वर्तमान में जिस तरह से चीन और जापान में अपने औद्योगिकरण से विश्व में अपना दबदबा कायम रखा, लेकिन जब इन दो देशों के इतिहास को समझने और जानने की कोशिस करते है तब पता चलता है कि दोनों देशों ने आपस में युद्ध भी लड़े थे, पहला युद्ध वर्ष 1894-95 में, इन दोनों देशों के बीच लड़ा प्रथम युद्ध था तथा दूसरा युद्ध वर्ष 1937 से 1945 के मध्य लड़ा गया था | इस लेख में चीन जापान के पहले युद्ध के परिणाम पर लेख व चर्चा करेंगे|
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- भारतीय इतिहास में किलों की प्रथम खोज कब हुयी थी पूरी जानकरी देखिये |
चीन जापान युद्ध का निष्कर्ष :-
जब युद्ध समाप्त हो गया उसके बाद कमांडर ली की सेनाएं 16 दिसंबर को परास्त हो गयी तथा समुद्र में चीन की जबरजस्त हार हुयी, हालाकिं चीन की नौसेना में 56 जहाज थे जबकि जापान के पास केवल 32 जहाज ही थे| जापान ने अति आधुनिक 21 जहाज युद्ध में लगाये थे इसके बावजूद भी चीन हार गया तथा चीन को युद्ध का हर्जाना देने के लिए बाध्य होना पड़ा |
लेकिन दुर्भाग्यवश युद्ध समाप्ति के बाद जापान के लोगों में एकता न रही, जैसा किन “अकीरा डारीए” का मत है कि जापानियों में शक्ति घमंड पैदा हो गया था | जापान की सरकारका मुख्य उद्देश्य कोरिया की स्वतंत्रता, भारी हर्जाना, भूमि प्राप्ति, भविष्य में व्यापारिक तथा नौसेनिक क्षेत्र में मुख्य अधिकार प्राप्त करना था |
शिमोनोसकी में समझौता आरम्भ करने से पहले ली ने जापान से अनुरोध किया कि वह समझौता करते समय एशिया के हिट को ध्यान में रखें, इधर जापानी सरकार ने हर्जाने की राशि 20 करोड़ तायल कर दी |
शिमोनोसेकी संधि पर हस्ताक्षर :-
17 अप्रैल 1895 को शिमोनोसेकी संधि पर हस्ताक्षर हुए जिसमें मुख्य शर्तें निम्नलिखित थी|
- युद्ध में हार के बाद चीन ने कोरिया को पूर्ण स्वतंत्रता प्रदान की|
- चार बंदरगाहों का व्यापर तथा औद्योगिक प्रयोग के लिए खोल दिया गया|
- जापानियों को चीन में फैक्ट्रियां खोलने की अनुमति दी गयी|
जापान ने इस युद्ध में चीन की कमजोरियों को उजागर कर दिया तथा धीरे- धीरे विदेशी शक्तियों ने चीन के अनेक क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया| चीन को लेकर यह शक्तियां परस्पर संघर्ष करने लगे और चीन की इन विदेशी ताकतों ने तरबूज की भांति विभाजित कर दिया
अपने- अपने क्षेत्रों में विदेशियों ने रेल लाइनें बिछाई तथा खाने और फैक्ट्री खोली| चीन अब स्वतंत्र देश नही रह गया था तथा इसको पश्चिमी देशों के शोषण का शिकार होना पड़ा, दूसरी तरफ विदेशी चीन के कच्चे तेल माल तथा सामान का वेधड़क प्रयोग कर रहे थे |
उदारवादी तथा अग्रवादी दल का उदय :-
जब चीन जापान से युद्ध में हार गया उसके बाद से इस देश में उदारवादी तथा अग्रवादी दल उभर कर आने लगे, उदारवादी पीटर महान तथा सम्राट मेजी के रस्ते पर चलकर सुधारों को आगे बढ़ाना चाहते थे| वहीँ उग्रवादी छिंग सरकार का तख्ता पलटकर एक गणतंत्र की स्थापना करना चाहते थे|
इस युद्ध में छिंग सरकार का पतन तथा 1911 की क्रांति को निकट ला दिया इसके विपरीत जापान को इस युद्ध का लाभ यह हुआ कि उस पर पश्चिमी राष्ट्रों द्वारा थोपी गयी आसमान संधियों को रद्द कर दिया गया, अब जापान सीमा शुल्क अन्य देश के हस्तक्षेप के बिना लगा सकता था|
शिमोनोसेकी संधि के बाद जापान के उपनिवेशवाद को बढ़ावा मिला तथा जापान एशिया का पहला साम्राज्यवादी देश बन गया , इस देश ने अपनी सैनिक शक्ति को और मजबूत किया तथा उन्होंने स्थल सेना की शक्ति को दोगुना कर दिया | सैनिकों को आधुनिक राइफल दी तथा इन्हें जापान में बनाने की व्यवस्था की गयी|
नौसेना में नये उपकरणों को शामिल किया गया और जहाज बनाने वाले कारखानों पर विशेष ध्यान दिया गया, यह सब सैन्य सुधार इस चीन जापान का परिणाम माना जाता है और इसे ही जापान की औद्योगिक क्रांति भी इस युद्ध का परिणाम कही जा सकती है |
चीन जापान युद्ध का निष्कर्ष:-
इस युद्ध को जापान को अंतराष्ट्रीय राजनीति में प्रवेश दिलवाया तथा युद्ध के पश्चात् जापान की आर्थिक सामाजिक और सांस्कृतिक प्रगति भी हुयी | लोगों में राष्ट्रीयता की भावना जगृत हुयी वहीँ दूसरी ओर इस युद्ध ने चीन में नकारात्मक प्रभाव डाला और अब चीन पश्चिमी देशों उपनिवेशक बन चुका था |
पश्चिमी देशों ने उसका शोषण किया, परिणामस्वरूप चीन में उदारवादी तथा उग्रवादी दलों का उदय भी हुआ | उग्रवादी दल सरकार का तख्ता पलट कर गणतंत्र राज्य की स्थापना करना चाहते थे इससे छिंग राजवंश के पतन को भी निकट ला दिया था|
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FAQ
17 अप्रैल 1895 को शिमोनोसकी संधि पर हस्ताक्षर हुए थे |