वर्ण शव्द की उत्पत्ति संस्कृति के “वृ” वरणे धातु से हुयी जिसका अर्थ होता चुनना या “चुनना : या “वरण करना” |
सम्भवतः “वर्ण” से तात्यर्य वृति या किसी विशेष समुदाय के व्यवसाय चुनने से है इसके अंतर्गत समाज को चार भागों में कार्यात्मक विभाजन किया गया | सबसे पहले व्राह्मण, क्षत्रिय,वैश्य एवं शूद्र है |
दूसरी भाषा में वर्ण व्यवस्था की उत्त्पति दैवी सिद्धांत के अनुसार हुयी या हम ये कहें इसकी उत्त्पति व्रह्मा में मुख से हुयी, इसमें जो मुख से व्राह्मण, वाहुओं से क्षत्रिय, जंघाओं से वैश्य तथा पैरो से शूद्र माना गया |
वर्ण व्यवस्था में अछूत किस- किस को माना गया |
इस व्यवस्था में सबसे पहले जाति व्यवस्था आई, जिसमें अलग-अलग जातियां बनाई गयी | जिसमें सबसे निचली जाति शिल्पकारों , शिकारी, भोजन- संग्राहक और शूद्रों की दी गयी | शूद्रों को हम दूसरी भाषा में अछूत भी कहा करते थे जिसका काम राजाओं और ब्राहम्णों की सेवा करना आदि था |
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जैसे यदि किसी के यहाँ कोई पशु मर जाता है तो शूद्रों का काम उसको उठाना, या किसी के यहाँ विवाह में सफाई करना आदि थे |पुरोहितों के अनुसार इनका सम्बन्ध बहुत आपवित्र माना जाता है
वैदिक काल में वर्ण व्यवस्था को किसने स्वीकार नहीं किया ?
वैदिक काल अपने आप में बहुत व्यंगात्मक काल है जिसमे सबसे ज्यादा शूद्रों के वारे में विचार किया गया है वर्ण व्यवस्था में सबसे ज्यादा नियम पुरोहितों दे द्वारा बनाये गये | इनका मानना था कि जो जिस जाती में पड़ा हुआ उसका वही कार्य होगा|
वर्ण व्यवस्था में ऐसे बहुत से राजाओं क साथ बहुत से उदार लोग थे जो इसको मानने से अश्विकार कर रहे थे , उनका मानना था कि जो व्यवस्था बनाई गयी है वह सही नहीं है
वैदिक काल में वर्ण व्यवस्था का विरोध क्यों किया गया ?
वर्ण व्यवस्था के विरोध के मुख्य कारण-
- कुछ लोग जन्म के आधार पर वर्ण व्यवस्था सही नहीं मानते थे
- कुछ राजा खुद को पुरोहित में श्रेष्ठ मानते थे
- कुछ लोग व्यवसाय के आधार पर वर- निर्धारण ठीक नहीं मानते थे |
- कुछ लोगों का मानना था कि अनुष्ठान संपन करने का अधिकार सबका है