जब कभी हिंदुस्तान के क्रांतिकारी तथा उनके बलिदान के बारे में रिसर्च करते हैं जिस तरह से उस दौर के आदिवासी समाज, संगठन चलाने वाले समाज सुधारक तथा सत्याग्रहीयों ने अहम भूमिका निभाई है वह आपने आप में इतिहास का एक दौर था लेकिन दुःख की बात यह है जिस तरह से ऐसे महान समाज चाहितों के नारे में लिखा जाना चाहिए था उतना लिखा नहीं गया है इसीलिए आज का लेख ऐसे ही महान विचारक “जंगल सत्याग्रह में टीकमगढ़ के लालाराम बाजपेयी की भूमिका”के बारे में लिखने का प्रयास करेंगे |
जिस तरह से रिसर्च बताता है किबुन्देलखण्ड के प्रथम जंगल सत्याग्रही श्री लालाराम बाजपेयी थे उनका जन्म परशुराम जयन्ती के दिन 1909 ई. में विनबारा ग्राम के निरक्षर और साधनहीन परिवार में हुआ था। यह ग्राम झॉसी से 17 मील एवं टीकमगढ़ से 44 मील की दूरी पर स्थित है।
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टीकमगढ़ के लालाराम बाजपेयी का परिचय:-
ढोर चराना उनकी आजीविका का प्रमुख साधन था। वे बताते हैं कि उनके पशु यदि चरते-चरते जंगल लालाराम बाजपेयी में थोड़ा अन्दर चले जाते थे तो फॉरेस्ट गार्ड उन्हें कॉंजी हाउस में बन्द कर देता था। चवन्नी-अठन्नी जुर्माना देकर उन्हें लालाराम छुड़ाते थे। बताते हैं कि यदि फॉरेस्ट गार्ड को रिश्वत के तौर पर इकन्नी दे दो तो वह उन्हें कहीं भी चराने की अनुमति दे देता था इसके साथ- साथ गाँव में सभी के पास मवेशी थे अतः उन्हें जंगल में चराने के अलावा कोई विकल्प नहीं था।
फॉरेस्ट गार्ड इस कार्य में सबसे बड़ा बाधक तत्त्व था। बाजपेयी जी ऋग्वेद की इस ऋचा को कहते थे कि – “तृण चरंति अमृत च यच्छंति” अर्थात् गायें तिनके चरके अमृत तुल्य दूध देती हैं।
लालाराम बाजपेयी की नमक सत्याग्रह में गाँधी जी के साथ भूमिका:-
21 वर्ष की आयु में 1930 में बाजपेयीजी ने गाँधीजी के नमक सत्याग्रह के बारे में सुना। हिन्दू पंच नामक समाचार पत्र से जानकारी उन्हें प्राप्त हुई। बाजपेयीजी रामलीला में भूमिकाएं अदा करते थे। वे रामायण का भी पाठ करते थे। उन्होंने जंगल सत्याग्रह के परिप्रेक्ष्य में रामायण के अशोक वाटिका प्रसंग की विवेचना की। वीर हनुमान् ने रावण के आधिपत्य के विरुद्ध लंका में अपनी धमाकेदार उपस्थिति दर्ज कराई थी।उनके अनुसार हनुमान भारत के पहले जंगल सत्याग्रही थे।
उन्होंने अशोक वाटिका उजाड़कर रावण के कुशासन के विरुद्ध जंगल सत्याग्रह को अंजाम दिया। यहाँ यह अंग्रेज़ राज की तुलना रावण राज से करते है। सीता माता को रावण ने अशोक वाटिका में बन्दी स्वरूप रखा था। भारत माता को अंग्रेज़ उसी प्रकार बेड़ियों में जकड़े हुए थे। वीर हनुमान के जंगल सत्याग्रह की सूचना वाटिका के रक्षकों ने रावण को इन शब्दों में दी नाथ एक आवा कपि भारी, तेहि अशोक वाटिका उजारी। खाइअ फल अरु विटप उजारे, रक्षक मर्दि मर्दि महि डारे।।
कि ब्रिटिश राज का विरोध करने हेतु मध्य प्रान्त के विभिन्न स्थानों पर जंगल सत्याग्रह हुआ। कई जगह जंगल कानून तोड़ा गया। कहीं-कहीं आन्दोलन में हिंसा भी हुई। लालाराम बाजपेयी इसका औचित्य सिद्ध करते हुए बताते हैं कि “जब हनुमान जी का जंगल सत्याग्रह सर्वथा अहिंसक नहीं रह पाया तो फिर भला हमारा जंगल सत्याग्रह रूप से अहिंसक कैसे रह सकता था।
जंगल सत्याग्रह में लालाराम बाजपेयी, द्वारका प्रसाद मिश्र और पं. मोतीलाल नेहरू की भूमिका :-
जंगल सत्याग्रही हनुमान् के सम्मुख अपने द्वारा की गई हिंसा का औचित्य इन पंक्तियों में किया पूर्ण रावण जिन्ह मोहि मारा ते मैं मारे, तेहिं पर बांधऊ तनय तुम्हारे। हनुमानजी ने जंगल सत्याग्रह की अनुमति (अशोक वाटिका से फल खाने की अनुमति) सीता माता से इन शब्दों में ली थी सुनहु मातु मोहि अतिसय भूखा, लागि देखि सुन्दर फल रूखा।
पं. द्वारका प्रसाद मिश्र ने भी जंगल सत्याग्रह की अनुमति इलाहाबाद जाकर पं. मोतीलाल नेहरू से ली थी। सीता माता ने अनुमति इन शब्दों में दी –
देखि बुद्धिबल निपुन कपि, कहेहु जानकी जाहु।
रघुपति चरन हृदय रखि, तात मधुर फल खाहु ।।
पं. मोतीलाल नेहरू ने भी महात्मा गाँधी की ओर से द्वारका प्रसाद मिश्र को संकोच के साथ मध्य प्रान्त में जंगल सत्याग्रह आरम्भ करने की अनुमति दी थी। इस तरह लालाराम बाजपेयी ने मध्य प्रान्त में सभी स्थानों पर एवं उनके स्वयं के द्वारा किए गए जंगल सत्याग्रह का औचित्य रामायण के उदाहरणों द्वारा सिद्ध किया।
1930 में ओरछा में जंगल सत्याग्रह किया। इसी महाराजा वीरसिंह देव ओरछा के राजा बने महाराजा वीरसिंह देव तो जंगल सत्याग्रह के प्रति उदासीन रहे, मगर नौगाँव का अंग्रेज़ पॉलिटिकल डिपार्टमेण्ट और उसके खासमखास कारिन्दे ओरछा स्टेट (टीकमगढ़) के दीवान सज्जन सिंह प्रतिक्रियावादी थे। वह सत्याग्रहियों को करारा दण्ड देना चाहता था।
दीवान सज्जन सिंह का लालाराम वाजपेयी के पास संदेस:-
जो भी जंगल में घुसेगा उसे जेल की चक्की पीसनी पड़ेगी, सत्याग्रहियों को पीटा जाएगा, जिला बदर किया जाएगा, उनकी जमीन-जायदाद कुर्क कर ली जाएगी, गोला-लाठी लगा देंगे (हाथ-पैर बाँधकर बीच में डण्डा डाल देते थे), मुर्गा बना देंगे। यह क्षत्रियों का राज है।
यहाँ जो भी सिर उठाकर हुक्मउदूली करेगा उसका सिर काट दिया जाएगा। प्रत्युत्तर स्वरूप लालाराम बाजपेयी ने कहा कि.
हम | परशुराम जयन्ती के दिन पैदा हुए थे। परशुरामजी ने अत्याचारी, तो स्वेच्छाचारी क्षत्रिय शासकों से पृथ्वी को 21 बार मुक्त किया था।
बाजपेयीजी डरने वालों में से नहीं थे। उनकी बचपन की गरीबी एवं ठोकरों ने उन्हें अत्यन्त मजबूत बना दिया था। उन्होंने ढोर चराए थे। कस्टम विभाग में नाकेदारी की थी। पुलिस में कुछ दिन कांस्टेबल भी रहे थे। हिन्दू पंच समाचार-पत्र पढ़कर राष्ट्रवादी भावनाओं से ओत-प्रोत थे। जब चन्द्रशेखर आजाद अज्ञातवास में सतार नदी के तट पर रहे थे, तब उनके सम्पर्क में आकर भी लालराम बाजपेयी पर क्रान्तिकारी राष्ट्रवाद का प्रभाव पड़ा था। इस तरह दीवान सज्जन सिंह की चेतावनियों की धज्जियाँ उड़ाते हुए तालराम बाजपेयी ने जंगल सत्याग्रह आरम्भ कर दिया।
बुन्देलखण्ड की रियासतों में यह प्रथम बार किसी भी राजनीतिक आन्दोलन का श्रीगणेश था। पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार करने के प्रयास किए मगर वह पकड़े नहीं जा सके। वे सत्याग्रह करते और फिर छिप जाते थे। उनके नेतृत्व में 20- 25 जंगल सत्याग्रही ओरछा के रामराजा मन्दिर में दर्शन करने के पश्चात् जंगल सत्याग्रह करते, घास काटते, पेड़ों पर कुल्हाड़ी चलाते और छिप जाते थे वे लोग श्यामलाल द्वारा रचित गीत “विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झण्डा ऊँचा रहे हमारा” गाते हुए तिरंगा झण्डा लेकर जंगलों में प्रवेश करते थे। यह सत्याग्रही खासतौर पर सीताराम आजाद नामक सत्याग्रही अत्यन्त जोशीले तेवरों में यह गीत गाता था, सभी उसे दोहराते थे|
लालाराम बाजपेयी की जिन्दगी के इतिहास के पन्ने :-
सर बाँधे कफया हो, शहीदों की टोली निकली। गांधी जी तो दूल्हा बन गये, दुल्हन बनी सरकार। वीर जवाहर बने सहबोला, नऊआ बनों थानेदार। ब्रिटिश की टोली निकली, सर बाँधे कफनवा हो,शहीदों की टोली निकली |
रियासतों की पुलिस के थानेदार को जब यह सत्याग्रही नऊआ कहकर संबोधित करते तब वह बहुत चिढ़ता था। इस गीत के गाने वाला कोई भी पुलिस के हत्थे चढ़ जाता था तब पुलिस उसकी इतनी पिटाई करनी थी कि वह अधमरा हो जाता था। ओरछा के जंगल सत्याग्रह की चिंगारी ने दावानल का रूप ले लिया। बाजपेयीजी आगे बताते हैं-
कि 27 फरवरी 1930 को इलाहाबाद के अलफ्रेड पार्क में चन्द्रशेखर आजाद की शहादत, 23 मार्च 1931 को शहीद-ए-आजम भगत सिंह की फांसी, कानपुर में गणेश शंकर विद्यार्थी की हत्या ने हम सभी को अत्यन्त आन्दोलित कर दिया। हमारे इस क्रोध को जन-चेतना में तब्दील करने का एकमात्र रास्ता जंगल सत्याग्रह था।
वे आगे बताते हैं कि हमारी भी टीकमगढ़ नरेश की पुलिस ने खूब धुनाई की और हमने भी उन्हें बहुत छकाया। श्री लक्ष्मीनारायण नायक एवं श्यामलाल साहू ने हमारा साथ दिया। श्री लक्ष्मीनारायण नायक कालान्तर में समाजवादी पार्टी के फायर ब्राण्ड नेता बने एवं साहूजी कॉंग्रेस के नेता बने।
झाँसी से पं. लखपतराम शर्मा एवं आर.बी. धुलेकर भी ओरछा आकर लालाराम बाजपेयी की जंगल सत्याग्रह में मदद करते थे। कालान्तर में शर्माजी यू.पी. के विधायक बने एवं धुलेकर विधानसभा के अध्यक्ष बने।
यह जंगल सत्याग्रह छतरपुर रियासत में भी फैल गया। पं. रामसहाय तिवारी ने इसका नेतृत्व किया। रामसहाय तिवारी एवं कुँवर हीरासिंह के नेतृत्व में एक कार्यकारिणी का गठन हुआ हीरासिंह जी सभापति एवं रामसहाय तिवारी मन्त्री बने। छतरपुर की लौड़ी तहसील में गणेश चमार ने जंगल सत्याग्रह किया। उसे इतना मारा गया कि उसकी मौत हो गई। विरोध स्वरूप 14 जनवरी 1931 को चरण पादुका में सरजू दउआ के नेतृत्व में एक सभा हुई। नौगाँव के पॉलिटिकल एजेण्ट फिशर ने इन पर गोलियां चलवाकर चरण पादुका हत्याकाण्ड को अंजाम दिया।
नकल थी अपने विरछा धरती अपनी, हो गई आज पराई । ढोर चरावें को जागा नई, ऐसी आफत आई ।।
नासपिटे अंग्रेजन ने, बंटाधार करा दये। खान फकीरे कालों कइये, हा-हाकार करा दये ।।
इस तरह बुन्देलखण्ड के अनेक भागों में जंगल सत्याग्रह फैल गया। जंगल सत्याग्रह ने एक ओर बुन्देलखण्ड की देशी रियासतों में राष्ट्रीय चेतना जाग्रत् की, तो वहीं लालाराम बाजपेयी एवं पं. रामसहाय तिवारी जैसे महान् राष्ट्रवादी नेता उभरकर सामने आए।
लालाराम बाजपेयी का कॉंग्रेस संगठन में योगदान और उनके दस्तावेज:-
श्री लालाराम बाजपेयी ने निवाड़ी में कॉंग्रेस संगठन की नींव डाली। बाजपेयी की पहली गिरफ़्तारी 1937 में तोड़ी-फतेहपुर सत्याग्रह में एवं दूसरी 1940 के व्यक्तिगत सत्याग्रह के दौरान हुई। 1947 में टीकमगढ़ में उत्तरदायी शासन के तहत जो सरकार बनी, उसके मुख्यमन्त्री श्री लालाराम बाजपेयी बनाए गए। 1948 में उन्हें बुन्देलखण्ड के मन्त्रीमण्डल में मन्त्री मनोनीत किया गया। 1951 के आम चुनाव में बाजपेयीजी निवाड़ी से विन्ध्य प्रदेश विधानसभा में विधायक चुने गए। वे सरकार के गृहमन्त्री बने ।
इस तरह श्री लालाराम बाजपेयी ने अत्यन्त गरीबी की हालत से उठकर धीरे-धीरे इतनी तरक्की की कि वे इतने ऊँचे पद पर आसीन हुए।
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