समान नागरिक संहिता [UCC][PDF Download]
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समान नागरिक संहिता [UCC][PDF Download]

by रवि पाल
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वैसे तो जब से हिंदुस्तान आजाद हुआ है तब से यह मुद्दा किसी न किसी रूप में आ ही जाता है  समान नागरिक संहिता (uniform  civil code) समझने से पहले चार- पांच बातों को समझना अति आवश्यक है जोकि निम्नलिखित है|

जब हम हिंदू की बात करेंगे तो आपके लिए यह समझना बहुत जरुरी हो जाएगा कि हिंदू का मतलब सिर्फ हिंदू नहीं है, यहां हिंदू का मतलब = हिंदू, जैन, बौद्ध और सिख है |यह सब धर्म हिंदू में आते है | 

समान नागरिक संहितापर एतिहासिक परिप्रेक्ष्य :-

1 – ब्रिटिश शासन :- नागरिक मामलों में एक रूपता का आभाव था क्योंकि धार्मिक रीति- रिवाजों और परम्पराओं पर आधारित व्यक्तिगत कानूनों को विभिन्न समुदायों के लिए मान्यता दी गयी थी | समान नागरिक संहिता का विचार एस विखंडन की प्रतिक्रिया के रूप में और एक सामान्य नागरिक पहचान को बढ़ावा देने के साधन के रूप में उभरा |

2 – पुर्तगाली शासन :- जब वर्ष1961 तक गोवा पुर्तगाली शासन के अधीन था तब तक पुर्तगाली नेपोलियन कोड पर आधारित एक समान नागरिक संहिता लागू की गयी थी  |

3 – नेहरुवादी द्रष्टिकोण:- जवाहरलाल नेहरु ने एक आधुनिक और प्रगतिशील भारत की और UCC(यूसीसी) को राष्ट्र-निर्माण के एक आवश्यक तत्व के रूप में देखा है |उनका मनना था कि इसको धर्म के आधार पर विभाजन को खत्म करने और नागरिक के बीच समानता को बढ़ावा देने में मदद करेगा |

4 – हिंदू कोड बिल :- हिंदू कोड बिलमें विवाह, तलाक, गोद लेने और विरासत से संबंधित  हिंदू व्यक्तिगत कानूनों को संहिताबृद्ध और आधुनिक बनाने की मांग की गयी थी | इसे UCC(यूसीसी)  की दिशा में एक कदम के रुप में देखा गया क्योंकि इसका उद्देश्य हिंदू समुदाय के भीतर व्यक्तिगत कानूनों में एकरूपता लाना था |

5 – शाह बानो मामला :-इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने लैगिक न्याय और सभी धार्मिक समुदायों में महिलाओं के लिए समान अधिकार सुनिश्चित करने के लिए UCC(यूसीसी) की आवश्यकता पर बहस छोड़ दी|

समान नागरिक संहितापर संविधानिक परिप्रेक्ष्य:-

1 – संविधान सभा की बहसें :- भारतीय संविधान के निर्माण के दौरान, बहसों के विविधद्रष्टिकोण देखे गए, कुछ सदस्यों ने लैंगिक समानता और धर्मनिरपेक्षता को बढ़ावा देने के तरीके के रूप में UCC(यूसीसी) की वकालत की, जबकि अन्य के धार्मिक और संस्कृतिक अधिकारों के संरक्षण के बारे में चिंता व्यक्त की |

2 – राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत :- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 44 में कहा गया है कि राज्य अपने नागरिकों के लिए पूरे भारत में एक समान नागरिक संहिता सुनिश्चित करने का प्रयास करेगा |

3 – धर्मनिरपेक्षता:- भारतीय संविधान धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत को स्थापित करता है, जो धर्म और राज्य अलग करने का आदेश देता है तथा UCC(यूसीसी) को सभी नागरिकों के साथ उनकी धार्मिक संबद्वता की परवाह किये बिना समान व्यव्हार सुनिश्चित करके धर्मनिरपेक्षता को बढ़ावा देने के एक तरीके के रूप में देखा जाता है |

4 – समानता और गैर- भेदभाव :- भारत का संविधान के आर्टिकल 14 के तहत कानून के समक्ष समानता की गारंटी देता है, और धर्म, नस्ल , जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव रोक लगाता है | UCC(यूसीसी) सभी नागरिकों के लिए, उनकी धार्मिक पृष्ठभूमि की परवाह किए बिना, समान अधिकार और समान व्यव्हार सुनिश्चित के इन सिद्धान्तों को कायम रखेगा |

5 – लैंगिक न्याय :- संविधान समानता के अधिकार और लिंग के आधार पर भेदभाव के खिलाफ अधिकार की गारंटी भी देता है UCC(यूसीसी) को लैंगिक न्याय को बढ़ावा देने के साधन के रूप में देखा जाता है |

समान नागरिक संहिता UCC(यूसीसी) की आवश्यकता क्यों :-

सुप्रीम कोर्ट से संबंधी मामले :-

  1. शाहबानो केस 1985 :- एक मुस्लिम महिला थी इनके पति का नाम अहमद खान था जोकि न्यायालय में वकील थे| अहमद खान ने अपने से छोटी उम्र की लड़की से निकाह कर लिया उसके बाद इन्होने अपनी पहली पत्नी शाहबानो को घर से निकाल दिया, हिंदू मैरिज कोड बिल किसी भी व्यक्ति को बिना तलाक दिए किसी और महिला से विवाह करने की इजाजत नहीं देता है लेकिन मुस्लिम धर्म में ऐसा नहीं है, अहमद खान ने बिना तलाक दिए दूसरी शादी कर लि थी फिर मामला कोर्ट में चला गया और इनका एक इतिहास बन गया | शाहबानो 62 वर्ष तक अकेली रही, इसमें एक महत्वपूर्ण बात यह है कि जो भी इनके पति इनको भत्ता (रूपया) दिया करते थे उतने में इनके और इनके 3 बच्चों का निर्वाहन नहीं हो पा रहा था |
  • सरला मुद्रल केस: 1995 इसी तरह सरला मुद्रल केस का मामला है जिसको हम अपने दुसरे blog में अच्छे से समझेंगे और PDF बनायेंगे |
  •  शायराबानो केस 1917:-उधहरण के लिए इसको ऐसे समझते है |

व्यक्तिगत कानून विभिन्न समुदायों को कैसे नियंत्रित करते है :-

हिंदू:-

  1. हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के अधिनियम के बाद संसोधित हिंदू पर्सनल लॉ,हिंदुओं पर लागू होता था | ज्याग किये हुए हिंदू, अभी भी हिंदू कानून के तहत है |
  2. विशेष विवाह अधिनियम में हिंदू पर्सनल लॉ , विशेष विवाह अधिनियम, 1955 के तहत विवाहित हिंदू अभी भी हिंदू लॉ द्वारा शासित होते है |

मुसलमान :-

मुस्लिम पर्सनल लॉ , विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के तहत विवाहित मुस्लिम अब मुस्लिम पर्सनल लॉ द्वारा शासित होते है |

विधि आयोग के विचार :-

भारत का 21वाँ विधि आयोग :- इसको कहा कि “समान नागरिक संहिता का मुद्दा व्यापक है, और इसके संभावित प्रभाव भारत में अप्रयुक्त है”| इसमें कहा गया है कि “इस स्तर पर UCC(यूसीसी) न तो आवश्यक है न ही वांछनीय है” |

सरकार ने भारत के 22वें विधि आयोग से यूसीसी से संबंधित विभिन्न मुद्दों कीजाँच करने’ के लिए कहा था | 

समान नागरिक संहिता चिनौतियां:-

  1. विविध व्यक्तिगत कानून और प्रथागत प्रथाएँ
  2. धार्मिक और अल्पसंख्यक समूहों का विरोध
  3. राजनीतिक इच्छाशक्ति और आम सहमति का आभाव
  4. व्यावहारिक कठिनाइयाँ एवं जटिलतायें

समान नागरिक संहिता के पक्ष में तर्क :-

  1. राष्ट्रीय एकता और धर्मनिरपेक्षता
  2. लैंगिक न्याय और समानता
  3. क़ानूनी व्यवस्था का एकीकरण एवं युक्तिसंगत
  4. पुरानी प्रथाओं का आधुनिकीकरणएवं सुधार

आगे का रास्ता :-

  1. भारत में समान नागरिक संहिता UCC(यूसीसी) के कार्यान्वयन के लिए एक संतुलित द्रष्टिकोण की आवश्यकता है जो बहुसंस्कृतिवाद और विविधता का सम्मान करता है |
  2. विभिन्न दृष्टिकोणों पर विचार सुनिश्चित करने के लिए धार्मिक नेताओं और क़ानूनी विशेषज्ञों सहित हितधारकों के साथ समावेशी चर्चा आवश्यक है |
  3. प्रतिक्रियाशील संस्कृतिवाद से बचते हुए समानता और लैंगिक न्याय में बाधा डालने वाली प्रथाओं को खत्म करने पर ध्यान केन्द्रित किया जाना चाहिए |
  4. मुस्लिम पर्सनल लॉ की सुधार प्रक्रिया का नेतृत्व मुस्लिम पादरी द्वारा किया जाना चाहिए और मुसलमानों को समानता और न्याय को बढावा देने के लिए प्रथाओं की आलोचनात्मक जाँच होनी चाहिए |
  5. इसका उद्देश्य एक न्याय संगत और समावेशी समान नागरिक संहिता UCC(यूसीसी) विकसित करना है जो संवैधानिक मूल्यों को कायम रखता है |

FAQ

समान नागरिक संहिता [UCC] में हिंदू धर्म को कितने भागों में बांटा गया है ?

यहां हिंदू का मतलब = हिंदू, जैन, बौद्ध और सिख है, यह सब धर्म हिंदू में आते है|

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