यदि प्राचीन भारत के इतिहास की बात करे तो जैन धर्म और बौद्ध धर्म उनमे से एक माना जाता है इसकी Modern history में एक अलग ही पहचान है चाहे UPSC की परीक्षा हो या फिर SSC CGL या किसी राज्य स्टार की, सब तरह की परीक्षाओं में यहाँ से कुछ न कुछ पूछा जाता है|
जैन और बौद्ध धर्म के सिद्धांत में बहुत कुछ भिन्नताएं देखने को मिलती है कहीं–कहीं पर दोनों में समानताएं भी दिखाई देती है लेकिन सबसे पहले यह देख्नेगे कि इन धर्मों के उदय के क्या कारण थे इसके अलावा यह भी समझेंगे कि इस धर्मों से कैसे-कैसे लोग जुड़े या आकर्षित हुए|
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जैन धर्म का मतलब:-
संस्कृत के ‘जिन’ शब्द से बना है जिसका अर्थ विजेता होता है अर्थात जिन्होंने अपने मन, वाणी एवं काया( इन्द्रियों) को जीत लिया हो, इसको हम ऐसे भी समझ सकते है जिसका अपने मन, वाणी और विचार पर नियंत्रण हो उसको हम जैन या जिन कह सकते है|
जैन धर्म के उदय के कारण:-
600 ईसा पूर्व भारत में बहुत सारे सम्प्रदायों का उदय हो रहा था जिसमें से 2 सबसे बड़े समुदाय जैन धर्म और बौद्ध धर्म थे उत्तर वैदिक काल में जिस तहत समाज में एक कठोरता आ रही थी जिसके कारण कर्म कांड बहुत ज्यादा बड़ने लगे
पशुओं की बलि देने , हवन-यज्ञ, अनुष्ठान और आडम्बर होने कके कारण समाज में वर्ण व्यवस्था का जन्म बहुत तेजी से हो रहा था और इसका बहुत सारे लोगों पर बुरी तरह से असर भी होने लगा था जिस तरह से एक समाज दूसरे समाज को नीचा देख रहा था वहीँ दूसरा समाज इसको सही नही बता रहा था |
वर्ण व्यवस्था के दौरान ऊँची जाति के लोगों के पूजा पाठ के दौरान बहुत से पशुओं की बलि भी दी जाने लगी जिससे समाज दो हिस्सों की तरफ बटने लगा,यह भी एक कारण था जिससे जैन धर्म तेजी से बड रहा है |
जब पशुओं की बलि और ऊँच नीचि की भावना पड़ा हो गयी तो बहुत से धर्मों के लोगों ने इस पर आपत्ति दर्ज की जिसमें सबसे ज्यादा आपत्ति जैन धर्म के समुदाय में देखने को मिली |READ ABOUT PUNJAB ANDOLAN
जैन धर्म शुरुआत से तीन विचारों को ज्यादा फैला रहा था
- समता की बात
- अहिंसा की बात
- पशुओं की बलि देने पर रोक
जैन धर्म के उदय की प्रमुख विशेषताएं:-
ईसा पूर्व छठी सदी में उत्तरार्ध के मध्य गंगा के मैदान में अनेक धार्मिक समुदायों का उदय हुआ क्यों कि गंगा के किनारे ही कृषि की पैदावार हो रही है इसीलिए सभी धर्मों ने सबसे ज्यादा पशुओं के काटने पर आपत्ति जाहिर की यहाँ तक माना जाता है
उस समय लगभग 62 समुदायों का उदय हुआ था जिसमें जैन समुदाय सबसे प्रमुख था सब के सब समुदाओं ने ब्राहमण वर्ग के उपर आपत्ति जाहिर की
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जैन धर्म की शुरुआत का उत्तर वैदिक काल:-
उत्तर वैदिक काल में समाज स्पष्टतः चार वर्णों में विभाजित हो गया था ब्राहमण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र थे इसीलिए धीरे- धीरे समाज में विभाजन पैदा हो रहा था क्यों कि यह समाज जातियों में बटने लगा
ब्राहमण का बेटा अपने आप को ब्राहमण समझने लगा और सूद्र का बेटा शूद्र रह गया लेकिन जैन धर्म के समुदाय को यह बात बिलकुल पसंद नहीं थी क्यों कि इस समुदाय के लोग अहिंसा की बार करते थे और सबमें समानता की भावना से देखते थे इसीलिए जैन धर्म में सबसे ज्यादा क्षत्रिय, वैश्य के लोग जुड़े | What to do after 12th ?
उत्तर वैदिक काल के बाद जैन धर्म:-
इसके समाप्त होते- होते वर्ण व्यवस्था समाज में स्थायी हो गयी सारे वर्णों को अपना- अपना काम दे दिया गया, जिसमें वैश्य वर्ण खेती, पशुपालन और व्यापर करते थे और शूद्रों को सबसे नीच का काम दिया गया और इसीलिए शूद्रों को छोड़कर अन्य सभी वर्णों को द्विज नामक समूह दिया गया इनको उपनयन धारण करने का भी अवसर प्रदान होता था|
सबसे महत्त्व पूर्ण यह है वैश्य समुदाय के लोगो ने जैन धर्म को सबसे पहले अपनाया और उनको अपना सपोर्ट क्यों कि यह वर्ग सबसे ज्यादा खेती और पशुपालन करता लेकिन पशुओं की बलि होने के बाद पशुओं की कमी होती जा रही थी और जैन धर्म हमेसा अहिंसा की बात किया करते थे इसीलिए सबसे ज्यादा वैश्य समुदाय ने जैन धर्म का समर्थन किया |
जैन धर्म के संस्थापक :-
इसके संस्थापक महावीर है जो कि क्षत्रिय वंश से आते थे उत्तर वैदिक काल के बाद जब जाति और वर्ण व्यवथा अपने जोरो सोरों से चल रही थी उस समय सबसे ज्यादा ब्राहमण अपने आप को ऊँचा मानते थे|
यहाँ तक कि वैश्य और शूद्रों ने इसके बारे में ज्यादा प्रतिकिया जाहिर नहीं की लेकिन एक समुदाय और था जिसने ब्राहमण के खिलाप कुछ बोलना शुरू कर दिया और वह समुदाय क्षत्रिय था |
एक तरफ पूर्वोत्तर भारत में नई कृषि मूलक अर्थव्यवस्था का विस्तार हो रहा था वहीं दूसरी तरफ जाति प्रथा का चलन भी तेजी से बड चुका था , 600 ईसा पूर्ण के समय में पूर्वोतर भारत में लोहे के इस्तेमाल होने लगा इसीलिए मध्य गंगा मैदानों में लोग भारी संख्या में बसने लगे |
जैन धर्म के समय बसे नगर और सिक्के:-
जैसे- जैसे इस धर्म का उदय हो रहा वैसे – वैसे नगर भी बसते जा रहे है जिसमें कौसम्बी (प्रयाग के समीप) कुशीनगर(जिला देवरिया) वाराणसी, वैशाली ,चिरांद ( सारन जिला ) और राजगीर नगरो की स्थापना हुयी इसमें शिल्पी और व्यापारी रहा करते थे
इसी के साथ सबसे पुराने सिक्के ईसा पूर्व पांचवी सदी एक है यह पंचमार्क या आहत सिक्के कहलाते थे पंच मार्क के सिक्कों का सर्वप्रथम आरम्भ पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार में हुआ यह सिक्के ठप्पा ( मुहर ) लगाकर बनाये जाते थे|
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FAQ
महावीर’ यह क्षत्रिय वंस से आते थे |
1000 – 600 ईसा पूर्ण
चार वर्णों में विभाजित हुआ था जो कि ब्राहमण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र थे
ब्राहमण, क्षत्रिय, और वैश्य आते है
कौसम्बी( प्रयाग के समीप ) कुशीनगर( जिला देवरिया )वाराणसी, वैशाली ,चिरांद( सारन जिला ) और राजगीर नगरो की स्थापना हुयी इसमें शिल्पी और व्यापारी रहा करते थे