जन से पहले पूर्ण वैदिक काल हुआ करता था उसके बाद बड़े-बड़े यज्ञ होने लगे तब जनपद का उदय हुआ ,दूसरी भाषा में महायज्ञों को करने वाले राजा अब जन के राजा ना होकर महाजनपदों के राजा होने लगे |
जन +जन = जनपद या हम यह भी कह सकते है, जन +जन+जन.. =जनपद, मिल जाये तो हम उसे जनपद करते है| भारत देश में जब से राजनीती व्यवस्था का उदय हुआ तब से जन ,जनपद महाजनपद और मगद सामरज्य का उदय हुआ है उससे पहले न जनपद थे और न ही राजनीति
पूर्ण वैदिक काल
राजनीति की इकाई वैदिक कल , ऋग्वेद काल तथा मौर्यकाल विवरण
वर्ण व्यवस्था क्या है इस शव्द की उत्त्पति कैसे हुयी ?
उत्तर वैदिक कल में सबसे बड़ी राजनीती इकाई जब थी ऋग्वेद काल में सबसे बड़ी इकाई जन थी उसके बाद उत्तर वैदिक काल में राजनीती की सबसे बड़ी इकाई जनपद हुयी | 620 इश्वी में राजनीती की सबसे बड़ी इकाई महाजनपद हुयी और मौर्यकाल में राजनीती की सबसे बड़ी इकाई सामज्य हो गयी
जपनद का शाब्दिक अर्थ जन के बसने की जगह को कहते है
चित्रित धूसर पात्र की विशेषता:-
यह वैदिक काल की विशेषता है, पुराने ज़माने में यह एक प्रकार का वर्तन, कटोरी की बनावट, इसकी सतह बहुत ही पतली और दिखने में बहुत सुन्दर सा महसूस हुआ करता था| इसका प्रयोग खास मौकों पर किया जाता जिसमे महत्वपूर्ण लोगों को इसी से कहाँ परोसा जाता था
वैदिक काल की पहचान चित्रित धूसर पात्र काल से ही की जाती है इन पत्रों में सबसे ज्यादा थालियां और कटोरिया ही मिली है
किस जनपद में खुदाई हुयी और कहाँ :-
पुरातत्व विद्दो ने इस जनपद की खुदाई की है जिसमें से दिल्ली का पुराना किला, उत्तर प्रदेश में मेरठ जिले के पास हस्त्नापुर ,एटा जिले के पास अंतरजीखेड़ा इसमें से प्रमुख है-
इस खुदाई से पता चला जनपद काल में लोग झोपड़ियों में रहते और मवेशी तथा अन्य जानवरों को पाला करते थे वे चावल, गेहूं जौ डालें गन्ना तिल और सरसों की फसल उगाया करते थे|
आपको बता दें चित्रित धूसर पात्र बहुत कम मिले ही वहीं पर लाल मिटटी में वर्तन बहुत ज्यादा मिले है यह सवसे फेमश पात्र हुआ करते थे और बहुत आसनी से पहचाने जाते थे |
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इस काल मुख्य फासले चावल,धान,जौ, गन्ना , तिल और सरसों हुआ करती थी | लोग इन फसलों को आपने घारो के पास के जंगलों में उगाया करते थे और यह तब पता चला जब जनपद कल के बारे में दिल्ली , हस्त्नापुर और एटा में खुदाई हुयी |