Bihar Politics : पूर्णियां विधानसभा (62) का राजनैतिक विश्लेषण
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बिहार चुनाव 2025 : पूर्णियां विधानसभा (62) में NDA या महागठबंधन, कौन जीतेगा |

by Srijanee Mukherjee
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एक ऐसा दंगल जिसे लड़ना तो हर कोई चाहता है लेकिन जीतता कोई एक ही है, बिहार विधानसभा का चुनावी दंगल सज गया है जिसको तीन हिस्सों में बांटा गया। NDA और महागठबंधन एक दूसरे के प्रतिद्वंदी, लेकिन इनका साथ देंगे वाले कुछ दल, लेकिन सवाल यह है कि जीतेगा कौन? पूर्णियां विधानसभा में पिछले 25 वर्षों (2000-2025 तक) से भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार जीते, सवाल यह है 2025 के विधानसभा चुनाव में यहाँ के मतदाता किसे बहुमत देते है।

पूर्णियां विधानसभा 1952 से 1972 तक कांग्रेस

सन 1947 आजादी के बाद, 1951 में पूर्णियां विधानसभा का गठन का गठन हुआ। पहला चुनाव 1952 होने के बाद जिस तरह से केंद्र भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस मुख्य धारा की राजनीति कर रही थी उसी तरह इस विधानसभा में कमलदेव नरायण सिन्हा (kamaldev Narayan Sinha) “जिन्हें प्यार से कमल बाबू के नाम से भी जानते हैं” अपनी राजनीति की पारी शुरू कर चुके थे। इन्होंने लगातार 6 बार (1952, 1957, 1962,1967 1969 1972) जीत हासिल की।

पूर्णियां विधानसभा में जनता पार्टी और CPIM के राजनैतिक सफर की शुरुआत

यह वह दौर था बिहार से लगे हुये प्रदेशों में जयप्रकाश का जेपी आंदोलन अपने चरम पर होने के कारण बिहार में जनसंघ, वामपंथी और काम्युनिस्ट दल अपने चुनाव प्रचार में लगे हुये थे, इनका मानना था यदि कांग्रेस के मतदाताओं को अपने तरफ आकर्षित करना है तो यही सही समय है इसीलिए 1977 में पूर्णिया विधानसभा से जनता पार्टी के उम्मीदवार देव नाथ राय (Dev Nath Roy) विजय हासिल की।

काम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया (Communist party of India, Marxist)

यह दौर अजीत सरकार, माधवी सरकार का था लेकिन 14 जून 1998 में काम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया के कद्दावर नेता की हत्या के बाद बिहार की राजनीति हिल गयी थी जिस तरह से हत्या के बाद पूर्णियां की राजनीति में बदलाव हुआ और बीजेपी सत्ता में आई, यह राजनीति का अलग पहलू है। अजीत सरकार ने लगातार 4 विधानसभा चुनाव (1980, 1985, 1990, 1995) जीतने से यह बता दिया था राजनीती में दल नहीं, नेता होना चाहिए।

वर्ष 2000 से 2025 तक बीजेपी की सत्ता

  • पिछले 25 वर्षों से बीजेपी सत्ता में है जिसमें राज किशोर केसरी, किरण देवी और विजय कुमार खेमका शामिल है लेकिन वर्तमान के हालत को देखते हुये लगता है NDA की हार दिख रही है।
  • ऐसा माना जाता है और रिसर्च से पता चला है वर्तमान बीजेपी (NDA) विधायक विजय कुमार खेमका की राजनीति का अंत दिख है, यहाँ के मतदाताओं के अनुसार ” विजय खेमका ऐसे विधायक हैं जिनकी जीत में नरेंद्र मोदी जैसे नेता हाथ है,यदि खेमका जी को फिर से टिकट मिलता है तो उनकी हार पक्की है”।

पूर्णियां के लोगों से चुनावी चर्चा

journalismology टीम ने पूर्णियां के अलग -अलग लोगों से बात की जिसमें पाया, बीजेपी विधायक विजय कुमार खेमका का वोट बैंक नहीं है ना ही जनता से सम्पर्क है। मतदाताओं से सवाल और जबाब इस प्रकार हैं |

नमस्कार, अपने विधायक विजय कुमार खेमका के कामों से कितने ख़ुश हैं?

अरे सर, खेमका जी कभी नहीं आते, पता नहीं कैसे जीत गये, लेकिन अच्छे नेता नहीं हैं। जनता ने नरेंद्र मोदी की वजह से वोट कर दिया था लेकिन खेमका अच्छे नेता नहीं है ना ही आगे जीतने की सम्भावना है।

आपको लगता है यदि बीजेपी फिर से टिकट देती है तो जीतने की सम्भावना है?

नहीं, बिल्कुल नहीं, इस चुनाव में जनता बदलाव चाहती है, हमारे नेता सांसद पप्पू यादव हैं वो जहाँ बोलेगे, हम अपना मत करेंगे। इसलिये बदलाव जरूरी है, मुख्यमंत्री कोई भी बने लेकिन पूर्णियाँ की जनता बदलाव चाहती है और बदलाव करेगी।

बिहार में किसकी सरकार देखना चाहते हैं, NDA या महागठबंधन?

मुख्यमंत्री नीतीश जी ठीक ही हैं काम तो किया ही है, रोड, नाला, साफ सफाई लेकिन बदलाव प्रकति का नियम है, वैसे चर्चा तेजस्वी यादव की है लेकिन जीत, हार चुनाव के बाद ही पता चलेगी।

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निष्कर्ष :

जिस तरह से लोगों ने बताया, बीजेपी विधायक विजय कुमार खेमका के कामों से जनता ख़ुश नहीं है, यदि हालांकि अनुमान है बीजेपी इनका टिकट काटकर किसी और नेता को मैदान में उतार सकती है, और यदि फिर से विजय कुमार खेमका को पूर्णिया से टिकट मिलता है तो हारने की सम्भावना ज्यादा है।

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