30 नवम्बर 1920 ई. को मौलाना शौकत अली के साथ महात्मा गाँधी भी झाँसी आए और इनके आगमन से झाँसी की जनता में राष्ट्रवादी भावनाएँ और अधिक तेजी से उभरकर सामने आई। 1920 के असहयोग आन्दोलन में झाँसी में भी रचनात्मक एवं निषेधात्मक कार्यक्रम आयोजित किए गए जिसमें विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार, शिक्षा संस्थाओं एवं अदालतों का बहिष्कार किया गया। चर्खा-खादी के उपयोग पर जोर दिया गया इस लेख में झाँसी आन्दोलन [pdf चर्चा ] लेख तथा निबंध पर विस्तृत रूप से समझेंगे ताकि विद्यार्थियों तथा पाठकों को झाँसी का इतिहास और यहाँ के क्रांतिकारियों के बारे में अच्छे से जानकारी मिल सके|
राष्ट्रभाषा हिन्दी अपनाने के लिए व्यापक जन-प्रदर्शन एवं आन्दोलन हुए। ब्रिटिश सरकार ने अनेक नेताओं को गिरफ्तार किया। इससे लोगों का उत्साह कम नहीं हुआ। आन्दोलन में और अधिक तेजी आई। राजनीतिक चेतना की लहर सुदूरवर्ती ग्रामों तक प्रसारित हुई। आसपास की रियासतों में भी इसका प्रभाव पड़ा। 1924 में खान अब्दुल गफ्फार खाँ भी झांसी आए। उन्होंने यहाँ साम्प्रदायिक सौहार्द बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- विशेष राज्य का दर्जा (विशेष श्रेणी / एससीएस) की विशेषताएं क्या है?
- सी-सेक्सन/ Caesarean Delivery डिलिवरी के आंकड़े दिन-प्रतिदिन बढ़ते दिख रहे है, पूरी जानकरी क्या है?
- लोक सभा में अध्यक्ष तथा उपाध्यक्ष का चुनाव तथा नियम 8 की जानकारी बहुत महत्वपूर्ण है
- लोकसभा उपसभापति/उपाध्यक्ष की भूमिका और इतिहास का वर्णन कीजिये
- भारतीय इतिहास में किलों की प्रथम खोज कब हुयी थी पूरी जानकरी देखिये |
झाँसी आन्दोलन में क्रान्तिकारी गतिविधियाँ:-
1921 ई. के पश्चात् झाँसी क्रान्तिकारी आन्दोलन का भी प्रमुख केन्द्र बन गया। 1925 को सहारनपुर से लखनऊ जा रही रेलगाड़ी को काकोरी स्टेशन के निकट रोककर चन्द्रशेखर आजाद सहित कई क्रान्तिकारियों ने इसमें रखा सरकारी खजाना लूट लिया। यह काकोरी षड्यन्त्र केस कहलाता है। साइमन कमीशन के विरोध स्वरूप हुए आन्दोलन में पुलिस अफसर सैण्डर्स की लाठी से 17 नवम्बर 1928 को लाला लाजपत राय की मौत हो गई। सरदार भगतसिंह एवं राजगुरु ने इस हत्या का बदला लेते हुए 15 दिसम्बर 1928 को सैण्डर्स की गोली मारकर हत्या कर दी। चन्द्रशेखर आज़ाद ने इनकी मदद की थी। 8 अप्रैल 1929 में दिल्ली में केन्द्रीय असेम्बली में बम फेंकने की योजना बनाने में भी चन्द्रशेखर का अप्रत्यक्ष रूप से हाथ था।
क्रान्तिकारी संस्था हिन्दुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन ने 1923 में श्री शचीन्द्रनाथ बख्शी को झाँसी शाखा संगठित करने हेतु नियुक्त किया। शचीन्द्रनाथ बख्शी ने झाँसी में मास्टर रुद्रनारायण से सम्पर्क किया। मास्टर रुद्रनारायण ने झाँसी के नौजवानों को आकृष्ट करने के लिए एक अखाड़ा खोल रखा था। क्रान्तिकारी आन्दोलन के प्रसार की दृष्टि से यह अखाड़ा अत्यन्त ही उपयोगी मास्टर रुद्रनारायण सिद्ध हुआ। इसने देश को श्री सदाशिव राव, विश्वनाथ गंगाधर वैशम्पायन एवं भगवानदास माहौर जैसे क्रान्तिकारी प्रदान किए। शचीन्द्रनाथ बख्शी का इन सभी से सम्पर्क हुआ। फलस्वरूप क्रान्तिकारी गतिविधियों में तेजी आई |
इसी दौरान काकोरी ट्रेन काण्ड की गिरफ्तारी से बचने के लिए चनाशेखर आज़ाद भी झाँसी आए। वे मास्टर रुद्रनारायण के यहाँ रहे। गुप्तचर विभाग के इंस्पेक्टर कुम्मोद सिंह एवं पुलिस की बार-बार दविश पड़ने पर वे झाँसी के मोहल्ला मुकरयाना में भी रहे। नई बस्ती में रामानन्द मोटर ड्राइवर के घर पर वास किया।
झाँसी आन्दोलन में क्रांतिकारी भगवानदास माहिर की भूमिका:-
ओरछा राज्य की सतारा नदी के किनारे स्थित यह कुटिया क्रान्तिकारी गतिविधियों का प्रमुख केन्द्र बन गई। झाँसी के सदाशिव राव, विश्वनाथ गंगावर, वैशम्पायन, भगवानदास माहौर, मास्टर रघुनाथ रामायण सिंह आदि को यहीं से चन्द्रशेखर आज़ाद ने क्रान्ति का कार्यक्रम दिया। सैण्डर्स पर लाठी मारने वाले घटनाक्रम में झाँसी के भगवानदास माहौर भी शामिल थे। इस तरह झाँसी में क्रान्तिकारी गतिविधियाँ जारी रही। कुछ समय आज़ाद खनियाधाना नरेश खलक सिंह के यहाँ, कुछ दिन दतिया के जागीरदार रघुनाथ की कोठी में तो कुछ दिन वे ललितपुर में नन्दकिशोर किलेदार के मकान में गुप्त रूप से रहे। इस तरह समस्त बुन्देलखण्ड में चन्द्रशेखर आज़ाद ने झाँसी को केन्द्र बनाकर क्रान्तिकारी आन्दोलन की लहर को व्याप्त किया। आज़ाद ने बुन्देलखण्ड के महत्त्व को रेखांकित करते हुए कहा था –
विश्व के सबसे बड़े क्रान्तिकारी श्रीराम अयोध्या से आकर यहाँ ठहरे थे। इसके अतिरिक्त बुन्देलखण्ड की यह भूमि अनादिकाल से साधना की स्थली रही है। मैं भी इसमें साधना करने जा रहा हूँ इसलिए मैं वीरता के कणों को इस भूमि से बटोरकर संकलित करूँगा ।
इस तरह हम देखते हैं कि रानी लक्ष्मीबाई का बलिदान व्यर्थ नहीं गया उनके द्वारा झाँसी में बोये गए क्रान्ति के अंकुर पुनः फूट पड़े। झाँसी क्रान्तिकारी गतिविधियों का केन्द्र बनी रही। इस क्षेत्र के क्रान्तिकारी पं. परमानन्द गदर पार्टी से सम्बन्धित रहे। उन्होंने देश के बाहर युवकों को राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत किया। 1928 में जब साइमन कमीशन के सदस्य झाँसी स्टेशन से गुजरे तो उन्हें झाँसी के लोगों ने काले झण्डे दिखाए। झाँसी के कामरेड अयोध्या प्रसाद एवं लक्ष्मण राव कदम बहु- चर्चित मेरठ षड्यन्त्र केस से सम्बन्धित रहे। पुलिस ने धारा 129ब के अन्तर्गत उन्हें 1928 में बन्दी बनाया और न्यायालय ने क्रमशः 2 एवं 3 वर्ष का कारावास दिया।
झाँसी आन्दोलन का असेम्बली बम केस:-
झाँसी के सुप्रसिद्ध क्रान्तिकारी सदाशिवराव मलकापुर को आगरा की मण्डी में क्रान्तिकारी जतिनदास ने बम बनाना सिखाया। फरवरी 1928 को सदाशिवराव, चन्द्रशेखर आज़ाद, भगतसिंह, फणीन्द्रनाथ घोष की कार से ड्राइवर रामानन्द तिवारी द्वारा बबीना गए। यहाँ उस बम का सफलतापूर्वक परीक्षण किया। इसके पश्चात् दिल्ली असेम्बली में बम फोड़ने की योजना बनी। लक्ष्मणगंज मोहल्ले के सेठ मिलापचन्द्र की हवेली में चन्द्रशेखर आज़ाद, भगवानदास माहौर, ए.के. सदाशिवराव सदाशिवराव मलकापुरकर आदि ठहरे थे। यहीं असेम्बली में बम फोड़ने की योजना बनी। 8 अप्रैल 1929 को असेम्बली में बम फेंका गया था |
- विशेष राज्य का दर्जा (विशेष श्रेणी / एससीएस) की विशेषताएं क्या है?
- सी-सेक्सन/ Caesarean Delivery डिलिवरी के आंकड़े दिन-प्रतिदिन बढ़ते दिख रहे है, पूरी जानकरी क्या है?
- लोक सभा में अध्यक्ष तथा उपाध्यक्ष का चुनाव तथा नियम 8 की जानकारी बहुत महत्वपूर्ण है
- लोकसभा उपसभापति/उपाध्यक्ष की भूमिका और इतिहास का वर्णन कीजिये
- भारतीय इतिहास में किलों की प्रथम खोज कब हुयी थी पूरी जानकरी देखिये |
- Career Guidance
- Country
- Education
- india history
- Literature
- MCQ QUIZ
- NCERT का इतिहास
- Politics
- SSC CGL 2023-2024
- इतिहास के पन्ने
- झारखण्ड का इतिहास
- देश दुनियां
- प्राचीन भारत का इतिहास
- बुंदेलखंड का इतिहास
- भारतीय इतिहास
- भारतीय राजनीति इतिहास
- भारतीय राजनेता
- सामाजिक अध्यन