नवाब नूर सनद खान, मुस्लिम क्रांतिकारी हरियाणा [फांसी की पूरी दांस्ता] pdf
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नवाब नूर सनद खान, मुस्लिम क्रांतिकारी हरियाणा [फांसी की पूरी दांस्ता] pdf

by Srijanee Mukherjee
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1857 की प्रथम जंगे आज़ादी, एक एसा अवसर था जिस में अधिकांश आजादी के चाहने वाले अपने बदले की आग बुझाने के लिए मैदाने जंग में कूद पड़े थे। चाहे वह शहर का रहने वाला हो या ग्रामवासी शिक्षित हो या अशिक्षित, चाहे वह रियासत का नवाब हो या रिआया, देश को आजाद कराने का सुनहरा मौका जान कर अपना खून बहाने, अपना धन लुटाने और देश को आजाद कराने के लिए उन्होंने अपनी जान की बाजी लगा दी। इस लेख में नवाब नूर सनद खान की दांस्ता को पढ़ेगे |

नवाब नूर सनद खान का जन्म :-

इनका जन्म हरियाणा में हिसार के पास रुणिया नामी छोटी सी रियासत के नवाब थे। भले ही वह छोटी रियासत के नवाब रहे हो, परन्तु उनके दिल में परे देश को आजाद कराने का जज्बा भरा हुआ था। सन् 1857 की लड़ाई देश के एक भाग तक ही सीमित न रह कर सम्पूर्ण भारत देश में फैल गई थी। उसमें हरियाणा का भी पूरा क्षेत्र शामिल था।

मराठों और ईस्ट इंडिया कम्पनी के मध्य समझौते के अनुसार हरियाणा सन् 1803 में ही कम्पनी के कब्जे में जा चुका था। इसी कारण नवाब नूर सनद खान की रियासत भी सन् 1818 में अंग्रेज़ी कब्जे में चली गई। अंग्रेज़ शासन ने नवाब के गुजारे के लिए रू. 5700/– प्रति वर्ष के हिसाब से पेशन मंजूर कर दी। नवाब साहिब को यह स्थिति बहुत अपमान जनक लगती थी। अन्य देशवासियों की तरह नवाब एवं वहाँ के अवाम भी अंग्रेज़ शासन की ज्यादतियों से तंग आ चुके थे। प्रत्येक व्यक्ति के दिल में बदले की भावना एवं अंग्रेज़ों से पीछा छुड़ाने का लावा धधक रहा था। फिरंगियों के दमन चक्र के ख़िलाफ़ देश के अलग-अलग स्थानों पर क्रांतिकारियों और अंग्रेज़ों के बीच झडपें होती रहती थीं।

नवाब नूर सनद खान तथा ईस्ट इण्डिया कंपनी और हरियाणा :-

इसके बाद भी प्रत्येक क्रांतिकारी के दिल में पूरी तरह से बदला लेने की कसक बनी रहती थी। नवाब नूर सनद ख़ान भी ऐसे मौके की तलाश में रहते थे कि कैसे फ़िरंगियों का शासन उखाड़ फेंका जाए। अपने ही देश में विदेशियों की गुलामी में रहना वह एक अभिशाप मानते थे। इन्ही कारणों से चारों ओर असंतोष का वातारण बना हुआ था।

नवाब नूर सनद ख़ान का अपने क्षेत्र में बहुत असर था। वहां के अवाम उनको बहुत सम्मान देते और उनका हुक्म मानते थे। इधर फिरंगियों के जुल्म व सितम सहते हुए 1857 में एक दिन वह भी आ गया, जब कि देशवासियों के दिलों में धधक रहा ज्वालामुखी फट पड़ा। क्रांतिकारियों ने अंग्रेज़ों की चारों ओर मार-काट, लूट-पाट आरंभ कर दी। नवाब नूर सनद खान ने भी अपने दिल की लगी पूरी करने के लिए फ़िरंगियों के ख़िलाफ़ झंडा बुलंद कर दिया। चारों ओर की ख़बरें सुनकर सुपरिटेंडेंट राबर्टसन ने रुणिया के नवाब साहिब से मुलाकात कर उनके क्षेत्र में विद्रोह पर काबू रखने के लिए उनसे कहा। नवाब नूर सनद खान ने उस समय चालबाज़ अंग्रेज़ों से चालाकी से काम लिया।

नवाब नूर सनद खान तथा राबर्टसन :-

उन्होंने राबर्टसन की बात मान कर विद्रोहियों से निपटने के बहाने अधिक संख्या में सेना और लड़ाई का सामान इकट्ठा करने के लिए उनसे धनराशि प्राप्त की। नवाब साहिब ने मौके का फायदा उठाकर अपनी सेना की संख्या बढ़ा ली। नवाब के उस पुख्ता प्रबंध से राबर्टसन भुलावे में आकर निश्चिंत हो गया। उसे यह अंदाज़ा नहीं था कि नवाब, चालाक अंग्रेज़ को उसकी ही चाल और जाल में फंसा लेंगे। ग़दर की लहर जैसे ही उनके क्षेत्र सिरसा में पहुंची नवाब साहिब ने अपनी सोची-समझी कार्यवाही शुरू कर दी। उन्होंने रौबर्टसन को उस समय अचम्भे में डाल दिया जब कि उन्होंने अपनी सेना द्वारा क्रांतिकारियों की मदद करने और अंग्रेजों को मार भगाने के आदेश दे दिया

नवाब नूर सनद ख़ान का आंदोलनकारियों को इतना बड़ा सहयोग था कि इसके कारण सिरसा क्षेत्र में अंग्रेजों की मार-काट आरंभ हो गई, उनके जाने को लूट लिया गया। जिन इंक़िलाबियों को अंग्रेज़ों ने बंदी बना लिया था, उन्हें रिहा करा लिया गया। सिरसा से फिरंगियों के पैर उखड़ गए। वहां से फिरंगियों का नाम व निशान मिटा दिया गया। सम्पूर्ण सिरसा नवाब नूर सनद खान के कब्जे में आ गया। स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा सिरसा में जीत का झंडा फहरा दिया गया। यहां तक कि बहादुरशाह जफर की जानिब से नूर सनद खान को सिरसा का नवाब घोषित कर दिया गया।

इतिहास के पन्ने जिसके बारे में वर्तमान के युवाओं को जानना बेहद जरुरी :-

फिरंगी शासन, नूर सनद खान की इतनी बड़ी कामयाबी को आसानी से हजम नहीं कर सका। जैसे जैसे वह अपने आप को दोबारा मजबूत करते गए, विद्रोहियों पर उनकी पकड़ भी मजबूत होती गई। अंग्रेज किसी भी हालत में भारत से अपना कब्जा हटाने को तैयार नहीं थे। वे अपना अवैध कब्जा बनाए रखने के लिए संघर्ष करते रहे। यहां तक कि जनरल कोटलैंड बड़े लश्कर और हथियारों के साथ नर सनद खान से बुद्ध के लिए आ गया। नवाब साहिब और उनकी वतन प्रेमी सेना ने रुणिया के करीब ग्राम “उद्याम में अंग्रेजी सेना का डट कर मुकाबला किया। दोनों ओर से बहुत खून खराबा हुआ। आज़ादी के मतवाले तो वैसे भी अपनी जानें देश पर निछावर करने के इतिज़ार में रहते थे। वह तो सदैव ही देश की शान एवं आन पर मर मिटने को तैयार थे।

जिंदगी का आखिरी सफ़र :-

नवाब नूर सनद खान ने बहुत बहादुरी के साथ अंग्रेज फौज का मुकाबला किया। वह अपनी जान की परवाह किए बगैर देश की आज़ादी के लिए अपनी वीर सेना के साथ मैदाने जंग में मुक़ाबला करते रहे। इस लड़ाई में जहां नवाब साहिब की फ़ौज द्वारा अंग्रेज़ सैनिक मौत के घाट उतारे गए, वहीं सैकड़ों की संख्या में उनके भी सैनिक देश पर शहीद हो गए।

देशी सेना के पास हिम्मत, हौसला और देश पर शहीद होने का भरपूर जज़्बा था, परन्तु जंगी सामान की कमी थी। जबकि सैनिक तोपे गोले बारूद और लड़ाई की सम्पूर्ण आधुनिक सामग्री से लैस नवाब साहिब के सैनिकों के शरीर में जब तक ताकत और उनके पास लड़ाई का सामान रहा. वह फिरंगियों को बराबर मारते और ख़ुद भी मरते रहे। जंगी सामान के अभाव के कारण उनकी फ़ौज को हार का मुहं देखना पड़ा। अंग्रेजी सेना ने उन पर काबू पा कर गिरफ्तारियां शुरू कर दीं। देशी सैनिक इधर-उधर अपनी जानें बचाने में लग गए। इतना संघर्ष करने के बाद भी लड़ाई के सामान की कमी के कारण नवाब नूर सनद ख़ान को पराजय का सामना करना पड़ा। ऐसे हालात में उन्होंने भी खुद को अंग्रेज सैनिकों से छुपा लिया।

नवाब नूर सनद खान को फांसी के फंदे पद लटका दिया गया :-

अंग्रेजों को तो अपने दुश्मन, आजादी के मतवाले रुणिया के नवाब की तलाश थी। उन्होंने नवाब को तलाश करके उन्हें भी बंदी बना लिया। उनके विरुद्ध पंजाब के न्यायाधीश मोंटगुमरी की अदालत में मुक़द्दमा कायम किया गया। नवाब साहिब को इसका अंजाम पहले से ही मालूम था। जिस तरह उन्होंने जंग के मैदान में अपनी वीरता के कारनामे दिखाए, उसी प्रकार बंदी बनाए जाने के बाद भरपूर साहस से काम लिया।

वह समझ गए थे कि अब मौत के गले लगने के अलावा कोई रास्ता नहीं रहा। ब्रिटिश अदालत के पास वतन पर कुर्बान होने वाले आज़ादी के चहेते सपूतों के लिए फांसी के फंदों के अलावा कोई सजा नहीं थी। अंततः फिरंगी अदालत ने नवाब नर सनद खान को मौत की सजा सुना दी। आंदोलन के समय उनके चाचा गौहर अली खान ने भी उनका साथ दिया था। अंग्रेज ने बदले की भावना में गौहर अली खान को भी फांसी के फंदे पर लटका दिया।

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