इस लेख में भारत की विदेश नीति (WHAT IS FOREIGN POLICY) के बारे में समझेंगे कि यह कब से लागू हुयी और इसके बारे में क्या- क्या समझना बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है वर्तमान में देखा गया है कि किसी न किसी परीक्षा में यहाँ से कुछ न कुछ सवाल जरुर पूंछे जाते है|
- कोई भी देश अपने राष्ट्र हित की वृद्धि के लिए अन्य देशों के साथ अपने संबंध किन्ही सिद्धांतों या नियमों के तहत संचालित करता है जिसे विदेश नीति कहा जाता है।
- विदेश नीति सिद्धांतों, हितों और लक्ष्यों का समूह है।
- विदेश नीति शासक वर्ग की इच्छा का ही परिणाम होती है।
- अत: यह बात स्पष्ट है की विदेश नीति हर देश की अपने हितों के हिसाब से अलग-अलग होती है।
- विदेश नीति के बनने के पीछे अनेक कारण होते है जिनमें से एक कारण इतिहास होता है |
- जिसका प्रभाव भारतीय विदेश नीति की नीव मानी जाती है।
- विशेष राज्य का दर्जा (विशेष श्रेणी / एससीएस) की विशेषताएं क्या है?
- सी-सेक्सन/ Caesarean Delivery डिलिवरी के आंकड़े दिन-प्रतिदिन बढ़ते दिख रहे है, पूरी जानकरी क्या है?
- लोक सभा में अध्यक्ष तथा उपाध्यक्ष का चुनाव तथा नियम 8 की जानकारी बहुत महत्वपूर्ण है
- लोकसभा उपसभापति/उपाध्यक्ष की भूमिका और इतिहास का वर्णन कीजिये
- भारतीय इतिहास में किलों की प्रथम खोज कब हुयी थी पूरी जानकरी देखिये |
विदेश नीति को कैसे पढ़े :- HOW TO STUDY INDIAN FOREIGN POLICY
- पहली चीज़ दिमाग में यह साफ होनी चाहिए की विदेश नीति भारत के संबंध मे बहुत पुरानी है।
- कौटिल्य के अर्थशास्त्र में मण्डल सिद्धान्त के तहत सर्वप्रथम विदेश नीति का स्पष्ट उदाहरण देखने को मिलता है।
- लेकिन साथ ही यह एक आधुनिक विचार भी है क्योंकि भारत एक राज्य के रूप में 1947 में उभर कर सामने आया।
- इससे पहले यह 565 देशी रियासतों में बंटा हुआ था और हर रियासत अपने हित के हिसाब से दूसरी रियासत से संबंध बनाती थी, हमे उस इतिहास में जाने की कोई आवश्यकता नहीं है।
- विदेश नीति एक स्वतंत्र राष्ट्र मे ही संभव है इसलिए भारत की विदेश नीति का अध्ययन 15 अगस्त 1947 के बाद ही किया जाता है।
FRAMEWORK TO STUDY FOREIGN POLICY:-
भारतीय विदेश नीति को समझने के लिए आप अलग अलग फ्रेमवर्क बना सकते है। एक फ्रेमवर्क पार्टी के आधार पर हो सकता है, और इसको अलग- लग तरीके से देखा और समझा जा सकता है जब पहली बार 15 अगस्त 1947 ई. को विदेश नीति की शुरुआत हुयी थी उसके बाद से जब तक पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु रहे उनकी अलग विदेश नीति को समझा जा सकता है उसके बाद श्रीमती इंदिरा गाँधी की अलग विदेशी नीति थी इस तरह से वर्तमान तक की विदेश नीति को समझना आवश्यक है |
- 1947 से 1967 तक कांग्रेस के प्रभुत्व में FOREIGN POLICY
- उसके बाद इन्दिरा युग
- उसके बाद 1977 मे जनता दल
- 1980 मे बीजेपी की FOREIGN POLICY
- 1991 के बाद LPG के दौर के बाद FOREIGN POLICYऔर
- अंत मे UPA और NDA की FOREIGN POLICY
दूसरा फ्रेमवर्क प्रधानमंत्रियों से जुड़ा है,दोनों ही फ्रेमवर्क विदेश नीति को समझने और तथ्यों को याद करने में मददगार होंगे।
APROACHES TO STUDY FOREIGN POLICY:-
परंपरागत रूप में विदेश नीति के मुख्यत: दो दृष्टिकोण Idealist तथा Realist होते है।
- Idealism– आदर्शवाद से प्रेरित विदेश नीति आदर्शवादी लक्ष्यों को अपना केंद्र मानती है। आदर्शवाद से अभिप्राय ऐसी नीति से है जिसमें एक आदर्श समाज की कल्पना की जाती है। इसमे विश्व बंधुत्व, मानवाधिकार, राष्ट्रों में परस्पर प्रेम एवं सदभाव, वैश्विक समस्याओं का वैश्विक सहयोग द्वारा समाधान जैसे आदर्श शामिल होते है।
- Realism- वहीं यथार्थवादी विदेश नीति राष्ट्रीय हित को सर्वोपरि रखती है। इसमें कूटनीति, चालबाजी, शक्ति वृद्धि जैसे लक्ष्यों को सामने रखा जाता है। क्योंकि भारत महात्मा गांधी के आदर्शवादी नेतृत्व में अंग्रेजों के खिलाफ अंहिसावादी राष्ट्रीय आंदोलन द्वारा स्वतंत्र हुआ इसलिए भारत की विदेश नीति पर आदर्शवाद का स्वाभाविक असर रहा। आदर्शवाद के प्रभाव का ही असर था कि भारत ने अपने राष्ट्रीय हित की तुलना में विश्व शांति, विश्व बंधुत्व और विश्व कल्याण को ज्यादा महत्व दिया।
उदहारण से समझें :-
इसे हम इन उदाहरणों से समझ सकते हैं कि नेहरू सरकार की रुचि विकसित देशों से संबंध मधुर बनाने के बजाय एशियाई देशों की स्थिति में सुधार करने में थी। इसी क्रम में भारत गुटनिरपेक्ष आंदोलन का अगुआ बना था । आदर्शवादी नारा हिन्दी चीनी भाई भाई के कारण भारत को 1962 में हार का सामना करना पड़ा।
अब भारत ने अपनी विदेश नीति में यथार्थवादी एवं आदर्शवाद के भेद को मिटाकर व्यवहार में दोनों को एक सिक्के के दो पहलू के रूप में स्थापित कर दिया है। आज दुनिया के सभी देश भारत की वैश्विक मानवीय समस्या को सुलझाने के प्रति सोच से प्रभावित हैं। वहीं पाकिस्तान के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक के चलते भारत की सामरिक क्षमता पर दुनिया के देश विश्वास भी करते हैं। यही कारण है। कि पूरी दुनिया भारत से दोस्ती चाहती है। यहाँ पर यह बात स्पष्ट करना जरूरी है की आगे के अध्याय में प्रधानमंत्रियों के कार्यकाल के अनुसार भारत की उत्तर औपनिवेशिक पहचान की चर्चा की जाएगी।
- विशेष राज्य का दर्जा (विशेष श्रेणी / एससीएस) की विशेषताएं क्या है?
- सी-सेक्सन/ Caesarean Delivery डिलिवरी के आंकड़े दिन-प्रतिदिन बढ़ते दिख रहे है, पूरी जानकरी क्या है?
- लोक सभा में अध्यक्ष तथा उपाध्यक्ष का चुनाव तथा नियम 8 की जानकारी बहुत महत्वपूर्ण है
- लोकसभा उपसभापति/उपाध्यक्ष की भूमिका और इतिहास का वर्णन कीजिये
- भारतीय इतिहास में किलों की प्रथम खोज कब हुयी थी पूरी जानकरी देखिये |
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FAQ
वर्तमान में परंपरागत रूप में FOREIGN POLICY के मुख्यत दो दृष्टिकोण होते है जोकि Idealist तथा Realist हैं |