सागर में 1942 का भारत छोड़ो आन्दोलन [निबंध] मध्य प्रदेश का इतिहास
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सागर में 1942 का भारत छोड़ो आन्दोलन [निबंध ] मध्य प्रदेश का इतिहास

by रवि पाल
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हिंदुस्तान की आजादी से पहले इस देश में हजारों आन्दोलन हुए और लाखों क्रांतिकारियों ने कुर्बानियां दी लेकिन जब वर्तमान में उन आन्दोलनों और इतिहास के बारे  में रिसर्च करते है तो हमें सही तरह के तथ्य बहुत कम मिलते है इसीलिए आज का लेख सागर में 1942 का भारत छोड़ो आन्दोलन के बारे में है इससे पहले अपने देखा किस तरह से महात्मा गाँधी ने यहाँ का दौरा किया ? किस तरह से यहाँ जंगल सत्याग्रह हुआ ? किस तरह से रतौना का आन्दोलन हुआ ?

1942 का भारत छोड़ो आन्दोलन विश्व इतिहास की एक महत्त्वपूर्ण घटना है। इसे सही मायने में एक जन-आन्दोलन कहना उचित होगा। क्योंकि इस दौरान कॉंग्रेस के सभी प्रथम पंक्ति के नेता जेलों में बन्द थे । आन्दोलन का क्रमिक स्वरूप क्या हो इस विषय में नेताओं द्वारा कोई आदेश पीछे नहीं छोड़े गए थे। जनमानस को जिस तरह से लगा, उस तरह से ब्रिटिश शासन का प्रबल विरोध प्रदर्शित किया गया। अतः 1942 के आन्दोलन को अन्तप्रेरित एवं स्वेच्छामूलक सामूहिक आन्दोलन कहना ज्यादा उचित है।

सागर में 1942 भारत छोड़ो आन्दोलन से पहले व्यक्तिगत सत्याग्रह किस तरह से शुरू हुआ था:-

व्यक्तिगत सत्याग्रह के पश्चात् की राजनीतिक गतिविधियों को देखते हुए सर स्टेफोर्ड क्रिप्स 23 मार्च 1942 को भारत आए। उन्होंने अपनी योजना प्रस्तुत की जो क्रिप्स मिशन योजना कहलाती है। काँग्रेस एवं मुस्लिम लीग दोनों ने ही क्रिप्स योजना को अस्वीकृत कर दिया। अब गाँधीजी के विचारों में व्यापक परिवर्तन आया। उनको अंग्रेजों द्वारा भारत छोड़ने का जो विचार आया वह उन्होंने अलेक्जेण्डर नामक अंग्रेज़ को लिखे अपने पत्र में सर्वप्रथम व्यक्त किया। गाँधीजी ने अपने इस विचार का व्यापक प्रचार-प्रसार किया।

काँग्रेस कार्यसमिति की बैठक 5 से 8 अगस्त 1942 तक बम्बई में आयोजित की गई। इस बैठक की अध्यक्षता मौलाना अबुल कलाम आजाद ने की। इसमें “भारत छोड़ो की माँग रखी गई। कार्य समिति की बैठक के उपरान्त बम्बई में ही 7 अगस्त को अखिल भारतीय क बैठक की गई, इसमें 250 सदस्यों ने भाग लिया। इसमें नेहरू ने “भारत छोड़ो का प्रस्ताव प्रस्तुत किया, जिसका समर्थन सर वल्लभभाई पटेल ने किया गाँधीजी ने इसी अवसर पर अपने जीवन का सबसे बड़ा संघर्ष करने जा रहे हैं।

गाँधीजी द्वारा सर्वप्रथम हसि अलेक्जेण्डर को लिखा गया पत्र :-

भारत छोड़ो आन्दोलन का विचार गाँधीजी द्वारा सर्वप्रथम हसि अलेक्जेण्डर को दिनांक 22 अप्रैल 1942 ई. को लिखे पत्र में व्यक्त किया गया था। जिसमें जापानी खतरे के मद्देनज़र अंग्रेज़ों को भारत छोड़ने क सलाह दी गई थी। गाँधीजी के इन्हीं विचारों के अनुरूप 8 अगस्त 1942 ई. को बम्बई के ग्वालिया टैंक मैदान में कॉंग्रेस द्वारा ऐतिहासिक भारत छोड़ो प्रस्ताव प्रस्तुत किया गया, जिसमें गाँधीजी ने अंग्रेजों को भारत छोड़ने तथा भारतीय जनता को करो या मरो का नारा दिया।

गाँधीजी ने कहा एक मन्त्र है, छोटा-सा मन्त्र जो में आपको देता हूँ। इसे आप अपने हृदय में अंकित कर सकते हैं और अपनी साँस-सॉस द्वारा व्यक्त कर सकते हैं। वह मन्त्र है करो या मरो” या तो हम भारत को आजाद कराएंगे या इस कोशिश में अपनी जान दे देंगे। अपनी गुलामी को स्थायित्व देने के लिए हम जिन्दा नहीं रहेंगे। दूसरी ओर सरकार ने ऑपरेशन जीरो ऑवर के तहत गाँधीजी सहित काँग्रेस कार्य समिति के सदस्यों को गिरफ्तार करने की योजना बनाई। 9 अगस्त को प्रातः 4 बजे गाँधीजी अपनी प्रार्थना के लिए तैयार हो रहे थे। बम्बई पुलिस ने उन्हें उनकी पत्नी कस्तूरबा उनके निजी सचिव सरोजिनी नायडू, सुशीला नैयर एवं मीराबेन आदि को गिरफ्तार कर पूना के आगा खाँ पैलेस में भेज दिया।

करो या मरो:-

कॉंग्रेस कार्य समिति के अन्य सदस्यों जवाहरलाल नेहरू, अबुल कलाम आजाद, आसफ अली, गोविन्द वल्लभ पंत, डॉ. प्रफुल्लचंद्र घोष, डॉ. पट्टाभि सीतारमैया, डॉ. सैयद महमूद, आचार्य कृपलानी आदि को अहमद नगर जेल में रखा गया। डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को पटना में नजरबन्द किया तथा कांग्रेसी नेता 15 जून 1945 तक बन्दीग्रह में रखे गए। “हम नेताओं की गिरफ्तारी के पश्चात् प्रान्तीय तथा स्थानीय नेता जो बरफ्तार होने से बच गए थे वे अपने-अपने इलाके में चले गए और समस्त भारत में स्वतःस्फूर्त भारत छोड़ो आन्दोलन आरम्भ हो गया काशी विश्वविद्यालय के छात्रों ने भारत छोड़ो आन्दोलन” का सन्देश फैलाने हेतु घटनाक्रम के दौरान तत्कालीन मध्य प्रान्त के कई भागों के प्रतिनिधि बम्बई के सरदार गृह में ठहरे थे। जिनमें पंडित रविशंकर शुक्ल प्रसाद मिश्र प्रमुख और द्वारका थे । इन नेताओं ने मध्य प्रान्त में भारत छोड़ो आन्दोलन का प्रचार-प्रसार करने के उद्देश्य से अपने प्रान्त लौट जाने का निश्चय किया।

मध्य प्रान्त में भारत छोड़ो आन्दोलन प्रारम्भ;-

मध्य प्रान्त की सीमा के भीतर मलकापुर पहुँचते ही इन नेताओं को दिरफ्तार कर लिया गया।” इन नेताओं के गिरफ्तार होने के बावजूद भी मध्य प्रान्त में भारत छोड़ो आन्दोलन तीव्रता के साथ आरम्भ हो गया।  गाँव-गाँव में जाने का फैसला किया। मध्य प्रान्त के सागर जिले में 1942 का भारत छोड़ो आन्दोलन आशा से अधिक सफल रहा। सन् 1942 के जन-आन्दोलन में समीपस्थ जिलों की तुलना में सर्वाधिक गिरफ्तारियाँ देने का गौरव इसी जिले को प्राप्त है। एक अनुमान के अनुसार अकेले सागर जिले से 1,500 लोगों ने इस आन्दोलन के दौरान गिरफ्तारियाँ दी थीं।

भारत छोड़ो आन्दोलन प्रारम्भ होने के पूर्व से ही सागर में राष्ट्रीय भावनाओं का ज्वार हिलोरे ले रहा था। सागर के जनमानस में हरसम्भव तरीके से ब्रिटिश शासन का विरोध करने की उत्कण्ठा व्याप्त थी। 1941 में सागर के कुछ नवयुवकों ने सागर के किले पर लगा यूनियन जेक निकालकर उसके स्थान पर तिरंगा फहराने की योजना बनाई। इसको मूर्तरूप देने से पहले ही अंग्रेज़ों को इसकी भनक लग गई। इसके प्रमुख षडयन्त्रकर्ता ग्राम ढ़ाना निवासी ईश्वरी सिंह ठाकुर को अंग्रेज़ी हुकूमत के खिलाफ बगावत करने के आरोप में गिरफ़्तार कर जेल में डाल दिया गया जहाँ उन्हें विभिन्न प्रकार की यातनाएँ दी गई।

द्वारका प्रसाद मिश्र, महात्मा गाँधी और अब्दुल गनी के तथ्य:-

जुलाई 1942 को पं. द्वारका प्रसाद मिश्र ने एक चेतावनी दी कि यदि ब्रिटिश शासन जारी रहा तो भारत की राष धर्मा के समान जापानियों के हाथ में चला जाएगा। 8 अगस्त 1942 के पश्चात् सागर में धरना प्रदर्शन, गुलूस आदि की बाढ़ सी आ गई। श्री सुमतचन्द्र सोधिया पिता श्री खूबचन्द सोधिया 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन के प्रथम सत्याग्रही माने जाते है। 1942 में भाषण देने के आरोप में इन्हें ढाई वर्ष कठोर कारावास का दण्ड दिया गया।

जिले में प्रतिदिन हड़ताल, सभाएं तथा जुलूस निकालने जैसी सरकार विरोधी गतिविधियों हो रही थी। इन सभी कार्यक्रमों में छात्रों तथा महिलाओं की भागीदारी सहज ही ध्यान आकर्षित करती थी। तत्सम्बन्ध में प्रान्तीय शासन द्वारा भी शिकायत की गई थी कि सागर में महिलाओं द्वारा जुलूस तथा चरने प्रतिदिन दिए जा रहे हैं। नगर तथा जिले के अन्य स्थानों पर पुलिस बल द्वारा 14 अगस्त 1942 तक प्रतिदिन लाठी चार्ज किया गया था। 3 अगस्त को यहाँ पर सर्वप्रथम स्वामी कृष्णानन्द तथा रघुवर प्रसाद मोदी को गिरफ़्तार किया गया था। इन नेताओं के गिरफ्तार होने पर विरोध स्वरूप बीड़ी मजदूरों ने हड़ताल कर दी। नगर की सभी शिक्षण संस्थाएं बन्द रही, सागर में दो शिक्षक ज्वाला प्रसाद ज्योतिषी तथा पद्मनाथ तेलंग ने सरकारी नीति के विरोध में अपने पदों से त्याग-पत्र देकर विद्यार्थियों के जुलूस का नेतृत्व किया।

गाँव- गाँव में जागरूकता अभियान:-

भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान कटरा स्थित पुराने मोटर स्टैण्ड पर एक जंगी जनसभा का आयोजन किया गया जिसके सभापति मौलवी चिरागउद्दीन थे। मौलाना चिरागउद्दीन ने जैसे ही सागर के लोगों से कहा कि अब हमारा एक ही नारा है, अंग्रेज़ो भारत छोड़ दो, अब भारतीयों करो या मरो, इतना कहते ही एक बारगी ऐसा लगा जैसे कोई सैलाब आ गया हो जगह-जगह से तार कटने की आवाजें आने लगी और धड़ाधड़ गिरफ्तारियाँ होने लगी। मौलवी चिरागउद्दीन के साथ केदारनाथ रोहण, रेवाराम गौतम, वासुदेव सूबेदार, मास्टर बलदेव प्रसाद, पदमनाथ तैलंग आदि को गिरफ्तार कर लिया गया।

1942 में सागर के उम्र होते जा रहे जन-आन्दोलनों पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से प्रशासन ने “मध्य प्रान्त के गाँधी” केशव रामचन्द्र खाण्डेकर की गिरफ्तारी का निर्णय लिया। सागर के डिप्टी कमिश्नर एस.एन. मेहता तथा अंग्रेज़ एस.पी. क्यूनयंग भारी दल-बल के साथ वहाँ आ पहुँचे। यह खबर सागर में आग की तरह फैल गई। लोगों का एक भारी हुजूम कटरा, तीन बत्ती स्थित खाण्डेकर जी के निवास पर एकत्र हो गया। गिरफ़्तारी के समय भाई अब्दुल गनी और सुन्दरलाल जैसे स्थानीय नेता भी वहाँ पहुँच चुके थे। इस घटना के प्रत्यक्षदर्शी रहे रामनारायण सरवैया के शब्दों में

केशव रामचन्द्र खाण्डेकर:-

खाण्डेकर जी को गिरफ़्तार करके ले जाते वक्त अंग्रेज़ एस.पी. क्यूनसँग ने स्थानीय आन्दोलनकारियों के साथ अभद्र व्यवहार किया। अंग्रेज़ एस.पी. द्वारा तिरंगे झण्डे का अपमान भी किया गया, इससे क्रुद्ध होकर स्थानीय नवयुवक मुन्नालाल गसैया ने पुलिस कप्तान क्यूनयंग के सिर पर खींचकर लाठी दे मारी, क्यूनयंग खून से लथपथ हो गए, घटना-स्थल पर अफरा-तफरी मच गई। तब टाउन इंसपेक्टर जसवंत सिंह ने सिपाहियों को निर्देश दिया- पकड़ो और मारो। पुरबिया सिपाहियों को जो मिला पकड़ लिया, राह चलते निर्दोष लोगों को भी नहीं बख्शा गया।

मुन्नालाल गसैया को भी गिरफ़्तार कर लिया गया, किन्तु वह कोतवाली से पुलिस को चकमा देकर फरार हो गया। भाई अब्दुल गनी को भी गिरफ़्तार कर लिया गया उन्हें दफा 41 /6b (G) D.C.R. में 25 रुपया जुर्माना तथा एक माह कैद की सजा दी गई।

भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान सागर नगर की गलियों और चौराहों पर सभाओं, नुक्कड़ नाटकों का आयोजन होते ही रहता था, इसका उद्देश्य लोगों में ब्रिटिश शासन के विरुद्ध जनचेतना उत्पन्न करना होता था। इसी घटनाक्रम में अगस्त 1942 को नारायण गोविन्द चकराघाट के फर्श पर अंग्रेज़ सरकार के खिलाफ आयोजित एक भा में ओजस्वी भाषण दिया, जिससे पूरे नगर में सरकार विरोधी वातावरण बन गया। हडीकर, मास्टर बलदेव प्रसाद, सूबेदार, लोकरस, सप्रे, चिरागउद्दीन, अब्दुल गनी के साथ अंग्रेज़ी पुलिस द्वारा लाठी चार्ज के बाद भी घायल अवस्था में तिरंगा थामे रहे।

इतिहास के पन्ने :-

इसी क्रम में सागर के पंडित ज्वाला प्रसाद ज्योतिषी ने 12 अगरत 1942 को कटरा स्थित सरस्वती वाचनालय के सामने एक ओजस्वी भाषण दिया, जिसमें अंग्रेज़ों के कुशासन के प्रति तीव्र आक्रोश व्यक्त किया गया। उन्होंने सागर की जनता से प्राण-पण से भारत छोड़ो आन्दोलन में सम्मिलित होने की अपील दी। भाषण देने के आरोप में ज्योतिषी जी को गिरफ्तार कर लिया गया। इस प्रकरण में उन्हें डेढ़ वर्ष के कारावास की सजा सुनाई गई। उन्हें प्रारम्भ में सागर जेल में तथा बाद में नागपुर, अमरावती आदि जेलों में रखा गया।

इस दौरान सागर से प्रकाशित होने वाले अनेक समाचार-पत्रों ने भी ब्रिटिश विरोधी खबरें छापकर लोगों में उत्तेजना उत्पन्न की। सागर के क्रान्तिकारी पत्रकार भाई अब्दुल गनी ने अंग्रेज़ी सरकार का विरोध करने के उद्देश्य से गवर्नर-जनरल के ऑर्डिनेंस के खिलाफ समाचार छापने का कार्य प्रारम्भ किया। सन् 1942 ई. में अपने साप्ताहिक समाचार-पत्र देहाती दुनिया में गवर्नर-जनरल के ऑर्डिनेंस के खिलाफ एक उत्तेजक लेख प्रकाशित किया, जिसके कारण उन्हें गिरफ्तार कर 1 वर्ष कारावास की सजा सुनाई गई|

इस दौरान सागर से प्रकाशित होने वाले अनेक समाचार-पत्रों ने भी ब्रिटिश विरोधी खबरें छापकर लोगों में उत्तेजना उत्पन्न की। सागर के क्रान्तिकारी पत्रकार भाई अब्दुल गनी ने अंग्रेज़ी सरकार का विरोध करने के उद्देश्य से गवर्नर-जनरल के ऑर्डिनेंस के खिलाफ समाचार छापने का कार्य प्रारम्भ किया। सन् 1942 ई. में अपने साप्ताहिक समाचार-पत्र देहाती दुनिया में गवर्नर-जनरल के ऑर्डिनेंस के खिलाफ एक उत्तेजक लेख प्रकाशित किया, जिसके कारण उन्हें गिरफ्तार कर 1 वर्ष कारावास की सजा सुनाई गई

1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान सागर नगर के छात्रों का उत्साह देखते ही बनता था। इस दौरान कटरा स्थित गवर्नमेण्ट हाईस्कूल भारत छोड़ो आन्दोलन के छात्र कार्यकर्ताओं का गढ़ बन गया था। जुलूस निकालना, हड़तालों में शिरकत करना, पिकेटिंग करना तथा विदेशी कपड़ों की होली जलाना छात्रों की गतिविधियों में शुमार था।

सेनानी टी. आर. जैन बताते है :-

1942 के दौरान वे कटरा स्थित गवर्नमेण्ट हाईस्कूल के छात्र थे। इस दौरान बुलेटिन निकालना एवं बाँटना, नुक्कड़ सभाएं करना, गुप्त सन्देशों का आदान-प्रदान करना विद्यार्थियों की दैनन्दिन की गतिविधियों हुआ करती थी। उन्होंने स्वयं सरकारी इमारतों को क्षति पहुँचाने, बिजली एवं तार के वायर काटने जैसी विध्वंसक गतिविधियों में शिरकत की थी, इस दौरान एक बार पकड़े जाने पर उन्हें 9 सितम्बर 1942 से 19 मार्च 1943 तक कारावास की सजा सुनाई गई। जेल से छूटने के बाद किसी भी शासकीय स्कूल ने उन्हें दाखिला देने से इंकार कर दिया तब स्वाध्यायी छात्र के रूप में उन्होंने मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण की।

एक अन्य स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी नारायण शंकर त्रिवेदी बताते हैं कि . 1942 के आखिर में आंदोलन के दौरान वे कटरा स्थित गवर्नमेण्ट हाईस्कूल के छात्र थे, उस समय उनकी उम्र लगभग 14-15 वर्ष रही होगी। वे गुप्त रूप से छपने वाले गुप्त बुलेटिनों को सागर शहर में बाँटा करते थे। एक बार वे जब ढेर सारे बुलेटिन लेकर कटरा से गुजर रहे थे, तो कटरा स्थित पुलिस चौकी के आगे उन्हें पकड़ लिया गया, उन्हें बुलेटिन का स्रोत बताने के लिए लोभ, लालच और छोड़ देने का प्रलोभन दिया गया, न मानने पर उन्हें 1 वर्ष कारावास की सजा से दण्डित किया गया

1942 के आखिर में डिस्ट्रिक्ट काउंसिल सागर, जो जिला कचहरी और खजानेघर के पास स्थित है, से साईक्लोस्टाइल की मशीन ही किसी देश-भक्त ने उड़ा दी 124 इस पर बुलेटिन छपते रहे और सागर शहर में बैटते रहे। तब एकदम से गिरफ्तारियाँ प्रारम्भ हो गई जिसमें गयाप्रसाद कबीरपंथी, गौरीशंकर पाठक, डालचन्द जैन, रामभरोसे पाठक, गोपाल कृष्ण आजाद, रेवाशंकर केशरवानी आदि को सन्देह के आधार पर गिरफ़्तार कर लिया गया।

अंग्रेजी शासन का विरोध :-

आन्दोलन के दौरान सागर से निकलने वाले एक विशाल जुलूस का विवरण यहाँ समीचीन हो जाता है। सागर में एक विशाल जनसमूह या लोगों की उग्र भीड़ जिले के शासकीय कार्यालयों तक बढ़ते जाने को आमादा थी, उनकी मंशा शायद शासकीय कार्यालय करने और शासकीय रिकॉर्डों को नष्ट करने की थी, क्योंकि भारत आन्दोलन के दौरान कई स्थानों पर इस तरह की घटनाएं घटित थी। प्रशासन ने उग्र भीड़ का मन्तव्य भांपकर उन्हें आगे बढ़ने से का यथासम्भव प्रयास किया। सागर में तैनात यूरोपियन एस.पी. चाहता था कि भीड़ को नियन्त्रित करने के लिए फायरिंग की जाए किन्तु उस समय सागर के डिप्टी कमिश्नर एस.एन. मेहता थे उनका साम्राज्यवादी न होकर राष्ट्रवादी था।

उन्होंने अंग्रेज़ एस.पी. की मंशा के विपरीत भीड़ पर गोली चलाने का आदेश देने से इंकार कर दिया। उन्होंने भीड़ को नियन्त्रित करने के उद्देश्य से एक विशाल परिसर में भीड़ की घेराबन्दी कर दी, कुछ समय बाद भीड़ के शान्त हो जाने पर सभी लोग को मुक्त कर दिया गया। यह घटना यूरोपीय प्रशासकों के साम्राज्यवाद दृष्टिकोण के विपरीत भारतीय प्रशासकों के राष्ट्रवादी रुख का एक अनुपम उदाहरण प्रस्तुत करती है। इस तरह एस.एन. मेहता ने अपने विवेक से सागर को रक्त स्नान से बचा लिया 26 क्योंकि मध्य प्रान्त के बैतूल और मण्डला नगरों में इस तरह के जुलूस पर पुलिस द्वारा भीषण गोलीबारी की गई थी।

किन्तु यह सब उस अधिकारी की साम्राज्यवादी कोप से रक्षा न कर सका और इस घटना के बाद उनका तबादला कोटा कर दिया गया मि. कोल उनकी जगह डिप्टी कमिश्नर नियुक्त किए गए।

सागर की जनता ने जहाँ सड़कों पर धरना, प्रदर्शन कर प्रशासन की नाक में दम कर रखा था, वहीं सागर की जेल में कैद सेनानियों ने अपनी कारगुजारियों से प्रशासन को हलकान कर दिया था। 1942 के दौरान जेव की घटनाओं के प्रत्यक्षदर्शी रहे रामनारायण सरवैया और टीकाराम बताते हैं कि आन्दोलन के दौरान गिरफ़्तार कुछ नवयुवकों ने जेल में कैदियों वाली ड्रेस लेने से इंकार कर दिया तथा खादी के वस्त्र दिए जाने की माँग की, जेल प्रशासन ने जब उन्हें जबरन जेल के कपड़े पहनाने का प्रयास किया, तो विरोध में अनेक कैदियों ने अपने कपड़े फाड़कर जेलर के ऊपर फेंक दिए, तब गुस्से से बौखलाए जेलर ने उन सभी को गुनाहखाने में रखने का आदेश दिया, गुनाहखाना 8×8 की एक कोठरी थी, जिसकी 25 स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी नारायण शंकर त्रिवेदी से साक्षात्कार, पूर्वोक्त।

ऊँचाई 18 फुट हुआ करती थी, इस प्रकार गेल के भीतर और मेल के बाहर हरसम्भव तरीके से अंग्रेजी प्रशासन का प्रबल विरोध किया जा रहा था जो कि सागर की जनता के अप्रत्याशित देशप्रेम का परिचायक था। अगस्त 1942 के अन्त तक सागर शहर के चोटी के सभी नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया था, जनता नेतृत्वविहीन होने लगी थी। प्रशासन ने आन्दोलन के दमन के लिए धारा 144 व कहीं-कही रुपये भी लागू किया था। ऐसे समय सागर के गौरीशंकर पाठक, पदम कुमार जैन य अन्य साथियों ने यह तय किया कि आन्दोलन प्रतिदिन चलता रहे और सभी कार्यकर्ता एकदम गिरफ्तार न होने पाएं।

इन बचे-खुचे कार्यकर्ताओं ने एक गुप्त स्थान पर अपना कार्यालय स्थापित किया, तथा वहाँ से अपनी गतिविधियाँ संचालित करने लगे, पुलिस हैरान थी कि सागर जिले व शहर का आन्दोलन कौन और किस प्रकार संचालन कर रहा है। यह निर्णय लिया गया कि नित्य प्रति दो-दो या चार-चार कार्यकर्ता दफा 144 तोड़ें और जेल जाए, लगभग 40 दिनों तक यह सिलसिला चलता रहा, साथ ही जनता तक किसी न किसी रूप में बुलेटिन प्रकाशित होकर पहुँचते रहें। तब तक अन्य कार्यकर्ता भी गिरफ्तार हो चुके थे।

आन्दोलन ठण्डा पड़ने की दृष्टि से यह तय किया गया कि शहर में 100 आदमियों का एक जुलूस निकाला जाए, व कटरा मोटर स्टैण्ड पर एक सभा की जाए। प्रयास यह रहे कि सभा होने के पूर्व तक पुलिस को जुलूस का पता न लग सके। ठीक दिन के 3 बजे लक्ष्मीपुरा में लक्ष्मीबाई के चौपड़ा से 100 व्यक्तियों का जुलूस पदम कुमार जैन, बाबूलाल तिवारी, सिंघई सुरेशचन्द एवं डालचन्द जैन के नेतृत्व में निकाला गया। जुलूस पुलिस की आँखों से बचता हुआ लगभग 1 घंटा बाद कटरा स्थित मोटर स्टैण्ड पर पहुँचा। आधे भाषण के दौरान पुलिस लगभग तीन लारियों में जवानों को भरकर आ पहुँची। सर्वप्रथम भाषण दे रहे पदम कुमार जैन को गिरफ़्तार किया गया, उनके गिरफ्तार होते ही बाबूलाल तिवारी ने मंच पर खड़े होकर भाषण देना शुरू कर दिया अतः वे भी गिरफ़्तार कर लिए गए।

इसके बाद सुरेशचन्द जैन भी मंच पर खड़े हुए, उन्हें भी गिरफ्तार कर लिया गया, तब डालचन्द जैन ने झण्डे को अपने हाथ में ले लिया, अतः वे भी गिरफ़्तार हो गए। इसके बाद पुलिस ने लाठी चार्ज कर वहाँ एकत्रित जनसमूह को तितर-बितर कर दिया। डालचन्द जैन की उम्र उस समय सिर्फ 14 वर्ष थी, इस कारण इंस्पेक्टर अवस्थी ने उन्हें म्यूनिसिपल हाईस्कूल के सामने उतार दिया। शेष तीनों व्यक्तियों को 25 सितम्बर 1942 को सजाएँ हो गई। पदम कुमार जैन को दफा 56(4) डी.आई. एक्ट में 6 माह की सजा हुई, दूसरी 24 दिसम्बर 1942 को दफा 38 (1) ए रेड विथ रूल 38 (5) ऑफ डी.आई. एक्ट में पुनः पाँच माह की सजा हुई  |

25 अगस्त को महिलाओं और छात्राओं ने एक जुलूस निकाला तथा 30 अगस्त को सागर नगर में स्थिति उग्र हो गई थी क्योंकि पुलिस ने एक छात्र को गिरफ्तार कर लिया था। सागर के अतिरिक्त अन्य स्थानों बण्डा, रहली, खुरई आदि में भी जुलूस, सभाएं होती रही। 3 सितम्बर 1942 को श्रीमति यमुनाताई श्रीमति लोकरस, श्रीमति

श्रीवास्तव तथा अनेक महिलाओं और छात्राओं ने मिलकर जुलूस निकाल तथा शाम को एक आम सभा में जंगल कानून तोड़ने की अपील की गई। प्रायः शहर की सभी दुकानों पर कॉंग्रेस के नारे लिखे गए। सागर में आन्दोलन से सम्बन्धित वृहद् सभा, कटरा बजार में मौलवी विरागउद्दीन इस की अध्यक्षता में सम्पन्न हुई। इस सभा में “अंग्रेज़ों भारत छोड़ो” तवा “नौजवानों करो या मरो” सम्बन्धित नारों को दुहराया गया। फलस्वरूप संचार माध्यमों तथा परिवहन प्रणाली को क्षति पहुँचाने के लक्ष्य से टेलीफोन के तारों को काटा तथा रेल की पटरियों को उखाड़ फेंका, पोस्ट ऑफिस को आग लगा दी एवं पुलिस थाने पर हमला करके उसे क्षतिग्रस्त कर दिया लगभग दो सौ पचास रुपए की शासकीय सम्पत्ति का नुकसान हुआ।

8 सितम्बर को छात्राओं ने प्रदर्शन किया था इन घटनाओं के बाद प्रशासन ने सागर में पाँच हजार रुपए का सामूहिक अर्थदण्ड लगाया। सागर के ग्रामीण क्षेत्रों में भी जंगल सत्याग्रह की अनेक घटनाएं हुई। ग्रामीणों ने वन विभाग की पुलिस चौकियों को जला दिया और वहाँ के समीप खड़े बिजली के खम्भों को उखाड़कर ले गए। लगभग दो सौ पौधों को उखाड़ने के आरोप में पन्द्रह व्यक्तियों को गिरफ्तार कर लिया गया तथा अन्य ग्रामों में भी ऐसी ही घटनाएं हुई
6 सितम्बर 1942 को शहर में पूरी तरह हड़ताल रही। पोल और टेलीफोन के वायर गिरा दिए गए। सिटी पोस्ट ऑफिस के रिकॉर्ड तथा कर्नीचर जलाकर एवं केसों की फाइलों की पेटी को कुँओं में फेंक दिया। भीड़ को तितर-बितर करने के लिए पुलिस को हल्की केन का प्रयोग करना पड़ा। सागर जिले के कांग्रेसी नेता जी.आर. लोकरस, रेवाराम गौतम, जिले के अनेक स्थानों में घूम-घूमकर लोगों को आन्दोलन करने के लिए प्रेरित किया। 16 सितम्बर को नगरपालिका के अध्यक्ष श्री रोहण को गिरफ्तार किया गया, क्योंकि वे गुप्त रूप से आन्दोलन को संगठित कर रहे थे। 17 सितम्बर को छात्राओं के एक जुलूस ने जेल में शान्ति भंग करने की कोशिश की तथा राहतगढ़ रोड़ पर सिहोरा पुलिस विश्रामगृह को आग लगा दी। 20 सितम्बर को सागर में सभा आयोजित करने के आरोप में तीन व्यक्तियों को गिरफ़्तार किया गया। इनके अलावा सागर में भैयालाल तिलीवाला, सूबेदार, श्री धागोरिया को जुलूस निकालने के कारण गिरफ्तार किया गया तथा सभा करने के आरोप में बाबूलाल जन, लाल ब्राह्मण को गिरफ्तार किया गया।

कुन्दन सागर जिले में अक्टूबर माह में आन्दोलन से सम्बन्धित गतिविधियां जारी रही। 2 अक्टूबर को नगर में “गाँधी जयन्ती” के अवसर पर जुलूस निकाला गया, जिसमें महिलाओं ने बड़ी संख्या में भाग लिया। बाद के दिनों में विद्यार्थियों के जुलूस निकलते रहे। 3 नवम्बर को नगर में बम विस्फोट की घटना में जयराम सोनकर का मकान क्षतिग्रस्त हो गया। आगे सागर तथा दमोह में अक्टूबर के प्रथम पक्ष में रेल लाइनों को क्षतिग्रस्त करने तथा तार काटने की घटनाएं हुई। इसी अवधि में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने सागर, निमाड़, रायपुर जिलों में अपनी गतिविधियां तेज कर दी है|

इस तरह लोगों ने तोड़फोड़, आगजनी एवं सरकारी सम्पत्ति को क्षति पहुँचाई, सागर में एक हट, फॉरेस्ट नाका सरकारी भवन को नष्ट किया गया तथा 1,700 रुपए की सरकारी सम्पत्ति को नष्ट किया तथा व्यक्तिगत गैर-सरकारी 525 रुपए का नुकसान पहुँचाया। इस प्रकार सागर में भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान प्रेमशंकर धगट, सहोदरा बाई राय, रघुवर प्रसाद मोदी, गोपालकृष्ण आजाद, गौरी शंकर पाठक, महेशदत्त दुबे, नारायण श्रीवास्तव, गोपीलाल श्रीवास्तव, महादेव तिवारी, छोटेलाल सेन, पन्नालाल कम्पाउण्डर आदि सोलह सौ के लगभग सत्याग्रही जेल गए। जिला काँग्रेस कमेटी, सागर के सभापति स्वामी कृष्णानन्द ने सागर की गतिविधियों को महाकोशल प्रान्तीय काँग्रेस कमेटी, जिसमें ऊपर वन्दे मातरम् लिखा था को इस प्रकार पत्र द्वारा सूचित किया

“वन्देमातरम्” जिला कॉग्रेस कमेटी, सागर:-

बुधवार तारीख 29-8-45 को कांग्रेस दफ्तर (श्री सरस्वती वाचनालय) मे शहर के कुछ जेल यात्रियों और कार्यकर्ताओं की बैठक हुई, जिसमें नीचे लिखे प्रस्ताव पास किए गए |

प्रस्ताव 1 – वीर साबूलाल जैन गढ़ाकोटा वालों ने अगस्त सन् 42 में देश की सेवा करते हुए पुलिस की गोलियां सीने पर खाकर सच्चे सत्याग्रही होते. का राष्ट्र के सामने आदर्श रखा है। अतः शहर के राजनैतिक कार्यकर्ताओं की यह सभा वीर शहीद साबूलाल के प्रति श्रद्धांजलि अर्पण करती है।

प्रस्ताव 2 :-  मति यमुनाबाई ठाकुर, पं. शालिगराम तिवारी, बाबा गनेशीलाल और गोकुल प्रसाद कांग्रेस सेवक व सत्याग्रही के नाते जेल यातनाओं से पीड़ित होकर अपना अमूल्य जीवन राष्ट्र को अर्पण कर स्वर्ग सिधारे, उनके कुटुम्बियों के प्रति सम्वेदना प्रकट करते हैं।

प्रस्ताव 3 :- राष्ट्र के सभी नेताओं को अचानक गिरफ्तार करके सरकार ने अगस्त सन् 42 में जो अद्वितीय दमन किया उसके परिणामस्वरूप राष्ट्र- प्रेम के नाते जो गोलियां, लाठियां, जेल आदि अन्य यातनाएं पुरुषों, स्त्रियों और विशेषकर विद्यार्थियों ने भोगी, उसके प्रति सागर शहर के राजनैतिक कार्यकर्ताओं की यह सभा अभिमानपूर्वक धन्यवाद देती है।

प्रस्ताव 4:- पश्चिमी और पूर्वी युद्ध बन्द होने पर भी सरकार ने भारत रक्षा के नाम पर कई राजनैतिक कार्यकर्ताओं को बन्द कर रखा है और कई राजनैतिक संस्थाओं से अभी तक पाबन्दी नहीं हटाई अतः सागर शहर के राजनैतिक कार्यकर्ताओं की यह सभा सरकार से अनुरोध करती है कि वह शीघ्र ही इस प्रान्त के समस्त राजनैतिक बन्दियों को बिना किसी भेदभाव के रिहा कर दे और राजनैतिक संस्थाओं से पावन्दी भी हटा लें।

प्रस्ताव 5 – सागर शहर के राजनैतिक कार्यकर्ताओं की यह सभी जगत् पूज्य महात्मा गाँधी के प्रति श्रद्धा और विश्वास करती है और उनके बतलाए हुए कार्यक्रम को अहिंसापूर्वक पालन करने में ही राष्ट्र का उद्धार समझती है।

प्रस्ताव 6 – सागर जिले में कॉग्रेस और उसके कार्यकर्ताओं के संगठन को मजबूत करने के लिए कम-से-कम 25 हज़ार सदस्य और 10 हजार रुपय इकट्ठा किया जाए।

आपका

स्वामी कृष्णानन्द

भारत छोड़ो आन्दोलन में सागर संभाग की महिलाओं की भूमिका 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में सागर संभाग की महिलाओं ने बढ़- चढ़कर हिस्सा लिया, यह नारी स्वतन्त्रता के नए युग का आगाज था।

राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त लिखते है:-

सत्याग्रह करने निकली है, भारत की कुल ललनाएं। अबलाओं को भी असहा है, अब शासन की छलनाए ।

श्रीमति अनसुईयां बाई हर्डीकर पुत्री सदाशिवरावजी सागर से भारत छोड़ो आन्दोलन में भाग लेने वाली प्रथम महिला थी, और इन्हें 6 माह का कारावास भी भोगना पड़ा।” सागर की ही कमलाबाई बड़ोन्या पत्नी श्री दामोदर राव 1942 के आन्दोलन में हज़ारों महिलाओं का प्रतिनिधित्व करती जुलूस और धरनों के बाद पुलिस उन्हें खोजती फिरती थी। लोग उनकी बहादुरी की मिसाल दिया करते थे। अपनी क्रान्तिकारी गतिविधियो के कारण विदेशी कपड़ों को जलाते हुए उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। 35 तब अपनी दो छोटी बच्चियों के साथ 6 माह तक वे कारावास में रही। इनकी सहयोगी शकुन्तला हर्डीकर थी उन्हें भी 6 माह के कारावास की सजा सुनाई गई थी

श्रीमति सुखरानी उर्फ सहोदराबाई” सागर की सर्वप्रमुख स्वतन्त्रता सेनानी मानी जाती है। 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान कर्रापुर (सागर) के सत्याग्रह में भाग लेने के कारण इन्हें 3 माह के कारावास की सजा सुनाई गई। गोवा मुक्ति आन्दोलन के दौरान इन्हें पुर्तगाली पुलिस की दो गोलियों का शिकार होना पड़ा। आप भूतपूर्व संसद सदस्य भी रही ।

सागर में महिला आन्दोलन को संगठित रूप प्रदान करने का श्रेय श्रीमती सुनाताई ठाकुर को जाता है। वे सागर महिला विद्यालय की संस्थापिका एवं संरक्षिका थी। उन्होंने अपने विद्यालय से महिला स्वयं सेविकाओं की ऐसी फौज खड़ी कर दी थी, जो पुलिस की लाठियों की परवाह न करती

आन्दोलन की गतिविधियाँ:-

  1. में जनता का उत्साह देखते ही बनता था। गढ़ाकोटा के बहुसंख्यक लोगों को भारत छोड़ो आन्दोलन में शिरकत करने का सौभाग्य प्राप्त है। इसी श्रृंखला में 22 अगस्त 1942 को शाम के चार बजे एक विशाल जुलूस का आयोजन किया गया। उस जुलूस में बतौर स्वयं सेवक के रूप में सम्मिलित स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी कन्हैयालाल चौरसिया बताते हैं कि का जुलूस गढ़ाकोटा के गाँधी चौक से प्रारम्भ हुआ। नगर के मुख्य मार्गों से होता हुआ यह जुलूस रहली तिगड्डा पर पहुँचा, जहाँ पर स्थानीय नेता परमोली लाल गुप्ता ने जुलूस को सम्बोधित करते हुए गाँधीवादी तौर-तरीकों से अहिंसक सत्याग्रह करने की अपील की, वहाँ से यह जुलूस पुलिस स्टेशन की ओर चल पड़ा ।

जुलूस नगर की सड़कों से गुजर रहा था, और आजादी के दीवाने उससे जुड़ते जा रहे थे। उस जुलूस का नेतृत्व 19 साल का एक नौजवान साबूलाल जैन कर रहा था। तूफानी समुद्र के सैलाब की तरह उमड़ता हुआ यह जुलूस थाने में पहुँचा। थाने में तैनात पुलिस बल के होश भी एक बारगी उड़ गए। आन्दोलनकारियों का एकमात्र मकसद था फिरंगी शासन के प्रतीक यूनियन जेक को उतारकर उसकी जगह तिरंगा फहराना। इस पर पुलिस ने चेतावनी दी कि एक कदम भी आगे बढ़ाया तो गोलियों से भून दिए जाओगे।

जुलूस जहाँ का तहाँ रुक गया किन्तु जुलूस के नेता साबूलाल जैन पुलिस की चेतावनी की परवाह न करते हुए झण्डा लेते हुए आगे बढ़े, धनीराम दुबे और कुन्जीलाल रावत भी उसके साथ हो गए। नौजवान साबूलाल अपने साथियों धनीराम दुबे और कुँजीलाल रावत के कन्धों पर खड़े होकर तिरंगा लगा ही रहे है कि थानेदार गयाप्रसाद दुबे ने रायफल से गोलियाँ दागीं। साबूलाल जैन वहीं धराशायी हो गए। कुजीलाल रावत और धनीराम दुबे गोली लगने से घायल हो गए 2 घटना के दूसरे दिन 23 अगस्त 1942 को अमर शहीद जैन की अन्तिम यात्रा में सागर जिले से कोई दस हज़ार लोग साबूलाल सम्मिलित हुए। सागर स्थित शमशान घाट में मुंशी सुन्दरलाल ने साबूलाल जैन की चिता को मुखाग्नि दी।

गढ़ाकोटा की ही एक अन्य महिला, पार्वतीबाई ने भी गढ़ाकोटा पुलिस थाने पर तिरंगा फहराने का प्रयास किया। वे भी पुलिस की वर्वरता की शिकार बनी और उन्हें भी गिरफ़्तार कर जेल भेज दिया गया

2 कर्रापुर:- सागरनातरपुर मार्ग पर स्थित कर्रापुर नामक एक छोटे से कस्बे में भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान योजनाबद्ध तरीके से ब्रिटिश सरकार का विरोध किया गया। जिससे इस घटना को कर्रापुर विद्रोह” के नाम से जाना जाता है। कर्रापुर में पुरुषों के साथ महिलाओं ने भी अत्याचारी ब्रिटिश कुशासन के विरोध में अपनी आवाज बुलन्द की कर्रापुर की प्रसिद्ध स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी सहोदराबाई राय को कर्रापुर विद्रोह में भाग लेने के कारण 3 माह का कारावास भोगना पड़ा “ कर्रापुर के ही नन्हेराम पिता श्री धनीराम को पुलिस चौकी में आग लगाने के अपराध में 6 माह कारावास की सजा सुनाई गई ” भारत छोड़ो आन्दोलन में भाग लेने के कारण ही यहाँ के दुर्गाप्रसाद पिता श्री रोशन को 6 माह, निर्भयसिंह पिता श्री गनपत सिंह को 3 माह, बाबूसिंह पिता श्री बदनसिंह को 3 माह कारावास की सजा सुनाई गई।

रिसर्च :-

3. देवरी – सागर-नरसिंहपुर मार्ग पर स्थित कस्बा देवरी में देवरी के नामी- गिरामी नेता वासुदेव वकील द्वारा थाने पर झण्डा फहराने का निश्चय किया गया। यह खबर देवरी अंचल के दूर-दराज के गाँव-गाँव तक फैल गई।

गाँव-गाँव से सत्याग्रहियों के जत्ये देवरी पहुँचने लगे। ऐसे ही के एक जत्थे का नेतृत्व करते सागर के रामनारायण सरवैया देवरी । झण्डा फहराने के प्रयास करने के अपराध में सभी स्थानीय ने अनेक स्वयं सेवकों को गिरफ्तार कर लिया गया। रामनारायण सर भी रहली कोर्ट द्वारा 1 वर्ष कारावास की सजा सुनाई गई 4. शाहगढ़ सागर के एक अन्य छोटे से कस्बे शाहगढ़ में भारत आन्दोलन के दौरान स्थानीय स्वयं सेवकों द्वारा एक विशाल जुलूस निकाला गया। थाने के समीप पहुँचते ही उन सबको पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर सागर जेल भेज दिया गया। 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान ही सागर के अंग्रेज एस.पी. के शाहगढ़ आगमन के पश्चात् एक स्थानीय लोगों से कहा वे भारत छोड़ो आन्दोलन में किसी भी प्रकार से सम्मिलित न हो त न ही किसी आन्दोलनकारी का सहयोग करें, अन्यथा कठोर से कठोर दण्ड दिया जाएगा, उन्होंने 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन को कुछ शरारती असामाजिक लोगों का षडयन्त्र मात्र बताया।

इस पर शाहगढ़ के एक नौजवान कुंजीलाल जैन ने एस.पी. की मुखाल करते हुए उनके उक्त कथन का प्रबल विरोध किया, तब अंग्रेज एस.पी. के आदेश से उन्हें शाहगढ़ थाने में एक पेड़ से बाँध दिया गया, परन्तु बाद में रिहा कर दिया गया इस प्रकार 1942 का भारत छोड़ो आन्दोलन मात्र सागर तक ही सीमित नहीं
 रही बल्कि यह दूर-दराज तक विस्तृत हो गया, खुरई, बण्डा, नरयावली, गौरझामर, बीना आदि स्थानों पर स्थानीय जनता द्वारा अलग-अलग तरह से अपने विरोध को अभिव्यक्त किया गया।

1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन के पश्चात्, समस्त भारत में भारत की स्वतन्त्रता के लिए राष्ट्रीय स्तर पर प्रयास किए जाते रहे। 1946 में भारत को साम्प्रदायिक दंगों की आग में भी झुलसना पड़ा। सागर में इसके बावजूद भी साम्प्रदायिक सौहार्द ही रहा। 1947 में अन्ततः भारत स्वतन्त्र हो गया।

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