मध्य प्रदेश के रियासतें [ निबंध ]
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मध्य प्रदेश की रियासतें [ निबंध ]

by रवि पाल
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जब हिंदुस्तान के उपर अंग्रेजों का शासन था उस समय देश और दुनियां में अलग- अलग संगठन आन्दोलन कर रहे थे जिसमें चाहे स्वदेशी का आन्दोलन हो या फिर मध्य प्रान्त का जंगल बचाओं , या फिर झारखण्ड में मुंडा आन्दोलन हो , प्रत्येक जगह संगठन और रियासतें अपने स्तर पर आन्दोलन कर रहे थे आज का लेख मध्यप्रदेश के उपर है जो एक जमाने में मध्य प्रान्त के नाम से जाना जाता था मध्य प्रदेश की रियासतें [ निबंध] के बारे  में जानते है|

मध्य प्रदेश की रियासतें कुछ इस प्रकार है :-

मध्य प्रान्त की रियासतें तो बहुत है कुछ अंग्रेजों की चमचागिरी कर रही थी तो कुछ रियासतें ऐसी भी थी जो क्रान्तिकारियों का साथ दे रही थी इस सन्दर्भ में नईमउद्दीन के विरुद्ध जन-आन्दोलन, दतिया प्रजा मण्डल का अधिवेशन, बिजावर एवं चरखारी प्रजा मण्डल, बिजावर एवं चरखारी प्रजा मण्डल तथा राज्य शासन ने प्रजा मण्डल आदि के बारे में है|

नईमउद्दीन के विरुद्ध जन-आन्दोलन:-

दतिया में जब जन-जागृति आन्दोलन ने गति पकड़ी तो गोविन्द सिंह ने अग्रेज़ों से सलाह माँगी। उनकी सलाह पर राजा ने दीवान देवीसिंह को पदव्युत कर दिसम्बर 1943 में नईमउद्दीन को दीवान बनाया जो एक योग्य प्रशासक एवं सुधारवादी प्रवृत्ति का कठोर दीवान था। इससे पूर्व वह दे चरखारी रियासत में अपनी निरंकुशता का परिचय थकून राजा को निरंकुश दीवान का मिलना जनता पर अत्याचारों की संकेत था। इसीलिए पूर्व दीवान कालका प्रसाद सक्सेना आन्दोलनकारियों से मिल गए। दतिया में प्रजा मण्डल स्थापित किया गया। झाँसी में दतिया रिलीफ कमेटी का गठन किया गया। पं. लखपतराम शर्मा ने लगभग पन्द्रह बुलेटिनों के द्वारा नईमुद्दीन के कारनामों को उजागर किया।

उन्होंने लिखा “दीवान नईमउद्दीन के काले कारनामों के बारे में लिखा जाए तो कागजों की एक रिम भी कम पड़ेगी।”

अपने विरोध का सामना करने दीवान ने मुस्लिमों के सहयोग से “अन्जुमने इस्लामिया” संगठन निर्मित किया। इस प्रकार साम्प्रदाि भड़काने के प्रयास किए। वह सफल नहीं हो सका। 6 से 8 अक्टूबर तक प्रजा मण्डल के राजनैतिक सम्मेलन के क्रान्तिकारी नेताओं पं. परमानन्द स्वामी स्वराज्यानन्द, पं. लालराम बाजपेयी आदि ने नईमउद्दीन के निरंकुश शासन की खुली आलोचना की हिन्दू-मुस्लिमों ने मिलकर साप्रदायिकता फैलाने वाले तत्त्वों को खत्म करने की मांग की। जुलूस निकाले गए। “नईमउद्दीन को निकाल दो” एवं “नईमउद्दीन दतिया छोड़ो के गरे लगाए गए। इस आन्दोलन को संगठित करने हेतु “दतिया पीपुल्स कमेटी” का गठन किया गया। आन्दोलन की व्यापकता को देखते हुए गोविन्द सिंह ने 8 नवम्बर 1946 को नइमउद्दीन को दीवान पद से हटा दिया।

इस परिस्थिति में 11 नवम्बर 1946 को मध्य भारत के रेजीडेण्ट “सर वाल्टर कैम्पबेल” दतिया आए। उन्होंने दतिया नरेश के फैसले को कर दिया। दीवान नईमउद्दीन को पुनः दीवान पद पर बहाल कर दिय रद्द गया। आन्दोलनकारियों का दमन प्रारम्भ हो गया। सम्पूर्ण दतिया में धारा 144 लगा दी गई। एक बार पुनः जनता दीवान के अत्याचारों का शिकार होने लगी। पीपुल्स पार्टी के प्रमुख कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। इस स्थिति में दतिया प्रजा मण्डल के प्रधानमन्त्री रामकृष्ण वर्मा ने पीपुल्स पार्टी का सहयोग किया। देशी राज्य लोक परिषद् के सचिव सैयद हामिद अली दतिया आए। पीपुल्स कमेटी ने बतौर प्रजा मण्डल देशी राज्य लोक परिषद् की सम्बद्धता स्वीकार की।

इस प्रकार दतिया आन्दोलन की गूंज अखिल भारतीय स्तर पर गूजने लगी। ब्रिटिश सरकार ने कैम्पबेल को हटाकर ब्राडसा को रेजीडेण्ट नियुक्त किया। कर्नल वुडवर्ड को पॉलिटिकल एजेण्ट नियुक्त किया गया। समझौता वार्ताएँ की गई।

दतिया नरेश ने 4 दिसम्बर 1946 को पीपुल्स कमेटी को समझ के लिए बुलाया। धारा 144 हटा ली गई। अधिकांश आन्दोलनकारियों को रिहा कर दिया गया। समझौता वार्ता के पश्चात् नईमउद्दीन को दीवान पद से हटाकर 12 दिसम्बर 1946 को रिटायर्ड एडीशनल कमिश्नर श्री विशनचन्द्र माथुर को नया दीवान नियुक्त किया गया। दतिया नरेश गोविन्द सिंह घोषणा की कि मैं अपने राज्य के भावी शासन के लिए विधान बनाने के लिए एक कमेटी बनाना चाहता हूँ इसमें सब हितों का प्रतिनिधित्व होगा। विधान निर्माण का कार्य यह कमेटी छ: माह में पूर्ण कर लेगी इस प्रकार दतिया जन-आन्दोलन ने अपने उद्देश्यों में बहुत कुछ सफलता प्राप्त कर ली।

दतिया प्रजा मण्डल का अधिवेशन:-

दतिया प्रजा मण्डल के अधिवेशन में पारित प्रस्तावों ने दतिया राज्य शासन का ध्यान आकर्षित किया। यह अधिवेशन दतिया के ग्राम बीकर में 24 से 26 अप्रैल 1945 को हुआ। इसमें नवीन कार्यकारिणी के गठन के साथ ही निम्न प्रस्ताव स्वीकृत किए गए
1. दतिया प्रजा मण्डल ने मध्य भारत देशी राज्य लोक परिषद् तथा अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद् के नेतृत्व को स्वीकारते हुए उससे सम्बद्धता के लिए स्वीकृति दी।
2. यह माँग की गई कि भारतीय और रियासती जनता की पूर्ण उन्नति और विकास के लिए आवश्यक है कि भारतवर्ष स्वतन्त्र हो । रियासते भारतीय संघ में सम्मिलित हो तथा रियासती प्रदेशों में पूर्ण उत्तरदायी शासन स्थापित हो। दतिया के राजा से अनुरोध किया गया कि तत्कालीन लेजिस्लेटिव काउंसिल असन्तोषजनक है। अतः इसके स्थान पर पूर्ण उत्तरदायी शासन की स्थापना शीघ्र अतिशीघ्र की जाए।

3. निम्न श्रेणी के कर्मचारियों के वेतन व भत्तों के प्रति असन्तोष व्यक्त करते हुए, उनमें वृद्धि की शासन से माँग की। शासन में व्याप्त रिश्वतखोरी को समाप्त करने की माँग की गई। ग्राम पंचायतों तहसील बोर्ड व नगरपालिका में सुधार और उनके अधिकार विस्तृत करने की शासन से माँग की।

4. निर्माण कार्य में वृद्धि, मानवों के लिए एवं पशुओं के लिए चिकित की स्थापना, अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा की व्यवस्था एवं उद्योग-धन्थों में वृद्धि की माँग की गई। वितरण व्यवस्था में सुमार तथा निर्यात पर प्रतिबन्ध लगाने की मांग की। दतिया प्रजा मण्डल के इस अधिवेशन में की जाने वाली प्रजा मण्डल के सदस्यों की दूरदर्शिता, राजनीतिक कौशल एवं योग्यता को दर्शाती है।

बिजावर एवं चरखारी प्रजा मण्डल:-

बड़ी रियासतों में प्रजा मण्डलों की स्थापना एवं आन्दोलनों का प्रभाव बुन्देलखण्ड की अन्य रियासतों पर भी पड़ा। 1946 में बिजावर रियासत में श्री रामकृष्ण पालिया के नेतृत्व में प्रजा मण्डल गठित हुआ। 1948 में ही चरखारी में भी प्रजा मण्डल का गठन हुआ। मध्य भारत देशी राज्य लोक परिषद् के प्रधानमन्त्री श्री लालाराम बाजपेयी चरखारी आए। उन्होंने चरखारी राज्य प्रजा-मण्डल को मान्यता प्रदान की। फरवरी 1947 में चरखारी प्रजा मण्डल का चुनाव हुआ। कामता प्रसाद सक्सेना प्रधानमन्त्री एवं मन्नूलाल द्विवेदी अध्यक्ष बने ।मध्य प्रदेश के रियासतें अपने आप में बहुत अच्छा विषय है सबको जानना चाहिए

छतरपुर रियासत:-

मध्य प्रदेश के रियासतें में से यह रियासत बहुत उपयोगी साबित हुयी और देशी राज्य लोक परिषद् के अधीन 1945 तक बुन्देलखण्ड की लगभग सभी महत्त्वपूर्ण रियासतों में प्रजा मण्डलों का गठन हो चुका था। इसके अधीन राजनीतिक चेतना का प्रसार भी किया जाने लगा था। अभी छतरपुर एक ऐसी रियासत थी जहाँ प्रजा मण्डल कार्यालय पर तिरंगा नहीं फहराया जा सकता था। सभाओं पर प्रतिबन्ध था ।

इसीलिए 18 अप्रैल 1945 को शहर के बाहर एक सभा की गई। शासन द्वारा इस सभा में बाधा डालने का प्रयास किया गया। आन्दोलनात्मक गतिविधियाँ बन्द करने की चेतावनी दी गई। धमकी दी गई कि यदि आन्दोलनात्मक गतिविधियाँ बन्द नहीं की गई तो चरण-पादुका हत्याकाण्ड 1931 पुनः दोहराया जाएगा। जनता धमकियों के कार्यालय पर झण्डा लगाने की अनुमति प्रदान कर दी। अन्य समस्याङ का भी समुचित समाधान करने का आश्वासन दिया| लोगों का उत्साह घटने के स्थान पर बढ़ने लगा। शासन पं. रामसहाय तिवारी को वार्ता हेतु बुलाया।

यह छतरपुर रियासत की जनता के आन्दोलन की जीत थी। चारों और जन-जागृति की लहर प्रसारित हुई। महाराजपुर में स्वामी स्वराज्यानन्द तथा स्वामी ब्रह्मानन्द एवं 2 अक्टूबर 1946 को राजनगर में रज्जब अली ‘आजाद’ महोबा के ओजस्वी भाषणों के साथ विशाल सभाएं हुई। नौगाँव में. रामसहाय तिवारी ने छात्रों की एक सभा को सम्बोधित किया। इस प्रकार नौगाँव में छात्रों की सहायता से प्रजा मण्डल का कार्य आरम्भ हो गया।

बाद में छतरपुर प्रजा-मण्डल का पुनर्गठन किया गया। कुँवर हीरा सिंह अध्यक्ष, मदन गोपाल चौरसिया उपाध्यक्ष, दीनदयाल चौरसिया प्रधानमन्त्री एवं पं. रामसहाय तिवारी उपप्रधानमन्त्री नियुक्त किए गए। इन सभी ने जनता को संगठित कर उनमें राष्ट्रवादी भावनाएं जाग्रत की। गाँव-गाँव इन्होंने पैदल घूमकर रियासत में उत्तरदायी शासन की स्थापना हेतु लोगों को जाग्रत किया। यह मध्य प्रदेश के रियासतें थी जिन्होंने देश के लिए बहुत कुछ किया

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