भारत देश की आजादी के लिए संघर्ष करने वाली कुछ महिलाओं ने मैदाने जंग में उतर कर तलवार और बन्दकों से फिरंगियों का मुकाबला किया। इसके अतिरिक्त कुछ ऐसी महिलाएं भी हुई जिन्होंने गैर हिंसक आन्दोलनों में हिस्सा लेकर अंग्रेज़ों का विरोध किया और विदेशी सामान का बायकाट करके उनको बड़ी आर्थिक हानि पहुंचाई। सुगरा खातून भी एक ऐसी ही देश प्रेमी मुसलमान महिला थीं, जिन्होंने देश की आज़ादी के लिए अपना धन-दौलत निछावर कर दिया। आज के इस लेख में सुरारा खातून और अमजदी बेगम [ मुस्लिम क्रांतिकारी ] के बारे में जानेंगे |
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सुरारा खातून का जन्म :-
सबसे पहले सुगरा खातून के बारे में जानेगे उसके बाद अमजदी बेगमके बारे में जानेगे , सुरारा खातून सय्यिद हादी और सईद्न्न-निसा बेगम के घर उस्मानाबाद में पैदा हुयी थी उस जमाने के चलन के अनुसार उनकी शादी कम उम्र में ही कर दी गई थी। उनके पति मुहम्मद ज़मीर एक धनवान व्यक्ति एवं बड़ी जायदाद के मालिक थे। उनका पारिवारिक जीवन हंसी-खुशी गुज़रता रहा। यहां तक कि उनके एक बेटी भी हो गई। मगर सुगरा ख़ातून के ख़ुशियों भरे दिन व रात लम्बे समय तक नहीं चल सके। उनके पति मुहम्मद ज़मीर का अचानक इन्तिकाल हो गया। अकेली सुगरा खातून पर बहुत बड़ी जिम्मेदारी आ पड़ी। जायदाद को लेकर सुसराल के झगड़ों से स्वयं को बचा कर वह अपनी मासूम बेटी के साथ अपने मामा के घर लखनऊ आकर रहने लगीं।
सुरारा खातून के पति का नाम मुहम्मद ज़मीर:-
उस समय देश की आज़ादी के आन्दोलन अलग-अलग रूप में चल रहे थे। सुहारा ख़ातून चारों ओर से अंग्रेज़ों की ज़्यादती की ख़बरें सुनकर उनसे नफ़रत करने लगी थीं। देश के हालात देख कर उनके दिल में भी आज़ादी की लड़ाई में हिस्सा लेने का जज़्बा पैदा हो गया। क्योंकि वह एक घरेलू पर्देदार महिला थीं, इसलिए बाहर निकलने में झिझकती थीं।
फिर भी देश की आज़ादी के जज़्बे ने उन्हें घर की चार दीवारी से बाहर ला खड़ा किया। वह पर्दे के साथ ही ख़िलाफ़त आन्दोलन में शामिल हो गई। जब उन्हें उच्च स्तर के नेता मुहम्मद अली, शौकत अली, पंडित जवाहरलाल नेहरू, मौलाना आज़ाद और बी अम्मा जैसी महिलाओं का साथ मिला तो उनका जोश और भी ज़्यादा बढ़ गया। अब तो सुग़रा ख़ातून ने आज़ादी के संघर्ष को अपने जीवन का उद्देश्य बना लिया था। वह सुबह से शाम तक देश की आज़ादी के संबंध में ही सोचतीं और आन्दोलनों में भाग लेती रहती थीं।
असहयोग आन्दोलन में हिस्सा:-
सुग़रा ख़ातून ने असहयोग आन्दोलन में हिस्सा लिया। उन्होंने क़ीमती, सुन्दर लिबास पहनना छोड़ कर खादी पहनना शुरू कर दिया। असहयोग आन्दोलन को पूरे देश में लागू करने के लिए बड़े पैमाने पर अभियान चलाया गया। रास्तों को रोका गया। उन्होंने व्यापारियों को विदेशी माल के बजाय देशी वस्तुओं का व्यापार करने पर मजबूर किया। उस आन्दोलन के कारण शासन में हड़कंप मच गया। अंग्रेज़ शासन यह अच्छी तरह समझता था कि अगर यह आन्दोलन सफल हो गया तो शासन को बहुत बड़ी आर्थिक हानि हो जायेगी। अंग्रेज़ शासन ने इसे रोकने के कई उपाय किए लेकिन आन्दोलनकारी भी मोर्चे पर डटे रहे। कांग्रेस के पुरुष एवं महिला सदस्यों ने रास्तों में लेट कर प्रदर्शन किए। उसमें सरोजिनी नायडू सुग़रा ख़ातून आदि भी शामिल थीं।
सुग़रा ख़ातून ने भारत छोड़ो आन्दोलन, सविनय अवज्ञा (सिविल नाफरमानी civil disobedience) आन्दोलनों में हिस्सा:-
एक घरेलू महिला सुग़रा ख़ातून ने भारत छोड़ो आन्दोलन, सविनय अवज्ञा (सिविल नाफरमानी civil disobedience) आन्दोलनों में भी खुल कर हिस्सा लिया। इसके अलावा उन्होंने आज़ादी की गतिविधियों को चलाने के लिए घर-घर जाकर चन्दे किये, पार्टी फंड को बढ़ाया। उन्होंने लोगों को आज़ादी के महत्व को समझाया। साथ ही अंग्रेज़ों के ज़ुल्म व सितम को भी बताया। अवाम को आज़ादी के आन्दोलनों में भाग लेने के लिए तैयार किया। सुग़रा ख़ातून ने देशवासियों के बीच आज़ादी के आन्दोलनों के लिए बुनियादी काम किए। जिस के कारण आन्दोलनों में मज़बूती आई।
सुग़रा ख़ातून ने आज़ादी के आन्दोलनों में स्वयं माली सहायता देने के लिए आज़ादी की मतवाली बी-अम्मा को अपने पचास तोले के ज़ेवर दान कर दिये। उनके इतने बड़े सहयोग को देख कर अन्य महिलाओं ने भी अपने सोने-चांदी के ज़ेवर देश की आज़ादी के फंड में दान किए। इस प्रकार उन्होंने अपना पूरा जीवन ही देश की आज़ादी के लिए समर्पित कर दिया। सुगरा खातून देश की सेवा करते हुए इस दुनिया को अलविदा कह कर अमर हो गई।
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अमजदी बेगम का इतिहास:-
किसी भी परिवार में यदि पति अपने आपको पत्नी के स्वभाव के अनुसार ढाल ले अथवा पत्नी अपने स्वभाव, अपनी चाहत और अपने जीवन के उद्देश्य को पति की चाहत के अनुरूप बना ले तो ऐसा परिवार किसी भी हाल में हो, वह अपने मन में सुख- चैन महसूस करता है। वह सफल परिवार कहताला है। रामपुर के सम्मानित परिवार की ऐसी ही एक अमजदी बेगम ने भी अपने स्वभाव, अपनी इच्छाओं और जीवन के उद्देश्य को अपने पति मौलाना मुहम्मद अली जौहर के विचारों के अनुरूप ढाल लिया था।
इसी कारण उन्हें अपने पति के साथ देश की आज़ादी के आन्दोलनों में हिस्सा लेना कोई कठिन काम नहीं लगता था। हालांकि जब भी मौलाना मुहम्मद अली जौहर पर कोई परेशानी आती, तो उसका सीधा प्रभाव अमजदी बेगम पर भी पड़ता था। चाहे उनके गिरफ़्तार होकर जेल जाने का मामला हो या किसी आन्दोलन के लिए बाहर जा कर रहना हो। अमजदी बेगम की तनहाई और पारिवारिक कार्यों में आए दिन बाधाओं का आना ही उनके लिए परेशानी का कारण था।
अमजदी बेगम का हिंदुस्तान की आजादी में योगदान:-
मौलाना मुहम्मद अली जौहर देश की आज़ादी के एक बड़े नेता होने के कारण बहुत व्यस्त रहते थे। कभी ख़िलाफ़त मूव्मेंट की गतिविधियों के कारण तो कभी किसी अन्य आन्दोलन अथवा सत्याग्रह में भाग लेने के कारण। यहां तक कि जब अंग्रेज़ शासन उनको गिरफ़्तार करके जेल पहुंचा देता, उस समय भी अमजदी बेगम हाथ पर हाथ रखे घर में नहीं बैठती थीं। वह इस बात को मानती थीं कि देश की आज़ादी की लड़ाई में अपने पति का सहयोग करना एक अलग बात है और स्वयं उसके आन्दोलन को चलाना अलग है। उन्होंने अपने पति मौलाना मुहम्मद अली जौहर के गिरफ़्तार रहने की स्थिति में जलसों को सम्बोधित करने के लिए गांधी जी के साथ यात्रा की।
अमजदी बेगम स्वदेशी आन्दोलन से सहमत थीं। देशी वस्तुओं को खरीदना उनको अपने उपयोग में लाना वह ज़रूरी समझती थीं। उसके महत्व को समझाने के लिए उन्होंने अपने पर्दे का लिहाज़ रखते हुए मर्दों और महिलाओं को अनेकों स्थानों पर जाकर समझाया। वह विदेशी कपड़ों और वस्तुओं को उपयोग में लाने को अच्छा नहीं समझती थीं।
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