वैसे तो भारत देश में अनेक जातियां और समाज पाए जाते है उन्हीं में एक माली समाज है , इस लेख में इस समाज की उपलब्धियां, इतिहास तथा अन्य महत्वपूर्ण विन्दुओं को जानेगे |
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माली समाज में माली शब्द का मतलब :-
यह जाति हिन्दुओं में पाई जाने वाली एक व्यवसायिक जाति है, परम्परागत रूप से यह लोग बागवानी, फूल उगाने तथा कृषि का कार्य करते है, माली शब्द की उत्त्पति संस्कृत के शव्द “माला” से हुयी है |
फूल उगाने के अपने व्यवसाय के कारण इन्हें “फूलमाली” भी कहा जाता है, इस जाति के गौरवशाली इतिहास को इस बात से समझा जा सकता है कि इन्हें ब्राह्मणों से भी श्रेष्ठ बताया गया है यहाँ तक कि विश्वनाथ ज्योर्तिलिंग की पहली पूजा का अधिकार फूलमाली को है |
माली समाज की कैटेगरी :
भारत देश के अधिकांश राज्यों जैसे उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा,मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, गुजरात और आंध्रप्रदेश आदि राज्यों में माली जाति को पिछड़ा वर्ग (Other Backward class) के अंतर्गत वर्गीकृत किया गया है |
माली समाज की सबसे ज्यादा जनसँख्या कहाँ पायी जाती है?
यह मुख्य रूप से, पूरे उत्तर भारत,पूर्वी भारत,महाराष्ट्र के साथ- साथ नेपाल के तराई क्षेत्र में पाये जाते हैं, वहीँ राजस्थान में माली समाज की आबादी 10% है और फूलमाली समाज ससे ज्यादा क्रमशः राजस्थान, महाराष्ट्र,और मध्य प्रदेश में पाए जाते है |
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FAQ
महाराष्ट्र में माली मुख्य रूप से पश्चिमी महाराष्ट्र के 5 जिलों में तथा विभर्द के 1 जिला में पाए जाते हैं, ये परम्परागत रूप से फल, सब्जियाँ उगा कर अपना जीवन यापन करते हैं तथा खेती के आधार पर इनकी अलग-अलग उपलब्धियां हैं |
जैसे फूलों को उगाने वाले को “फूलमाली” जीरा की खेती करने वाले को “जीरा माली” तथा हल्दी की खेती करने वाले को “हल्दी माली” कहा जाता है |
वर्तमान में जिस तरह से इतिहास को लिखा गया है उसके हिसाब से किसी भी जाति के इतिहास और उसकी उत्त्पति के बारे में प्रमाणित दावा करना कठिन होता है, फिर भी पौराणिक कथाओं, पांडुलिपियों, दंत कथाओं, विभिन्न ग्रंथों, ताम्र पन्नों और शिलालेखों के आधार पर माली समाज की उत्त्पति इतिहास और क्रमागत विकास के बारे में कई मत और मान्यताएं हैं |
पौराणिक कथा के अनुसार,माली भगवान् शिव और माता पार्वती के मानस पुत्र थे, ऐसी मान्यता है कि श्रष्टि के आरंभ के समय माता पार्वती ने भगवान शिव से एक सुन्दर बाग़ बनाने की जिद कर दी थी तब भगवान शिव ने अनंत चौदह के दिन अपने कान के मैल से एक पुरुष पुतला बनाकर उसमें प्राण डाल दिए, बाद में यही आदि पुरुष मनंदा कहलाया |