मांतंगनी हाजरा [ निबंध ] [ Muslim women Freedom Fighter ]
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मांतंगनी हाजरा [ निबंध ] [ Muslim women Freedom Fighter ]

by रवि पाल
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हिंदुस्तान का इतिहास दुनियां का सबसे अच्छा इतिहास माना जाता है यहाँ पर अनेक धर्मों के लोग रहते है इसके साथ- साथ महिला पुरुषों को एक समान माना है इस देश को आजादी दिलाने में न सिर्फ पुरुषों ने अपना बलिदान दिया बल्कि  हजारों , लाखों महिलाओं ने भी योगदान दिया चाहे बात अजीजन बाई की हो या फिर बी अम्मा की , हजारों महिला क्रांतिकारियों ने इस देश की आजादी में अपना बलिदान दिया है आज का विषय  मांतंगनी हाजरा के उपर है जिस तरह से इन्होने हिंदुस्तान की आजादी में अपना योगदान दिया उसको वर्तमान में भुलाया नहीं जा सकता |

भारत देश की स्वतंत्रता के संघर्ष में पुरुष और महिला, धनवान और निर्धन, छोटे और बड़े का कोई अन्तर नहीं रहा है। प्रत्येक वर्ग ने आज़ादी की लड़ाई में भाग लिया। मांतंगनी हाजरा, भी ऐसी ही एक मुसलमान महिला स्वतंत्रता सेनानी थीं, ‘जिन्होंने निर्धनता के बावजूद देश की अज़ादी में खुल कर हिस्सा लिया। यहां तक कि उसी संघर्ष में उन्होंने अपनी जान को निछावर कर दिया।

मांतंगनी हाजरा  का जन्म:-

1869 में बंगाल के तामलुक ज़िला के ग्राम होगला के ग़रीब परिवार में पैदा हुई। भारत के बहुत से पुरुष एवं महिलाएं तो जन्म से ही अपने मन में आज़ादी के संघर्ष का जज़्बा लेकर पैदा हुए। कुछ आस-पास के माहौल से प्रभावित होकर आज़ादी की जंग में कूद पड़े। माँतंगनी हाजरा एक मज़दूर घराने की देश प्रेमी स्वतंत्रता सेनानी थीं। उनके मां बाप ने अपनी बेटी के खान पाने का खर्चा सहन न कर पाने के कारण, 12 वर्ष की छोटी उम्र में ही बड़ी आयु के एक धनवान व्यक्ति से उनकी शादी कर दी, ताकि वह अपना जीवन सुख चैन से किन्तु उसका परिणाम उल्टा ही हुआ।

18 वर्ष की आयु में ही मांतंगनी हाजरा के सुहाग का सफर पूरा हो गया और वह विधवा हो गई। उनके हालात फिर बिगड़ गुज़ार सकें। गए। उन्होंने अपने विधवापन और ग़रीबी की परेशानियों को बरदाश्त करते हुए आज़ादी की लड़ाई में जमकर हिस्सा लिया। उस समय देश में चारों ओर आज़ादी की चर्चाएं थीं और आज़ादी के लिए संघर्ष करने का माहौल बना हुआ था। वुलूसों,और जलसों में इन्क़िलाब ज़िन्दाबाद के नारों की गूंज थी। देशवासियों में अंग्रेजों के खिलाफ़ नफरत फैली हुई थी। माजरा के दिल में सब बातें घर कर गई।

मांतंगनी हाजरा का आजादी की लड़ाई में योगदान:-

उन्होंने आजादी की लड़ाई लड़ने की अपने मन में मांतंगनी हाजरा ने गांधी जी को अपना नेतामानकर पहनना आरंभ कर दिया। चाहे जो भी आन्दोलन हो या आजादी भी गतिविधि हो, सभी में उन्होंने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। वह उन महिलाओं के से थीं, जिन्होंने अंग्रेजों के जल्म और सजाओं की परवाह किए बगैर सत्याग्रह में भाग लिया। मां हाजरा ने नमक बनाकर अंग्रेजी कानून की ख़िलाफ़वर्जी की। उस पर फ़िरंगियों ने सजा देने के लिए भारतीय महिलाओं को भी नहीं छोड़ा। मांतंगनी हाजरा को भी सजा के तौर पर इतना ज्यादा पैदल भ गया कि वह थकान के कारण चलते-चलते गिर पड़ती थी। परन्तु वह किसी भी सजा के कारण आज़ादी के संघर्ष से पीछे नहीं हटीं। उनके दिल में देश प्रेम उतनी गहराई तक बैठ गया था कि वह देश की खातिर फ़िरंगियों की कोई भी सजा स के लिए हमेशा तैयार रहती थीं।

वह अधिकांश आन्दोलनों में हिस्सा लेकर असे सरकार के ख़िलाफ़ चुनौती खड़ी कर देती थीं। चाहे चौकीदारी के विरोध में निकाला गया जुलूस हो, या 1933 सीरमपुर में कांग्रेस सम्मेलन, अथवा 1942 भारत छोड़ो आन्दोलन, सभी में उन्होंने खुल कर हिस्सा लिया। उन्होंने देश की आज़ादी के संघर्ष में जेल की सज़ा काटी। जलसों, जुलूसों में फ़िरंगी लाठियों से ज़ख़्मी हुई। एक महिला होते हुए आज़ादी की लड़ाई में उनके कारनामे किसी बहादूर पुरुष से कम नहीं रहे। वह इतनी बड़ी और अनुभवी नेता बन चुकी थी कि 29 दिसम्बर 1942 के तामलुक में आन्दोलन के समय लगभग छः हजार महिलाओं के जुलूस का उन्होंने नेतृत्व किया। उस समय इतनी ज्यादा टकराव की स्थिति बन गई थी कि अंग्रेज़ बल ने महिला जुलूस को आगे बढ़ने से रोकने का प्रयास किया।

लेकिन वह महिला क्रांतिकारियों को काबू में नहीं कर सकी। वहां तक कि महिला जुलूस को, सारजेंट द्वारा चेतावनी दी गई कि यदि जुलूस ने आगे बढ़ने की कोशिश की तो उन्हें गोली मार दी जायेगी।

मांतंगनी हाजरा का भारत छोड़ो आन्दोलन में योगदान:-

आज़ादी की मतवाली मांतंगनी हाजरा को सारजेंट की धमकी बर्दाश्त नहीं हुई। उनके मन में तो अंग्रेज़ शासन से नफ़रत और आज़ादी की मुहब्बत का खून दौड़ रहा था। उन्होंने सारजेंट को ललकारते हुए कहा कि निहत्थी महिलाओं पर गोली चलाने की हिम्मत मत करना। वह आज़ादी के किसी भी आन्दोलन, जलसे, जुलूस धरने आदि को अंग्रेज़ों की धमकियों के डर से रोकने के ख़िलाफ़ थीं। उहोंने हमेशा देश की आबरू और आज़ादी की आन को अपनी जान पर प्राथमिकता दी। अतंतः हुआ भी यही कि देश की वीर महिला स्वतंत्रता सेनानी मां हाजरा अंग्रेज़ पुलिस के सामने आकर महिला जुलूस का नेतृत्व कर रही थीं।

पुलिस के रोकने के बावजूद आन्दोलनकारी महिलाओं का जुलूस आगे बढ़ता जा रहा था। इसी बीच भारजेंट ने महिला जुलूस पर गोली चला दी। गोली मां हाजरा के बाजू को चीर गई। यह उस हाथ में देश का झंडा थर्म हुए थीं। उनके जख्मी हाथ से खून का फव्वारा उबल पड़ा, मगर उस बहादुर महिला ने देश का झंडा गिरने नहीं दिया। उसे दूसरे में ले लिया और नारे लगाती हुई आगे बढ़ती गई। सारजेंट ने उनके दूसरे हाथ पर भी गोली दाग़ दी। उनका दूसरा हाथ भी जख्मी हो गया। दूसरे हाथ के भी पवित्र की धार से देश की धरती लाल होने लगी। उस बहादुर महिला ने दो गोलियां खाकर भी हिम्मत नहीं हारी और दूसरे लहू-लुहान हाथ से ही देश का झंडा थामे खून रहीं। वह इतनी तकलीफ़ की हालत में भी अपनी लड़खड़ाती आवाज़ में देश भक्ति के नारे लगाती हुई और भी आगे बढ़ने का प्रयास कर रही थीं।

मांतंगनी हाजरा के जिन्दगी का आखिरी सफ़र अंग्रेजों द्वारा गोली लगने के बाद:-

इतने में क्रूर सारजेंट वे भारत की उस वीर महिला के माथे को अपनी गोली का निशाना बना दिया। उनके माथे को फ़िरंगी गोली पार कर गई। ऐसी हालत में देश का परचम हाजरा बी के हाथ से दूसरी क्रांतिकारी महिला ने अपने हाथ में ले लिया। खून से भरी हुई। मनी हाजरा अपने देश की धरती पर गिर पड़ी। फिर क्या था, भीड़ ने राम और गुस्से से बेकाबू होकर अदालत पर कब्जा कर लिया। तामलुक में एक समानांतर सरकार कायम कर ली गई। जो कि बाद में गांधी जी के निर्देश पर ख़त्म कर दी गई।

मांतांगनी हाजरा की शहादत इसका खुला सुबूत है कि भारत देश को आज़ाद कराने के लिए इस देश की मुसलमान महिलाओं ने भी अपनी जानों को कुर्बान किया है। स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के खून से सींचा गया यह आजादी का पौधा आज भी आपसी एकता और भाई-चारे का हमें संदेश दे रहा है। स्वतंत्रता सेनानी मातंगनी हाजरा का देश की आज़ादी के लिए बलिदान इतिहास के पन्नों में अमर रहेगा।

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