इतिहास गवाह है जब- जब हिंदुस्तान पर जुल्म हुआ है तब-तब धरती माँ ने इस जुल्म से लड़ने के लिए किसी ना किसी को जन्म जरुर दिया है , आज के इस लेख में ऐसे ही धरती- पुत्र मौलाना उबैदुल्लाह सिन्धी के बारे में पढ़ेगे जिन्होंने हिंदुस्तान के साथ- साथ दुनियां के अलग- अलग देशों में जाकर भारत की आजादी में अपना अहम योगदान दिया |
वतन की आज़ादी के सिपाहियों की न तो आयु की कोई सीमा थी और न धर्म का कोई बन्धना आज़ादी की लड़ाई में जहां पढे-लिखे देशवासी एवं उलमा-ए-दीन ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया, वहीं अनपढ़ लोग भी देश पर जान निछावर करने के लिए सीना ताने फिरते थे। आज़ादी की लड़ाई में भाग लेने की अगर कोई शर्त थी तो केवल वतन प्रेम, वतन से मुहब्बत। देश की आबरू पर अपनी आरज़ुओं को कर्बान करने का सच्चा जज़्बा और वतन पर मर मिटने की हिम्मत शर्त थी।
UPSSSC VDO परीक्षाओं में पूछे गये महत्वपूर्ण MCQ Quiz science & Environment
- बांका जिले की धोरैया/SC विधानसभा, 5 बार के विधायक नरेश दास ने किस- किस नेता को चुनाव में शिकस्त दी थी |
- धोरैया विधानसभा के सीपीआई (CPI) नेता नरेस दास का राजनैतिक सफ़र, कैसे 5 बार विधायक बने |
- Bihar election 2025 : अमरपुर (159) विधानसभा का माहौल क्या है?
- बिहार चुनाव 2025: धोरैया (SC/160) विधानसभा का चुनावी माहौल (जिला बांका) क्या है?
- [GK]बिहार सोशलिस्ट पार्टी [100 Questions & Answer]PDF

मौलाना उबैदुल्लाह सिन्धी का जन्म:-
उबैदुल्लाह सिन्धी भी आज़ादी के उन जोशीले सिपाहियों में से थे जिन्होंने आज़ादी की लड़ाई में सर पर कफ़न बांध कर फिरंगियों से मुक़ाबला किया। 10 मार्च 1872 को पंजाब के जिला सियालकोट के एक गांव में जन्मे भारत के उस सपूत ने जीवन भर देश की आज़ादी की लड़ाई के लिए संघर्ष किया।यह हिन्दू-सिख परिवार से थे। उनके पिता जी का नाम राम सिंह तथा दादा जी का नाम हसपत राय था। मौलाना के जन्म से कुछ महीने पहले ही उनके वालिद इस संसार को अलविदा कह गए। उसके बाद दादा हसपत राय का भी देहांत हो गया। उनकी मां अकेलेपन के कारण उन्हें साथ लेकर अपने मायके चली गई।
मौलाना उबैदुल्लाह सिन्धी का जीवन एवं शिक्षा :-
इनका का ननिहाल सिख परिवार था। उस समय के अनुसार होश संभालते ही उनकी तालीम शुरू करवा दी गई। उनकी आरंभिक शिक्षा उर्दू मिडिल स्कूल में हुई। इसी दौरान उनका रुझान इस्लाम धर्म की ओर बढ़ने लगा।
इसी कारण उन्होंने इस्लाम मजहब की कुछ पुस्तकों का भी किया। उनसे प्रभावित होकर उन्होंने इस्लाम धर्म स्वीकार कर तोहफतुल हिन्द के लेखक का जो नाम था, उन्होंने स्वयं भी “उदल्लाह रख लिया। अब आगे की पढ़ाई के लिए वह अपने घर से उनके घर वालों ने उन्हें बहुत रोकना चाहा मगर वह तालीम पाने के शौक में पहुंच गए। वहां रह कर एक बड़े बुजुर्ग हाफ़िज़ मुहम्मद सिद्दीक साहिब हासिल की।
कुछ समय बाद वहां से दारुल उलूम देवबंद आ गए ह हिन्द मौलाना महमूद हसन और अन्य ऐसे मज़हबी बुजुगों की संगति में रहे, दिलों में देश प्रेम और आज़ादी का जज़्बा कूट-कूट कर गहराई तक भरा हु उनकी सोहबत में मौलाना उबैदुल्लाह सिन्धी के दिल में भी वतन की मुख् और उसे आजाद कराने का जज़्बा जाग उठा।
मौलाना उबैदुल्लाह सिन्धी का भारत की आजादी में योगदान:-
आज़ादी के मतवाले मल्क को आज़ाद कराने के लिए नई-नई योजनाएं बनाते। उबैदल्लाह सिन्धी के लिए यह मशहूर था कि वह बहुत योजनाएं बनाते तथा उन पर कार्यवाही भी शुरू कर दिया करते थे। फिरंगियों खिलाफ़ रेशमी रूमाल की योजना उनकी ही बनाई हुई थी। जिस में शैखल हिंद भी शामिल थे। वह योजना एक समय तक ही सफल रही। उसका राज खुल के बाद उसे रोकना पड़ा। मौलाना सिन्धी ने शैखुल हिन्द की सोहबत में देश के आज़ाद कराने के कई संर्घष किए।
उन्होंने अपना अधिकांश जीवन देश के आज़ादी के संघर्ष में विदेशों में गुज़ारा। उन्होंने ब्रिटिश शासन पर हिन्दुस्तान की आजादी का दबाव बनाने के लिए कई मुल्कों के दौरे किए। वह इस सिलसिले में कभी रूस गए तो कभी अफ़ग़ानिस्तान। उन्होंने कभी तुर्की का दौरा किया तो कभ अरब जा पहुंचे। उनकी इस दौड़-धूप का केवल एक ही मक़सद था कि किसी में तरह से उनका देश गुलामी से आज़ाद हो जाये।
मौलाना उबैदुल्लाह सिन्धी ने हिंदुस्तान के बाहर जाकर क्रांतिकारियों को जगाया :-
मौलाना महमूद हसन के इशारे पर मौलाना सिन्धी काबुल गए। वहां रह कर उन्होंने तुर्की हुकूमत से हिन्दुस्तान को आज़ाद कराने में मदद के लिए प्रयास किए इधर वह काबुल में भी आज़ादी की तहरीक को जारी रखे हुए थे।
इसी बीच उनका सम्पर्क देश के महान स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी डा. बरकतुल्लाह भोपाली और राजा महेन्द्र प्रताप से हुआ। आज़ादी के संघर्ष को मज़बूती और व्यवस्थित ढंग से चलाने के लिए 1915 में काबुल में हिन्दुस्तान की अस्थायी सरकार बनाई गई जिस में डा बरकतुल्लाह भोपाली प्रधान मंत्री बनाए गए। मौलाना उबैदल्लाह ने अस्थायी सरकार मैं रह कर हिन्दुस्तान की आज़ादी की लड़ाई में बाक़ायदा प्रयास किया
इसके साथ- साथ वह खुल कर हिन्द द्वारा आज़ादी के लिए चलाई गई योजनाओं में भी उनका बड़ा गोदान रहा।
- बांका जिले की धोरैया/SC विधानसभा, 5 बार के विधायक नरेश दास ने किस- किस नेता को चुनाव में शिकस्त दी थी |
- धोरैया विधानसभा के सीपीआई (CPI) नेता नरेस दास का राजनैतिक सफ़र, कैसे 5 बार विधायक बने |
- Bihar election 2025 : अमरपुर (159) विधानसभा का माहौल क्या है?
- बिहार चुनाव 2025: धोरैया (SC/160) विधानसभा का चुनावी माहौल (जिला बांका) क्या है?
- [GK]बिहार सोशलिस्ट पार्टी [100 Questions & Answer]PDF
जिन्दगी के आखिरी पन्ने:-
मौलाना उबैदुल्लाह की क्रांतिकारी गतिविधियों के कारण उन्हें कान में कुछ समय के लिए नज़र बन्द भी रखा गया, फिर रिहा कर दिया गया। से रिहाई के बाद उन्होंने हिजाज़ का रुख किया। वहां भी उनपर कुछ समय एक पाबंदियां लागू रहीं। भारत के वह साहसी सप्त देश की आज़ादी के संघर्ष में अपने जीवन का लम्बा सफ़र विदेशों में गुज़ार कर मार्च 1939 में वापस स्वदेश आए वापस लोटने पर कराची बन्दरगाह पर उनका स्वागत किया गया।
मौलाना उबैदुल्लाह सिन्धी का आखिरी समय:-
देश वापस लौटने तक वह अपनी ज़िन्दगी का अधिकांश हिस्सा विदेशों में की राह तलाश करते हुए अपने जीवन के अंतिम पड़ाव बढ़ापे को पहुंच केधो वह देश के बंटवारे के कड़े विरोधी थे। वह नहीं चाहते थे कि जिस मुल्क की आजादी के लिए हिन्दू और मुसलमानों ने एक साथ अपना खून बहाया, धरने हिये आन्दोलन किए. देश-विदेशों की राहों में भटके, उसका किसी भी आधार पर बटवारा किया जाए।
अपनी बढ़ती हुई ज़ईफ़ी, बीमारी और कमज़ोरी के बावजूद उन्होंने गांव-गांव घूम कर मुल्क के बंटवारे की योजना का कड़ा विरोध किया। उन्होंने बंटवारे के नुकसान को ख़ुद भी समझा और देशवासियों को भी समझाया। मौलाना उबैदुल्लाह सिन्धी का बंटवारे का विरोध बेअसर रहा।
भारत के उस स्वतन्त्रता सेनानी ने अपना पूरा जीवन देश सेवा में 25 अगस्त 1944 को इस दुनिया को अलविदा कह दिया।
यदि आप इस तरह का इतिहास पढ़ने में रूचि रखते है तो इस ब्लॉग को फॉलो करें |
- Bihar Election 2025
- Career Guidance
- Country
- Education
- india history
- Literature
- MCQ QUIZ
- NCERT का इतिहास
- Politics
- SSC CGL
- इतिहास के पन्ने
- झारखण्ड का इतिहास
- देश दुनियां
- प्राचीन भारत का इतिहास
- बुंदेलखंड का इतिहास
- भारतीय इतिहास
- भारतीय राजनीति इतिहास
- भारतीय राजनेता
- सामाजिक अध्यन