भारत के इतिहास में अपने गुप्तकाल को अपने आप में बहुत महान कहा जाता है, इस काल में नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना कुमारगुप्त में की, तथा इसमें अध्यन के लिए जावा, चीन, कोरिया आदि देश के लोग आते थे इस तरह यह देश विदेश के विद्यार्थियों के लिए शिक्षा का प्रमुख केंद्र था यहाँ लगभग 10000 विध्यार्थी शिक्षा प्राप्त करने आते थे और यहाँ के शिक्षक ज्ञान के लिए प्रसिद्ध थे एवं छात्रों के लिए कठोर नियम थे जिनका पालन करना अतिआवश्यक था |
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गुप्तकाल में शिक्षा व्यवस्था:-
- यहाँ धर्म- दर्शन, चिकित्सा, गणित, नैतिक शिक्षा आदि विषयों का अध्यन होता था स्नातक वालों को देश- विदेश में समान प्राप्त था| यहाँ के अध्यापकों में शीलभद्र, धर्मपाल, गुणमती, देकनाग,,बसुबंधु असंग आदि प्रमुख थे हर्ष वर्धन के समय शीलभद्र यहां के कुलपति थे तथा यहाँ हेनसांग ने शिक्षा प्राप्त की
- नालंदा विश्वविद्यालय में शिक्षा, आवास एवं भोजन की व्यवस्था निशुल्क थी, शासकों एवं व्यापारियों द्वारा दिए गये दान से विश्वविद्यालय का खर्च चलता था, यहां तीन बड़े पुस्तकालय रत्न सागर, रत्नोदधि एवं रत्न रंजन मौजूद थे |
- तक्षशिला विश्वविद्यालय से यह इस रूप में अलग है कि यहाँ एक प्रधान तंत्र, निर्धारित पाठ्यक्रम एवं प्रवेश परीक्षा मौजूद थी जबकि तक्षशिला अनेक शिक्षण संस्थानों का केंद्र था, उस तरह नालंदा आधुनिक विश्वविद्यालय के समान दिखाई देता है |
- नालंदा के विद्यार्थियों द्वारा विश्व में भारतीय संस्कृति का प्रचार- प्रसार हुआ, तिब्बत के राजा के आमंत्रण पर शांति रक्षक एवं पद्य संभव जैसे विद्वान तिब्बत गये और वहां भारतीय धर्म संस्कृति का प्रचार प्रसार किया |
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FAQ
इसकी स्थापना गुप्तकाल में कुमारगुप्त ने की, तथा इसमें अध्यन के चीन, जापान और कोरिया जैसे देशों के विध्यार्थी शिक्षा लेने के लिए आते थे |
राजधानी थानेश्वर थी |
यहाँ के अध्यापकों के नाम निम्नलिखित हैं ;
1- शीलभद्र
2- धर्मपाल
3- गुणमती
4- देकनाग
5- बसुबंधु असंग
यह नालंदा विश्वविद्यालय के अध्यापकों में से एक थे |
यह नालंदा विश्वविद्यालय के अध्यापकों में से एक थे |
इसके प्रमुख नाम निम्नलिखित है –
1- पुष्पभूति वंश
2- वर्धन वंश
इनके दो पुत्र थे ;
1- पुत्र राज्यवर्धन
2- पुत्र हर्षवर्धन
पुत्री राज्यश्री