स्वतंत्रा संग्राम सेनानी श्री मेवराम गुप्त सितोरिया ने अपनी पुस्तक हिन्दुस्तान की जंगे आज़ादी के मुसलमान मुजाहिदौन मे “बेशुमार मुसलमानों का कत्ल” शीर्षक से देश के लिए कुर्बान होने वाले मुसलमानों के संबंध में कुछ ऐतिहासिक तथ्यों का उर्दू भाषा मे उल्लेख किया है। श्री गुप्त के तथ्यों का हिन्दी अनुवाद इस प्रकार है- “उन बेशुमार मुसलमानों, स्वतन्त्रता सैनानियों का क़त्ल जिन पर इतिहास कभी रोशनी नहीं डाल सका और न डाल सकेगा, 1857 की जंगे आज़ादी से बहुत पहले हो चुका था। उन्होंने ही 1857 की जंग के लिए ज़मीन तैयार की थी। अपने ख़ून से जंगे आज़ादी की चिंगारी लगाई। आज के इस लेख में मुस्लिम क्रांतिकारियों की लिस्ट[PDF]के बारे में चर्चा करेंगे |
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- लोकसभा उपसभापति/उपाध्यक्ष की भूमिका और इतिहास का वर्णन कीजिये
- भारतीय इतिहास में किलों की प्रथम खोज कब हुयी थी पूरी जानकरी देखिये |
मुस्लिम क्रांतिकारियों की चर्चा:-
वह मुसलमान मुजाहिदीन उसकी नींव के पत्थर बने। आमतौर पर लोग किसी महल के कंगूरों को ही देखते हैं, वे नींव में दफ़न पत्थरों को नहीं देख पाते जिनकी क़िस्मत में गुमनाम मरना ही लिखा था। अपना फ़ज़ पूरा कर गए। चाहे उन्हें कोई याद करे या न करें। काश हम भी अपने कौमी और सियासी फ़र्ज़ को समझते। उन नींव के पत्थरों के नाम और उनकी शहादतों को आम लोगों के सामने लाते जिन पर आज़ादी के महल की इमारत खड़ी हुई है।
जब हिन्दुस्तानी वतन-प्रेमी अवाम को अंग्रेज़ों के नापाक इरादों का पता चला तो वह सुकून की नींद नहीं सो सके। हिन्दुस्तान के सैकड़ों वतन दोस्त लोगों ने अपने-अपने ढंग से देश व राष्ट्र के दुश्मन अंग्रेज़ों से लड़ कर अपनी जानें कुर्बान कर दीं। यदि वे राजा या नवाब आदि थे तो उनकी फौजों ने देश के लिए अपनी जाने क़ुर्बान की थीं और शहीद हुए थे। कहां है उल्लेख उनका कैसे-कैसे बांबाज़, निडर, बेबाक, बेखौफ़ शहीद हैं हमारे इतिहास में, अन्दाज़ा लगा कर ज़रा गिनती तो कीजिए|
मुस्लिम क्रांतिकारियों की लिस्ट जिन्होंने लड़ाइयां लड़ी:-
1770 और 1779 में अंग्रेज़ों के साथ अलग अलग क़बीलों की लड़ाइयां।
1783 में “ख़ासी” क़बीले की लड़ाई।
1798 में “गनजम” क़बीले की लड़ाई ।
1804 में नाईर बटालियन की लड़ाई।
1838, 1804 का फ़रीदी आन्दोलन,
1808 में ट्रावणकोर के दीवान के साथ अंग्रेज़ों की लड़ाई,
1809 में वारों की लड़ाई, 1813 में सहारनपुर के गूजरों की लड़ाई,
1818 में ख़ान देश के भीलों की लड़ाई,
1824 में बुन्देलखंड के क़बीले की लड़ाई,
1824 में ही ” कूतरा बेलगांव” का आन्दोलन,
1831-34 में कोलियों की लड़ाई।
1832 के बान भोम बहारदीवारी में बने हए वे छोटे-छोटे बर्ज, जिसमें खड़े होकर सिपाही आक्रमणकारियों से लड़ते थे। “मेवराम म गुप्त सितोरिया, हिन्दुस्तान की जंगे आज़ादी के मुसलमान मुजाहिदीन, किताबदार, मुम्बई के भोमजी से लड़ाई, 1794 से 1834 तक विजया नगरम के सरदारों के साथ लड़ाइयां|
मुस्लिम क्रांतिकारियों की कुछ ऐसी लड़ाइयाँ जिनके बारे में इतिहास में न के बराबर लिखा है:-
1839 में नागाओं से लड़ाई
1844 में कोलहापुर में लड़ाई
1846 में उड़ीसा के खोंडसों के साथ लड़ाई
1855 में सिंथालियों की लड़ाइयां
1857 में मंडा क़बीले वालों से लड़ाई और 1857 के बाद भी उन लड़ाइयों का सिलसिला जारी रहा।
1744, 1747 धलभूम के राजा के साथ। 1802 में बेल्लारी जिला के पोलीगिरों के साथा 1794 में विजय नगर के राजा के साथ, 1839 में असम और 1844 में बरेली (उ.प्र.) के ताल्लुक़दारों के साथ, इन लाड़ाइयों में कितने मुसलमान मुजाहिदीन थे? इसे कौन बता सकता है?
जिस तरह से देखा कि ऐसे कितने मुस्लिम क्रांतिकारियों ने अपना बलिदान दिया उनके बारे में इतिहास में लिखा तक नहीं गया है चाहे मौलाना रशीद अहमद गंगोही की बात हो या फिर मौलाना फ़ज़ले-हक़ ख़ैराबादी की इन सबने हिंदुस्तान की आजादी में अपना आहम योगदान दिया है इस लेख में जिस तरह से ऐसे क्रांतिकारियों के बारे में लिखा गया है, अपने आप में महत्वपूर्ण है|
जिसके बारे में आपने नहीं पढ़ा हो तो आप उनके बारे में रिसर्च कर सकते है|
मुस्लिम क्रांतिकारियों के नाम :-
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