पेशवा बाजीराव द्वितीय [मराठा सरदारों का इतिहास] pdf download
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पेशवा बाजीराव द्वितीय [मराठा सरदारों का इतिहास] pdf download

by Srijanee Mukherjee
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प्रथम आंग्ल मराठा युद्ध के 21 वर्ष के पश्चात् 1803 ई. में द्वितीय आंग्ल मराठा युद्ध की शुरुआत  होती है इसका  कारण- बसीन की अपमानजनक संधि का मराठा सरदारों द्वारा विरोध हुआ था जिसके कारण द्वितीय आंग्ल मराठा युद्ध शुरू होता है | बसीन की संधि – पेशवा द्वितीय और नाग्रेजों के साथ हुयी थी, यह संधि 1802 ई. में अंग्रेजों की महत्वकांक्षा और पेशवा वाजीराव द्वितीय की अदूरदर्शिता का परिणाम था |  

अंग्रेजों की महत्वकांक्षा- लार्ड वेलेजली :-

1798 ई. में, बंगाल का गवर्नर जनरल नियुक्त होकर आया था  यह साम्राज्यवादी प्रवृति का व्यक्ति था इसी समय में यूरोप में नेपोलियन छाया हुआ था | नेपोलियन का भय यूरोप के बाहरअंग्रेजों के जहाँ-जहाँ भी उपनिवेश थे वहां भी बना हुआ था इसीलिए लार्ड वेलेजली को लगता था कि नेपोलियन के भय से मुक्त होकर सबसे अच्छा तरीका यह है कि भारत के अधिक से अधिक शासक के संरक्षण में आ गये थे इसके लिए वेलेजली ने सहायक संधि की नीति अपनाई थी | हैदराबाद का निजाम पहला भारतीय था जिसने सहायक संधि की नीति को अपनाया था किन्तु नाना फरणवीस ने मराठों को सहायक संधि से बचाए रखा किंतु 1800 ई. में उनकी मृत्यु हो गयी |

पेशवा बाजीराव द्वितीय की अदूरदर्शिता :-

माधवराव नारायण राव द्वितीय ने 1795 ई. में, आत्महत्या कर ली तत्पश्चात रघुनाथ राव उर्फ़  राघोबा के बेटे ने पेशवा पद जिसका नाम बाजीराव द्वितीय था | पेशवा बाजीराव द्वितीय एक अयोग्य व्यक्ति था ,जब तक नाना फड़णवीस जीवित था तव तक पेशवा बाजीराव द्वितीय अपनी मनमानी नहीं कर पा रहा था लेकिन 1800 ई. में नाना फड़णवीस के मृत्यु के पश्चात् पेशवा बाजीराव स्वतंत्र हो गया और अपनी मनमर्जी पर उतारू हो गया |

पेशवा बाजीराव द्वितीय अपनी अपना सर्वोच्चता सिद्ध करने के लिए मराठा सरदारों को लड़ाने लगा और उनके बीच मध्यस्थता की भूमिका भी निभाने लगा लेकिन वह स्वयं में उलझ गया (इस समय तक मराठे स्पष्ट रूप से पांच भागों में विभक्त हो गये थे) |

दौलतराव सिंधिया व यसवंत राव होल्कर :-

यह दोनों ही पुणे में अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करना चाहते थे इसमें सिंधिया सफल रहा था उसका बाजीराव द्वितीय पर उसका नियंत्रण स्थापित हो गया |

1801 ई. में पेशवा बाजीराव द्वितीय ने जसवंत राव होल्कर के भाई की निर्मम हत्या करवा  दी, इससे जसवंत राव होल्कर बहुत क्रोधित हो जाता है और पुणे पर आक्रमण कर सिंधिया या ओएश्व को परास्त कर वहां पर अपना अधिकार कर लिया इसी दौरान पेशवा बाजीराव द्वितीय ने बसीन में शरण ली|

बसीन की संधि 31 दिसंबर 1802 ई.:-

  1. पेशवा ने ब्रिटिश संरक्षण स्वीकार कर भारतीय व अंग्रेज पदातियों की सेना पुणे में रखना स्वीकार कर लिया |
  2. पेशवा ने सूरत नगर कंपनी को दिया |
  3. पेशवा ने निजाम से चौथ प्राप्त करने का अधिकार छोड़ दिया और गायकवाड के विरुद्ध युद्ध ना करने का वचन दिया | दोनों से विवाद होने पर कंपनी की मध्यस्थता को स्वीकार कर लिया |
  4. पेशवा अंग्रेज विरोधी सभी यूरोपीयों को अपनी सेना से निकाल देगा |
  5. अपने विदेशी मामले कंपनी के अधीन कर देगा |

यह संधि अंग्रेजों और मराठों के बीच की गयी प्रथम सहायक संधि थी तथा अंग्रेजों ने मराठा सरदारों होल्कर, सिंधिया और भोसले को अपने अधीन करना चाहते थे | मराठा सरदारों ने इसे अपमान जनक समझा और युद्ध की तैयारियों में लग गया, नागपुर के भोसले ने अनेजों को ललकारा और गायकवाड और होल्कर तटस्थ रहे |

FAQ

 बसीन की संधि कब हुयी थी?

बसीन की संधि – पेशवा द्वितीय और नाग्रेजों के साथ हुयी थी, यह संधि 31 दिसंबर 1802 ई. में अंग्रेजों की महत्वकांक्षा और पेशवा वाजीराव द्वितीय की अदूरदर्शिता का परिणाम था |

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