जिस दौर में हिंदुस्तान अंग्रेजों के काले कानूनों के नीचे लदा हुआ था उस समय इस देश में हर जगह आन्दोलन चल रहे थे जिसमें चाहे झारखण्ड हो या फिर मध्य प्रान्त या दिल्ली वहीँ दूसरी तरफ क्रांतिकारियों को जगाने के लिए हर तरफ प्रयास किये जा रहे थे जिसमें कोई लोक गीत गा रहा था तो कोई गाँव-गाँव जाकर सभाएं कर रहा था आज का यह लेख बुन्देलखण्ड स्वतन्त्रता संग्राम के गीत [ UPSC] मध्य प्रदेश का इतिहास के विषय में है |
स्वतन्त्रता संग्राम सेनानियों ने सेठ सुन्दरलाल के परिवार की हरसम्भव मदद की चरण पादुका हत्याकाण्ड के समस्त घटनाक्रम को बुन्देलखण्ड के लोक-कवियों ने कविता में पिरोया श्री भागीरथ शर्मा द्वारा सृजित यह लोकगीत बुन्देलखण्ड की आजादी का गीत बन गया|
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बुन्देलखण्ड स्वतन्त्रता संग्राम के गीत चरण पादुका हत्याकाण्ड के दौरान भागीरथ शर्मा द्वारा गया :-
चली फिरंगी गनमशीन जब बुन्देलखण्ड की जनता रोवै, भए राजा अत्याचारी। अंग्रेजन के गुलाम राजा, तिनके हम गुलाम भारी।। सत्ताईस कर हमरे सर पर कैसे चुकत चकाए से। है बेकारी कर्जा भारी, सूत पै सूत लगाये से। अरु सागान चौगुनी हो गओ, आछ रुपैया बीघा की। चुलयाउन, गुलयउन, व्यारी, महुठों और कठवा की। झरी, व्याई जेजिया लागे, पैला पोली है न्यारी ।। बुन्देलखण्ड की जनता रोवे,
रुखन के पेड़ो लागत है, जिन्ख बेंच माल खरो अरु खरीद पर न्यारी लागे, मजदूरी पर परो लगे निकासी आमद पर कर, जनम-मरन को न्यारो है नाग रुपैया पटवारी को, चौकीदार सिधारो है। हर बोलो बावन को चन्दा, खेल और खींची न्यारी ।।
बुन्देलखण्ड की जनता रोये….. लगत विगार कृषक मजदूरन, चमर गठरिया लागत है। पुलिस सिपाही निशदिन आयें, दूध मलाई माँगत है। कण्डा और लकरिया माँगे, खाट अरु जोरा लागत है। खरी और तेल तेलन से लेवें, गारी चार सुनावत है। छिरिया बुकरा देवे गड़रिया, इंडिया, नगरी, तिरकारी ॥ बुन्देलखण्ड की जनता रोवै,
भागीरथ शर्मा का यह गीत सबसे अनोखा था जो आज भी याद किया जाता है:-
लगे पोतनी माटी को कर, खपरा ईटन पत्तन की। नदिया की रेता को कर है, तथा पहाड़न पत्थर की । गाड़ी बैल को कर न्यारी, गया खच्चरो को लागे। पान बरेजन को कर बाड़ी, बरई लोग उठ उठ भागे। कीसे कहें सुनायें की खां, व्याकुल हो गये नर नारी ।।
बुन्देलखण्ड की जनता रोवै, गाड़ी बेला की बिगार में, आठ रोज भये जब गयेते। घर को हाल चाल सब विगरी, जबा सूख गये जो बयेते । घास उजर गओ ढोर हिरा गये, भूँखे लरका विटियां रो रये। मजदूरी कर पेट भरत ते, दोई तरी से मर मिट गए। करम फूट गए बड़े अभागी, विधना की है गति न्यारी ।।
बुन्देलखण्ड की जनता रोवे, चालीस सेर को सस्ती गल्ला, जुण्डी जवा विकत नईया। बीस सेर कोउ गोहूँ न लेवे, डेढ़ सेर को घी मइया । कुदवासमा बसारा खइये, बेचे माल बजारन में। तऊ पै टैक्स चुकत कछु नइयाँ, लुक छिप रइये हारन में । जब मुन्शी मन्सूर पधारे, तब जूतन की भर मारी।।
बुन्देलखण्ड की जनता रोवे …. उच्च कमेटी के नेतन में, हर रियासत में भ्रमण करो। दीन दुखी जनता समझाई, हर प्रकार से नहिं भरो।
तरपुरका चरणहत्याकाण्ड जनरल सभा करण सिने, चरणपादुका की ठानी। आगे संक्रान्ति सभा हित, चौदह जनवरि पहचानी । बुन्देलखण्ड की जनता उमड़ी, टोड़ी दल सम भयकारी ।। बुन्देलखण्ड की जनता रोवे पैतिस रियासत की जनता ने मिल-जुल एक विचार करो । के राजा यह टैक्स छुड़ायें, के उन हॉथन मरी मिटो। सन् इक्तीस चौदा जनवरि को, चरणपटुका पर आए । पैतिस राजा बुन्देलखण्ड के, ए.जी.जी. के ढिग थाए। भड़की जनता बस में करवे, करो फीज की तैयारी ।। बुन्देलखण्ड की जनता रोवे ….
स्वतंत्रता के सब नेतन खो, जबरन डाकू ठहराओ । भीलन की पलटन बुलवाई, शिविर फौज को लगवाओ । गनमशीन बन्दूक और टोंटा, लारी में भर मँगवाए। एक दिना पहले सब नेता, पकर जेल में पठवाए । यह लख जनता उखड़ परी सब, देख चकित भये अधिकारी ।। बुन्देलखण्ड की जनता रोवे ..
सालूराम उप नेता आये, जनता को समझावे खाँ । सभा करन की करी तयारी, सभा भूमि में आवे खाँ। अंग्रेजन ने करी मनाही, ना माने तब तई ठौलें, यह लख जनता दुखित भई सब, हर प्रकार नारे बोलें। चलन लंगी बन्दूकें खट-खट, भील फौज है हत्यारी ।।
बुन्देलखण्ड की जनता रोवे, …
चलीं फिरंगी गनमशीन तू, ढोर हिरन पंछी मारे । भरी सभा में भई अनहोनी ढूंढ-ढूँढ नेता मारे। बचे खुचे कछुपकर -पकर के, लारिन में वे बैठारे । जनता चिपट गई लारिन सें, तिन्हें कुचर भागी कारें । सो ले गये नौगाँव छावनी, जेल भरी जनता सारी ।। बुन्देलखण्ड की जनता रोवै, ….
जिनके घर के नेता मर गए, उनको घर फिर लुटवाए। बैल ढोर लीलाम कराए, और मकान फिर जरवाए। बुन्देलखण्ड के गाँव-गाँव में, फिर ढोड़ेरों पिटवाओ। जो सुराज की नाम लेओगे, तो हम कीला ठुकवाओ।
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बुन्देलखण्ड का स्वतन्त्रता संघर्ष गाँव-गाँव में पि ए फिशर ने करो दमन भीतई भारी॥ बुन्देलखण्ड की जनता रोवे, भये राजा अत्याचारी। अंग्रेजन के गुलाम राजा, तिनके हम गुलाम भारी।।
इस कविता के रचनाकार श्री भागीरथ शर्मा “कुसुमा एक प्रमुख लोक कवि होने के साथ-साथ स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी हैं। यह बुन्देली कविता उन्होंने बुन्देलखण्ड के देशी राज्यों के उत शासन की स्थापना हेतु किए गए आन्दोलन से पूर्व लिखी थी और आन्दोलन में उनकी इस कविता ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
यह गीत चरण पादुका हत्याकाण्ड का विस्तृत एवं प्रामाणिक वि प्रस्तुत करता है। लोक-कवि ने इस गीत का सृजन कर बुन्देलखण्ड में एक बार पुनः जन-चेतना एवं अंग्रेज़-विरोधी भावना प्रसारित कर बुन्देलखण्ड के एक और प्रमुख कवि श्री गोकुल प्रसाद ने 14 जनवरी 1932 को “छतरपुर की जन क्रान्ति” शीर्षक से यह बुन्देली कविता लिखी। श्री भागीरथ शर्मा की ही तरह इस बुन्देली कविता से भी चरण पादुका हत्याकाण्ड का विस्तृत एवं प्रामाणिक विवरण प्राप्त होता है –
छतरपुर की जन क्रान्ति के गीत:-
छतरपुर जन क्रान्ति का, है अनुपम इतिहास । वन शहीद निज खून दे, कर गए अमर प्रकाश ।। छतरपुर जन क्रान्ति का, है इतिहास विशाल । वन शहीद छब्बीस सुजन, चमका गए भूभाल ।। कछू शहीदों की कथा, है संक्षिप्त बखान । मूल-चूक क्षमियों सुजन, नहिं कविता कौ ज्ञान ।। सन् इकतिस में भई यहाँ, घोर क्रान्ति चहूँ ओर। लाख-लाख की भीड़ जुर, करी सभा घनघोर ।। असहयोग सरकार से, कीन्हा प्रजा अपार । पैसा एक लगान का, नहीं देना स्वीकार ।। जनता की माँगे नहीं, जब तक पूरी होय । तब तक आन्दोलन चले, पाइ न दैवे कोय ।।
छतरपुर के प्रचलित आन्दोलन गीत:-
राज कोष खाली हुए, हिलन लगी सरकार । जमींदार सारे बुला, कीनें यतन हजार ।। आन्दोलन के मूल मंह, है लोड़ी तहसील । भयो दमन दिल खोलकर, करी न तनकउ ढील ।। नगर लवपुरी में बसत, एक गनेश चमार। काश्तकार था एक वह, जन सेवक दिलदार ।। तहसीलदार बुलाय सिंह, माँगा देव लगान । नातर चमड़ी टौर वै, ये ही हैं ऐलान।। निर्भयता से कड़ककर, उत्तर दिया गनेश । माँगे पूरी बिन किए, कर की मिले न लेश ।। इक पिट्ठू श्री राम सें, बोले तहसिलदार । मारी डंडों से इसे, यह है नीच गँवार ।।
ज्यों-ज्यों डंडा तन लगे, तयों जय गाँधी कात । दे निरवई सरकार सें, वीर न हारी खात।। हँस-हँसत निज आन पै, हुआ वीर बलिदान । वन शहीद सुर पुर गया, जमा न किया लगान ।। जनता ने जिस दम सुना, हुआ एक बलि वीर । शमशन थाए सकल, होकर विकल अधीर ।। ले मरघट की राख को, मस्तक लिया लगाय । पल भर में ता भसम कौ, ढूँढे मिलों न ठाँव ।। भओ गनेश बलिदान में, जनता में अति जोश । ताह देख सरकार में, बाढ़ो फिर अति रोष ।। प्रजा दमन के हेतु तब, कीन्हों नओ उपाय। ए.जी.जी. इन्दौर से, लीन्हीं फौज मँगाय ।। गिरफ्तार मुखिया करे, फौज प्रदर्शन कीन । गाँव-गाँव में भय बना, पहुँचे सिंह पुरीन ।।
निज नेतों की कैद सुन, जनता जुरी अपार । कर विरोध कर कहत, सब अन्यायी सरकार ।। बुन्देलखण्ड का स्वतन्त्रता संघर्ष इतने में सरकार की सेना में आये अधिकारी भी उच्च थे,|
दीन्हीं रार बढ़ाय ।। नाहिं सुनी का चाहती, जनता जुर के आज। बरसाई गन गोलियों, प्रजा दबाने का || इस नर हत्या कांड में, मरे अनेकों लाल। भये शहीद निज देश पर, तिनको सुनो हवाल ।। हते गिलोहा ग्राम के वाणिक सुंदर लाल । गोली खा सुरपुर गए, तज पत्नी लघु बाल ।। लूटी सम्पत्ति फौज ने, सारी पहुँच मकान। थे इकलौते मात के, सुन्दर सुखद सुजान।। भओ अनाथ लघु बाल इक, विलखई तरुणीनार ।
वृद्ध मातु की हुई दुर्दशा, लखि हित होत विदार।। इस भाँति इस यज्ञ में, खिरवा वासी धीर । धर्मदास कुरमी हुए, मरके अमर अरवीर ।। गोली सीना खोल के, झेली जनहित काज सत्य धर्म का दास था, रखी देश की लाज ।। थी यह मंगलदास के, एक मात्र संतान पुत्र विछोहन में हुआ, तिनको कष्ट महान ।। माता से अंधी भई, पिता रुग्ण बेहाल। पत्नी केवल रह गई, करती शोक निढाल ।। जिनकी दशा विहाल लख, बहत नैन से नीर कर कम्पत गाथा लिखत, मन हो जात अधीर ।। इन्हीं गोलियों के हुए, चिर्रे वीर शिकार। जन्मभूमि जिसकी पिपढ़, गोमा कला बिहार ।। गये हते संक्रान्ति पर, चरणपादुका ठौर सभा करन लागे वहाँ, शंकर काँ कर जोर ।। चली दनादन गोलियाँ, नदी उर्मिला तीर । गोली लगतन गिर गये, चिर्रे भए अधीर ।।
छतरपुर का चरण पादुका हत्याकाण्ड जय गाँधी कह प्राण तज, सुरपुर किये पयान।
पीस पीस चक्की करत, मजदूरी नित दीन ।।
भई बुढ़ावे में अचल, हाथ कामाना देत ।
माता चिर्रे की विकल, कोउ खबर ना लेत ।।
यो चिर्रे निज देश पर, हुआ वीर बलिदान।।
था माता के एक ही, यह इकलौता लाल ।
सुत पुत्र वियोग में हो गई, विहल विकल विहाल ।।
बिना निज पेट का पालन श्रम सो कीन।
भये इस गोली काण्ड में, हल्के जी बलिदान ।
बंधियन ग्राम निवास था, यादव जाति निशान ।।
डरे न पलटन से भिड़ें, ले लाठी भय त्याज ।
बड़े साहसी थे अभय, हलके लाल अहीर।।
डरे न, गोली खा मरे, भये शहीद बलवीर ।।
इन कविताओं से हमें चरण पादुका हत्याकाण्ड में शहीद होने वाले लोगों को भी प्रामाणिक जानकारी मिलती है चरण पादुका स्थल पर शहीदों की स्मृति में एक स्मारक का निर्माण किया गया है। फिशर ने उस समय तो लोगों की भीड़ पर मालवा की पलटन से गोलियाँ चलवाकर लोगों को तितर-बितर कर दिया, मगर इस हत्याकाण्ड ने जन-आन्दोलन को और तेज कर दिया। जनता एक नवीन उत्साह के साथ आगामी आन्दोलन की तैयारी में जुट गई।
छतरपुर का चरण पादुका हत्याकाण्ड [निबंध] [UPSC]
टीकमगढ़ में स्वतन्त्रता संघर्ष [ कांग्रेस का इतिहास ] [UPSC] [M.P.]
जनरल शाहनवाज़ खान का इतिहास | पाकिस्तान में जन्मे इस क्रांतिकारी की कहानी
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14 जनवरी 1931 को मकर संक्रान्ति के दिन हुआ था