भारत देश में ऐसे बहुत से क्रांतिकारी हुए जिन्होंने इस देश की आजादी के लिए अपन सब कुछ कुर्बान कर दिया लेकिन किताबों और लाइब्रेरीयों ने उनको याद करना उचित नहीं समझा ऐसी ही कहानी सय्यिद अहमद शहीद की है जिन्हें भारत देश की आजादी के बाद, पूरी तरह से भुला दिया गया
इससे पहले सय्यिद अहमद के बारे में लिखे और पढ़े, भारत के इतिहास में ऐसे और भी महापुरुष हुए जिनके बारे में रिसर्च किया जाना चाहिए यदि आप इन महापुरुष के बारे में जानना चाहते है तो (शाह वलिय्युल्लाह मुहद्दिस देहलवी , शाह अब्दुल अज़ीज़ मुहद्दिस देहलवी, टीपू सुल्तान , हाजी इमदादुल्लाह मक्की) जान सकते है
भारत में बसने वाले सभी धर्मों को मानने वालों ने देश की आजादी में भाग लिया और गुलामी की जंजीरों को काटने के प्रयास किया लेकिन एक महत्वपूर्ण बात यह है वर्तमान में समाज और सरकार के नुमाइन्दों ने इस देश के मुसलमान समुदाय की लड़ाई का दर्जा भुला दिया
जिस जिहाद के नाम पर आज उन्हें देश प्रेम का बदला उनकी कुरबानी के अनुरूप देने की बजाये. उन्हें और उनके धर्म इस्लाम को आतंकी कह कर चुकाया जा रहा है।
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सय्यिद अहमद सेनानी का जन्म:-
आजादी के ऐसे ही एक महान सेनानी सय्यिद अहमद शहीद भी थे इनका जन्म 29 नवम्बर 1786 में रायबरेली के एक दीनदार घराने में हुआ, वह उस समय की बुजुर्ग हस्ती मुहम्मद इरफ़ान साहिब के बेटे थे। अपने घराने की दीनदारी का असर सय्यद अहमद शहीद में भी आया था। उन्हें अपने वतन हिन्दुस्तान से बहुत मुहब्बत थी। यही कारण था कि वह अपने मज़हबी उसूलों की पूरी तरह पाबन्दी करते हुए वतन की आज़ादी की लड़ाई में जान निछावर कर –“शहीद” कहलाए।
सय्यिद अहमद सेनानी का बचपन:-
कहते है कि इनकी पढ़ाई में कोई विशेष दिलचस्पी नहीं थी 12 वर्ष के थे उस समय बूढ़ों, कमज़ोरों, विधवाओं की मदद करते रहना पसंद करते थे या ये कहें यह बचपन से ही बूढ़ों, कमज़ोरों, विधवाओं की मदद करना आदत था। वह व्यायाम करने के भी बहुत शौक़ीन थे। प्रति दिन कसरत करने के कारण वह शरीर से बहुत मज़बूत हो गए थे। उधर अल्लाह पाक की याद में मशगुल रहने में उनकी रूहानी ताकत भी बहुत बढ़ गई थी।
वह बचपन में अपने साथियों के साथ किलों को फ़तह करने, जीत और हार के खेल खेला करते थे। कुदरत जब किसी व्याक्ति से कोई खास काम लेना चाहती है तो उस के अन्दर आरंभ से ही विशेष जज्बा पैदा कर दिया करती है।
सय्यिद अहमद सेनानी की जवानी:-
समय गुज़रता रहा, हालात आते और जाते रहे। समय के साथ-साथ सविद अहमद शहीद की आयु भी बढ़ती गई। जब उनकी उम्र 17 वर्ष की हुई तो अचानक उनके वालिद का साया उनके सर से उठ गया। इस कारण उन पर घरेल ज़िम्मेदारियां भी बढ़ गई। उन्होंने रोज़गार की तलाश में अपने कुछ दोस्तों के साथ लखनऊ का सफ़र किया।
उस समय वहां नवाब सआदत अली ख़ां का शासन था वहां पहुंच कर भी उन्हें कोई ऐसा काम नहीं मिला जो कि उनके रोज़गार के हिस से मुनासिब होता। कुछ समय सोच-विचार के बाद वह वहां से चल कर अब्दुल अज़ीज़ साहिब के पास दिल्ली पहुंचे।
सय्यिद अहमद सेनानी और दिल्ली:-
जब उनका शाह अब्दुल अज़ीज परिचय हुआ तो उन्होंने सम्मिद अहमद शहीद का बहुत सम्मान किया सय्यिद साहिब को अब्दुल कादिर साहिब के पास मेहमानी के लिए पहुंचा सय्यिद अहमद शहीद ने शाह अब्दुल अज़ीज़ और अब्दुल कादिर साहि शागिदी में मजहबी तालीम भी हासिल की और उनकी सोहबत में अपने वतन प्रेम का जज्बा भी बढ़ाया। साथ ही अल्लाह पाक की याद में उन्होंने मन को लगाया। इस तरह अहमद शहीद का शुमार उनकी इबादत के कारण मज़हबी बुजुर्गों में होने लगा।
अपने दूसरी और अंग्रेज़ मुल्क और माल के लालच में हिन्दुस्तान पर अपना क बढ़ाने के नापाक इरादों से कदम बढ़ाते आ रहे थे। वैसे तो उस समय के अधिक धार्मिक उलमा अंग्रेज़ों की इन हरकतों के ख़िलाफ़ थे, इसी कारण वह देश के लिए किसी भी तरह की कुर्बानी देने को सदैव तैयार रहते थे। साथ ही दूसरे लोगों को फ़िरंगियों के खिलाफ संघर्ष के लिए तैयार रखते थे।
सय्यिद अहमद शहीद और उनके उस्ताद शाह अब्दुल अज़ीज़ अंग्रेजों की गुलामी को बहुत बड़ा बोझ समझ थेो वे किसी भी हालत में देश को गुलामी से छुटकारा दिलाना चाहते हिन्दुस्तान पर अंग्रेज़ों की बढ़ती हुई ताकत को देख कर शाह अब्दुल अजीज ने शाह बलिय्युल्लाही तहरीक शुरू कर दी। इस आन्दोलन के द्वारा अंग्रेजों के विरुद्ध जिहाद छेड़ने के लिए इसका नेतृत्व सय्यिद अहमद शहीद को सौंप दिया।
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सय्यिद अहमद शहीद और नवाब अमीर ख़ां:-
जब नवाब अमीर ख़ां के लश्कर ने अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ संघर्ष आरंभ किया तो सय्यिद अहमद शहीद को भी नवाब अमीर के लश्कर में भेजा गया। वह अंग्रेज़ों के विरुद्ध मैदाने जंग में बहादुरी से लड़े। इसी बीच नवाब अमीर ख़ों को किसी कारणवश अंग्रेज़ों से सुलह करनी पड़ी। यह देख कर शाह अब्दुल अजीज रे सय्यिद अहमद शहीद को वापस बुला लिया।
इन्होंने हिन्दुस्तान को अंग्रेज़ों की गुलामी से आज़ाद कराने के लिए कई प्रयास किये। उन्होंने सय्यिद अहमद शहीद के नेतृत्व में अपने दामाद मौलाना अब्दुल हई और शाह इस्माईल शहीद की एक कमेटी बनाई। उस कमेटी को फ़िरंगियों के विरुद्ध कार्यवाही के लिए बहुत व्यवस्थित ढंग से काम करना था। सय्यिद अहमद शहीद की कमेटी का पहला काम सम्पूर्ण देश में दौरा करके देशवासियों में क्रांति की भावना पैदा करना था।
दूसरे, जिहाद की तैयारी के लिए प्रत्येक जगह रजाकारों (वालियंटर्स) को भर्ती करके उन्हें फ़ौजी ट्रेनिंग देनी थी। इतनी बड़ी कार्यवाही को सुचारू रूप से चलाने के लिए रक़म का भी प्रबन्ध करना था। इसके अलावा अन्य देशों से सम्बन्ध बनाना था, ताकि बाहरी देशों द्वारा भी से सम्बन्ध बनना था ताकि बाहरी देशों द्वाराफिरंगियों पर दबाव डाला जा सके।
इस तरह हिन्दुस्तान पर काबिज ब्रिटिश सरकार से बाकायदा जंग करने की जिम्मेदारी उन्हें सौंपी गई। सरियद अहमद शहीद ने अपने मिशन के अनुसार लगभग पूरे देश का दौरा करके फिरंगियों के खिलाफ माहौल बनाया। वह जहां भी गए उन्होंने उपदेश देने के साथ साथ अंग्रेजों के विरुद्ध जिहाद के लिए तैयार रहने के संदेश भी दिए। इस तरह उन्होंने अपने हजारों मानने वालों को गुलामी के जाल को काट फेंकने के लिए. तैयार किया। उनके प्रयासों से बहुत बदलाव आया और अवाम में जागरूकता एवं हिम्मत पैदा हुई।
सय्यिद अहमद शहीद और अंग्रेज:-
अंग्रेज शासन को सय्यिद साहिब की गतिविधियों की पूरी जानकारी थी। वह उनके प्रयासों को अपने रास्ते का कांटा समझते थे, परन्तु वह उनके खिलाफ कार्यवाही के लिए उचित समय के इन्तिज़ार में थे। उन्होंने सय्यिद साहिब के विरुद्ध एक शातिराना चाल चली, जिससे उन्हें बदनाम करके मुसलमानों के बीच आपसी टकराव पैदा किया जाये। क्योंकि इसी बीच सय्यिद अहमद शहीद हज का फ़रीज़ा अदा करने भी गए थे। अंग्रेजों ने पूरी ताक़त से यह अफ़वाह फैला दी कि सय्यिद अहमद अरब जाकर वहाबी तालीम हासिल कर रहे हैं और वह वहाबी हो गए हैं।
अंग्रेजों का हमेशा से यही तरीका रहा है कि जब भी उनको विरोधी पक्ष दा उसका आन्दोलन मज़बूत नज़र आता, वह अपनी मन गढ़न्त अफवाहों या झूठी चालों से आपसी टकराव पैदा कर आन्दोलन को कमजोर कर दिया करते थे। हुआ भी यही कि अंग्रेज की उस झूठी अफवाह से सय्यिद साहिब के प्रयासों पर विपरीत प्रभाव पड़ा। फ़िरंगियों का मक़सद भी यही था। आज भी फासीवादी शक्तियां इसी प्रकार साज़िश करती रहती हैं।
अफसोस है कि स्वयं मुसलमान, एक अल्लाह, एक रसूल, एक क़ुरआन, एक दीन को मानने का दावा करते हुए भी अल्लाह, रसूल, दीने और कुरआन ही का नाम लेकर अल्लाह, रसूल व कुरआन को तालीमात के ख़िलाफ़ आपस में लड़ते, क़त्ल व गारत गरी करने और अपनी हवा उखाड़ कर इस्लाम-दुश्मन ताक़तों को फ़ायदा पहुँचाते और इस्लाम को नुक़सान पहुँचाते हैं।
सय्यद अहमद शहीद हज करके अपने वतन हिन्दुस्तान वापस लौट आए। अब उन्होंने अंग्रेजों से जिहाद के लिए सरहदी प्रांत का ऐसा इलाका चुना जहाँ मुसलमान पठानों की बड़ी संख्या थी। फिरंगियों ने नई चाल यह चली कि सरहद के पठानों को कमज़ोर करने के लिए पंजाब के महाराजा रणजीत सिहं को अपने साथ मिला लिया। इसके जवाब में सय्यिद अहमद शहीद ने सरहदी सूबे में आज़ाद हुकूमत की स्थापना का एलान कर मुजाहिदीन का आन्दोलन शुरू करा दिया।
सवियद अहमद शहीद चूँकि एक दीनदार व्यक्ति थे, इस उन्होंने कारण माल व दौलत और हुकूमत का लालच उनके मन में नहीं था। उनका मकसद तो विदेशी गुलामी से अपने मुल्क हिन्दुस्तान को आज़ाद कराना था। इस सन्दर्भ में उन्होंने आस-पास के राजाओं, सरदारों और रईसों को पत्र भी लिखे ताकि वे भी उनके आन्दोलन में सहायता करें। जिससे अंग्रेज़ों को उखाड़ फेंकने में मदद मिल सके।
सवियद अहमद शहीद का पत्र”
इन्होने अपने बहुत से लेख लिखे, जिसमेंसे एक लेख का अनुवाद यहाँ किया गया है “हुकूमत कायम के बन्दों पर कोई जुल्म ब ख़ुदा गवाह है कि हमारी मंशा न दौलत जमा करना है न अपनी करना। हम तो ख़ुदा के नाचीज़ बन्दे हैं। न हम ख़ुदा ज्यादती करना चाहते हैं। न किसी की हुकूमत छीन लेने का हमारे दिल में कोई जज्बा है। हमारी मंशा तो बस विदेशियों से अपने वतन अज़ीज़ को आजाद कराना है”
इसी प्रकार राजा हिन्दू राव आदि को भी सय्यिद अहमद शहीद ने पत्र लिखा था जिसका अनुवाद इस प्रकार है
“जनाब को खूब मालूम है कि वे बेगाने और अजनबी जो वतन अजीज से बहुत दूर दराज के रहने वाले हैं दुनिया जहान के बादशाह बन गए। जिनकी हैसियत और असलियत एक सौदागर से ज़्यादा नहीं है। वे बादशाहत की हैसियत पा गए हैं। उन फिरंगियों ने बड़े बड़े अमीरों-रईसों की रियासतों को बर्बाद कर दिया है। उनकी हैसियतों को ख़ाक में मिला दिया है। ऐसे विदेशियों को उखाड़ फेंकने के लिए हम आपकी मदद चाहते हैं”
एक ख़त और है जिसका वर्णन अवश्य होना चाहिए
फ़िरंगी यह अच्छी तरह सझते थे कि कब और किस समय लालच देकर आपस में फूट पैदा करनी है। हुआ यही कि अंग्रेजों ने पंजाब के शासक महाराजा रणजीत सिंह को समर्थन और सहायता का वादा करके पंजाब के मुसलमानों को कमज़ोर करने पर राज़ी कर लिया। इसी प्रकार वहां के असरदार मुसलमानों से भी अंग्रेजों ने समझौता कर लिया।
जिस के कारण उन्होंने सविद अहमद शहीद को उस सम आजादी की लड़ाई में साथ नहीं दिया। सव्विद साहिब ने अंग्रेजों और उनके सहयोगियों से भी मुक़ाबला किया। इस प्रकार अंग्रेज़ों के विरुद्ध चलाए जा रहें सय्यिद साहिब के आन्दोलन को बहुत नुकसान पहुंचा।
अब अंग्रेज़ों ने शाह वलियुल्लाही तहरीक को, जिस के तहत सच्यिद अहमद उनसे जिहाद छेड़े हुए थे, बदनाम करना शुरू कर दिया। उस तहरीक को वहाबी तहरीक के नाम से मशहूर कर दिया। इस अफवाह को बड़े स्तर पर फैलाया गया। इसका नतीजा यह हुआ कि क़बाइली पठान जो कि वहाबी तहरीक को पसंद नहीं करते थे, फ़िरंगी अफवाहों के असर में आ गए। उन्हें सय्यिद अहमद की मुस्लिम जिहादी सेना, वहाबी फ़ौज नज़र आने लगी।
सवियद अहमद शहीद की जिन्दगी का आखिरी समय:-
अंग्रेज़ों ने अपनी शरारती हरकतों और झूठी अफवाहों से इतना बहकाया कि क़बाइली पठान जज़्बात में आ गए। क़बाइली पठानों ने सव्यिद अहमद के मुजाहिदीन पर ही हमले शुरू कर दिये। उधर महाराजा रणजीत सिंह की फौज से भी, जिसका नेतृत्व उसका बेटा शेर सिंह कर रहा था. सविद अहमद के मुजाहिदीन को लड़ना पड़ा। इस तरह आपस में ही लड़वा कर फ़िरंगी तमाशा देख रहे थे। हिन्दुस्तान का वह सूफी सिफत स्वतन्त्रता सेनानी अपनों और परायों की परवाह किए बगैर लड़ता रहा।
7 मई सन् 1831 को वह घड़ी भी आ गई जब कि सव्यिद अहमद अपने दिल में वतन की आज़ादी का ख्वाब लिए हुए बालाकोट की लड़ाई मे शहीद कर दिए गए। उनके साथ सैकड़ों स्वतन्त्रता सेनानी भी वतन की आज़ादी पर अपनी जानें क़ुर्बान करके शहीदे वतन बन गए।
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29 नवम्बर 1786 में रायबरेली के एक दीनदार घराने में हुआ था
मुहम्मद इरफ़ान साहिब
सविद अहमद शहीद
सय्यिद अहमद शहीद की मृत्यु कब हुयी थी ?
7 मई सन् 1831