सआदत ख़ां [1877 में फांसी] पूरी दांस्ता pdf
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सआदत ख़ां [1877 में फांसी] पूरी दांस्ता pdf

by Srijanee Mukherjee
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देश का हैसियतदार व्यक्ति हो या साधारण, देश की आज़ादी का जज्बा सभी के मन में पल रहा था। उसमें न तो उम्र की कोई पाबन्दी थी और न ही धर्म या जात का कोई बन्धन। प्रत्येक भारतवासी अपने देश से फ़िरंगी दरिन्दगी व हैवानियत, जुल्म व सितम, पक्षपात और लूटमार को ख़त्म करना चाहता था। सजायत खां भी उन्हीं देश प्रेमियों में से एक थे, जिन्होंने आज़ादी के संघर्ष में हिस्सा लेकर फांसी की सज़ा पाई।आज का लेख सआदत ख़ां के विषय में ही जिनको 1877 में फांसी दी गयी, ऐसे क्रांतिकारी क्व बारे में वर्तमान के पाठकों तथा लेखकों पता नहीं होगा इसलिए आज का यह लेख बहुत ही महत्वपूर्ण है |

सआदत ख़ां का इंदौर से रिश्ता:-

जोधपुर और दिल्ली के बीच मेवात के इलाके के एक खूबसूरत नौजवान सआदत खां वैसे तो अपने रोज़गार की तलाश में इन्दौर पहुंचे, परन्तु क़ुदरत को उनसे देश सेवा का बड़ा काम लेना था। सच तो यह है कि वे व्यक्ति महान होते हैं। जो कि अपने और अपने परिवार से ऊपर उठकर देश प्रेम और देश हित को सर्वोपरि रखते हैं। सआदत ख़ा भी देश के ऐसे ही एक होनहार सप्त थे। वह कई प्रतिभाओं के मालिक थे। उन्हें इन्दौर में तुकोजी राव होल्कर (द्वितीय) के शासन में तोप खाने में प्रमुख तोपची के पद पर नौकरी मिल गई थी। उस दौर में राजा और पूजा के बीच नज़दीकियां होती थीं। राजा या नवाब विशेषकर अपनी सेना के महत्वपूर्ण ओहदों पर पदस्थ सैनिकों के बारे में जानकारी तो रखता ही था, तुकोजी राव अपने प्रमुख तोपची सआदत ख़ां की ईमानदारी और वफ़ादारी से बहुत प्रभावित थे।

सआदत ख़ां जहां अपने राजा के वफ़ादार थे, वहीं देश प्रेमी भी थे। वह मन ही मन में देश को अंग्रेज़ों की ग़ुलामी से छुटकारा दिलाने की योजनाएं बनाते रहते थे। उन्हें कोई ऐसा मौक़ा नजर नहीं आ रहा था कि वह अपनी योजनाओं के अनुरूप कोई कार्य कर सकें। समय गुज़रता रहा, देश प्रेमी अपने अपने स्तर से और एक साथ मिल कर भी अंग्रेज़ों के खिलाफ आवाज़ उठाते रहे। सज़ाएं झेलते रहे। यहां तक कि देशवासियों का सब्र और सहन शक्ति का बांध 1857 के स्वतन्त्रता संघर्ष के रूप में फूट पड़ा। यह भी कहा जा सकता है कि वह मौक़ा आ गया था जिसका स्वतंत्रता सेनानी सआदत ख़ां को इन्तिज़ार था। उनके देश प्रेम ने ऐसे समय में उन्हें ख़ामोश नहीं बैठने दिया।

सआदत ख़ां ,मुहम्मद ख़ां भोपाली, मौलवी असद, रहमतुल्लाह, जमादार शेर खां, हवलदार दुर्गाप्रसाद के साथ आजादी का सपना :-

18 जून 1857 को इन्दौर में भी आन्दोलनकारियों ने अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ स्वतन्त्रता संघर्ष की कार्यवाही शुरू कर दी। क्रान्तिकारियों में हलचल आरंभ हो गई। इन्दौर के क्रान्तिकारियों का नेतृत्व सआदत ख़ां द्वारा किया गया। वारिस मुहम्मद ख़ां भोपाली, मौलवी असद, रहमतुल्लाह, जमादार शेर खां, हवलदार दुर्गाप्रसाद और तोपख़ाने के जमादार मुहम्मद अली ने प्रमुख से मिलकर अंग्रेज़ों को घेरने की योजना बनाई। सआदत खां एक फ़ौजी अधिकारी वंशगोपाल के साथ अपने राजा तुकोरावजी होलकर से भेंट के लिए पहुंच गण सहमत उन्होंने आज़ादी के संघर्ष में शामिल होने के लिए राजा को अपनी योजना बताई। सेना सहित स्वयं भी इस संघर्ष में भाग लेने की उन्होंने अनुमति चाही।

चूँकि तुकोजी राव भी आन्दोलनकारियां से हमदर्दी रखते थे इस कारण वह भी स नज़र आए। सआदत ख़ा के देश प्रेम के जोश को तो राजा साहिब का इशारा ही काफ़ी था। इतने पर ही वह आज़ादी की लड़ाई के लिए मैदान में कूद पड़े। उन्होंने सैनिकों को इकट्ठा करके जोशीले अन्दाज़ में देश की आज़ादी के लिए मर मिटने और मार डालने का आह्वान किया। सआदत ख़ां बहादुर ने सैनिकों से कहा- “तैयार हो जाओ। आगे बढ़ो। अंग्रेज़ों को मार डालो। यह महाराज का हुक्म है।” सभी देश प्रेमी सैनिक सआदत ख़ां की आवाज़ पर उठ खड़े हुए। वह कर्नल ड्यूरेण्ड रेज़ीडेंट पर हमला करने के लिए रेज़ीडेंसी पहुंच गए। उसे चारों ओर से घेर लिया। उन दिनों वहां कर्नल ट्रेवर्स भी मौजूद था।

सआदत ख़ां की जिन्दगी के पन्ने :-

तोपची सआदत विद्रोहियों के ख़तरनाक तेवर देख कर रेज़ीडेंट ड्यूरेण्ड समझ गया कि अब जान बचाना मुश्किल है। फिर भी उसने अपनी जान बचाने के लिए रेज़ीडेंसी के दरवाज़े पर पहुंच कर आन्दोलनकारियों से चापलूसी की बातें करनी शुरू कर दीं। सआदत ख़ां उसकी बातों को ताड़ गए। वह समझते थे कि अंग्रेज़ों से बदला लेने का यह अच्छा मौक़ा मिला है। उन्होंने उस अवसर को ग़नीमत जान कर ड्यूरेण्ड की मक्कारी की बातों पर ध्यान नहीं दिया और अपने राइफ़ल से उस पर गोली दाग़ दी।

जिससे ड्यूरेण्ड का एक कान और गाल का कुछ भाग उड़ गया। वह घायल हालत में भाग कर छिप गया। फिर क्या था, इन्दौर में विद्रोह और भी ज़्यादा भड़क उठा। सआदत ख़ा जो कि क्रान्तिकारियों के नेता थे उन्होंने भी अपने तोपख़ाने को गोले बरसाने के आदेश दे दिये। गोलाबारी में कई अंग्रेज़ मौत के घाट उतर गए। ड्यूरेण्ड यह हालात देख कर अपने परिवार सहित भाग खड़ा हुआ। यहाँ तक कि वह छिपते-छिपाते सिहोर जा पहुंचा। ऐसे हालात से डर कर अन्य अंग्रेज भी रेज़ीडेंसी छोड़, जिसको जिधर समझ में आया भाग निकला।

इधर विद्रोहियों ने मैदान साफ़ देख कर लूट-मार शुरू कर दी। अंग्रेज़ों के बंगलों दी। अंग्रेज़ी सेना के सामान तोप, गोले बारूद, सरकारी घोड़े, हाथी आदि अपने तोड़-फोड़ मचा क़ब्ज़े में कर लिए। रेज़ीडेंसी की कोठी पर भी विद्रोहियों का क़ब्ज़ा हो गया। आन्दोलनकारियों ने ख़ज़ाने में रखे लाखों रूपये लूट कर अपने क़ब्ज़े में ले लिए।

इस तरह अंग्रेज़ों और अंग्रेज़ शासन का विद्रोहियों द्वारा भारा नुकसान किया गया। विद्रोहियों के हौसले बुलन्द था वह लूट के सामान के साथ 4 जुलाई 1857 को अंग्रेजों के मुकाबले के लिए देवास की ओर आगे बढ़े। विद्रोहियों का यह उत्साह का खून-खराबा और लूट-मार बहुत लम्बे समय तक नहीं चल सका। अंग्रेजों ने अपनी चालबाज़ियों से सहायता प्राप्त करके धरि-धरि स्वतन्त्रता और फिरंगियों संघर्ष को काबू में कर लिया। उसके बाद पूरे देश में ही उनके द्वारा आन्दोलनकारियों और अन्य अवाम पर दरिन्दगी और जुल्म के पहाड़ तोड़े गए इसी तरह इन्दौर के विद्रोहियों की भी गिरफ्तारियां शुरू की गई। सआदत खां अंग्रेज़ों के हाथ नहीं लग सके। जो विद्रोही पकड़ में आ गये उनमें से कुछ को गोलियों का निशाना बना दिया गया। कुछ को फांसी के फन्दों पर लटका कर शहीद कर दिया गया। कुछ को उम्र कैद की सज़ा दी गई।

सआदत ख़ां और अंग्रेजों के बीच का इतिहास :-

अंग्रेज़ों को विशेष कर इन्दौर के क्रान्तिकारी नेता सआदत ख़ां की तलाश थी। वह क्रांतिवीर भूमिगत होकर कठिन जीवन गुज़ार रहे थे। अंग्रेज़ों ने वीर सआदत को पकड़वाने पर इनाम का एलान कर रखा था। उनके ही एक रिश्तेदार ने इनाम के लालच में आकर भारत के उस स्वतंत्रता सेनानी के साथ ग़द्दारी की। उस की मुखबिरी पर सआदत खां को लगभग बीस वर्षों के बाद 1877 में झालावाड़ में गिरफ़्तार कर लिया गया। उनका अंत भी वैसा ही हुआ

जैसा कि अन्य महान स्वतंत्रता सेनानियों का हुआ। सआदत खां एक ईमानदार क्रांतिवीर थे। जब वह गिरफ्तार किए गए, उस समय वह छुप कर एक छोटी नौकरी करके अपना गुज़ारा करते थे। हालांकि स्वतन्त्रता संघर्ष के समय इन्दौर रेज़ीडेंसी का लाखों रुपये का पूरा खज़ाना उनके पास आ गया था। लेकिन उन्होंने उस राशि को अपने पास न रखते हुए आन्दोलन की गतिविधियों में ख़र्च करने के लिए अपने साथियों को ही सौंप दिया।

सआदत ख़ां जिन्दगी का आखिरी सफ़र :-

अंग्रेज़ों द्वारा उन्हें गिरफ़्तार करके इन्दौर ही लाया गया तथा उन पर मुक़द्दमा चलाया गया। मुक़द्दमे के दौरान जब उन्हें फ़िरंगी अदालत में हाज़िर किया गया तो उन्होंने अपनी जान बचाने के लिए न तो अंग्रेज़ से माफ़ी मांगी और न ही अपने किए पर कोई दुख प्रकट किया आखिकार फ़िरंगी अदालत ने उन्हें मौत की सज़ा सुना कर फांसी के फन्दे पर लटका दिया। उस महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सआदत ख़ां को इसी देश की धर्ती में इन्दौर रेज़ीडेंसी के क़रीब ही दफना दिया गया। उस देश प्रेमी ने ईमानदारी और बहादुरी के साथ देश की स्वाधीनता के लिए लड़ाई लड़ी और ईमान के साथ ही देश की आज़ादी की ख़ातिर फ़िरंगियों के फांसी के फन्दे को चूम लिया।

महान स्वतंत्रता सेनानी क्रांतिवीर सआदत ख़ां और उनके अन्य साथियों की शहादतें इतिहास में सदैव अमर रहेंगी।

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