वृद्धि एवं विकास का अर्थ अभिवृद्धि तथा विकास के सिद्धांत समझेंगे। मानव विकास का अध्यन मनोविज्ञान की जिस शाखा के अंतर्गत किया जाता है उसे/शाखा को बाल-मनोविज्ञान या ‘बाल-विकास’ कहा जाता है। इसे Principal of growth and development कहते हैं |
बाल वृद्धि /अभिवृद्धि (growth):-
इसको निम्लिखित तरीके से प्रभासित किया जा सकता है।
- 1- यह एक स्वाभिक प्रक्रिया है।
- 2- गर्भाअवस्था से लेकर प्रौढ़ावस्था तक चलती है।
- 3-वृद्धि(growth) शव्द का प्रयोग कोशीय वृद्धि के सन्दर्भ में किया जाता है।
- 4- वृद्धि (growth) मात्रात्मक होती है।
उदाहरण – लम्बाई, भार, चौडाई तथा आकर आदि।
बाल विकास (Development):-
- 1- स्वतः रूप से जीवनपर्यत चलने वाली प्रक्रिया है।
- 2- शरीर के गुणात्मक परिवर्तनों को विकास (Development) कहा जाता है।
- 3- इसमें बालक का शारीरिक, मानसिक, सामाजिक तथा नैतिक विकास शामिल होता है।
वृद्धि एवं विकास में अंतर (Difference between growth and development):
वृद्धि “ | विकास :- |
जब बच्चे छोटे होते है तब उनकी जिंदगी /आयु की वृद्धि के साथ-साथ निम्नलिखित परिवर्तन होते हैं। 1- शारीरिक एवं व्यवहारिक परिवर्तन 2-मापन योग्य (लम्बाई, चौडाई, भार)आदि 3- वृद्धि की प्रक्रिया जीवन पर्यंत नहीं चलती है। बालक द्वारा परिपकता ग्रहण करने के साथ-साथ यह समाप्त हो जाती है। 4-वृद्धि का अर्थ संकुचित होता है तथा यह विकास का एक ही तत्व या घटक हैं। 5- वृद्धि के फलस्वरूप होने वाले परिवर्तन स्पष्टतः दिखाई देते है। 6- वृद्धि में व्यक्तिगत भेद होते होते है। प्रत्येक बालक की वृद्धि समान नहीं होती है। | बच्चों /शिशुओं का विकास निम्नलिखित तरीके से होता है। 1-शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, व्यवहारिक, नैतिक, संवेगात्मक आदि सभी प्रकार के परिवर्तन। 2- मापन योग्य नहीं केवल अवलोकन योग्य। 3- विकास की प्रक्रिया जीवनपर्यन्त चलती है। 4-विकास का अर्थ व्यापक होता है। 5- विकास के फलस्वरूप वाले परिवर्तन स्पष्टतः दिखाई नहीं देते है। 6-विकास में समानता पायी जाती है किन्तु इसकी सीमा आदि में अंतर होता है। |
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वृद्धि एवं विकास को प्रभावित करने वाले कारक:-
- 1- वंशानुगत
- 2- पोष्टिक भोजन
- 3- शुद्ध हवा तथा प्रकाश
- 4- यौन विभेद
- 5- बुद्धि
- 6- अतः स्त्रावी ग्रंथियों
- 7- रोग तथा चोट
- 8-पारिवारिक परिस्थितियाँ
- 9- संस्कृति
बाल विकास के सिद्धांत (principal of child development):-
- 1- निरंतर विकास का सिद्धांत (Principal of Continuous Development)
- 2- एकीकरण का सिद्धांत (principle of integration)
- 3- परस्पर संबंध का सिद्धांत ( principle of Inter- relation)
- 4-बुद्धि और विकास की गति की दर एक सी नहीं रहती ( Rate of Growth and Development is not uniform)
- 5- विकास सामान्य से विशेष की ओर चलता है (Development proceeds from General of specific Responses)
FAQ
कोल के अनुसार विकास की अवस्थायें निम्नलिखित हैं -:
1- शैशवास्था – बालक (जन्म से 2 वर्ष तक)
2- प्रारंभिक बाल्यावस्था – बालक (2 वर्ष से 5 वर्ष तक)
3-मध्य बाल्यावस्था- बालक (6 वर्ष से 12 वर्ष तक), बालिका (6वर्ष से 10 वर्ष तक
प्रसवपूर्व (Pre-Natal Stage) को 9 महीने या 280 दिन – यब अवस्था माता के गर्भाधान (Conception) से शुरू होती है।
1-शारीरिक विकास (Physical development)
2- मानसिक विकास (mental development)
3- सामाजिक विकास (emotional development)
4- नैतिक विकास (moral Development)
1-यह बच्चे के जन्म से 5 वर्ष की स्थित में शैशवास्था कहते हैं, इस अवस्था में शिशु पूर्ण रूप से माता-पिता पर निर्भर रहता हैं तथा उसका व्यवहार मूल प्रवृत्तियों पर आधारित होती है।
2-इस अवस्था में जिज्ञासा (Curiosity) ज्यादा होती है।
3- इस अवस्था में “आत्मप्रेम की भावना” (Feeling of self love) होती है।
4- इसे खिलौने की आयु (Toy age) भी कहा जाता है।
5- इसमें बच्चा अनुकरण (Limitation) द्वारा सीखता हैं।
1- इसे तार्किक चिंतन (logical Thinking) की अवस्था कहा जाता है।
2- इसे आरंभिक स्कूल की age कहा जाता है।
3- तथा इसे गंदी अवस्था भी कहा जाता हैं।
4- इसमें बच्चे की आयु 6- 12 वर्ष होती है।
5- इसे खेलो अवस्था (Ganes stag कहा जाता है।
6- इस अवस्था में संग्रहण (Storage) की प्रवृति विकसत होने लगती हैं।
7- इसे टोली /समूह / गैंग की अवस्था भी कहा जाता है।
8-इसे जीवन का अनोखा काल (Unique Period)भी कहा जाता हैं।
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