जिस तरह से रूस और जापान का युद्ध का लेख अलग विश्वविद्यालयों, यूनिवर्सिटी B. A. History Honour की कक्षाओं में पढ़ाया जाता है उसको देखते हुए रूस और जापान युद्ध में कोरिया की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि वर्तमान में सिविल सर्वेस की परीक्षाओं में देखा गया है यहाँ से कुछ- न-कुछ जरुर पूंछा जाता है |
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युद्ध के दौरान कोरिया का इतिहास :-
रूस और जापान के संघर्ष का दूसरा क्षेत्र कोरिया था । इस युद्ध के बाद कोरिया पर जापान का प्रभुत्व कायम हो सका था। लेकिन, रूस के हस्तक्षेप से जापान की प्रभुता बहुत हद तक सीमित हो गई। फिर भी जापान ने अपने प्रयास जारी रखे और कोरिया पर अपना पूरा नियंत्रण कायम करने की कोशिश में जुटा रहा।
उस समय कोरिया का राजा जापानियों के इन प्रयासों का विरोध कर रहा था। ऐसी परिस्थिति में जापानी सैनिकों ने राजमहल पर हमला कर दिया लेकिन, राजा भाग निकला और रूस की सेना ने उसे बचा लिया। इस पर जापान रूस से बड़ा नाराज हुआ। 1902-03 ई. में रूस ने कोरिया में अपनी कार्यवाही और तेज कर दी। उसने यालू के मुहाने पर एक कोरियाई बंदरगाह पर कब्जा कर लिया, उत्तरी कोरिया के बंदरगाहों से मंचूरिया के सैनिक अड्डों तक सड़कें बना लीं तथा तार की लाइनें डाल लीं और सीओल से याहू तक रेल की पटरी बिछाने का ठेका लेने की कोशिश की।
जापानियों का विरोध :-
जापान ने इसका विरोध किया और जुलाई, 1903 ई. में रूस से दूसरी संधि का प्रस्ताव किया, जिसके अनुसार चीन और कोरिया की प्रादेशिक अखण्डता का आश्वासन तथा रूस से उन्मुक्त द्वार की नीति पर चलने का वादा माँगा। साथ ही, वह भी प्रस्ताव किया गया कि उक्त संधि द्वारा मंचूरिया में रूस के हित तथा कोरिया में जापान के विशेष स्वार्थों की रक्षा की जाए। किंतु, रूस ने इन्हें को मानने से इनकार कर दिया। यह बातचीत जनवरी, 1904 ई. तक चलती रही।
रूस जापान युद्ध के दौरान जापानी सम्राट् की शर्तें :-
12 जनवरी को जापानी सम्राट् ने आखिरी शर्तें रखीं कि यदि रूस, चीन की प्रादेशिक अखण्डता मान ले और मंचूरिया में जापान तथा अन्य देशों के वैध कार्यों में बाधा न डाले और कोरिया के जापानी हितों में हस्तक्षेप न करे तो जापान मंचूरिया को अपने प्रभाव क्षेत्र से बाहर समझने को तैयार है। जब इनका कोई संतोषजनक उत्तर न आया और रूसी फौजें बराकर पूर्व की ओर जमा होती रहीं तो युद्ध अवश्यंभावी हो गया।
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