हिंदुस्तान के पुराने इतिहास के पन्नों को यदि पलटा जाए तो उनमें सैकड़ों ऐसी मुसलमान महिलाओं की अमर गाथाएं नज़र आ सकती हैं, जिन्होंने देश को आज़ाद कराने में अविस्मरणीय (न भुलाए जाने वाले) योगदान दिए हैं। ऐसी मुस्लिम महिलाएं इमारत के उन नीव के पत्थरों की तरह हैं जिन पर आज़ादी की इमारत तो खड़ी है, परन्तु वे पत्थर दिखाई नहीं देते आज का यह लेख लेडी हसन इमाम तथा [50 Muslim women freedom fighter List] के सम्बन्ध में है यहाँ ऐसी 50 मुस्लिम महिलाओं के बारे में लिखेंगे जिन्होंने अपना सब कुछ भारत देश की आजादी में कुर्बान कर दिया|
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लेडी हसन इमाम का जन्म:-
बिहार प्रांत की बेटी, लेडी हसन इमाम भी आज़ादी के उन्ही बुनियाद के पत्थरों में से एक हैं, जिनके कारनामे आमतौर से दोहराए नहीं जाते। वह स्वतंत्रता सेनानी हसन इमाम की पत्नी थीं। अधिकांशतः स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की पत्नियां का भी जंगे आज़ादी में उतना ही सहयोग रहा है जितना कि उनके पति का उदाहरण के तौर से नवाब वाजिद अली शाह की बेगम हज़रत महल हों या मुहम्मद अली जौहर की पत्नी अमजदी बेगम हों, अबुल कलाम आज़ाद की बेगम जुलेखा हों अथवा हसरत मोहानी की पत्नी निशातुन्निसा हों या डा. सैफुद्दीन- किचलू की बेगम सआदत किचलू आदि हों, उन सभी ने आज़ादी के संघर्ष में यातनाएं उठाई, कष्ट सहे, मगर अपना भरपूर योगदान दिया।
यहां तक कि उनमें से कुछ ने तो महिला होते हुए भी फ़िरंगी सेना के विरुद्ध बहादुरी से जंगें भी लड़ीं हैं। लेडी हसन इमाम के जीवन में ऐश व आराम की कोई कमी नहीं थी। सविधाओं और आराम की सभी चीजें उन्हें उपलब्ध थीं। फिर भी देश की गुलामी की तकलीफ़ उनके दिल को चैन नहीं लेने देती थी।
लेडी हसन इमाम का क्रांतिकारी इतिहास:-
वह चाहती थीं कि किसी भी तरह से अंग्रेज़ों की गुलामी का अंधेरा उनके देश पर से टले। देश आज़ाद हो। देशवासी आज़ादी के माहौल में सांस ले सकें। आपसी एकता के साथ देश तरक़्क़ी की ऊंचाई पर पहुंचे। इन भावनाओं के साथ लेडी हसन इमाम जंगे आज़ादी के आन्दोलनों में शामिल हुईं। उन्होंने स्वदेशी आन्दोलन हो या विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार अथवा शराब बंदी के लिए संघर्ष हो, सभी में भाग लेकर अंग्रेज़ शासन में हड़कंप मचा दिया। उन्होंने देश की महिलाओं को जागरूक करके जुलूस निकाले, जलसे किए और स्वदेशी वस्तुओं के उपयोग पर ज़ोर दिया।
विदेशी कपड़ों एवं अन्य वस्तुओं को उपयोग में लाना उन्होंने दुश्मन अंग्रेज़ों को सहयोग करने के बराबर माना। उन्होंने व्यापारियों को विदेशी कपड़ों एवं अन्य विदेशी वस्तुओं का व्यापार करने से रोकने के लिए आन्दोलन में बढ़-चढ़कर भाग लिया। साथ ही देशवासियों से भी विदेशी कपड़ों एवं वस्तुओं के बहिष्कार की अपील की, धरने दिये। उनके सहयोग के कारण आज़ादी के आन्दोलनों ने अधिक जो पकड़ा। लेडी हसन इमाम गांधी जी से बहुत प्रभावित थीं। उन्होंने चर्खा चलाने, खादी बनाने, खादी के कपड़े पहनने के लिए महिलाओं में जागरूकता पैदा की। इसके लिए उन्हें अलग-अलग स्थानों पर जाना पड़ा। इस संबंध में विशेषकर महिलाओं को समझाना पड़ा। उन्होंने व्यक्तिगत रूप से भी जागरूकता अभियान चलाए, इसके अलावा जुलूसों एवं जलसों के रूप में भी अंग्रेज़ शासन को चौंकाया
लेडी हसन इमाम की महात्मा गाँधी के प्रति भावना:-
यह अपने समय की एक निडर, बेबाक नेता थीं। वह आज़ादी के आन्दोलन में शासन की किसी भी कार्यवाही से नहीं डरती थीं | 25 जुलाई 1938 को लेडी हसन इमाम के नेतृत्व में अंग्रेज़ शासन के ख़िलाफ़ एक जुलूस निकाला गया, जिस पर शासन ने उनके विरुद्ध गिरफ़्तारी वारंट जारी कर दिया। इस कारण अवाम का गुस्सा फूट पड़ा। शासन की कार्यवाही के ख़िलाफ़ पटना में जुलूस निकाल कर विरोध दर्शाया गया और यह अदालत में हाज़िर की गई। अदालत द्वारा उन्हें मुजरिम ठहरा कर रू. 201 का जुर्माना किया गया।
लेडी हसन इमाम की जिन्दगी के आखरी पन्ने :-
भारत की उस निडर, बेबाक स्वतंत्रता सेनानी ने भरी अदालत में अंग्रेज़ शासन के विरुद्ध अपनी गतिविधियों को न रोकने का एलान तथा जुर्माना अदा करने से साफ़ इनकार कर दिया।
लेडी हसन इमाम को अपनी क्रांतिकारी गतिविधियों के कारण जेल भी जाना पड़ा तथा सज़ाएं भी झोलनी पड़ीं। उन्हें फ़िरंगी शासन के सभी कष्ट सहना स्वीकार थे, लेकिन वह फ़िरंगी शासन को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं थीं। ऐसी ही आज़ादी की मतवाली महिलाओं के सहयोग से अंग्रेज़ शासन की बौखलाहट बढ़ती रहती थी। लेडी हसन इमाम ने अपने जीवन का अधिकांश समय देश की आज़ादी के आन्दोलनों में गुज़ार कर अपने आप को सफल बनाया।
मुसलमान महिला स्वतंत्रता सेनानी का इतिहास:-
भारत को फिरंगियों की गुलामी से आजाद कराने में जहां पुरुषों ने अपनी जानें कुर्बान की हैं. वहीं इस देश की महिलाएं भी पुरुषों से पीछे नहीं रही हैं। इस देश की हिन्दू और मुसलमान महिलाओं ने भी आजादी के लिए ऐसे कारनामे किए हैं, जो किसी भी तरह पुरुषों से कम नहीं है। देश की आज़ादी के लिए न केवल हिन्दू महिलाओं ने अपनी मांग के सिंदूर को और मुसलमान महिलाओं ने अपने सुहाग की चूड़ियों को कुर्बान किया है,
बल्कि उन्होंने अपने प्राणों की आहूति देकर खुद को भी अमर शहीदों में शामिल कराया है। देश की आज़ादी के लिए हिन्दू और मुसलमान महिलाओं ने न केवल अपने जिगर के टुकड़ों से अपनी गोदों को वीरान किया है, बल्कि स्वयं भी झुलसा देने वाली धूप में, अकड़ा देने वाली ठंड में, बारिश की तेज बौछारों में दर-दर की • ठोकरे खा कर आज़ादी के आन्दोलनों में अपने आप को पूरी तरह से झोंक दिया।
मुसलमान महिला स्वतंत्रता सेनानियों की लिस्ट:-
देश की आज़ादी के लिए हिन्दू-मुस्लिम महिलाओं ने कभी वीरांगना बन कर फिरंगी सेनाओं पर कहर ढाया है, तो कभी बी-अम्मा का रूप धारण करके अपने सपूतों को देश पर लुटाया ही कुल मिलाकर भारत की आजादी के लिए देश प्रेमी बहादुर महिलाओं के त्याग, तपस्या, बलिदान और कुर्बानियों की अमर गाथाओं का उल्लेख किए बगैर आज़ादी का इतिहास पूरा नहीं हो सकता।
1.बेगम हजरत महल
2.बेगम ज़ीनत महल
3. बी अम्मा (आबादी बानो बेगम)
4.बेगम निशातुन्निसा मोहानी
5 सय्यिदा फखरुल हाजिया हसन
6. बेगम अनीस क़िदवाई
7. कुलसूम सयानी
8. मासूमा बेगम
9. बेगम राना लियाकत
10 . अली खां हाजरा बीबी इस्माइल .
11. ज़हीरा बेगम
12. जमालुन्निसा बाजी
13. डा. राशिद जहां
14. अरुणा आसिफ़ अली
15. ज़ुबैदा बेगम दाऊदी
16. सुल्ताना बेगम
17. शरीफ़ा हामिद अली
18. रायबान तय्यब जी
19. मिस सबा बेगम
20. सुरय्या तय्यिब जी
21. डा. दरख्शां अंजुम
22.अज़ीज़न बाई
23. अमजदी बेगम
24. सआदत बानो किचलू
25. जुलेखा बेगम
26. रज़िया ख़ातून
27.अकबरी बेगम
28.असग़री बेगम
29. ज़ाहिदा ख़ातून शेरवानी
30. मुनीरा बेगम
31. आमना कुरैशी
32. फ़ातिमा बेगम
33. शफाअतुन्निसा बी
34. माई बतावर
35. सुग़रा ख़ातून
36.बीबी अमतुल इस्लाम
38 सुल्ताना हयात अंसारी जुहरा अंसारी
39. बेगम सकीना लुकमानी
40. सुल्तान जमानी बेगम
41. मांतंगनी हाजरा
42.नूरुन्निसा इनायत खां
43. कुलसूम बी अमीना तय्यिब जी
44 .निशातुन्निसा बेगम
45. लेडी हसन इमाम फ़ातिमा इस्माईल
46 . हाजी बेगम
47 . बेगम मुअज्जम अली खां
48 .बेगम ख़ुर्शीद ख़्वाजा
49 .फ़ातिमा बेगम 50 आरिफ़ी हाजरा ज़ेड अहमद
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