रति समर्पित तथा गरीबों के लिए उदार हों |
ईश्वर चंद्र विद्यासागर ने 19वीं सदी के बंगाल की महिलाओं के अधिकारों के एक प्रसिद्ध प्रस्तावक थे तथा उन्हें बंगाली गद्य के पिता के रूप में जाना जाता है, क्योंकि उन्होंने बंगाली वर्णमाला को तर्कसंगत और बेहतर बनाया था|
योगदान:-
वैसे तो इनके बारे में जितना भी लिखा जाये उतना कम ही है क्यों कि वह ईश्वर चंद्र विद्यासागर जाने माने लेखक और बुद्धिजीवी और मानवता के एक कट्टर अनुयायी थे, तथा 19वीं सदी के प्रमुख सुधारकों में से एक थे जिनका भारत में महिलाओं की स्थित को बदलने में उल्लेखनीय योगदान रहा | विद्यासागर ने महिलाओं के उत्थान तथा विधवा पुनर्विवाह के लिए एक सशक्त आन्दोलन चलाया , जिसके बाद सरकार ने विधवा विवाह को क़ानूनी मान्यता प्रदान दी थी|
ईश्वर चंद्र विद्यासागर ने बहुपत्नी विवाह एवं बाल विवाह का बड़ा विरोध भी किया | इसके अलावा, उन्होंने लड़कियों की शिक्षा के लिए 35 स्कूलों की स्थापना की और महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए समानता और न्याय को बढ़ावा दिया |
1849 में स्थापित बेथुन स्कूल के सचिव के रूप में उन्होंने भारत में महिलाओं के लिए उच्च शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया इसके बाद वर्ष 1850 में संस्कृत कालेज के प्रधानाचार्य भी बने तथा संस्कृत अध्यन के लिए ब्राहमणों के एकाधिकार को चिनौती दी और गैर-ब्राह्मण जातियों को संस्कृत अध्यन के लिए प्रोत्साहित किया तथा रुढ़िवादी हिंदू-समाज को बदलने के लिए सामाजिक सुधारों को लागू किया |
साहित्यिक रचनाएँ :-
जीवनचरित, बेताल, पंचविंसति, सकुंतला, महाभारत, सीता वनवास, भ्रांतिविलास, ओटी अल्पा होइलो, आबार ओटी अल्पा होइलो, ब्रजविलास और रत्रोपरीक्षा |
अंतिम सफ़र :-
29 जुलाई, 1891 को 70 वर्ष की आयु में कलकत्ता (वर्तमान का कोलकाता) में इनका निधन हो गया|
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FAQ
वर्ष 1850 में
ईश्वर चंद्र विद्यासागर को “बंगाली गद्य का पिता” कहा जाता है |
इनको बचपन में ईश्वर चंद्र बंधोपाध्याय के नाम से बुलाते थे |
इनका जन्म 26 सितम्बर, 1820 में बंगाल के हुगली जिले के बिरसिंघा नामक गाँव में हुआ था|