Kakori Train Action day के नाम से प्रसिद्ध घटना अपने आप में क्रांतिकारियों के द्वारा की गयी बगावत इतिहास के पन्नों में हमेसा दर्ज रहेगी इस घटना ने काकोरी में पंजाब मेल रोक कर क्रांतिकारियों ने ब्रिटिश हुकूमत की नींद उड़ा दी |
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काकोरी ट्रेन घटना से पहले चौरा –चौरी कांड:–
- जब 1922 में, देश में एक तरफ असहयोग आन्दोलन अपने चरम पर था उसी साल फरवरी में “ चौरा –चौरी कांड हुआ यह गोरखपुर पुलिस स्टेशन में हुयी थी | तथा इसमें 22-23 पुलिस कर्मी जलकर मर गये थे |
- चौरा –चौरी कांड के लगभग दो वर्षों के बाद 9 अगस्त 1925 को क्रांतिकारियों ने एक ट्रेन में डकैती डाली थी यह ट्रेन सहारनपुर से लखनऊ की तरफ जा रही थी क्रांतिकारियों का मकसद सरकारी खजाना लूटकर पैसों से हथियार लूटना था |
काकोरी घटना में क्रांतिकारियों की भूमिका:-
- हिंदुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन (HRA) की स्थापना 1923 में शचीन्द्रनाथ सान्याल के द्वारा की गयी थी तथा इसी संगठन की काकोरी ट्रेन घटना में मुख्य भूमिका रहती है |
- काकोरी घटना से संबंध में जब एचआरए दल की बैठक हुयी तो असफाक उल्लाह खां ने ट्रेन डकैती का विरोध करते हुए कहा, “ इस डकैती से हम सरकार को चुनौती तो दे देंगे, परन्तु यहीं से पार्टी का अंत प्रारंभ हो जायेगा | क्योंकि दल इतना सुसंगठित और दृढ़ नहीं है इसीलिए अभी सरकार से सीधा मोर्चा लेना ठीक नहीं होगा” |
9 अगस्त 1925 का दिन :-
इस दिन 8 टाउन ट्रेन लखनऊ से चलकर सहारनपुर के लिए नकलती है इसी दौरान हिंदुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन (HRA) का दल के लोग दो भागों में विभाजित होते है, पहले दल के लोग जोकि ट्रेन के अंदर होते हैं और दूसरे दल के लोग ट्रेन के बहार रहने का निर्णय लेते है, जो लोग अंदर थे उनका काम ट्रेन को रोकने का काम था (एक निश्चित जगह पर) और जो लोग ट्रेन में सफ़र कर रहे थे उनको सहज महसूस कराया जाये | लेकिन जब सरकारी तिजोरी को खोलने की कोशिस की जा रही थी तभी आपाधापी में एक सामान्य व्यक्ति को गोली गल जाती है इसी को इस घटना का आधार बनाकर अंग्रेजी सरकार आगे की कार्यवाही शुरू करती है |
9 अगस्त 1925 के दिन की घटना के बाद का विवरण :-
- लखनऊ के पुलिस कप्तान मि. इंग्लिश ने 11 अगस्त 1925 को इस लूट का विवरण दिया और कहा कि इस डकैती में लगभग 25 लोग सामिल थे और 4601 रुपयों को लूटा गया |
- इस घटना के बाद देश के कई हिस्सों में बड़े स्टार पर गिरफ्तारियां हुयीं |
- 40 से ज्यादा लोग गिरफ्तार हुए |
- जिनकी गिरफ्तारियाँ हुयीं थी उनका मुकदमा कलकत्ता के बीके चौधरी ने लड़ा था |
- एतिहासिक मुकदमा लगभग 10 महीने तक लखनऊ की अदालत रिंग थियेटर में चला, यह रिंग थियेटर वर्तमान में लखनऊ का बड़ा डाकघर है |
- रिंग थियेटर के जज का नाम हेमिल्टन थे तथा इसी जज ने क्रांतिकारियों को सजाएं सुनायीं |
क्रांतिकारियों को सजाएं :-
- 6 अप्रैल 1927 को इस मुक़दमे का फैसला आया |
- धारा 121अ, 120ब, और 936 के तहत क्रांतिकारियों को सजाएं सुनाई गयी|
- रामप्रसाद “ बिस्मिल” राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी, रोशन सिंह, और असफाक उल्लाह खां को फांसी की सजा सुनाई गयी |
- शचीन्द्रनाथ सान्याल को कालेपानी और मन्मथनाथ गुप्त को 14 साल की सजा सुनाई गयी |
- योगेशचंद चटर्जी, मुकंदीलाल जी, गोविन्द चरणकर, राजकुमार सिंह और रामकृष्ण खत्री को 10-10 साल की सजा हुयी |
- विष्णुशरण दुब्लिश और सुरेन्द्रचंद्र भट्टाचार्य को सात-साल तथा भूपेन्द्रनाथ, रामदुलारे त्रिवेदी और प्रेमकिशन खन्ना को पांच-पांच साल की सजा हुयी |
- विशेष राज्य का दर्जा (विशेष श्रेणी / एससीएस) की विशेषताएं क्या है?
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FAQ
सरकार क्रांतिकारियों को चोर-डाकू कहकर बदनाम करती थी |
इन क्रांतिकारियों का मकदस ट्रेन में सरकारी खजाना लूटकर उन पैसों से हथियार खरीदना था |
हिंदुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन (HRA) की स्थापना 1923 में शचीन्द्रनाथ सान्याल के द्वारा कानपुर में की गयी थी |
यह 9 अगस्त 1925 घटित हुयी थी इसका उद्देश्य में पंजाब मेल रोककर उसमें जा रहा सरकरी खजाने को लूटकर हथियार खरीदना था |
दस्तावेजों से मिली जानकारी के अनुसार इस घटना में, 22-23 पुलिसकर्मी जलकर मर गये थे |